शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

बीबीसी डॉक्यूमेंटरी, मोदी और राष्ट्रविरोध

 

बीबीसी डॉक्यूमेंटरी, मोदी और राष्ट्रविरोध




बीबीसी (ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन) ने प्रधानमंत्री मोदी पर गुजरात दंगों के परिपेक्ष में दो भागों में बनाई गई  डॉक्यूमेंट्री के  पहले भाग को 17 जनवरी को रिलीज किया था. डॉक्यूमेंट्री में बेहद आपत्तिजनक, अतिरंजित, और मनगढ़ंत विमर्श, जिसमें न केवल देश की न्यायपालिका का अनादर किया गया था बल्कि देश के सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने का षड्यंत्र था, के कारण केंद्र सरकार ने इस पर रोक लगा दी, और  सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से इसके लिंक हटाने का निर्देश दिया. भारत में राजनीतिक गिरावट के इस दौर में कई राजनीतिक दल मोदी विरोध करने के लिए देश विरोधी ताकतों के साथ खड़े हो गए. इन राजनीतिक दलों और राजनीति प्रेरित संगठनों का उद्देश्य इस डॉक्यूमेंट्री को बैंन  करने से ज्यादा इसे न्यायोचित ठहराना था ताकि इससे चुनावी फायदा उठाया जा सके.



बीबीसी की इस डॉक्यूमेंट्री में ऐसा क्या है कि सरकार को इस पर रोक लगानी पड़ी और यह रोक उचित है या अनुचित, इस पर बात करने से पहले बीबीसी और  ब्रिटेन के बारे में भारत के सम्बन्ध में थोड़ी चर्चा आवश्यक हैं.

बीसवीं शताब्दी के अंत तक यह माना जाता था कि भारत के पिछड़ेपन का मुख्य कारण यहाँ  का बहुसंख्यक हिंदू धर्म है. दुनिया के कथित प्रगतिशील लोगों के अलावा  इस पर विश्वास करने वाले प्रमुख लोगों में नेहरू भी थे. दुनिया की इस प्राचीनतम सभ्यता का इससे अधिक अनादर और कुछ नहीं हो सकता था. 21वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही इस झूठे विमर्श से पर्दा उठने लगा था जब  दुनिया के कई अर्थशास्त्रियों की इस तरह की रिपोर्ट प्रकाशित हुई  कि प्राचीन समय में भारत और चीन दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियां थे, जिन्हें यूरोपियन ने बुरी तरह  लूटा था. सच्चाई का पता लगाने के लिए ओईसीडी (ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनामिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट) ने  प्रोफेसर अंगस मडिसन के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिसने दुनिया के प्रमुख देशों के सकल घरेलू उत्पाद के इतिहास पर गहन अध्ययन और अनुसंधान किया. जब  इनकी रिपोर्ट आई तो दुनिया स्तब्ध रह गई. जिसके अनुसार विश्व की कुल अर्थव्यवस्था में 34% की हिस्सेदारी के साथ भारत दुनिया का सबसे समृद्ध देश था और यह स्थिति कुछ वर्षों के लिए नहीं बल्कि लंबे समय तक बनी रही थी.  पहली शताब्दी से लेकर दसवीं शताब्दी तक यानी 1000 वर्ष तक लगातार भारत विश्व अर्थव्यवस्था की एक तिहाई से भी अधिक भागीदारी के साथ दुनिया का सबसे समृद्धशाली देश था. इसका श्रेय हिन्दू धर्म और सनातन संस्कृति आधारित अर्थव्यवस्था को ही जाता है. 

ओईसीडी की रिपोर्ट के अनुसार 10 वीं शताब्दी के बाद बाहरी आक्रमणों के कारण  यद्यपि भारतीय अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आई थी लेकिन फिर भी यह अंग्रेजो के शासन शुरू होने के ठीक  पहले तक 24% हिस्सेदारी के साथ 1700 वर्षों तक भारत विश्व की नंबर एक अर्थव्यवस्था बना रहा. वर्ष 1900 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वैश्विक भागीदारी केवल 1.7 प्रतिशत रह गई.  भारत जैसी जलवायु में शाकाहारी लोगों के लिए जीवन रक्षक नमक पर अंग्रेजों ने भारी टैक्स लगा दिया था, और नमक की कमी के कारण बहुत लोगों की जानें गई थी. सूखे और अकाल के दिनों में भी अंग्रेजों ने खेती पर लगने वाले राजस्व में रियायत की जगह यातनाये देते थे. इस कारण लोगों ने कर्ज लेकर या अपने गहने जेवर बेचकर लगान का भुगतान किया था.

