शनिवार, 17 मई 2025

बायकाट टर्की कितना जरूरी

 

ऑपरेशन सिन्दूर || पाकिस्तान, टर्की, और अजर्वैजान तथा भारतीय विपक्ष की समानताएं और संभावनाएं || "बायकाट टर्की" कितना जरूरी ?


22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए हिंदू नरसंहार के बाद मोदी सरकार द्वारा आतंकवादियों और उनके आकाओं के विरुद्ध चलाए गए सुनियोजित अभियान में पाक अधिकृत कश्मीर तथा पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों पर किए गए जबरदस्त और ताबड़तोड़ हमले में सैकड़ों आतंकवादी मारे गए और बड़ी संख्या में घायल हुए. बौखलाए पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा के पार से भारी गोलीबारी की और ड्रोन से भारतीय वायुसैनिक अड्डों पर हमला करने की कोशिश की. भारतीय सेनाओं की जवाबी कार्रवाई तथा भारतीय वायु रक्षा की मजबूत प्रणाली ने पाकिस्तानी ड्रोन और मिसाइलें हवा में ही मार गिराये गए. पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकाने पूरी तरह से बर्बाद हो गए, विशेषकर नूर खान और सरगोधा जिसके पास ही पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने हैं. भारत पर परमाणु बम से हमला करने के लिए इन्हीं सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल किया जाता, जिनके नष्ट होने से भारत पर परमाणु हमले की आशंका तो समाप्त हो गई लेकिन किराना हिल में भूमिगत परमाणु जखीरे में कुछ ऐसा हुआ जिससे उस क्षेत्र में भूकंप जैसे झटके महसूस किए गए और विकरण (रेडिएशन) की सूचनाएं भी मिली. बाद में अमेरिका और मिस्र के जहाज जिनमें न्यूक्लियर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम के सदस्यों के पहुँचने की सूचनाएं भी प्राप्त हुई.

भारत को हमेशा परमाणु बम की धमकी देने वाले पाकिस्तान के लिए इतनी वीभत्स परिस्थितियों में भारत से युद्धविराम का अनुरोध करनें के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं था. युद्धविराम सुनिश्चित करने के लिए उसने अमेरिका और सऊदी अरब से भी गुहार लगाई जिनसे मोदी के अच्छे संबंध हैं. भारत का उद्देश्य पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर स्थित आतंकवादियों और उनके आकाओं के ठिकानों को नेस्तनाबूत करना था, जो काफी हद तक पूरा हो चुका था. ब्रह्मोस मिसाइल सहित भारत में बने कई हथियारों का सफल प्रयोग और प्रदर्शन भी हो चुका था, इसलिए युद्धविराम भारत के लिए भी श्रेयस्कर था. यद्यपि अमेरिका के बड़बोले राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल के अपने गलत फैसलों से विश्व का ध्यान हटाने के लिए भारत-पाक युद्ध विराम का श्रेय हड़पने की कोशिश करके भारत की सफलता को कमतर करने का प्रयास भी किया. ट्रंप के इस निंदनीय कार्य को अपना ट्रंप कार्ड बनाकर भारतीय विपक्ष ने मोदी के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया और भारतीय सेना के उत्कृष्ट प्रदर्शन और शौर्य को हतोत्साहित करने का काम शुरू कर दिया क्योंकि भारतीय राजनेता हर काम में चुनावी राजनीति करते हैं चाहे देश का उससे कितना भी नुकसान क्यों न हो जाए. इसके पहले सर्वदलीय बैठक में विपक्ष ने पाकिस्तान के विरुद्ध किसी भी कार्रवाई के लिए मोदी सरकार को पूर्ण समर्थन दिया था लेकिन अब युद्ध विराम पर सवाल उठाए जा रहे हैं.

