शुक्रवार, 11 मार्च 2022

यूक्रेन रूस युद्ध से भारत को संदेश

 



आज के युग में जब दूसरे ग्रहों पर जीवन खोजने और जीवन की संभावना के लिए उचित वातावरण की खोज पर के लिए  बड़ी मात्रा में धन खर्च किए जा रहा हो, ऐसे में यूक्रेन-रूस  युद्ध में हजारों लोगों की जान जाना और लाखों लोगों  का बेघर हो जाना बेहद दुखी करने वाला है. युद्ध का कारण सिर्फ यह है कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बनना चाहता था ताकि उसे सुरक्षा कवच मिल सके और  यदि यूक्रेन को नाटो की सदस्यता मिल गई होती तो अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो ने यूक्रेन में परमाणु हथियार और परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी होती और तब रूस के अस्तित्व को हमेशा खतरा बना रहता. इस बीच कथित रूप से जैसे ही रूस को यह सूचना मिली कि यूक्रेन बायोलॉजिकल हथियार बना रहा है, उसने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया. रूस ने युद्ध रोकने की शर्त भी यही रखी कि न तो यूक्रेन नाटो की सदस्यता के लिए आवेदन करेगा और ना ही न तो उसे सदस्यता प्रदान करेगा और उसे इस बात की  गारंटी चाहिए. फिलहाल न तो  यूक्रेन इसे स्वीकार कर रहा है, और न ही  अमेरिका इस संबंध में कोई आश्वासन दे रहा है और इसलिए यूक्रेन की धरती पर भयंकर युद्ध चल रहा है और रूस की सेना भारी तबाही मचा रही है. हजारों लोग मारे जा चुके हैं, औद्योगिक प्रतिष्ठान, रिहायशी इलाके, सड़कें, पुल, सैनिक अड्डे और बड़ी बड़ी  इमारतें ही नहींऔर  पूरे के पूरे शहर तबाह हो चुके हैं. यूक्रेन के परमाणु बिजली घर रूस  के कब्जे में आ चुके हैं. यूक्रेन केवल नाक की लड़ाई लड़ रहा है इस युद्ध का परिणाम  यूक्रेन की बर्बादी के अलावा कुछ भी नहीं होगा.  

 

विश्व समुदाय की सहानुभूति स्वाभाविक रूप से यूक्रेन के साथ है क्योंकि आक्रमण रूस ने किया है और यूक्रेन में भारी धन जन की हानि हो रही है. भारत विश्व का पहला देश था जिसने अपने छात्रों और नागरिकों को निकालने की पहल की. अन्य देशों के नागरिकों के साथ यूक्रेन के  सामान्य लोग भी पलायन कर रहे हैं, जिनकी संख्या 20 लाख से ऊपर पहुंच चुकी है. इस बीच अमेरिका और यूरोपीय समुदाय ने रूस के खिलाफ कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं जिस कारण  यूरोप और अमेरिका  की कई  आईटी, फार्मा और वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों ने रूस में अपना कारोबार बंद करने का फैसला किया है, इनमें एप्पल,  गूगल, मास्टर कार्ड वीजा कार्ड, अमेरिकन एक्सप्रेस और पेपाल  जैसी कंपनियां भी शामिल है. इसका रूस पर व्यापक असर दिखने लगा है.  कार्ड और पेमेंट सेटेलमेंट से संबंधित कंपनियों वीजा,  मास्टरकार्ड और अमेरिकन एक्सप्रेस के कारोबार बंद कर देने से क्रेडिट कार्ड बुरी  तरह से प्रभावित हो गए हैं और एटीएम कार्ड कैश निकालने का साधन मात्र रह गए हैं. ऑनलाइन खरीदने के आदी हो चुके लोगों को   ज्यादातर नकद  खरीदना पड़ेगा. ऐसे में एटीएम के बाहर लंबी लंबी कतारें लगी हैं और बैंक की शाखाओं में घुसने की जगह नहीं है क्योंकि सभी को कैश  चाहिए. इस कारण  अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह तेजी से बढ़ेगा और ऑनलाइन व्यापार भी बुरी तरह से प्रभावित होकर कैश ऑन डिलीवरी तक सीमित रह जाएगा. गूगल हमारे दैनिक जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है. बात चाहे गूगल पर जाकर कुछ खोजने की हो, या  रास्ता ढूंढने की, गूगल सर्च इंजन के बिना हमारे जीवन में एक बहुत बड़ी रिक्तिता आ जाएगी.  जिन अमेरिकन कंपनियों के उत्पाद रूसी जनता ने खरीदे हैं उनके  पार्ट्स उपलब्ध न होने से "आफ्टर सेल्स सर्विस" बंद हो जाएगी और देश को बहुत बड़ा वित्तीय नुकसान होगा. हवाई क्षेत्र की कंपनी बोइंग जिसके बहुत सारे यात्री विमान रूस  ने खरीद रखे हैं उनका  रखरखाव और मरम्मत का कार्य बहुत मुश्किल हो जाएगा. यद्यपि इन अमेरिकन कंपनियों के रूस से  काम समेटने से उनका स्वयं उनका बहुत वित्तीय नुकसान होगा, लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण डालर रूबल भुगतान बंद  हो जाने के कारण इन कंपनियों के लिए लिए कार्य करना संभव भी नहीं रह गया है.

