शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

उत्तर प्रदेश 2022 के चुनावों के लिए आपकी क्या भविष्य वाणी हैं? आपको क्या लगता है कौन जीतेगा?

 उत्तर प्रदेश में चुनावी   चौपाल और राजनैतिक हवा का रुख 

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक चौपाल सजने लगी हैं और चुनावी बयार बहने लगी है .

आइये प्रदेश में इस समय चल रही राजनीतिक हवा पर एक दृष्टि डालते हैं ताकि आप स्वयं 2022 के विधानसभा चुनाव की भविष्यवाणी कर सकें -

  1. बहन जी बसपा की सफाई पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं जो यह संकेत देता है कि उनकी पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है और कई बड़े नेता समाजवादी पार्टी के संपर्क में थे और कुछ एक ने भाजपा से भी नज़दीकियां बनाई हुई थी. मायावती जी का द्रष्टिकोण एकदम साफ है कि वह समाजवादी पार्टी या किसी अन्य पार्टी के साथ कोई भी चुनावी गठबंधन नहीं करेंगी और अकेले ही चुनाव में उतरेगी. पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने समाजवादी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया था और उनके अनुसार उन्हें कोई बहुत फायदा नहीं हुआ था और उसी गठबंधन का परिणाम था कि उनकी पार्टी में समाजवादी पार्टी ने सेंध लगा दी थी और कई नेता बागी होकर समाजवादी पार्टी से जुड़ गए थे.
  2. समाजवादी पार्टी अखिलेश यादव के नेतृत्व में यह विधानसभा और लोकसभा के चुनाव बुरी तरह से हारने के बाद अब तीसरी बार पूरे दमखम के साथ चुनाव में उतरेने को तैयार है. अखिलेश यादव का प्रयास है कि वे छोटी-छोटी पार्टियों के साथ चुनावी गठबंधन करेंगे लेकिन किसी बड़ी राजनीतिक पार्टी के साथ कोई गठबंधन नहीं करेंगे इसलिए संभव हो सकता है कि वह राष्ट्रीय लोक दल, अपना दल का एक भाग, निषाद पार्टी, चंद्रशेखर उर्फ़ रावण की भीम आर्मी सहित अपने सगे चाचा शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी आदि के संपर्क में है.
    1. पंचायत चुनाव में अपनी पीठ ठोकने वाले अखिलेश यादव को जिला पंचायत चुनाव में शुरुआती झटके लगे हैं और भाजपा लगभग 20 जिला पंचायतों में अपने अध्यक्ष निर्विरोध निर्वाचित करवाने में सफल रही. समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी या तो समय पर अपना नामांकन दाखिल नहीं कर सके या उनके नामांकन गलत पाए गए, जो संकेत देता है कि कहीं न कहीं इन प्रत्याशियों की भाजपा से मिलीभगत रही है.
    2. गुस्से में अखिलेश यादव ने इन जिलों में ज्यादातर जिला अध्यक्षों और अन्य पदाधिकारियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. चुनावी मौसम में इस तरह की गुस्से की बारिश को शुभ नहीं माना जाता और यह यह इस बात का संकेत भी देता है कि अखिलेश यादव चुनावी जंग लड़ने के लिए रणनीतिक रूप से मजबूत सेनापति नहीं है.
    3. यहां पार्टी को मुलायम सिंह और शिवपाल सिंह की कमी खल रही है. अगर यही हाल रहा तो समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव का युद्ध पूरे दमखम से शायद ही लड़ पाए .
  3. भाजपा के पुराने सहयोगी कायम है सिर्फ एक ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव समाज पार्टी के जिसका पूर्वांचल के कुछ विधानसभा इलाकों में प्रभाव है, छिटक गई है . भाजपा ने उनकी भरपाई के लिए राजभर समाज के एक नेता को मंत्री भी बनाया है और राजा सुहेलदेव के लिए स्मारक आदि का निर्माण कराया है इसलिए इस पार्टी के छिटक जाने का कोई फर्क शायद नहीं पड़ेगा.
    1. इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के कैडर ने जमीनी स्तर पर सामाजिक संरचना का ताना-बाना मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी है. जहां कहीं असंतोष के स्वर सुनाई पड़ रहे हैं उन्हें किसी न किसी माध्यम से संतुष्ट करने की कोशिश की जा रही है.
    2. प्रदेश भाजपा में संगठन, सरकार और मंत्रिमंडल सदस्यों के बीच जो दरारे सामने आ रही थी और जिन्हें मीडिया द्वारा बहुत हवा दी जा रही थी, को पार्टी शांत करने में काफी हद तक सफल रही है . विपक्षी दलों और मीडिया के एक वर्ग द्वारा इस मामले को तूल दिए जाने से भाजपा कार्यकर्ताओं में एक सकारात्मक संदेश भी चला गया है कि जो भी कुछ सुनाई पड़ रहा है वह विपक्ष की साजिश है.