आतंकी देश पाकिस्तान के विरुद्ध कार्रवाई में भारतीय नौसेना, वायु सेना, थल सेना और खुफिया एजेंसियों का जबरदस्त सामंजस्य देखने को मिला जिससे बिना नियंत्रण रेखा पार किए आतंकी ठिकानों को चिन्हित कर इतना सटीक प्रहार किया गया जिसे पाकिस्तान की चीन निर्मित वायुरक्षा प्रणाली समझ नहीं सकी. इससे चीन निर्मित वायु रक्षा प्रणाली तथा चीनी विमानों की किरकिरी हुई वहीं भारतीय हथियारों के लिए नया बाजार मिलने की असीम सम्भावनाएं बन गयी है. आतंकवाद के विरुद्ध भारतीय के इस अभियान में टर्की, अजरबैजान और चीन ने खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया. चीन लंबे समय से पाकिस्तान और उसके आतंकवादियों के साथ देता रहा है क्योंकि उसने सीपैक के माध्यम से पाकिस्तान में बड़ा निवेश कर रखा है, और इसलिए आर्थिक हितों के कारण ऐसा करना मजबूरी भी है और जरूरी भी. टर्की ने पाकिस्तान को राजनीतिक और कूटनीतिक समर्थन देने के साथ साथ सैन्य सामग्री और ड्रोन भी उपलब्ध कराए. टर्की के सैनिक ही ड्रोन संचालित कर रहे थे. टर्की की इस भूमिका ने पारस्परिक संबंधों पर पुनर्विचार करने के लिए विवश कर दिया है. यद्यपि सरकार ने अभी कोई प्रतिबंधात्मक कदम नहीं उठाए हैं लेकिन टर्की के बहिष्कार की जनभावना का सम्मान करते हुए उद्योग एवं व्यापार तथा शिक्षा जगत ने टर्की से अपने संबंध समाप्त करने शुरू कर दिए हैं.

टर्की हमेशा भारत के लिए राक्षस की भूमिका में रहा है. तुर्क इस्लामिक आक्रांताओं ने न केवल भारत को लूटा बल्कि हिंदुओं का जघन्य नरसंहार भी किया. ऑटोमन साम्राज्य तुर्की के खलीफा को ब्रिटेन द्वारा पदच्युत किए जाने के विरोध में भारतीय मुसलमानों द्वारा खलीफ़त आन्दोलन चलाया गया. जिसका घोषित उद्देश्य अंग्रेजों को विरोध प्रदर्शन के माध्यम से तुर्की के खलीफा को बहल करने के लिए मजबूर करना था लेकिन इस आंदोलन की परिणित हिंदू नरसंहार के माध्यम से भारत का विभाजन करके पाकिस्तान बनाने के रूप में हुई. भले ही जिन्ना को पाकिस्तान का निर्माता कहा जाता हो लेकिन पाकिस्तान का असली निर्माता और प्रेरणा स्रोत टर्की है. इसलिए टर्की का पाकिस्तान को समर्थन और सैन्य संसाधन उपलब्ध कराना आश्चर्यजनक नहीं है.

पाकिस्तान और पाक-परस्त भारतीय मुसलमानों का जितना गहरा संबंध टर्की से है उतना ही गहरा संबंध टर्की से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का भी है. गाँधी ने खलीफत आंदोलन को न केवल समर्थन दिया बल्कि हिंदू जनमानस को धोखा देने के लिए उसका नाम खिलाफत आंदोलन कर दिया जिससे यह असहयोग आन्दोलन का उर्दू रूपांतर लगने लगे. खलीफ़त आंदोलन के कारण देशभर में सांप्रदायिक दंगे हुए जिसमें हिंदुओं को निशाना बनाया गया लेकिन गाँधी और नेहरू तब तक आंखें बंद किए रहे जब तक हिन्दुओं को मुस्लिम नेताओं की यह बात सही नहीं लगने लगीं कि “हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते”. देश के विभाजन में गाँधी और नेहरू ने अंग्रेजों के साथ मिलकर हिंदुओं के साथ धोखा किया. धर्म के आधार पर पाकिस्तान का निर्माण हुआ लेकिन एक बड़े षड्यंत्र के अंतर्गत मुसलमान पाकिस्तान नहीं गए और इस कार्य में गाँधी और नेहरू मुस्लिमों के सबसे बड़े सहायक बने. गाँधी ने अहिंसा का पाठ पढ़ाकर हिन्दुओं के नरसंहार पर आंखें बंद रखी और केवल हिंदुओं को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाकर भारत को साझे की खेती बना दिया. गाँधी और नेहरू के सपनों का भारत बनाने के लिए कांग्रेस ने कभी भी मुस्लिम तुष्टीकरण के अभियान को मंद नहीं पड़ने दिया. उसने पाकिस्तान ही नहीं सभी मुस्लिम देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए राष्ट्रीय हितों के साथ समझौता करने में कभी कंजूसी नहीं की. इसलिए कांग्रेस के टर्की में कार्यालय खोलने पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