अंग्रेजों के लगभग 120 साल के शासन में 31 बार भयानक अकाल पड़ा, जिसमें भूख से लाखों लोगों की मृत्यु हुई.1943 के अकाल में तो  अकेले बंगाल में ही 10 लाख  से ज्यादा लोग भूख से तड़प कर मरे थे. भारत में लोग जब भूख से मर रहे थे तब भारत का अनाज शाही  सेना के लिए ब्रिटेन भेजा जा रहा था. क्रांतिकारियों के बढ़ते दबाव में अंग्रेज भारत से तभी गए जब यहां लूट के लिए कुछ खास नहीं बचा था,जिसकी टीस आज भी औपनिवेशिक मानसिकता के रूप में दिखाई पड़ती है. भारत के अंतिम वायसराय और स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने लेरी कॉलिंन्स और डोमिनिक लिपर्रे  को  एक इंटरव्यू में बताया था कि वह और उनके साथी भारत में हिंदुओं की अपेक्षा मुस्लिमों को ज्यादा पसंद करते थे. अगर इसे ब्रिटिश स्वभाव माना जाए तो यह आज भी यथावत है.

यह बताने का उद्देश्य केवल यह है कि अंग्रेजों ने भारत को किस हद तक लूटा था और भारतीयों पर किस हद तक अमानवीय अत्याचार किए थे. जाते-जाते वे  भारत को विभाजित भी कर गए और हिंदुओं के प्रति पूर्वाग्रह के कारण कश्मीर जैसी समस्याएं भी दे गए.  क्या बीबीसी कभी इन बिषयों पर डाक्यूमेंट्री बना सकता है?

       बीबीसी की डाक्यूमेंट्री के दोनों एपिसोड क्रमश: 17 और 24 जनवरी को रिलीज कर दिये गए. डॉक्यूमेंट्री के पहले भाग में मोदी को दंगों में हुई मुसलमानों की हत्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है. आरोप है कि मोदी ने दंगे रोकने के लिए कुछ नहीं किया. गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगाकर ज़िंदा जलाये गए 59 कारसेवकों के बारे में कट्टरपंथियों का बचाव करते हुए डॉक्यूमेंट्री में आग लगने का कारण विवादास्पद बताया गया है. डॉक्यूमेंट्री के दूसरे भाग में मोदी को  प्रधानमंत्री के रूप मे  अल्पसंख्यकों के प्रति  पूर्वाग्रही बताया गया है. इसमें धारा 370 हटाना, संशोधित नागरिकता कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर, शाहीन बाग आंदोलन और दिल्ली में हुए दंगे आदि को दिखाया गया है. गौ हत्या के संदेह में मोब लिंचिंग को भी प्रमुखता से दिखाया गया है कि मोदी के शासनकाल में अल्पसंख्यकों में भय का माहौल है और सरकार हिंदुओं और मुसलमानों में भेदभाव करती है.

