सोमवार, 23 जनवरी 2023

क्या भारत में हिन्दू स्वतन्त्र हैं?

 

क्या भारत में हिन्दू स्वतन्त्र हैं





जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने "एक देश दो विधान दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे" का नारा दिया था और इसे पूरा करने के लिए अपना बलिदान भी दिया था. धारा 370 खत्म होने के बाद दो विधान और दो निशान खत्म हो गए लेकिन स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी  भारत में दो विधान अभी भी अस्तित्व में हैं, हिंदुओं के लिए अलग कानून और  अन्य धार्मिक समुदायों के लिए दूसरे कानून. इसका सबसे ज्वलंत उदहारण है  मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण. जबकि  अन्य  समुदायों के धार्मिक स्थलों पर कोई सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है.

भारत में इस समय लगभग 9 लाख  पंजीकृत मंदिर हैं, इनमें से चार लाख सरकारी नियंत्रण में है. इन मंदिरों के दान का लगभग 85% भाग सरकार ले लेती है और 15% मंदिर के रखरखाव और सामान्य खर्चों के लिए छोड़ देती है. इस कारण कई मंदिरों की स्थिति अत्यंत जर्जर हो गयी है और वहां पुजारियों और कर्मचारियों को वेतन भी नहीं मिल पाता है. अकेले तमिलनाडु में इस तरह के मंदिरों की संख्या 35000 से भी अधिक है. मैंने तमिलनाडु में अपनी मंदिर यात्रा के दौरान देखा कि कई मंदिर बेहद खराब स्थिति में है जहां रखरखाव के अलावा दोनों  समय  पूजा अर्चना की व्यवस्था भी बमुश्किल हो पाती है. मंदिर के पुजारियों और कर्मचारियों की हालत लगभग भिखारियों जैसी है जबकि सरकार के अधीन मंदिरों से प्रतिवर्ष सरकार को लगभग 13 लाख करोड़ से भी अधिक की आय प्राप्त होती होती है. 

सरकार द्वारा  मंदिरों से हड़पी  जाने वाली दान की राशि, सरकार के लिए आय का एक बहुत बड़ा स्रोत है और  विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा इसका  दुरुपयोग किया जा रहा है. यहां तक कि इसे  मस्जिदों, मदरसों, चर्च और यतीमखाना को दिया जाता है. बताया जाता है कि तमिलनाडु सरकार ने अप्रैल 2020 में राज्य के 47 मंदिरों को मुख्यमंत्री राहत कोष में ₹10 करोड़ प्रति मंदिर जमा  करने का आदेश दिया था और इसके विपरीत उसी अप्रैल में रमजान के महीने के कारण  2,895 मस्जिदों को 5,450 टन मुफ्त चावल वितरित करने का आदेश दिया था, ताकि रोजेदारों को परेशानी ना हो. आंध्र प्रदेश में तिरुपति बालाजी मंदिर के लिए बनाए गए तिरुपति तिरुमला देवस्थानम बोर्ड को सालाना 13000 करोड रुपए से अधिक आय होती है, जिसका अधिकांश हिस्सा आंध्र प्रदेश सरकार हड़प लेती है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी जो स्वयं  क्रिस्चियन है, मंदिर में दान की राशि बढ़ाने के लिए लक्ष्य निर्धारित किये  है और उन्होंने अपने क्रिस्चियन ससुर को इस बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया है. केरल की  सरकार भी स्वामी पद्मनाभ मंदिर से इसी तरह की लूट करती  है. 

