रविवार, 15 अक्तूबर 2023

इसराइल, हमास और भारत

 

हमें इसराइल, हमास और भारत को आज के परिपेक्ष्य में समझना होगा. हमें हमास और फिलिस्तीन में भी अंतर करना होगा. इस समय फिलिस्तीन कहीं भी परिद्रश्य में नहीं है लेकिन वर्ग विशेष और उसके प्रेमी फिलस्तीन के बहाने आतंकवाद को समर्थ देते हैं.

संयुक्त राष्ट्र संघ की योजनानुसार 14 मई 1948 को रात 12:00 बजे अस्तित्व में आने के बाद से ही इजराइल इस्लामिक जिहाद का सामना कर रहा है क्योंकि अस्तित्व में आने के 5 मिनट बाद ही उस पर आक्रमण हो गया. तब से इजरायल ने न केवल इन आक्रमणों के साथ जीना सीखा बल्कि उनके साथ आगे बढ़ना भी सीखा और अपनी प्रगति और समृद्धि का उदाहरण दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किया. विश्व के ज्यादातर लोग तभी से यहूदियों को सही अर्थों जान सके लेकिन उससे पहले इन यहूदियों पर कितना अत्याचार हुआ, इन्हें मिटाने का प्रयास किया गया, अधिकांश लोग नहीं जानते और विमर्श भी ऐसा बनाया जाता है की लोग सच्चाई जान भी नहीं पाते. 1949 में एक आर्मीस्‍टाइस लाइन खींची गई, जिसमें फिलिस्‍तीन के 2 क्षेत्र बने- वेस्‍ट बैंक तथा गाजा और दोनों के बीच इजराइल. इस प्रकार फ़िलिस्तीन दो जगह ठीक उसी प्रकार था जैसे विभाजन के बाद भारत के पश्चिमी और पूर्वी ओर पाकिस्तान था. गाजा लगभग 40 किलोमीटर लंबी और 6 से 8 किलोमीटर चौड़ी समुद्र के किनारे एक पट्टीनुमा जगह है इसलिए इसे गाजा पट्टी भी कहा जाता है, जो 2005 तक इजरायल के कब्जे में थी लेकिन 2005 में इजराइल ने शांति समझौते के अंतर्गत गाजा की इस भूमि से अपना कब्जा हटा कर फ़िलिस्तीन को सौंप दिया. फ़िलिस्तीन के हाथों से गाजा की यह भूमि आतंकी संगठन हमास के हाथों आ गई. हमास के मुखिया कतर में रहकर गाज़ा का शासन चलाते हैं. हमास की वित्तीय जरूरतें अरब देशों के अतिरिक्त ईरान पूरी करता है जिससे वह अपनी आतंकवादी गतिविधियाँ चलाता है. स्वाभाविक है इन देशों की सहायता से ही हमास इसराइल पर इतना बड़ा आक्रमण कर सका.

आतंकी संगठन हमास द्वारा इजराइल पर किया गया आक्रमण हाल के दिनों में इस्लामिक जिहाद की क्रूरतम घटनाओं में से एक है जिसने पूरे विश्व के अधिकांश मनुष्यों की अंतरआत्मा को झकझोर दिया सिवाय कुछ उन लोगों के जिनके अंदर मानवता नाम की कोई चीज़ नहीं होती. दुर्भाग्य से भारत का इतिहास इस्लामिक आक्रांताओं के इससे भी अधिक घिनौने भयानक और अमानवीय कुकृत्यों से भरा पड़ा है, जिसे आज की पीढ़ी ठीक से जानती भी नहीं क्योंकि नेहरू ने इतिहास में लीपापोती कर इस्लामिक आक्रांताओं के कुकृत्यों पर पर्दा डालने का काम किया. ये छिपी हुई बात नहीं कि हमास इजरायल को पूरी तरह समाप्त करके पूरे क्षेत्र को फ़िलिस्तीन घोषित करके इस्लामिक साम्राज्य स्थापित करना चाहता है.