टर्की में आई प्राकृतिक आपदा के समय मोदी सरकार ने सबसे पहले मानवीय सहायता पहुंचाई लेकिन टर्की के साथ संबंधों में प्रगाढ़ता कांग्रेस के शासनकाल में आई. नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो ने टर्की की सेलेबी एविएशन का लाइसेंस रद्द कर दिया है जिसे 9 हवाई अड्डों दिल्ली मुंबई, बैंगलोर, हैदराबाद,चेन्नई, कोचीन अहमदाबाद, गोवा, तथा कानपुर पर ग्राउंड हैंडलिंग, कार्गों, वेयर हाऊसिंग और यात्री सहायता कार्य करने का ठेका 2008 में कांग्रेस शासन में मिला था. इंडिगो एयरलाइन के टर्किश एयरलाइन्स के साथ कोड शेयरिंग समझौते का भी विरोध हो रहा है, जिसपर इंडिगो ने सफाई देकर समझौते का बचाव किया है. तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन इस्लामिक देशों के खलीफा बनने और पूरे विश्व में इस्लाम का परचम फहराने को बेताब है, जिसके लिए किसी भी इस्लामिक देश के साथ खड़े होने का मौका नहीं छोड़ते. उन पर कई देशों द्वारा इस्लामिक आतंकवादियों के अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क को वित्तीय सहायता तथा हथियार देने का आरोप लगता रहा है, जिसके लिए टर्की की कंपनियों का उपयोग किया जाता है. इसलिए टर्की की किसी भी कंपनी को राष्ट्रीय हित में भारत में कार्य हेतु अनुमति नहीं मिलनी चाहिए.

भारत में बायकॉट टर्की का आंदोलन ज़ोर पकड़ चुका है जो उद्योग एवं व्यापार के हर क्षेत्र को बहुत तेजी प्रभावित कर रहा है. कई संगठनों ने टर्की से आयात न करने का फैसला किया है. बड़ी संख्या में भारत के पर्यटक टर्की और अजरबेजान जाते हैं. अब पर्यटन सेवा प्रदाता भारतीय कंपनियां पर्यटकों से टर्की और अजरबेजान के बजाय भारतीय स्थानों या अन्य देशों का चयन करने की अपील कर रही हैं. आइआइटी रुड़की और जेएनयू सहित कई विश्वविद्यालयों ने टर्की के साथ अपने समझौते समाप्त करने की घोषणा कर दी है. लाल सिंह चड्ढा की शूटिंग तुर्की में करने वाले आमिर खान, जिनके एर्दोगन परिवार से घनिष्ठ संबंध है, मौन हैं. फ़िल्म जगत भी शांत है लेकिन कांग्रेस ने बायकॉट का समर्थन करने या टर्की के विरुद्ध कुछ कहने के बजाय सरकार पर ही प्रश्न दागने शुरू कर दिए हैं.

टर्की के बायकॉट पर देश की सोच बिलकुल सही है. सभी को इस आंदोलन का हिस्सा बन कर जिहादी मानसिकता और खलीफाई महत्वाकांक्षा का विरोध करना चाहिए.

~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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