इस झूठे विमर्श की प्रष्ठभूमि में  डॉक्यूमेंट्री में कुछ भी आश्चर्यचकित करने वाला नहीं है, खासतौर से तब जब बीबीसी में मुस्लिमों विशेषतय: पाकिस्तानी मुस्लिमों का दबदबा हो. इस डॉक्यूमेंट्री का समय भी चौंकाने वाला नहीं है. 2024 के लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और मोदी की टक्कर में विपक्ष का कोई भी नेता दिखाई नहीं पड़ रहा है. मोदी अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए पसमांदा मुस्लिमानों पर डोरे डाल रहें हैं, जिससे अल्पसंख्यकों का कट्टरपंथी वर्ग खासा परेशान है.  इसलिए मुसलमानों के दिलो-दिमाग में गुजरात दंगों की याद ताजा करने के उद्देश्य से  डाक्यूमेंट्री को बनाया  गया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीबीसी ने गुजरात दंगों के संदर्भ में एक अभियान चलाया था. कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में अन्य विपक्षी दलों का बीबीसी के समर्थन में खड़े होना भी चुनावी अभियान का हिस्सा है.  गणतंत्र दिवस  के ठीक पहले रिलीज करने का समय भी इसलिए चुना गया क्योंकि गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में  मुख्य अतिथि  एक मुस्लिम देश  मिस्र के राष्ट्रपति थे, उस समय राजधानी में संप्रदायिक माहौल बनाकर मोदी और भारत विरोधी अभियान को हवा दी जा सके.

जहां तक इस डॉक्यूमेंट्री में का प्रश्न है तो इसमें यह अनदेखा किया गया है कि  गोधरा कांड की जांच के लिए बनाए गए नानावटी-शाह  आयोग ने कट्टरपंथियों को पेट्रोल डालकर आग लगाने के लिए जिम्मेदार ठहराया था. उससे पहले केंद्र की कांग्रेस सरकार ने यूसी बनर्जी आयोग बनाया था जिसने यह साबित करने की कोशिश की थी कि कारसेवकों के बीड़ी पीने के कारण बोगी में आग लग गई थी, जिसे आयोग और उच्च न्यायालय ने पूरी तरह से खारिज कर दिया था. निचली अदालत ने साक्ष्यों के आधार पर 11 कट्टरपंथियों को मृत्युदंड और 20 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी जिसे उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास में बदलते हुए यथावत रखा है. विभिन्न  याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात दंगों के सिलसिले में मोदी की भूमिका की विस्तृत सुनवाई की और कहीं भी मुख्यमंत्री के रूप में उनकी संलिप्तता नहीं पाई गई. इसके विपरीत न्यायालय ने गुजरात दंगों में झूठे दस्तावेज बनाने और झूठे मुकदमे दायर कराने के लिए कई गैर सरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं के विरुद्ध कार्यवाही करने का आदेश दे चुकी है.

जहां तक सरकार द्वारा इस डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाने का प्रश्न है तो यह कानून सम्मत तो है लेकिन इस कदम ने इस डॉक्यूमेंट्री के पक्ष और विपक्ष के लोगों में कौतूहल पैदा कर दिया और इस कारण प्रतिबंध के बावजूद मोदी विरोधियों के थोड़े प्रयास से इसका प्रचार और प्रसार हो गया. अगर प्रतिबंध नहीं किया जाता तो शायद इसे  इतना प्रचार नहीं मिलता और तब जनता के समक्ष मोदी का पक्ष अधिक मजबूत होता. वैसे भी आज के तकनीकी युग में डिजिटल मीडिया पर  इस तरह के प्रतिबंध कारगर नहीं होते.

सबसे बड़ा प्रश्न है कि मोदी सरकार के विरुद्ध इस तरह के टूलकिट आधारित कारनामे  बहुत सुनियोजित षड्यंत्र के रूप में लंबे समय से किए जा रहे हैं किन्तु सरकार इनसे निपटने में इतनी असहाय क्यों है? चाहे शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी हों, दिल्ली के दंगाई हों, दिल्ली घेर कर बैठे तथाकथित किसान हों, लाल किले पर उपद्रव मचाने वाले देशद्रोही हों, पंजाब में स्वयं प्रधानमंत्री की सुरक्षा में खतरा बनने वाले लोग हों, या फिर तबलीगी जमात के मौलाना साद होहर मामले में  सरकार का प्रदर्शन बेहद लचर और निराश करने वाला है.

भाजपा और मोदी को यह नहीं भूलना चाहिए कि जनता आज भी गुजरात के मुख्यमंत्री वाले नरेन्द्र मोदी को पसंद करती है न कि सबका विश्वास अर्जित करने की लालसा में तृप्तिकरण में लगे कमजोर और दयनीय  होते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को.  

-    शिव मिश्रा (https://youtube.com/@hamhindustanee123)