पीवी नरसिम्हा राव का धोती आंदोलन क्या था और इसकी उन्हें क्या सजा मिली थी?
हैदराबाद में निजाम के शासन काल में हिंदुओं पर तरह तरह की पाबंदियां लगाई गई थी. हिंदुओं की पूजा और मंदिरों पर प्रतिबंध था. सभी हिंदुओं को फर्शी सलाम करना पड़ता था ( झुक कर सलाम करना जिसमें हाथ जमीन से छूता रहें).[1]
हिंदी मराठी और तेलुगू भाषाओं पर प्रतिबंध था किसी भी स्कूल कॉलेज में यह भाषाएं नहीं पढ़ाई जाती थी. तत्कालीन हैदराबाद रियासत में केवल निजाम कॉलेज और उस्मानिया यूनिवर्सिटी ही थे. जहाँ हिंदू छात्रों के साथ दूसरे दर्जे के नागरिक की तरह व्यवहार किया जाता था. उनके लिए छात्रावास अलग थे और उन्हें विश्वविद्यालय या छात्रावास में कहीं पर भी भारतीय परिधान पहनने की छूट नहीं थी. उन्हें मुस्लिम पोशाक या शरीयत के अनुसार पोशाक पहननी पड़ती थी. छात्रावास के अंदर भी भारतीय धोती पहनने पर प्रतिबंध था.
इसके विरोध में छात्रों ने उस्मानिया यूनिवर्सिटी में 15 दिन तक आंदोलन किया और इस आंदोलन का नेतृत्व किया पीवी नरसिम्हा राव ने, इस आंदोलन को धोती आंदोलन कहा जाता है.
इस आंदोलन के कारण पीवी नरसिम्हाराव सहित लगभग 242 छात्रों को उस्मानिया से निष्कासित कर दिया गया. उस्मानिया यूनिवर्सिटी द्वारा देश के सभी विश्वविद्यालयों को पत्र भेजा गया कि इन छात्रों को प्रवेश न दिया जाए. किंतु महाराष्ट्र के नागपुर विश्वविद्यालय ने इन सभी 242 छात्रों को अपने यहां न केवल प्रवेश दिया बल्कि पढ़ाई की सारी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जिसके कारण इन छात्रों की पढ़ाई पूरी कर सके.
निजाम के शासनकाल में यह अपनी तरह का पहला आंदोलन था जिसने बाद में निजाम शासन के विरुद्ध आंदोलन करने का रास्ता खोल दिया. स्वतंत्रता के बाद जब निजाम ने भारत में विलय से आनाकानी की तो इस आंदोलन से प्रेरित बहुत से लोगों ने निजाम के विरुद्ध जनादेश बनाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.
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- शिव मिश्रा
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