बुधवार, 26 मई 2021

रजाकार कौन थे और निजाम के शासन में उनके क्या कार्यकलाप थे?

 रजाकार  निजाम  शासन में हिन्दुओं के नृशंस हत्यारे ! 

( रजाकार दस्ता )

रजाकार कट्टरपंथी मुस्लिमों का हथियारबंद संगठन था जो हैदराबाद में निजाम के शासन के दौरान हिंदुओं पर अत्याचार करके उन्हें मुस्लिम बनने पर मजबूर करता था. यह नृशंस हत्यारों का समूह था जो निजाम के इशारे पर हैदराबाद में काफिरों के सफाये में संलग्न था. इसे उत्तर प्रदेश में जन्मे और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से शिक्षा पाए कासिम रिजवी ने बनाया था. इस संगठन ने हैदराबाद में लाखों हिंदुओं का कत्ल किया, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं.

यह हथियारबंद रजाकार संगठन हिंदू गांवों पर आक्रमण करता था, लूटपाट करता था, महिलाओं के साथ बलात्कार करता था. पुरुषों और बच्चों के मौत के घाट उतार देता था

यह बात उल्लेखनीय है कि असदुद्दीन ओवैसी इसी नृशंस रजाकारों के वंशज हैं.

निजाम को क्यों जरूरत पड़ी रजाकार संगठन की ?

निजाम को हिंदुओं के विरुद्ध बनाए गए कानूनों को सख्ती से लागू करने और न मानने वाले लोगों को मौके पर ही दंडित करने के लिए एक संगठन की जरूरत थी जिसके लिए रजाकार संगठन बनाया गया.

हिंदुओं के विरुद्ध निजाम के प्रतिबंध

  • निजाम सरकार के एक फरमान जिसे गस्ती निशान 53 यानी सरकारी आदेश संख्या 53 के द्वारा हिंदुओं को सार्वजनिक रूप से पूजा अर्चना करने की अनुमति नहीं थी.
  • हिंदू अपने देवी-देवताओं की शोभायात्रा निकालने की सोच भी नहीं सकते थे. मंदिरों पर पाबंदी थी. हिंदुओं की कोई भी धार्मिक सभा आयोजित नहीं की जा सकती थी. यहां तक कि हिंदू कोई भी सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं कर सकते थे चाहे वह गैर धार्मिक ही क्यों न हो .
  • कभी कभी रात के अंधेरे में चार छह हिंदू लोग मिलकर अपने घरों में बहुत धीमे-धीमे स्वरों में पूजा कथा और भजन कीर्तन कर लेते थे. अगर इसकी भनक रजाकार संगठन को लग जाती थी तो उस पूरे मोहल्ले को सजा दी जाती थी, जिसमें मौके पर ही उनकी हत्या करना भी शामिल था.
  • हिंदुओं के किसी भी धार्मिक आयोजन जैसे रामलीला, यक्षगान, कथा भागवत आदि पर पूरी तरह से प्रतिबंध था.
  • अगर कोई हवन यज्ञ करता हुआ पाया जाता था तो उसे तुरंत मौत के घाट उतार दिया जाता था.
    • निजामाबाद के एक युवक राधा कृष्ण मोदानी ने यज्ञ और हवन पर निजाम के प्रतिबंध का विरोध करते हुए बाजार में सार्वजनिक रूप से यज्ञ का आयोजन किया. रजाकार संगठन ने यज्ञ करते हुए ही राधा-कृष्ण गोदानी का कत्ल कर दिया. निजामाबाद के इस मुख्य बाजार को हिंदुओं ने राधा-कृष्ण गंज का नाम दिया था जो आज भी प्रचलित है.
  • भैरनपल्ली नाम के गांव में रजाकारों द्वारा 200 हिंदुओं को शांति वार्ता के लिए बुलाया गया और वहीं पर उन सभी को कत्ल कर दिया गया.
    • इसी तरह चिंतडपल्ली में स्वाधीनता सेनानियों को वार्ता के लिए बुलाया गया और सभी को मौत के घाट उतार दिया गया.
    • इस तरह के अनेक गांव हैं, जहां रजाकारों ने जाकर पूरे के पूरे गांव को जमींदोज कर दिया, पुरुषों और बच्चों की हत्या कर दी महिलाओं के साथ बलात्कार किया और उन्हें अपने साथ ले गए.
  • राज्य में हिन्दी, तेलुगु और मराठी पर पूरी तरह प्रतिबंध था और कोई भी स्कूल हिंदी, तेलुगु या मराठी माध्यम से पढ़ाई नहीं कर सकते थे.
    • स्कूलों कॉलेजों में हिंदुओं को भारतीय परिधान पहनने की अनुमति नहीं थी उन्हें मुस्लिम रिवाज और शरीयत के अनुसार ही कपड़े पहनने पढ़ते थे.
  • निजाम के शासनकाल में एक स्लोगन चलता था “अनअल मालिक” यानी (I am the Ruler) मैं शासक हूं और हर मुस्लिम हिन्दुओं से यही कहता था और अपने आप को निजाम समझता था.
  • भारत का दुर्भाग्य देखिए कि जिन पी वी नरसिम्हा राव ने निजाम शासन के विरुद्ध हैदराबाद के उस्मानिया यूनिवर्सिटी में धोती आंदोलन शुरू किया था, वह जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने आंध्र प्रदेश के आर्कियोलॉजिकल विभाग से हैदराबाद की इतिहास के चार वॉल्यूम प्रकाशित करवाएं जिसमें दो वॉल्यूम सिर्फ निजाम शासन से संबंधित हैं लेकिन 800 पेज के इन दोनों वॉल्यूम में रजाकार संगठन का कोई जिक्र नहीं है.
    • आसानी से समझा जा सकता है की स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस ने वोटों की खातिर इतिहास को भी बदल डाला.
    • आज तेलंगाना, हैदराबाद और आंध्र प्रदेश के लोग अपना वास्तविक इतिहास खोज रहे हैं.
    • इंटरनेट मीडिया पर मजलिस और निजाम शासन के गुणगान करने वाला इतिहास मिलेंगे यहां तक कि तत्कालीन कांग्रेसी सरकारों की सहमति से कुछ लोगों ने रजाकार संगठन के कासिम रिजवी को स्वतंत्रता सेनानी भी घोषित कर दिया है और इससे सम्बंधित कई झूठी और फरेबी वीडियो यूट्यूब और गूगल सर्च में मिल जाएंगे.

