रविवार, 10 जुलाई 2022

सर्वोच्च न्यायालय या अन्यायालय

 सर्वोच्च न्यायालय या अन्यायालय

नूपुर शर्मा प्रकरण पर सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की टिप्पणियों ने केवल न्यायपालिका को  ही नहीं, पूरे देश को शर्मसार कर दिया है. उनकी टिप्पणियों से न्यायपालिका की प्रतिष्ठा तो गिरी ही, राष्ट्रीय एकता अखंडता और अस्मिता को जितना नुकसान कट्टरपंथी और जिहादी कई वर्षों में  नहीं पहुंचा सके थे, उतना नुकसान इन न्यायाधीशों ने अपनी अज्ञानता, बड़बोलेपन और निरंकुशता से एक क्षण में कर दिया. इन की टिप्पड़ियों ने कट्टरता, धर्मान्धता और “सर तन से जुदा” करने वाली मांग पर न्यायिक मुहर लगा दी. किसी भी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति से इस तरह की टिप्पणियां आश्चर्यचकित करने वाली है. इस बात का विश्वास नहीं किया जा सकता कि इन न्यायाधीशों को यह नहीं मालूम था कि उनकी टिप्पणियों का क्या परिणाम निकलेगा, इसलिए इस बात की जांच की जानी आवश्यक है कि ऐसा किसी स्वार्थपूर्ति के लिए किया गया या अज्ञानता बस. दोनों ही परस्थितियों में इन न्यायाधीशों को पद पर बने रहने का नैतिक आधार नहीं है.

इस घटना ने एक बार फिर सर्वोच्च न्यायलय और उच्च न्यायालयों में  न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रकिया पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगा दिए हैं. जो न्यायाधीश भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और गैर पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया से चुनकर आया हो, उससे निष्पक्ष और पारदर्शी न्याय की अपेक्षा करना कितना खतरनाक हो सकता है, यह इस घटना ने दिखा दिया.         

भारत की सामान्य जनता में  न्यायपालिका की प्रतिष्ठा वैसे भी धरातल पर हैं और उसका प्रमुख कारण है तारीख पर तारीख और कदम कदम पर भ्रष्टाचार. कहावत है कि देर से मिला न्याय, न्याय नहीं होता  लेकिन अब तो इतना विलंब हो रहा है कि कई बार तो पीढ़ियां गुजर जाती है और मुकदमा प्रारंभिक सुनवाई से आगे नहीं बढ़ पाता. यह न्याय नहीं अन्याय की पराकाष्ठा है.  भारत में इस समय कुल लंबित मामले 4.78 करोड़ हैं, इनमें से 1,77,189 मामले 30 वर्ष से भी अधिक समय से लंबित हैं, और मज़े की बात यह है कि इनमें से कुछ मामले जेल में निरुद्ध कई  लोगों की जमानत के लिए है. कितना दुर्भाग्य पूर्ण है कि कोई व्यक्ति 30 वर्ष से अधिक समय से  जेल में बंद है और उसकी जमानत याचिका पर आज तक सुनवाई ही नहीं हुई. कुछ लोग जमानत का इंतजार करते करते मर गए और बाकी लोगों की  जमानत पर सुनवाई  ज़िंदा रहते हो पाएगी, यह भी निश्चित नहीं कहा जा सकता. उच्च न्यायालयों में इस समय  लगभग 60 लाख और सर्वोच्च न्यायालय में 70 हजार  से भी अधिक मामले लंबित हैं. 30 वर्ष से अधिक के जो भी मामले लंबित हैं, उनमें 70 हजार से अधिक मामले उच्च न्यायालयों में लंबित हैं. यह सभी सूचनाएं नेशनल ज्यूडिशियल डाटा  ग्रिड और सर्वोच्च न्यायलय की वेबसाइट पर उपलब्ध है.

