शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

कर्णाटक में जजिया टैक्स

 

 

सोये सनातन पर एक और प्रहार है ये , नया नहीं, पहला नहीं और आख़िरी भी नहीं. यदि हिन्दू नहीं जागा तो ये तब तक चलेगा जब तक भारत इस्लामिक राष्ट्र नहीं बन जाता. 

21 फरवरी 2024 को कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम संशोधन विधेयक 2024 को विधानसभा में पारित करवाकर संशोधित कानून लागू कर दिया. जिसके अनुसार राज्य के ऐसे सभी मंदिरों पर जिनके दानपात्र में आये चढ़ावे की वार्षिक राशि ₹10 लाख रुपए से 1 करोड़ के बीच है, 5% का टैक्स लगा दिया है. जिन मंदिरों की चढ़ावे की वार्षिक राशि 1 करोड़ रुपए से अधिक है, पर 10% का टैक्स लगा दिया है. ये सभी वे मंदिर हैं, जो सरकारी नियंत्रण वाले मंदिरों के अतिरिक्त जिनकी संख्या 35,000 से भी अधिक है. टैक्स की यह राशि कॉमन पूल फंड में डाली जाएगी जिसका उपयोग ज़रूरतमंद धार्मिक संस्थाओं के लिए किया जाएगा. अधिनियम में जोड़ी गईं दो धाराएं बेहद खतरनाक हैं जो सनातन धर्म और प्राचीन भारतीय सनातन संस्कृति को समाप्त करने के प्रयास के अलावा और कुछ नहीं हो सकता है.

इस संशोधित अधिनियम की धारा 19 (ए) के अनुसार कॉमन पूल में एकत्र की गई धनराशि का उपयोग किसी भी ज़रूरतमंद धार्मिक संस्था के लिए किया जा सकता है. यानी वसूली गई धनराशि का उपयोग इस्लामिक और क्रिश्चियन संस्थाओं पर भी किया जायेगा. अभी भी मंदिरों से प्राप्त धनराशि को मुस्लिम और क्रिश्चियन संस्थाओं को दिया जाता है, जिसका व्यापक विरोध हो रहा है और इस संदर्भ में कई याचिकाएं न्यायालयों में लंबित भी है, इसलिए कानून बनाया गया. अधिनियम की धारा 25 के अनुसार समग्र संस्थाओं के मामले में हिंदू और अन्य धर्मों दोनों के सदस्यों को प्रबंधन समिति में नियुक्त किया जा सकता है। इसका आशय है कि सरकार अपने नियंत्रण वाले मंदिरों की प्रबंध समिति तथा अन्य मंदिरों को चलाने वाली प्रबंध समितियों में गैर हिंदुओं को सदस्य और पदाधिकारी के रूप में बैठना चाहती है. इस तरह की व्यवस्था आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु में लागू हो चुकी है और कर्नाटक की कांग्रेस सरकार वी इन्हीं राज्यों की तरह राज्य में कर्नाटक में हिंदू मंदिरों और सनातन संस्कृति का सत्यानाश करने के लिए उतावली हो रही है.

राज्य के कुछ हिंदू संगठनों और संत समाज ने इसकी आलोचना करते हुए इसे जजिया टैक्स बताया लेकिन चूंकि हिन्दू और सनातन समाज गहरी नींद सो रहा है इसलिए कहीं से कोई मुखर विरोध सामने नहीं आया. कर्नाटक के बाहर शेष भारत में तो किसी भी हिंदू संगठन या संत समाज की प्रतिक्रिया तक सुनाई नहीं पड़ी, शंकराचार्यों की भी नहीं जिन्होंने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर अनावश्यक टिप्पड़िया की थी. मुस्लिम तुष्टिकरण में प्राणप्रण से जुटे राजनैतिक दलों से तो कोई अपेक्षा नहीं की जा सकती क्योंकि वे सत्ता के समीकरण में गजवा ए हिन्द के भी समर्थक बन चुके हैं. स्वार्थ में अंधे ये राजनैतिक दल राष्ट्र की आहुति देने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं. मुस्लिम तुष्टिकरण के खेल में भाजपा भी बहुत अधिक पीछे नहीं है. केंद्र में भाजपा शासन के पिछले 10 साल का विश्लेषण करने से पता चलता है कि मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से मुसलमानों के लिए जितना किया उतना स्वतन्त्र भारत की किसी सरकार ने नहीं किया. फिरभी भाजपा मुसलमानों के लिए अभी भी अछूत है. इसलिए वह घूम फिर कर हिन्दुओं के साथ खडी होने का प्रयास करती हैं लेकिन ऐसा करने में, मुस्लिम नाराज न हों इस बात का ध्यान रखा जाता हैं. उक्त मामले में भी भाजपा ने कर्णाटक सरकार और कांग्रेस की आलोचना तो की लेकिन उसका विरोध चुनावी वर्ष में राजनैतिक लाभ लेने से अधिक कुछ नहीं जान पडा.