( हैदराबाद से हिन्दुओ का पलायन )

हैदराबाद का ऑपरेशन पोलो :

  • निजाम ने हैदराबाद के भारत में विलय से आनाकानी की, और इसे या तो पाकिस्तान में मिलाने या स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र बनाने की कोशिश की. इसके लिए उसने अपनी सेना और रजाकार संगठन को विरोध करने के लिए आगे कर दिया. इस विरोध को जिन्ना का भी समर्थन प्राप्त था जिन्होंने पाकिस्तान का बॉर्डर बंद कर दिया था और पाकिस्तान जाने की इच्छा रखने वाले वाले सभी मुसलमानों से कहा था कि वह हैदराबाद में जाकर आबाद हो.  
  • अपने इरादे से अटल सरदार पटेल को हैदराबाद के विलय के लिए ऑपरेशन पोलो चलाना पड़ा. बताया जाता है कि कुछ गांव ऐसे थे जो पूर्णरूपेण रजाकारों के ही गांव थे, जहां भारतीय सेना और पुलिस पर जबरदस्त आक्रमण किए गए लेकिन इसमें निजाम की सेना और रजाकार संगठन को भारी क्षति पहुंची.  
  • विडंबना देखिए जब रजाकार सेना हिंदुओं पर अत्याचार करती थी तो कहा जाता था कि यह चंद भटके हुए लोगों का संगठन है लेकिन ऑपरेशन पोलो में मारे गए यह भटके हुए रजाकार अचानक मुस्लिम हो गए, जिनकी की मौत पर नेहरू जी बहुत दुखी हुए और उन्होंने एक तीन सदस्य गुडविल मिशन हैदराबाद भेजा जिसकी अध्यक्षता पंडित सुंदरलाल कर रहे थे और इसके अन्य सदस्य थे काजी अब्दुल गफ्फार और मौलाना अब्दुल्लाह मिसरी.  
  • अफवाह उड़ाई गई कि ऑपरेशन पोलो में 50 हजार से 2 लाख के बीच मुस्लिमों की हत्या कर दी गई है ताकि सरदार पटेल को नीचा दिखाया जा सके और उनकी लोकप्रियता को कम किया जा सके. यद्यपि गुडविल मिशन न तो कोई आयोग था और ना ही कोई कमेटी इसलिए इसे रिपोर्ट करने की कोई आवश्यकता नहीं थी लेकिन सरदार पटेल को नीचा दिखाने के लिए नेहरू ने दबाव बनाकर इन सदस्यों से एक रिपोर्ट बनवाई ताकि तथाकथित मुस्लिम नरसंहार की कहानी सामने लाई जा सके. अन्य कांग्रेसी मंत्रियों के विरोध के कारण इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया जिसके कारण गलतफहमी और बढ़ती गई लेकिन यह रिपोर्ट आज भी इंटरनेट मीडिया पर धड़ल्ले से उपलब्ध है.  