ऐसा लगता है कि सर्वोच्च न्यायालय को इस सब की परवाह नहीं है. कितने ही मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) आये  और चले गए लेकिन न्यायपालिका की गाड़ी पटरी पर नहीं आ सकी. ऐसा लगता नहीं कि किसी भी मुख्य न्यायाधीश ने  लंबित मुकदमों की  समस्या से निपटने के लिए कोई रणनीति बनाई हो और  सरकार को उस पर चलने  का सुझाव दिया हो. कई मुख्य न्यायाधीश सिर्फ न्यायाधीशों की कमी का सार्वजनिक रूप से रोना रोते और आंसू पोंछते चले गए. किसी ने न्यायिक सुधार और न्यायपालिका की जवाबदेही की ना तो बात की और न ही कभी कोई ठोस  सुझाव दिया कि मुकदमों  के बढ़ते बोझ को कैसे कम किया जाए और कैसे एक निश्चित समय सीमा में  मुकदमों  का निपटारा किया जाय.  और तो और किसी भी न्यायाधीश ने आज तक इस बात का विरोध नहीं किया कि अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन अवकाश जैसे राजसी ठाठ बाठ का अब  क्या औचित्य है? स्पष्ट है कि अपनी स्वार्थपूर्ति में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और मुख्य न्यायाधीश भी किसी से पीछे नहीं है.

नूपुर शर्मा प्रकरण अब भारत में बच्चे बच्चे को पता है. ज्ञानवापी मस्जिद में काशी विश्वनाथ मंदिर कि अवशेष मिलने के बाद कुछ चरमपंथी मुस्लिम नेता  कोई न कोई बड़ा विवाद खड़ा करने का बहाना ढूंढ रहे थे और  जल्द ही उन्हें नूपुर शर्मा के टीवी डिबेट में मिल गया. बस फिर क्या था तलवारें खिंच गई, देश में मोदी भाजपा विरोधी और विदेशों में भारत विरोधी माहौल बनाया जाने लगा. भाजपा ने दबाव में आकर नूपुर शर्मा को पार्टी से निकाल  दिया लेकिन मामला शांत नहीं होना था तो नहीं हुआ क्योंकि कट्टरपंथी मांग कर रहे थे कि गुस्ताख ए रसूल की एक ही सजा सर तन से जुदा.

इसके बाद जुमे की जंग हुई जो कानपुर से होकर प्रयागराज और तमाम शहरों में फैल गई. ऐसा लगता है कि जैसे कुछ स्वार्थी धार्मिक और राजनैतिक लोग दंगा, फसाद, और गृह युद्ध जैसे हालत बनाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं और समय समय अपनी तैयारियों का परीक्षण भी करते रहते हैं. आखिर यह  देश संविधान और कानून से चलेगा या मजहबी कानून और जूनून से. हाल में बहुत सी घटनाएं ऐसी हुई है जिन्हें  विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र सरकार द्वारा उतनी गंभीरता से नहीं लिया गया जितना देश की एकता अखंडता कायम रखने के लिए लिया जाना चाहिए था. इसका परिणाम यह निकला कि इस तरह की घटनाएं अब जल्दी जल्दी हो रही है, और  आम होती जा रही हैं. चाहे केरल में एक व्यक्ति के हाथ काट देने का मामला हो,  कमलेश तिवारी की जघन्य और निर्ममता पूर्वक की गई हत्या का मामला  हो और अब उदयपुर में कन्हैयालाल तेली और अप्म्रवती में उमेश कोल्हे का सर तंग से जुदा करने की दुस्साहसिक वारदातें, ये सभी केवल कानून और व्यवस्था की शिथिलता का मामला नहीं, बल्कि कट्टरपंथियों के सामने शिथिल पड जाने का मामला है. उदयपुर की घटना से  पहले भी वीडियो पोस्ट किया गया  था और उसके बाद भी वीडियो में  खून से सने हुए हथियार लहराते हुए न केवल इस घटना  की जिम्मेदारी ली गयी थी  बल्कि ये नारा भी बुलंद किया गया था कि  गुस्ताखे रसूल की एक ही सजा सर तन से जुदा. ... उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को भी चुनौती दी कि उनकी तलवार उनकी गर्दन तक भी पहुंचेगी. यह सब कट्टरपंथियों के बढ़ते हौसले का परिचायक है, जिसका कारण राजनैतिक इच्छाशक्ति की शिथिलता और राजनैतिक स्वार्थ के लिए एक वर्ग विशेष की हर अच्छी बुरी बात का अंध समर्थन करने के साथ साथ सबका विश्वास पाने की तीव्र अभिलाषा भी है.   