    3. प्रदेश में बड़ी संख्या में सामने आए लव जिहाद और धर्मांतरण के मामले से हिंदू जनमानस में एक बेचैनी घर कर गई है और ऐसे में उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा 20 से अधिक राज्यों में छापे मारकर सुनियोजित साजिश और विदेशी षड्यंत्र का पर्दाफाश किया है उसे लोगों में एक बार फिर योगी आदित्यनाथ के प्रति श्रद्धा भाव उत्पन्न हो गया है.
    4. बहुसंख्यक हिंदुओं का मानना है कि इन परिस्थितियों में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के अलावा कोई दूसरा मुख्यमंत्री शायद ही इतना प्रभावी ढंग से कार्यवाही कर सके.
  4. उत्तर प्रदेश की राजनीति में पर्दे के पीछे भी गोटियां बिछाई जा रही हैं जिसके अनुसार सभी दलो को भाजपा के विरुद्ध एकजुट करने का काम शीर्ष स्तर पर शरद पवार जैसे कद्दावर नेताओं ने अपने हाथ में ले लिया है और वह ममता बनर्जी अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव के संपर्क में हैं.
    1. समझा जाता है कि प्रशांत कुमार ने शरद पवार को सुझाव दिया है कि पश्चिम बंगाल की तरह कांग्रेस को चाहिए कि वह उत्तर प्रदेश में “फेड आउट” हो जाए यानी बिना समर्थन दिए समाजवादी पार्टी की सहायता करें जिसके अंतर्गत कमजोर प्रत्याशी खड़ा करना और बड़े नेताओं द्वारा चुनाव प्रचार न करना शामिल है. इसके बदले समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में कांग्रेसी की सहायता करें. समझा जाता है कि राहुल गांधी को यह सुझाव पसंद भी आया है क्योंकि वह भाजपा को हराने के लिए खुद को हराने से कभी पीछे नहीं हटते .
  5. कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में कमान प्रियंका वाड्रा के हाथ आने के बाद यहां भी कांग्रेसका प्रचार अभियान टूलकिट आधारित ही हो गया है और वह ज्यादातर सोशल मीडिया में ही हो रहा है.
    1. राजनीतिक हलकों के जानकार कहते हैं कि कांग्रेस के साथ अजीब संयोग होता है, पिछले चुनाव में उनका राष्ट्रीय अध्यक्ष पप्पू था, आपकी बार उनका प्रदेश अध्यक्ष लल्लू है. ऐसे में कांग्रेस क्या करेगी ?
  6. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में दस्तक देने की कोशिश की थी लेकिन एक रणनीतिक गलती करते हुए अरविंद केजरीवाल ने सुल्तानपुर निवासी राज्यसभा सांसद संजय सिंह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना दिया, जिनका अतीत न केवल कलंकित है बल्कि बच्चे बच्चे की जुबान पर है. उनके इसी पिछले रिकॉर्ड ने आम आदमी पार्टी की बढ़त पहले ही रोक दी थी और उस पर राम मंदिर भूमि घोटाले की हवा बनाने के चक्कर में करेला नीम पर चढ़ गया .
    1. आज की स्थितियों में आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश में “न तीन में न तेरह में”की स्थिति हो गयी है .
  7. एक अन्य विचित्र राजनैतिक घटना क्रम में सोहेल देव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी से समझौता किया है और उन्होंने दावा किया है कि उन्हें तृणमूल कांग्रेस आम आदमी पार्टी और निषाद पार्टी का समर्थन प्राप्त है और उनका गठबंधन एक साथ चुनाव में लड़ेगा और उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होगा.
    1. अपनी घोषणा में राजभर ने कहा है कि पांचों दलों का एक एक वर्ष के लिए मुख्यमंत्री होगा और हर दल का एक एक उप मुख्यमंत्री होगा. इस प्रकार 5 वर्ष के शासनकाल में पांच मुख्यमंत्री और 20 उप मुख्यमंत्री होंगे और सभी दल अपना हिस्सा बराबर बराबर बांट सकेंगे.

सपा और बसपा में गठबंधन न होने के कारण भाजपा को थोड़ा नुकसान जरूर उठाना पड़ेगा. कुछ लोगों को यह शायद अजीब लगे लेकिन यह सच्चाई है और उसका कारण है कि उत्तर प्रदेश में दलितों सबसे ज्यादा अत्याचार यादव और मुसलमान ही करते हैं जो समाजवादी पार्टी का कोर वोट बैंक है. सपा बसपा के गठबंधन की स्थिति में सपा का वोट तो बसपा को ट्रांसफर हो जाता है लेकिन बसपा का वोट सपा को ट्रांसफर नहीं होता और इसकी जगह बसपा के वोटर भाजपा को वोट करते हैं. सपा और बसपा के अलग-अलग चुनाव लड़ने से भाजपा को होने वाला यह फायदा नहीं हो पाएगा.

उपरोक्त परिस्थितियों में कोई भी यह बात आसानी से समझ सकता है योगी आदित्यनाथ के रास्ते में इस समय कोई बहुत बड़ी बाधा नहीं है.

अब निष्कर्ष निकलना आपके हाथ हैं

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