  1. ऐसे समय जब इजराइल छुट्टियां मना रहा था और गाजा पट्टी के निकट संगीत महोत्सव चल रहा था, हमास ने इजराइल की बेहद चाक चौबंद सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए तीन तरफ से आक्रमण किया. संगीत महोत्सव में आये अधिकांश लोगों को आतंकियों नें बेहद निर्ममता से मार डाला और बहुत से लोगों को बंधक बना लिया. आतंकियों ने घरों में घुसकर क्रूरता की सारी सीमाएं तोड़ते हुए परिवार के परिवार साफ कर दिए. अगवा की गई महिलाओं और बच्चों के साथ दरिंदगी की सारी सीमाएं तोड़ दी गई. जीवित महिलाओं के साथ ही नहीं, उनकी लाशों तक के साथ दरिंदगी की गई. मृत महिलाओं के शरीर को निर्वस्त्र करके सार्वजनिक परेड कराई गई. कई छोटे छोटे बच्चो के सिर तन से जुदा कर दिए गए. इजराइल में मृतकों का आंकड़ा अब तक 1300 पार कर चुका है, लगभग 10,000 लोग घायल हैं, जिनमें 2000 की हालत गंभीर हैं. इजराइल ने स्वाभाविक प्रतिक्रिया स्वरूप युद्ध घोषित करते हुए गाजा पट्टी पर ताबड़तोड़ हमले किये. इजराइल की गई कार्रवाई के बाद हमास ने गाजा में अपहृत लोगों की परेड कराकर इजराइल को धमकी दी है कि अगर उसने गाजा पर हमले किए तो बंधकों की हत्या कर दी जाएगी। इस तरह का ब्लैकमेल इस्लामिक आतंकवादियों के लिए नया नहीं है। 

इसके बाद दुनियाभर के देश पक्ष विपक्ष में खड़े होने लगे. एक तरफ ऐसे देश हैं, ऐसे लोग हैं जिन्होंने हमास आतंकियों द्वारा की गई अमानवीय और हृदय विदारक कार्रवाइयों की घोर निंदा की है और आतंकी कार्रवाइयों के विरोध में एकजुटता प्रदर्शित करते हुए इजरायल के साथ खड़े हैं. वहीं दूसरी ओर ऐसे देश हैं जो इस्लामिक भाईचारा और जेहाद को समर्थन करते हुए हमास के साथ खड़े हैं. भारत के अंदर जैसी प्रतिक्रिया हुई है, हैरान करने वाली नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल पर आतंकी हमले की निंदा करने में बिल्कुल भी देर नहीं लगायी और आतंक के विरुद्ध इजरायल के साथ मजबूती से खड़े रहने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. इसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है क्योंकि भारत में अब तक सरकारों द्वारा इस तरह के निर्णय केवल भारतीय मुसलमानों को देखकर ही किए जाते रहे हैं, मानवता या राष्ट्रीय हित गौण होते थे. इस प्रकार अधिकांश समय भारत की विदेश नीति पर तुष्टिकरण की छाया रहती आयी है। स्वतंत्रता के बाद शायद यह पहली बार है, जब किसी सरकार ने सच को सच और झूठ को झूठ कहने की हिम्मत दिखाई है, और ये बेहद साहसिक कदम है. सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत स्वतंत्र फिलिस्तीनी की मांग का भी समर्थन करता है और उसकी परंपरागत विदेशनीति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है लेकिन किसी भी आतंकी कार्रवाई का समर्थन नहीं किया जा सकता है.