सरकार द्वारा की जाने वाली यह लूटसातवीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी के बीच  मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा कुछ हिंदू मंदिरों को लूटने से ज्यादा खतरनाक, पीड़ादायक  और निंदनीय है  क्योंकि मुस्लिम आक्रांता तो मंदिरों की संपत्ति लूट कर  चले जाते थे, इसलिए  इतने आक्रमण और लूट के बाद भी मंदिर धार्मिक सहिष्णुता और समन्वय का अद्भुत उदाहरण के रूप में  आज भी अक्षुण हैं लेकिन भारत की केंद्र और राज्य सरकारें 4 लाख से भी अधिक मंदिरों को प्रतिदिन लूट रही हैं, जिससे  सनातन धर्म के अस्तित्व पर भी  खतरा बढ़ गया है. मंदिरों से होने वाली इस सरकारी लूट का  दुष्कृत्य  हिंदू और सनातन संस्कृति को पूरी तरह नष्ट कर देने की  खतरनाक योजना का अंग है. एक तरफ जहां चर्च और मस्जिदें विदेशों से भारी मात्रा  में चंदा प्राप्त करती हैं, जिसका प्रयोग धर्म के प्रचार प्रसार के साथ-साथ बड़ी संख्या में धर्मांतरण कराने के लिए भी किया जाता है, वहीं दूसरी ओर 4 लाख से भी अधिक हिंदू मंदिरों  को सरकार लगातार लूट कर असहाय और  कंगाल बनाए रखने का कार्य कर रही है, जिस कारण सनातन धर्म के प्रचार और प्रसार की बात तो छोड़ दीजिए, इन मंदिरों में  विधिवत पूजा अर्चन भी हो पाना मुश्किल होता जा रहा  है. यही कारण है कि आज दुसरे  धर्म सनातन धर्म पर आक्रामक प्रहार कर रहे हैं और पराधीनता की बेड़ियों  में जकड़ा  सनातन धर्म अपनी बेबसी पर छटपटा रहा है. 

यह सही है कि भारत में अपना साम्राज्य स्थाई करने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने हिंदू समाज में तमाम बुराइयों को बोया, उगया और पनपाया, जिसका दुष्प्रभाव आज भी कम होने की वजाय  बढ़ता जा रहा है. इन बुराइयों में प्रमुख थींनिचली जातियों पर उच्च जातियों के  अत्याचारों की झूठी और काल्पनिक कहानियां बना कर प्रचारित प्रसारित करना, आर्यों  को बाहरी बताकर द्रविड़यन  को भारत का मूल निवासी बताने की झूठी अवधारणा बनाना और पोषित करना, और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को बुरा बताकर  मिथ्या प्रचार करना कि यह लोग निम्न जातियों के लोगों को मंदिर में प्रवेश नहीं करने देते. जातियों में बटे भारतीय समाज में इस मिथ्या प्रचार ने जड़े जमा लीं जिस कारण हिंदू समाज में एकता की बेहद कमी है. रही सही कसर जातिगत आरक्षण ने पूरी कर दी जिसके कारण जाति प्रथा अब शायद कभी समाप्त नहीं हो सकेगी. 

हिंदू समाज में कृत्रिम रूप से फैलाई गई मन गढ़ंत विषमता का लाभ उठाकर अंग्रेज़ों ने 1925 में मद्रास धार्मिक और धर्मार्थ दान अधिनियम बना कर सभी धर्मों के सभी धार्मिक स्थलों को अपने अधिकार में कर  लिया।  मुस्लिम और ईसाईयों के विरोध के कारण अंग्रेजों ने चर्च और मस्जिदों को तो छोड़ दिया लेकिन मंदिरों को सरकार के अधीन बनाए रखा. विडंबना देखिए कि हिंदू समाज ने कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं दी  और तथाकथित बापू और चाचा भी अंग्रेजों के इस कार्य से सहमत हो गए.

स्वतंत्र भारत का संविधान लागू होने के बाद अनुच्छेद 26 के अनुसार सरकार किसी भी धर्म की धार्मिक प्रथा में हस्तक्षेप न करने के लिए कृत संकल्प थी और इस तरह हिंदुओं को अपने मंदिर वापस मिल जाने चाहिए थे, लेकिन नेहरू ने हिंदू विरोधी रुख और  कुटिलता के कारण हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1951 बनाकर लागू कर दिया जिससे अन्य धर्म तो अनुच्छेद 26 के  कारण और अधिक स्वतंत्र हो गए लेकिन हिंदू धर्म को एक बार फिर गुलाम बना दिया गया. इसके अनुसार राज्य कानून बनाकर मंदिरों पर कब्जा कर सकता है लेकिन मस्जिद और चर्च को इससे अलग रखा गया है. सरकार को यह भी अधिकार दिया गया कि वह किसी भी व्यक्ति को मंदिर का प्रशासक अध्यक्ष या प्रबंधक बना सकती है. सरकार मंदिर का दान ले सकती है और उसका उपयोग किसी भी उद्देश्य के लिए कर सकती है. सरकार मंदिर की जमीन  बेंच  सकती है और प्राप्त धन का किसी भी कार्य में इस्तेमाल कर सकती हैं. सरकार सुरक्षा और अपरिहार्य कारणों से मंदिर की परंपराओं में भी हस्तक्षेप कर सकती हैं.

