शनिवार, 18 मार्च 2023

भाजपा के शुभ रत्न राहुल गांधी

                        


                                 भाजपा के शुभ रत्न राहुल गांधी 

राहुल गाँधी विदेशी भूमि पर भारत के लोकतंत्र की दुर्दशा पर आंसू बहाकर और अमेरिका तथा पश्चिमी देशो से भारतीय राजनीति में दखल देने की गुहार लगा कर वापस उसी संसद में पहुंचे, जहाँ वे स्वयं भी लोकतांत्रिक पद्धति से चुनकर पहुँचे थे और जहाँ कांग्रेस सहित सभी विपक्षी सांसद उनके बयानों को न्यायोचित ठहराने के लिए लोकतंत्र की मर्यादा को तार तार कर रहे थे. इससे संभवतः कोई भी असहमत नहीं होगा कि राहुल गाँधी विदेशी भूमि पर जितनी बेशर्मी से भारतीय लोकतंत्र और राष्ट्रीय संस्कृति का अपमान करते है, स्वतंत्र भारत के इतिहास में इसका उदाहरण मिलना मुश्किल है. संसद में जहाँ सत्तापक्ष राहुल गाँधी द्वारा माफी मांगने पर अड़ा हुआ है, वही भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई के भय से काँपता विपक्ष एक दूसरे की बाहं थामे, राहुल की माफी के विरोध को तिनके का सहारा समझकर लटक गया हैं.

भारत में विपक्ष वैसे एकजुट भले ही न होता लेकिन केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई के विरोध में सब एक दूसरे को भ्रष्टाचार को राजनीतिक उत्पीड़न बताकर ढांकने में सहायता कर रहे हैं. पहले के विपक्ष और आज के विपक्ष के विरोध का यह उल्लेखनीय अंतर है. आज विपक्ष के पास मोदी सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार का कोई मुद्दा नहीं है, इसलिए विपक्ष अडानी और अंबानी को मोदी के साथ जोड़ने की कोशिश करता है. राहुल के मोबाइल में पेगेसिस नहीं, दिमाग में अडानी मलवेयर इंस्टाल हो गया है, इसलिए ऐसा कोई भाषण नहीं होता जिसमें अडानी का जिक्र न हो. जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है लेकिन ज्यादातर लोग अभी नहीं भूले होंगे कि कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में तो भ्रष्टाचार की अति हो गई थी. नित नए घोटाले सामने आते थे, और सरकार के समूचे कार्यकाल में भ्रष्टाचार की राशि अरबों रुपए में थी. शायद ही ऐसा कोई मंत्रालय रहा हो जिस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप ना लगे हो. जांच के उपरांत वित्त मंत्री / गृहमंत्री सहित कई केंद्रीय मंत्रियों को जेल हुई, कई जमानत पर हैं और अनेक आज भी जांच का सामना कर रहे हैं. स्वयं राहुल और सोनिया नेशनल हेराल्ड - यंग इंडिया मामले में जमानत पर चल रहे हैं.

मैं हमेशा लिखता आया हूँ और मेरा निश्चित मत है कि भारत में राजनीति बहुत बड़ा उद्योग है अन्य देशों के तुलना में भारत में राजनीति समाज सेवा नहीं, सबसे फायदेमंद परंपरागत पारिवारिक उद्योग है. इसलिए ज्यादातर राज्यों में क्षेत्रीय दलों की बाढ़ आ गई है और वे किसी भी कीमत पर सत्ता पर काबिज होने का उपक्रम करते हैं और प्राप्त भी करते हैं. स्वार्थ सिद्धि में लगे ऐसे राजनीतिक दल पारिवारिक उद्योग के अलावा और कुछ नहीं, जिन्होंने परंपरागत ढंग से अगली पीढ़ी को सत्ता हस्तांतरण भी शुरू कर दिया है.

स्वतंत्रता के बाद बड़ी आसानी से सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण और जाति आधारित वोट बैंक का ऐसा राजनैतिक ताना बाना बुना जिसके चलते भ्रष्टाचार कभी मुद्दा नहीं बना. सामाजिक, आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन जैसे मुद्दें केवल आकर्षक राजनीतिक नारों तक सीमित रहे. संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग और लोकतंत्र पर अधिनायकवाद की छाया इतनी प्रबल रही कि विपक्ष हमेशा हाशिए पर रहा. विपक्ष तभी एकजुट हो सका जब कांग्रेस ने भारत के संवैधानिक और लोकतांत्रिक ढांचे को ध्वस्त कर दिया और आपातकाल लगा कर सामान्य जनता पर ज्यादितियों की पराकाष्ठा पार कर दी.

राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जैसे देश व्यापी और देश के सबसे बड़े गैर राजनीतिक संगठन और उसके अनुशासित तथा प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की बहुत बड़ी संख्या के बावजूद, उसकी अनुषांगिक और एकमात्र दक्षिण पंथी राजनीतिक दल (भाजपा) को अपने बलबूते केन्द्रीय सत्ता में पहुंचने में 67 साल लग गए. 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश ने अलग राजनैतिक संस्कृति और विकासोन्मुख योजनाएं देखी और सरकारी योजनाओं का फायदा जरूरतमंद तक बिना भ्रष्टाचार और बिचौलिए के पहुँचते देखा. लोगों का सरकार के प्रति नया दृष्टिकोण बना और उन्होंने राजनीति को अलग ढंग से देखना शुरू किया. इसमे सोशल मीडिया ने भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई. इस सबके बीच कांग्रेस लगातार कमजोर होकर पृष्ठभूमि में गिरती गयी. कांग्रेस की इस दुर्गति के लिए गाँधी परिवार और उसकी स्वार्थपूर्ण नीतियां जिम्मेदार हैं, जिसे वह न तो समझने के लिए तैयार है और न हीं खुद को बदलने के लिए. इसलिए उसके लिए स्थितियां बद से बदतर होती जा रही हैं लेकिन आज भी उसे लगता है कि कांग्रेस के अलावा और किसी भी राजनीतिक दल को देश पर शासन करने का अधिकार नहीं है.

पूर्ण बहुमत प्राप्त करनेवाली मोदी सरकार लगातार अपना दूसरा कार्यकाल पूरा करने जा रही है, इससे केवल कांग्रेस ही नहीं, वे सभी राजनीतिक दल और संगठन भी परेशान हैं जिन्हें कांग्रेस के शासनकाल में देश को लूटने सहित, कुछ भी करने की छूट थी. इसलिए ये सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठन कांग्रेस को सत्ता में बनाए रखने में बहुत बड़ी भूमिका निर्वहन करते थे. अब उनकी दुकानें बंद हो गई है. स्वाभाविक है कि मोदी सरकार के विरुद्ध सभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गिरोह एकजुट हो गए हैं और वे आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में किसी भी कीमत पर मोदी सरकार की वापसी नहीं होने देना चाहते हैं. इसके लिए सभी आपसी समन्वय के साथ मोदी सरकार को घेरने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तरह तरह के के उपक्रम कर रहे हैं ताकि न केवल मोदी की बल्कि भारत की भी छवि खराब हो और चुनाव के पहले देश का माहौल इतना विषाक्त कर दिया जाए कि जनता में मोदी के प्रति संदेह बढे और वह मोदी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दें.

पिछले कुछ समय से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घट रही घटनाओं पर अगर दृष्टिपात करें तो पता चलता है कि चाहे शाहीनबाग जमावड़ा हो, किसान आंदोलन हो, बीबीसी डॉक्यूमेंट्री हो, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट हो, या जॉर्ज सोरोस का भारत के विरुद्ध बयान हो, सबका उद्देश्य एक ही है. अडानी और अंबानी राहुल का हिंडनवर्ग की रिपोर्ट बिना पढ़े ही कोई बता सकता है कि वह राहुल गाँधी के एजेंडे को ही आगे बढ़ाने का प्रयास है. राहुल की भारत जोड़ों यात्रा का उद्देश्य भी वही है, और संवैधानिक मर्यादाओं के अंतर्गत लोकतांत्रिक रूप से सरकार का विरोध करने में कुछ भी अनुचित नहीं है लेकिन अगर भारत भारत जोड़ों यात्रा के सह यात्रियों की सूची देखी जाए तो उसमें कई ऐसे कुख्यात नाम मिलेंगे जिनका राष्ट्र विरोधी कार्यों में लिप्त होने का लम्बा इतिहास है. आखिर जॉर्ज सोरेस के कर्मचारी सलिल शेट्टी, राष्ट्रविरोधी आंदोलनों के खलनायक योगेन्द्र यादव, मेधा पाटेकर जैसे अनेक कुख्यात व्यक्तियों और अलगाववादियों का भारत जोड़ों से क्या संबंध हो सकता है.