हिंदू मंदिरों के मामले में भारतीय जनता पार्टी का ट्रैक रिकॉर्ड भी बहुत अच्छा नहीं है. कर्नाटक में भी चार बार सत्ता में रही कर्नाटक में वह चार बार सत्ता में रह चुकी हैं लेकिन उसने कुछ नहीं किया. भाजपा की पिछली सरकार के मुख्यमंत्री बसवराव बोम्बई ने तो राज्य के सभी मंदिरों को सरकार के नियंत्रण से मुक्त करने की घोषणा भी कर दी थी, लेकिन विधानसभा में बिल तक नहीं लाया गया. कुछ समय पहले ही उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने कानून बना कर बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे महत्वपूर्ण हिंदू धर्म स्थलों को भी सरकारी नियंत्रण में लाने का प्रयास किया था लेकिन पुजारियों और जनता के भारी विरोध के बाद चुनाव को देखते हुए फैसला वापस लिया गया था.

 कर्नाटक में 1997 में हिंदू धार्मिक संस्थाएं और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, बनाया गया था, जब जनता दल की
 सरकार थी.2003 में इस अधिनियम में बदलाव करके मंदिरों पर टैक्स लगाने की शुरुआत कांग्रेस सरकार ने कि
 जिस समय एसएम कृष्णा मुख्यमंत्री थे. इससे पहले 5 से 25 लाख रुपये तक कुल राजस्व वाले मंदिरों पर 5% 
और 25 लाख रुपये से ऊपर राजस्व वाले मंदिरों पर 10% की दर से टैक्स लगाया जाता था जिसे कांग्रेस की वर्तमान
 सिद्धारमैया सरकार ने स्लैब में परिवर्तन करके ज्यादा वसूली करने की कोशिश की है. लेकिन मुख्य प्रश्न है कि 
 केवल हिन्दू मंदिरों पर ही टैक्स क्यों ? किसी मस्जिद, चर्च या गुरूद्वारे पर क्यों नहीं ? अगर उद्देश्य मंदिरों और 
इसके कर्मचारियों की भलाई का है तो स्वयात्ताशाषी मंदिर परिषद या सनातन परिषद बना कर क्यों नहीं?  मंदिरों 
के संचालन में दखल क्यों?  

यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने सनातन धर्म और संस्कृति के प्रति गहरी आस्था का प्रदर्शन सार्वजनिक रूप से बिना किसी संकोच के किया. प्रमुख मंदिरों में पहुँचकर भगवा वस्त्र धारण कर माथे पर चंदन लेप कर पूजा अर्चना करना और आराध्य को साष्टांग दंडवत करते उन्हें देखना स्वप्न जैसा लगता है क्योंकि स्वतंत्र भारत ने ऐसे प्रधानमंत्री को भी देखा है जो स्वयं तो कभी किसी मंदिर में पूजा अर्चना के लिए नहीं गया, धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश के राष्ट्रपति को भी पुनुर्द्धार हुए सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह में भाग लेने से रोका.

इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छद्म धर्मनिरपेक्षता का परित्याग कर धर्म के प्रति अपनी आस्था और विश्वास की दृढ इच्छा शक्ति के कारण हिंदू समाज में धर्म और संस्कृति के प्रति आस्था और विश्वास जगा जिसने हिन्दू स्वाभिमान की नवचेतना स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान किया. सनातन समाज इससे बेहद प्रफुल्लित है लेकिन सत्ता और शक्ति हमेशा नहीं रहती इसलिए अपेक्षा थी कि सनातन धर्म की राह में संवैधानिक और कानूनी तौर पर जो बारूद बिछाई गई है, उसका सफाई अभियान भी वह चलाते. यह समझना मुश्किल है कि 10 साल तक केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार होते हुए भी वह मंदिर मुक्ति का केंद्रीय कानून क्यों नहीं बना सके, इससे मुस्लिम और क्रिश्चियन सहित किसी भी धर्म या सम्प्रदाय को कोई परेशानी नहीं थी. विश्व का हर सभ्य समाज स्तब्ध हैं कि स्वतंत्र भारत में बहुसंख्यक हिंदुओं के मंदिर स्वतंत्र क्यों नहीं जबकि मुस्लिमों और क्रिश्चियन्स के धार्मिक स्थलों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं. यक्ष प्रश्न है कि कई महाभारतकालीन मंदिर वक्फ बोर्ड की संपत्ति कैसे बन सकते हैं, जब इस्लाम का जन्म भी नहीं हुआ था, प्राचीन मंदिरों की जमीन मस्ज़िदों और चर्चों को क्यों दी जा रही है, मंदिरों के चढ़ावे से मौलबियों, इमामों और पादरियों को वेतन कैसे दिया जा सकता है.

कई राज्यों में हिन्दू विरोधी सरकारे होने के कारण सनातन धर्म की भयानक दुर्गति से स्थिति बद से बदतर हो रही है. अगर इस पर शीघ्र रोक न लगी तो इन राज्यों में सनातन धर्म लुप्तप्रायः हो जाएगा. क्या हिन्दू समाज की यह पीड़ा गलत है कि कुछ मन्दिरों में मुस्लिम पुजारी क्यों रखे गए, जो आरती तथा पूजा अर्चना के समय अजान भी दें रहे हैं. बालाजी तिरुपति जैसे प्रिसिद्ध विष्णु मंदिर के प्रबंध बोर्ड का अध्यक्ष क्रिस्चियन को बनाया जाय. मंदिर जो कभी गुरुकुल चलाते थे, पर यतीमखानों के भरण पोषण की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है, सरकारी संरक्षण मे हिंदुओं का धर्मांतरण हो रहा है. और ! ये सब तब जब केंद्र में कथित रूप से हिंदूवादी सरकार है.

अंधभक्त का तमगा लगाएं बहुत से मोदी प्रशंसक उनकी इस बात की कटु आलोचना करते हैं कि वह जिन मुद्दों पर सत्ता में आए थे उन सब को एक एक करके किनारे कर दिया और केवल विकास की माला जपने लगे. भारत को विश्व गुरु बनाने से ज्यादा, दिखाई पड़े, इस प्रयास में लग गए. जितनी मेहनत से वह विकास के मुददे उठाते हैं और अर्थव्यवस्था को ऊंचाइयों पर ले जाने की बात करते हैं, उतना प्रयास अगर सनातन की मजबूती और स्थायित्व के लिए करते तो विकास अपने आप होता और अर्थव्यवस्था नई ऊँचाइयों पर अपने आप पहुँच जाती. इतिहास गवाह कि भारत पहली शताब्दी से 17 वीं शताब्दी तक लगभग 1700 वर्षों तक एक तिहाई हिस्सेदारी के साथ लगातार विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहा. उसका सबसे बड़ा कारण मंदिर आधारित अर्थव्यवस्था था.

मोदी समय रहते समझ जाएं तो देश बच सकता है, अन्यथा शनै शनै विश्व की सबसे प्राचीन और उन्नत सभ्यता का यह देश इस्लामिक राष्ट्र बनने की ओर खिसक रहा है, सिर्फ समय की बात है.

प्रसन्नता की बात है कि कर्णाटक का यह बिल विधान परिषद् में पास नहीं हो सका इसलिए कानून बनते बनते बाल बाल बच गया, कम से कम लोकसभा चुनावों तक.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~  

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