इन प्रतिबंधों से भारत सहित दुनिया के देशों को तीन बहुत बड़े संदेश प्राप्त होते हैं-

१.पहला संदेश यह है कि जनता को अपने देश के सरकार का चुनाव  बहुत सावधानी से करना चाहिए  और उसका  मुखिया यानी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति कौन होगा इस पर  गंभीरता  पूर्वक करना चाहिए कि उनके वोट से जो  व्यक्ति  सरकार का मुखिया बनने  जा रहा हैं, उस व्यक्ति में  इस जिम्मेदारी के  निर्वाहन की क्षमता है भी या नहीं क्योंकि राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिए. यूक्रेन में जनता ने 3 साल पहले जब वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को राष्ट्रपति चुना था तब वह एक प्रसिद्ध कॉमेडियन थे लेकिन  बिना उनकी  राजनीति क्षमताओं को जाने केवल इस आधार पर कि वह एक अच्छे कलाकार हैं, राष्ट्रपति बना दिया. यह सही है कि रूस के आक्रमण के बाद जेलेंसिकी ने स्वयं सेना की वर्दी पहन ली और  जनता में राष्ट्रवाद की ऐसी अलख जगाई कि आज सेना के साथ आम नागरिक भी रूसी सेनाओं से लड़ने के लिए तैयार हैं . निश्चित रूप से इसकी प्रशंसा की जानी चाहिए लेकिन अगर जेलेंस्की की जगह यूक्रेन का राष्ट्रपति कोई सक्षम राजनीतिक सिटी युवा इस चर्चा व्यक्ति होता तो शायद युद्ध की नौबत ही नहीं आती. बिना नाटो की सदस्यता के भी यूक्रेन अपनी एकता अखंडता और संप्रभुता बनाए रख सकता था और रूस सहित  दुनिया के अन्य देशों के साथ अच्छे संबंध भी बनाए रख सकता था.

प्राप्त सूचनाओं के अनुसार अब जेलेंस्की ने रूस के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है कि वह नाटो की सदस्यता नहीं लेंगे और पूर्वी यूक्रेन के  दोनों क्षेत्र  डोनेत्स्क और लुहान्स्क पर रूस द्वारा घोषित स्वायत्तता स्वीकार करेंगे. इतने  बड़े राष्ट्रीय  नुकसान और जनधन की हानि कराने  के बाद जिस का आकलन करना बहुत मुश्किल है, जो रूस चाहता था, उससे कहीं ज्यादा  किया. एक देश के राष्ट्रपति में  राजनीतिक परिपक्वता के अभाव ने देश का इतना बुरा हाल कर दिया इसकी सहज कल्पना करना भी मुश्किल है. इस संबंध में भारत के मतदाताओं की समझदारी की प्रशंसा करनी होगी  जिन्होंने 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का 30 साल बाद मौका दिया था और उन्हें  निराश नहीं होना पड़ा  बल्कि  2019 में जनता ने पुनः मौका दिया. 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा को आशातीत बहुमत देकर  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 5 वर्ष के कार्यकाल को देखा और आज  जिन  राज्यों के चुनाव घोषित हुए हैं उनमें उत्तर प्रदेश सहित चारों भाजपा शासित राज्यों में जनता ने भाजपा को भारी बहुमत से पुनः विजयी  बनाया. 