राहुल गाँधी अपनी विदेश यात्राओ के कारण हमेशा से सुर्खियों में रहते आए हैं लेकिन अबकी बार कारण पूरी तरह से अलग है क्योंकि उन्होंने विदेशी भूमि पर भारत की राष्ट्रीय गरिमा को ठेस पहुंचाई, सेना का अपमान किया, कश्मीरी अलगाववादियों की तरफदारी की, तुष्टिकरण को आगे बढ़ाते हुए मोदी को अल्पसंख्यकों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का जिम्मेदार ठहराया. एक तरह से उन्होंने पूरी दुनिया को यह बताने की कोशिश की कि मोदी के शासनकाल में, संविधान और लोकतंत्र सब कुछ नष्ट हो गया है. अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किए जा रहे हैं, राजनीतिक व्यक्तियों का उत्पीड़न किया जा रहा है. सुरक्षा बलों द्वारा कश्मीर में महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है. भारत का बच्चा बच्चा राहुल को जानता है और इसलिए देश में उन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता लेकिन विदेशों में उनकी मानसिकता को कोई नहीं समझता, इसलिए मामला अत्यधिक गंभीर हो जाता है.

केजरीवाल के शिक्षा मंत्री सतेंद्र जैन मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में लंबे समय से जेल में हैं. शराब घोटाले में अब उनके उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी सलाखों के पीछे पहुँच गए हैं. जांच की आंच तेलंगाना की सत्तारूढ़ पार्टी भारत राष्ट्र समिति तक पहुँच गई है और मुख्यमंत्री चन्द्र शेखर राव की बेटी को प्रवर्तन निदेशालय ने समन किया है. दक्षिण शराब लॉबी के कई शराब माफिया गिरफ्तार हो चूके हैं. पश्चिम बंगाल में कई बड़े घोटाले सामने आ चूके हैं, और तृणमूल सरकार के कई नेता और मंत्री जेल में हैं और अनेक जांच का सामना कर रहे हैं. चारा घोटाले के बाद, रेल मंत्री के रूप में नौकरियों के घोटाले में बुरी तरह फंसे लालू यादव से केन्द्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय पूछ्ताछ कर रहा है. अस्वस्थता के कारण उनको जमानत मिल गई है. ऐसे में भ्रष्टाचार में फंसे सभी राजनैतिक दलों और नेताओं को केन्द्रीय जांच एजेंसियों ने एक दूसरे का हाथ थामने के लिए मजबूर कर दिया है और इसी मजबूरी में ये सभी राहुल के विवादास्पद बयानों का बचाव कर रहे हैं ताकि यह संदेश दिया जा सके कि मोदी सरकार विपक्षी नेताओं को प्रताड़ित कर रही है.

कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी मुसीबत स्वयं गाँधी परिवार है, जिसे कोई कांग्रेसी स्वीकार नहीं करना चाहता और इसलिए उन्हें अभी भी राहुल गाँधी में देश का तो नहीं, अपना भविष्य जरूर दिखाई पड़ता है. यही कारण है कि कांग्रेस के कई विद्वान प्रवृत्ति के नेता भी आंख बंद करके राहुल के बयानों का बचाव ही नहीं करते, उनकी हाँ में हाँ भी मिलाते हैं.

राहुल के बचाव में अब कई विपक्षी पार्टियां भी आ गई है. इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि अगले लोकसभा चुनाव में इन पार्टियों का भविष्य भी दांव पर लग जाएगा क्योंकि राहुल गाँधी के रूप में भारतीय जनता पार्टी को एक ऐसा रत्न प्राप्त हो गया है, जो कभी भी भारतीय जनता पार्टी को चुनाव हारने नहीं देगा.

इसलिए 2024 के चुनाव की तस्वीर धीरे धीरे साफ हो रही है और मोदी की एक और जीत का आगाज अवश्यंभावी होता जा रहा है.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~