 नूपुर शर्मा के विरुद्ध विभिन्न राज्यों में पुलिस में  एफआईआर दर्ज की गई हैं और  अब यह एक फैशन हो गया है कि राजनीतिक आधार पर विरोधी दलों या खास दलों का विरोध करने वाले लोगों को सबक सिखाने के लिए एफआईआर दर्ज की जाती है और इस तरह एक ही मामले में पूरे देश भर में सैकड़ों एफआईआर दर्ज हो जाती है. कानून व्यवस्था और न्यायिक दृष्टि से देखा जाए तो एक ही मामले के लिए इतनी सारी एफआइआर अलग अलग जगहों पर दायर किया जाना न्यायोचित नहीं है. एफआइआर की अंतिम परिणति मुकदमा चलाने की होती है ऐसे में एक अपराध के लिए सैकड़ों मुकदमे, सैकड़ों जगह नहीं चलाये जा सकते. एक मुकदमा तो इस जन्म में खत्म नहीं हो पाता इतने सारे मुकदमे खत्म करने के लिए किसी व्यक्ति को  कई जन्म लेने पड़ेंगे और जब लोग सर तन से जुदा करने के लिए पीछे पड़े हो, तो  इस व्यक्ति का क्या हाल होगा, यह समझना भी मुश्किल नहीं.

अपनी जान को गंभीर खतरे को देखते हुए नूपुर शर्मा ने  देश भर में उनके खिलाफ़ दायर की गईं  बहुत सारी एफआईआर को एक साथ संयुक्त  करके उनकी सुनवाई दिल्ली में की जाने की सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दी थी. सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी सुनवाई करते हुए कई टिप्पणियां की जिनका याचिका से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं था  और दबाव बना कर याचिका इस आपत्ति के साथ वापस करवा दी, कि इसे उच्च न्यायलय में दाखिल किया जाय. सर्वोच्च न्यायलय के न्यायाधीश को यदि यह बात नहीं मालूम कि विभिन्न उच्च न्यायालयों के कार्य क्षेत्र में दायर  की गयी एफआईआर के सन्दर्भ में दिल्ली  उच्च न्यायलय की कोई  भूमिका नहीं तो यह न्यायाधीशों की गुणवत्ता पर भी  प्रश्न खड़े करता है.      

न्यायाधीशों  ने एक कदम आगे जाते हुए कहा कि अगर आप (नुपुर या भाजपा) किसी दूसरे के विरुद्ध एफआईआर लिखवाते हैं तो वे तुरंत गिरफ्तार हो जाते हैं और जब एफआईआर आपके विरुद्ध हुई है तो आपको कोई छूने की हिम्मत क्यों नहीं कर रहा है. हर एफआईआर पर अगर गिरफ्तारी आवश्यक होती तो कई न्यायाधीश भी नियुक्ति से पहले जेल पहुंच गए होते. इस तरह की बाते या तो राजनीति प्रेरित व्यक्ति करता है या फिर बदले की भावना प्रेरित व्यक्ति करता है. इससे बचा जाना चाहिए था. इसी तरह के  आरोप तमाम मुस्लिम राजनेता और विपक्षी पार्टियों के लोग लगा रहे हैं, वही भाषा न्यायाधीशों की है, जिससे बहुत गलत सन्देश चला गया है और सर्वोच्च न्यायलय की छवि धूल धूसरित हो गयी है. 