इस कानून के आने के बाद राज्यों में  मंदिरों के चढ़ावे और संपत्तियों की लूट मच गई. कांग्रेश शासित तमिलनाडु ने अकेले 35000 से भी अधिक मंदिरों का अधिग्रहण कर लिया. इसके बाद आंध्र प्रदेश, राजस्थान, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि ने  भी अपने-अपने कानून बनाकर मंदिरों पर कब्जा कर लिया. आज 15 राज्यों में 4 लाख  से भी अधिक मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण है. यह सही है कि मुस्लिम आक्रांता ओं ने भारत में आठ करोड़ से भी अधिक हिंदुओं का कत्लेआम किया जो मानव सभ्यता का सबसे बड़ा नरसंहार है लेकिन  कई बार ऐसा लगता है कि कि आज जब  सरकारें हिंदू धर्म की आस्था के साथ  खिलवाड़ और हिंदुओं पर  अत्याचार कर रहीं हैं तो  वे  शायद सबसे क्रूर शासकों द्वारा किए गए अत्याचारों से कम नहीं लगते तब  जबकि भारत स्वतंत्र है, और केंद्र की मोदी सरकार को हिंदूवादी सरकार कहा जाता है. संभवत भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां देश के मूल निवासी और बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय को उसके सभी मौलिक और धार्मिक अधिकार तथा पूजा स्थलों पर स्वयं के अधिकार से स्वतंत्रता मिलने के 75 साल बाद भी वंचित रखा गया है.  क्या स्वतंत्र भारत में हिंदू वास्तव में स्वतंत्र हैं?

मंदिरों का अधिग्रहण केवल कांग्रेस या अन्य सरकारों ने किया ऐसा भी नहीं है, भाजपा भी पीछे नहीं है. उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत  सरकार ने 2019 में चार धाम  देवस्थानम बोर्ड की स्थापना कर दी थी. पुजारियों और आम जनता ने आंदोलन किया और सत्ता गंवाने के लालच में मुख्यमंत्री बदल गये. नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने 51 अधिग्रहित मंदिरों को मुक्त करने की घोषणा की. बेहद संतोष की बात है कि  अभी कुछ दिन पहले ही कर्नाटक की बसवराज बोम्मई सरकार ने भी कांग्रेस द्वारा अधिग्रहीत किए गए 35000 से भी अधिक मंदिरों की सरकारी नियंत्रण से मुक्ति की घोषणा की है . यद्यपि यह केवल अभी घोषणा है और इस पर कानून बनना बाकी है .इस बीच कांग्रेस ने सरकार की इस मुहिम की आलोचना करते हुए कहा है कि वह किसी भी हालत में मंदिर  मुक्ति का कानून नहीं बनने देगी. 

सरकारी नियंत्रण से मंदिरों को मुक्त कराने के लिए चलाए जा रहे आंदोलन और सर्वोच्च न्यायालय की सकारात्मक प्रतिक्रिया के करण कुछ प्रगति दिखाई पड़ती है जो पर्याप्त नहीं है. यह बात किसी के गले नहीं उतरती कि जब सरकार चर्चों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और बौद्ध विहारों के संचालन में हस्तक्षेप नहीं करती है, तो हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में रख कर उनका दान हड़पने का कार्य क्यों करती है. 

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने लगभग ९ साल सत्ता में रहने के बाद भी इस दिशा में कुछ  नहीं किया है. एक हाथ में कुरान और दूसरे  में लैपटॉप का नारा देकर मदरसों का अनुदान वर्षों कई गुना बढ़ा दिया गया है.  जब कई देशों ने मदरसों पर प्रतिबंध लगा रखा है, भाजपा शासित राज्यों में मदरसों का सर्वे कराकर उनमें सुविधाएं बढ़ा कर सभी छात्रों को छात्रवृत्ति देने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन विशाल हिंदू समुदाय जिसने  कथित हिंदूवादी मोदी सरकार को सत्ता के शिखर पर पहुंचाने का कार्य किया है, अपने मंदिरों की मुक्ति की बाट जो रहा है.

आज की परिस्थितियों में क्या कोई भी सरकार मस्जिदों या चर्च को सरकारी नियंत्रण में लेने के बारे में सोच भी नहीं सकती है तो हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में रखना हिंदुओं को निरंतर पराधीन बनाए रख कर विश्व की प्राचीनतम सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म को  तिल तिल कर मार देने के प्रयास के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता. 

-    शिव मिश्रा (responsetospm@gmail.com)

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