 

२. दूसरा संदेश जिसे भारत और अन्य देशों को बहुत गंभीरता से ग्रहण करना चाहिए वह यह है कि बिना आत्मनिर्भरता के कभी भी बड़ा संकट सामने आ सकता है, विशेष तौर से वित्तीय, औद्योगिक और खाद्यान्न उत्पादन.  वित्तीय एवं बैंकिंग क्षेत्र में भारत ने  कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं, आज भारत की भुगतान व्यवस्था विश्व में सर्वश्रेष्ठ है. आरटीजीएस, एनईएफटी, आइएमपीएस और  यूपीआई भारतीय बैंकिंग व्यवस्था में नवाचार के उत्कृष्ट उदाहरण है. कार्ड भुगतान और सेटलमेंट व्यवस्था में रूपे लगातार प्रगति कर रहा है और आज भारत में इस्तेमाल होने वाले कुल डेविड कार्ड में 60% की हिस्सेदारी रुपे कार्ड की है. यद्यपि क्रेडिट कार्ड क्षेत्र में रूपे  का दबदबा डेबिट कार्ड की तरह नहीं बन पाया है फिर भी सरकारी प्रोत्साहन के कारण रुपए ने उल्लेखनीय प्रगति की है और हम आशा कर सकते हैं कि आगामी वर्षों में  भुगतान और सेटलमेंट  हेतु  वीजा और मास्टरकार्ड जैसी विदेशी कंपनियों पर निर्भरता बहुत कम या खत्म हो जायेगी. प्रतिबंधों के बाद क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड  की भुगतान व्यवस्था से संबंधित जिन परेशानियों का सामना रूस की जनता को करना पड़ रहा है संभवत उस तरह की परेशानियां उन परिस्थितियों में भारत को नहीं आएगी.

 

३.     ३. तीसरा और अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है शिक्षा का क्षेत्र जिसमें  प्रत्येक देश को जितना संभव हो सके आत्मनिर्भर बनने का प्रयास करना चाहिए. भारत के लगभग  24000 छात्र यूक्रेन में चिकित्सा शिक्षा की डिग्री प्राप्त करने हेतु अध्ययन कर रहे थे, रूस के आक्रमण के बाद भारत सरकार को उन्हें ऑपरेशन गंगा के तहत निकालना पड़ा. इसमें एमबीबीएस प्रथम वर्ष से लेकर अंतिम वर्ष तक के छात्र हैं और ऐसे छात्र भी हैं जो इंटर्नशिप कर रहे थे. इन सभी के यूक्रेन वापस जाकर शिक्षा पूरी करने की संभावनाएं निकट भविष्य में बहुत कम है. इन सभी का भविष्य दांव पर लग गया है इनकी बची हुई पढ़ाई भारतीय मेडिकल कॉलेज में करवा पाना मुश्किल होगा और अगर ऐसा किया जाता है तो यह चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता करना होगा. वैसे भी जब कोई छात्र रूस, यूक्रेन, चीन, बांग्लादेश और नेपाल से एमबीबीएस की डिग्री लेकर आते हैं तो उन्हें भारत में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित प्रोफेशनल  परीक्षा पास करनी होती है और इसे भी बहुत कम छात्र पास कर पाते हैं. जो यह परीक्षा पास नहीं कर पाते हैं वी डॉक्टर नहीं बन पाते हैं और कोई दूसरा व्यवसाय या नौकरी चुनते हैं लेकिन इन छात्रों द्वारा विदेश में चिकित्सा शिक्षा प्राप्त करने के लिए किया गया बड़ा खर्चा बेकार चला जाता है.

 

यूक्रेन से लौटे हुए इन छात्रों के समक्ष एक नई चुनौती खड़ी हो गई है इसमें ज्यादातर ऐसे छात्र हैं  जिन्हें अभी मेडिकल डिग्री भी नहीं मिल पाई है, ऐसे में इन छात्रों को भारतीय मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश देना बहुत बड़ी चुनौती है. भारत में मेडिकल कॉलेज खोलने की गति इतनी धीमी रही है कि इनसे निकलने वाले डॉक्टर देश की बढ़ती जनसंख्या के लिए पर्याप्त नहीं है. इसलिए देश में हर जिले में राजकीय या निजी क्षेत्र मैं मेडिकल कॉलेज खोले जाएं जिससे एमबीबीएस की कुल उपलब्ध सीटों की संख्या बढ़ाई जा सके और छात्रों को चिकित्सा शिक्षा हेतु विदेश ना भाग ना पड़े.

-शिव मिश्रा

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