सर्वोच्च न्यायालय ने  किसी कानूनी पेचीदगी का जिक्र नहीं किया केवल  व्यक्तिगत पसंद नापसंद के आधार पर टिप्पणियां की जो बेहद आपत्तिजनक, अपमानजनक, न्यायविरुद्ध, और गैर कानूनी हैं. कोई भी सामान्य बुद्धि और विवेक का व्यक्ति इस का विश्लेषण कर सकता है और निहातार्थ समझ सकता है. यह सर्वोच्च न्यायलय की गारिमा की सबसे बड़ी गिरावट है.

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- शिव मिश्रा (responsetospm@gmail.com)

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भारत को आज भी लूटते हैं - कभी आक्रांता बनकर कभी शरणार्थी बनकर .

 

भारत को आज  भी लूटते हैं :

पहले आक्रांता बनकर आते थे अब आते हैं शरणार्थी बनकर .







भारत में हिंदू या मुसलमान में अशिक्षा और  अज्ञानता आज भी चरम पर है और इसका फायदा उठाकर नीम हकीम पीर फकीर साधु और बाबा लोगों को ठगने का काम करते हैं, जिन्हें  ठगा जाता है उन्हें अब भोला  भाला भी नहीं कहा जा सकता.

आज बात करते हैं एक ऐसे ही एक लुटेरे व्यक्ति की जो अफगानी मूल का शरणार्थी  है. खुद को चिश्ती सूफी घराने का बताने वाले सैयद जरीफ का पूरा नाम ख्वाजा सैयद जरीफ चिश्ती मोउनुद्दीन था। ख्वाजा सैयद चिश्ती उर्फ जरीफ बाबा. जिसकी अभी कुछ दिन पहले येवला तालुका के औद्योगिक उपनगर चिचोंडी खुर्द में हत्या हो गई है और इसलिए यह लुटेरा नकली और धोखेबाज  बाबा सुर्खियों में आ गया है.

भारत सरकार द्वारा दिए गए शरणार्थी के दर्जे पर चार साल पहले ये भारत आया था. जांच में सामने आया है कि अफगानिस्तान से आने के बाद बाबा कुछ दिन दिल्ली, फिर कर्नाटक और अब पिछले डेढ़ साल से नासिक के येवला के एक छोटे से गांव में रह रहा था और यह अपने आप को मोईनुद्दीन चिश्ती का वंशज बताता था। तालिबान द्वारा फांसी का डर बता कर भारत में 'शरणार्थी' बनने में कामयाब हुआ था.

जरीफ बाबा पहले तो राजस्थान के अजमेर गए. वहां कुछ दिन रहने के बाद कर्नाटक विजयापुरा का रुख किया. फिर कर्नाटक में एक छोटा सा मकान लेकर वहां लोगों को जोड़ने लगे. कलबुर्गी में जब उन्हें लेकर एक विवाद शुरू हुआ तो वह अपना सबकुछ समेटकर महाराष्ट्र के नासिक आ गए. नासिक में वह काफी लोकप्रिय हो गए. लोग उन्हें जानने लगे. काफी भीड़ उनके इर्द गिर्द इकट्ठी होने लगी. बडे़ पैमाने पर यहां उनके फॉलोवर बनने लगे. वैसे बाहर से भी लोग उनके पास काफी आते थे.

इसकी हत्या की जांच तो पुलिस करेगी लेकिन उससे पहले ही इसके साथ ही रहना अंदाज में लोगों को गुमराह कर धोखाधड़ी करके अच्छी खासी दौलत कमाने का मामला सामने आया है और शायद यही कारण हो सकता है उसकी हत्या का.