मोदी सरकार द्वारा इजरायल को समर्थन देने का फैसला राष्ट्रीय फैसला है, और सभी देशवासियों को इसका सम्मान करना ही चाहिए। दुर्भाग्य से भारत इस मामले में भी एकजुटता नहीं दिखा सका. कांग्रेस कार्यसमिति ने आतंकी कार्रवाई का विरोध नहीं किया लेकिन फ़िलिस्तीन को अपना समर्थन किया. यद्यपि वर्तमान मामला इजराइल और आतंकवादी संगठन हमास के बीच का है, और हमास को फ़िलिस्तीन की सेना नहीं माना जा सकता और अगर फ़िलिस्तीन की सेना भी होती, तो भी अमानवीय कार्रवाई स्वीकार्य नहीं की जा सकती. भारत के मुसलमानों के एक बहुत बड़े वर्ग ने हमेशा की तरह मुस्लिम ब्रदरहुड के नाम पर हमास का समर्थन किया और मोदी द्वारा हमास के बर्बर आतंकी तांडव का विरोध करने और इजरायल के साथ सहानुभूति प्रदर्शित करने की कड़ी भर्त्सना की. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हमास की कार्रवाई का समर्थन किया है। बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने बयान जारी कर कहा कि हमास की मौजूदा कार्रवाई फलस्तीनी जनता के साथ किए जा रहे जुल्म और मस्जिद अल-अक्सा की बेहुरमती (अपमान) की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। उसने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की परंपरा को नजरअंदाज कर शोषितों के बजाय उत्पीड़न करने वालों का खुला समर्थन किया, जो देश के लिए बेहद शर्मनाक और दुखद है। इस तरह की विचारधारा घृणित, सांप्रदायिक और मानवता विरोधी हैं, जिसकी हर संभव निंदा की जानी चाहिए. फ़िलिस्तीन के अधिकारों पर बात हो सकती है लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित दुर्दांत आतंकी संगठन और उसके कुकृत्यों की तरफदारी नहीं की जा सकती और उसके साथ खड़े होने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अलावा भी कई मुस्लिम राजनेताओं ने हमास की कार्रवाई का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समर्थन किया. भारत में आतंकी घटनाओं पर मुस्लिम समुदाय हमेशा कहता है कि आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता तो फिर आज धर्म के नाम पर हमास का समर्थन क्यों।

इंदिरा गाँधी के इशारे पर गठित मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड शुरू से ही देश में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच घृणा उत्पन्न करके देश का वातावरण सांप्रदायिक बनाने का कार्य कर रहा है. सरकार को चाहिए कि इस राष्ट्र विरोधी संगठन को तुरंत प्रतिबंधित करे. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का बेतुका बयान देश में दंगे कराने की बड़ी साजिश हो सकता है. वैसे भी 2024 के चुनावों के मद्दे नजर अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक बामपंथ गठजोड़ भारत में तरह तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहा है या उनके विमर्श स्थापित कर रहा है. जिसमे हिंदू मुस्लिम टकराव, हिंदुओं में जाति संघर्ष करवाना प्रमुख अजेंडा है। मणिपुर से मेवात तक और गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में घटित तमाम घटनाओं में इस अजेंडे की झलक है।

इस सबके बीच मुस्लिम समाज से आशा की एक किरण भी उभरी है, जो भारतीय मुसलमानों के एक वर्ग के प्रगतिशील दृष्टिकोण का परिचायक है. ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम समाज ने इजराइल और फलस्तीन के बीच चल रहे युद्ध में आम नागरिकों के मारे जाने पर दुख जताते हुए संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष परवेज हनीफ ने कहा कि हम किसी भी प्रकार की हिंसा का समर्थन नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि ये पूरा मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर का है, इसलिये भारत सरकार की जो भी रणनीति होगी, उनका संगठन उसका समर्थन करेगा। निश्चित रूप से ऐसे मुस्लिम संगठनों की जो कट्टरता का जाल तोड़कर राष्ट्र की मुख्यधारा के साथ खड़े होने का साहस रखते हैं, प्रशंसा की जानी चाहिए और उनकी आवाज को महत्त्व भी दिया जाना चाहिए.

भारत के देशभक्त लोगों को बेहद सतर्क रहने की आवश्यकता है, क्योंकि इजराइल की ही तरह कई इस्लामिक संगठन गज़वा ए हिंद के माध्यम से भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहते हैं. इसलिए जाति पाति का भेदभाव भुलाकर जिहादी विचारधारा और इसका समर्थन करने वाले राजनैतिक दलों का पुरज़ोर विरोध करके यह यह भी सुनिश्चित करें कि ऐसे राजनीतिक दल किसी भी परिस्थिति में सत्ता में न सके अन्यथा भारत के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है.

~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~~~



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