      (The Nizam of Hyderabad receiving Sardar Patel after Operation Polo at Begum pet Airport

      कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए हैदराबाद का इतिहास इस तरह बदल डाला कि हिंदुओं की नई पीढ़ी के लोगों को इन राजाकारों के बारे में सही जानकारी मिल सके. हैदराबाद के राका सुधाकर राव जैसे समाजसेवी इस दिशा में अथक प्रयास कर रहें हैं . [1]

      आज रजा कारों की उत्तराधिकारी ए आई एम आई एम (ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन), जिसके नेता असदुद्दीन ओवैसी हैं, से टीआरएस और कांग्रेस दोनों ही गठबंधन के लिए उतावले रहते हैं .

      शायद आज भी हिंदुओं के इस देश में, एक हजार साल की गुलामी के अत्याचारों को सहते हुए अपनी अस्मिता और धार्मिक रक्षा करके आज जो हिंदू शेष है, उनकी सुनने वाला कोई भी नहीं है.

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      References

      [1] Who were the Razakars and what were their activities under the Nizam's rule?

      [2] https://www.youtube.com/watch?v=7b3PUCmCSFs&t=1157s

      [3] https://indusscrolls.com/how-hyderabad-nizams-beastly-army-unleashed-a-reign-of-terror-on-hindus/

      [4] https://www.youtube.com/watch?v=ohqIiuLw8CI

      [5] Unaccounted reports of Hindu genocide under the Nizam of Hyderabad

      [6] https://www.youtube.com/watch?v=_1TSsytza-8

      [7] https://www.youtube.com/watch?v=ARe5cH_wc5s

      [8] Survivor of Razakars’ brutality reminisces

      फुटनोट

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               -शिव मिश्रा 

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      पी वी नरसिम्हाराव का धोती आन्दोलन

       


      पीवी नरसिम्हा राव का धोती आंदोलन क्या था और इसकी उन्हें क्या सजा मिली थी?

      हैदराबाद में निजाम के शासन काल में हिंदुओं पर तरह तरह की पाबंदियां लगाई गई थी. हिंदुओं की पूजा और मंदिरों पर प्रतिबंध था. सभी हिंदुओं को फर्शी सलाम करना पड़ता था ( झुक कर सलाम करना जिसमें हाथ जमीन से छूता रहें).[1]

      हिंदी मराठी और तेलुगू भाषाओं पर प्रतिबंध था किसी भी स्कूल कॉलेज में यह भाषाएं नहीं पढ़ाई जाती थी. तत्कालीन हैदराबाद रियासत में केवल निजाम कॉलेज और उस्मानिया यूनिवर्सिटी ही थे. जहाँ हिंदू छात्रों के साथ दूसरे दर्जे के नागरिक की तरह व्यवहार किया जाता था. उनके लिए छात्रावास अलग थे और उन्हें विश्वविद्यालय या छात्रावास में कहीं पर भी भारतीय परिधान पहनने की छूट नहीं थी. उन्हें मुस्लिम पोशाक या शरीयत के अनुसार पोशाक पहननी पड़ती थी. छात्रावास के अंदर भी भारतीय धोती पहनने पर प्रतिबंध था.

      इसके विरोध में छात्रों ने उस्मानिया यूनिवर्सिटी में 15 दिन तक आंदोलन किया और इस आंदोलन का नेतृत्व किया पीवी नरसिम्हा राव ने, इस आंदोलन को धोती आंदोलन कहा जाता है.

      इस आंदोलन के कारण पीवी नरसिम्हाराव सहित लगभग 242 छात्रों को उस्मानिया से निष्कासित कर दिया गया. उस्मानिया यूनिवर्सिटी द्वारा देश के सभी विश्वविद्यालयों को पत्र भेजा गया कि इन छात्रों को प्रवेश न दिया जाए. किंतु महाराष्ट्र के नागपुर विश्वविद्यालय ने इन सभी 242 छात्रों को अपने यहां न केवल प्रवेश दिया बल्कि पढ़ाई की सारी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जिसके कारण इन छात्रों की पढ़ाई पूरी कर सके.

      निजाम के शासनकाल में यह अपनी तरह का पहला आंदोलन था जिसने बाद में निजाम शासन के विरुद्ध आंदोलन करने का रास्ता खोल दिया. स्वतंत्रता के बाद जब निजाम ने भारत में विलय से आनाकानी की तो इस आंदोलन से प्रेरित बहुत से लोगों ने निजाम के विरुद्ध जनादेश बनाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.

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      - शिव मिश्रा

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