ये धोखेबाज  चिश्ती जरीफ बाबा बहुत ही हाईटेक और तेज दिमाग था. वे स्वयं या अपने शागिर्दों के माध्यम से यूट्यूब ट्विटर फेसबुक इंस्टाग्राम व्हाट्सएप और सोशल मीडिया के दूसरे माध्यमों का भरपूर उपयोग करता था और इसके सहारे ही ग्राहक फंसाने का काम करता था. उसने कई यूट्यूब चैनल बना रखे थे, जिसमें कई लाख सब्सक्राइबर थे फेसबुक पर सब खातों में मिलकर  5 लाख और इंस्टाग्राम पर 17.5 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स थे। यूट्यूब पर उनके 6 करोड़ से ज्यादा व्यू थे।

भारत में चाहे हिंदू हों या मुसलमान सभी में अंधविश्वास की भरमार है और यही उन्हें धर्म का ग्राहक बनाकर ऐसे नकली पीर फकीर और बाबाओं के पास ले जाती है और उनकी दुकान चल निकलती है. भारत अंधविश्वास का व्यापार करने वाले नकली पीर फकीरों और बाबाओं के लिए बहुत बड़ा बाजार है.

यह नकली पीर फकीर जरीफ बाबा बॉलीवुड के तीनों खान के नाम का इस्तेमाल कर करोड़ों की कमाई कर रहा था. अपने वीडियो में वह  लोगों को बताता था कि तीनों खान आज इस मुकाम पर हैं वह सिर्फ उसके कारण है. ये सही है कि तीनों खान भी बहुत अंधविश्वासी हैं और इन सभी ने किसी न किसी मंच पर गंडा  ताबीज और पीर फकीर के फायदे वाली बातें की हैं जिसकी क्लिपिंग्स लगाकर यह वीडियो बनाता था. यह  अपने आप को अजमेर शरीफ की दरगाह में दफन ख्वाजा मैनुद्दीन चिश्ती का वंशज बताता था और नियमित रूप से अजमेर शरीफ और निज़ामुद्दीन औलिया तथा अन्य प्रसिद्ध दरगाहों  पर जाता था लेकिन इसका उद्देश्य केवल अपने  लिए ग्राहक बनाना होता था. इसके लिए किसने कई मार्केटिंग एजेंट भी बना रखे थे कुछ हमेशा इसके साथ रहते थे और गुणगान करते रहते थे और कई लोगों को फंसाकर इसके पास लाते थे.

इसके अपने नजदीकी लोग ही इसको देवतातुल्य बनाते थे इसको फूलों की माला पहनाते थे और इसके ऊपर पुष्प वर्षा करते थे नोटों की बारिश करते थे और देखा देखी आने वाले श्रद्धालु भी ऐसा ही करते थे और अच्छी खासी रकम देकर जाते थे. इसके फॉलोवर्स में पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी थे एक वीडियो में एक आईपीएस अधिकारी को भी इससे प्रसाद लेते देखा जा सकता है. यह है अपनी बैठक में कई राजनेताओं की फोटो भी बदल बदल कर लगाता था सोशल मीडिया पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की कमरे में लगी तस्वीर वाली उसकी फोटो वायरल हो रही है. हो सकता है उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद उसने जल्दी से ये फोटो लगा ली हो.

इस अफगान शरणार्थी और तथाकथित जरीफ बाबा की उम्र 30- 35 वर्ष के आसपास थी, लंबी कद काठी और गोरा चिट्टा चेहरा और फैशनेबल धार्मिक स्टाइल के मुरीद हो रहे थे लोग. अपनी बोलने की शैली, लुक और लोगों के इलाज करने के तरीके की वजह से मध्यम और निम्न मध्यमवर्गी लोगों में खासे लोकप्रिय हो गए थे. सूफी लिबास में डांस करते हुए फिल्मी स्टाइल में दर्शकों को लुभाने के सारे लटके झटके इस्तेमाल करते थे। इसके अलावा वह  झाड़फूंक के जरिए महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के इलाज का दावा करते थे।

-वह  लोगों को मरने से बचने के उपाय बताता था लेकिन उसे खुद अपनी मौत के बारे में पता नहीं था.

-लोगों को 150 वर्ष तक जिंदा रहने के नायब तरीका भी बताता था लेकिन खुद ज़िंदा नहीं रह सका .

- बच्चों बुजुर्गों और महिलाओं को छूकर उनके सिर पर हाथ रखकर हर बीमारी का इलाज करता था, भविष्य बताता था 

-तंत्र मंत्र के माध्यम से भी हिंदू और मुसलमान दोनों का इलाज करता था

-हिंदू और मुसलमान दोनों को ही बेवकूफ बनाने के लिए वह अलग अलग तरीके इस्तेमाल करता था

-बाबा ने कुछ दिन पहले ही जल्दी से जल्दी रुपया कमाने का एक नया धंधा अपनाया था. वह लोगों को उनके नाम से दुआ फूंककर कीमती स्टोन पवित्र करता था और बेचता था.

इन सब कारणों से उनके पास पूरे देश से आने वालों का तांता लगा रहता था. उसका जीवन बहुत रहस्यमय था उसने अर्जेंटीना मूल की एक एक विदेशी युवती से शादी की थी जिसका वीजा 2023 तक वैध हैं और पुलिस उससे पूछ्ताछ कर रही है. एक विदेशी और अफ़गान शरणार्थी होने के नाते वह इंटेलिजेंस ब्यूरो की राडार पर था।

 

इस तथाकथित बाबा ने लोगों को विश्वास दिला रखा था कि वह अजमेर शरीफ के ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की वंश का सदस्य है और इसलिए उसके शागिर्द भीड़ में उसका गुणगान करते हुए कहते थे कि गरीब नवाज ने भारत में दीन और ईमान का प्रचार किया और ईमान वालों की संख्या बढ़ाई अब जरीफ बाबा चिस्ती ईमान वालों का ईमान मजबूत करेंगे.

अपने लगभग 4 साल के भारत प्रवास के दौरान तथाकथित जरिए बाबा ने पांच करोड़ रुपये से भी ज्यादा पैसे कमाएँ. उसके श्रद्धालु भक्तों के अलावा विदेश स्थित कुछ संस्थाएँ भी आर्थिक मदद करती थी.  उन्हें दान से भी खूब पैसा मिलता था. दान देश-विदेश दोनों जगहों से आता था.

 इस नकली फकीर जफीर  बाबा अंदर एक साथ दिमाग था और वे बहुत हाईटेक लेटेस्ट और अपडेटेड रहता था. उसने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके खुद को सुर्खियों में ला दिया और अपने लिए अच्छे समाचारों का जखीरा लगा दिया. उसने भारत आकर और दरगाहों पर जाकर किस बात का हुनर सीख लिया था कि यहाँ पर पीर फकीर का धंधा आराम से चलाया जा सकता है और इसलिए वह इसी काम में लग गया था और लोगों को बेवकूफ बनाकर ज्यादा से ज्यादा पैसे ऐंठना उसके व्यवसाय का प्रमुख अंग था. भारत में अंधविश्वासी लोगों की भरमार है और अधिकांश लोगों के पास अपनी अपनी समस्याएं हैं जिन्हें वह चमत्कार के जरिए ठीक करने की अपेक्षा रखते हैं और इसलिए यह दुआओं के ज़रिए चमत्कारों बहुत मांग है और स्वाभाविक तौर पर इस तरह की कारगुजारियों के लिए बहुत बड़ा बाजार है.

देखना है कि इसके शिष्य इसे साईं बाबा या अजमेर के  ख्वाजा गरीब नवाज बनाने की कोशिश न करें, 

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- शिव मिश्रा 



एक और अफगान लुटेरा चिस्ती भारत में - नकली पीर फ़कीरों व बाबाओं के जाल से...