गुरुवार, 17 फ़रवरी 2022

भारत में बनेगी हिजाबी प्रधान मंत्री

  भारत में बनेगी हिजाबी प्रधान मंत्री : यह खतरे का आगाज ही नहीं, बल्कि खतरा आपके सामने मुहं बाए खड़ा है.

वैसे तो असदुद्दीन ओवैसी दादा / परदादा मंगेश ब्राह्मण थे, लेकिन धर्मांतरण के बाद ओवैसी परिवार का आचरण हिंदुस्तान और हिंदुओं के लिए तैमूर लंग से कम नहीं रहा है. ओवैसी का संबंध हैदराबाद के रजाकार संगठन से है, जो हैदराबाद में निजाम के इशारे पर हिंदुओं पर अत्याचार करता था और उन्हें मौत के घाट उतारता था. ओवैसी के पिता मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन के अध्यक्ष थे, जिसने रजाकार संगठन के साथ मिलकर हैदराबाद रियासत के भारत में विलय का विरोध किया था.

यह सभी हैदराबाद को स्वतंत्र देश बनाना चाहते थे या फिर उसका विलय पाकिस्तान में करना चाहते थे. हिंदुओं के खून खराबा और मारकाट से भरा यह विरोध उतना ही उग्र था जैसा कि देश का विभाजन. इस कारण भारत को स्वतंत्रता मिलने के एक साल बाद अक्टूबर 1948 में सेना की कार्यवाही के बाद ही हैदराबाद का भारत में विलय किया जा सका.

इसके बाद रजाकार संगठन और मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन पर प्रतिबंध लगा दिया गया. 1957 में इनके पिता सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी ने इस पार्टी को दोबारा शुरू किया पार्टी के नाम में आल इंडिया जोड़कर इसे ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन कर दिया.

नाम बदलने के बाद भी पार्टी की सोच आज भी बेहद संकीर्ण संप्रदायिक और पाकिस्तानी विचारधारा की है. ये सब हिंदुस्तान में इसलिए नहीं है कि इनके दिल बदल गए या इन्होंने अलगाववादी प्रवृत्ति छोड़ दी बल्कि इसलिए हैं कि इनके पास अन्य कोई विकल्प नहीं है और जिस दिन विकल्प होगा यह फिर एक नये देश की मांग करेंगे. इस लिए इनकी पार्टी बीच-बीच में 15 मिनट के लिए पुलिस हटाने, 15 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ हिंदुओं पर भारी पड़ेंगे जैसे तराने गुनगुनाते रहते हैं.

ज्यादातर लोगों को यह बात मालूम नहीं होगी कि जिन लोगों ने आगे बढ़ चढ़कर पाकिस्तान बनाने की मांग की थी, उनमें से कोई भी व्यक्ति पाकिस्तान नहीं गया था. आपको जानकर हैरत होगी कि विभाजन के बाद भारत वाले भूभाग में लगभग चार करोड़ मुसलमान थे, जिन्हें पाकिस्तान जाना था, लेकिन गए केवल 72 लाख और उसमें भी लगभग 60 लाख लोग पंजाब से गए और बाकी पूरे हिंदुस्तान से गए. दक्षिण भारत के राज्यों से तो कोई भी नहीं गया और आज यही लोग कहते हैं कि यहां की मिट्टी में उनका खून मिला हुआ है. इस सब के लिए महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने सरदार पटेल और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की पूरी आबादी की अदला-बदली की बात नहीं मानी और आज देश में फिर विभाजन कारी ताकतें सक्रिय हैं.

अल्लामा इकबाल, जौहर अली आदि ने तो यहां तक कहा था कि पाकिस्तान उनकी आखिरी मांग नहीं है. विभाजन की त्रासदी के बाद मिली. आजादी के तुरंत बाद पश्चिम बंगाल और असम मैं इतनी आपाधापी की गई कि यह दोनों राज्य हाथ से फिसलते फिसलते बचे और कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा चला भी गया.

कश्मीर में जिस तरह से मुस्लिम मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में हिंदुओं का रक्तपात हुआ, संपत्तियां लूटी गयीं, महिलाओं के साथ दुराचार हुआ और इसका परिणाम हिन्दुओं के पलायन के रूप में हुआ. केरल में भी वही दोहराया गया और यही कार्य पश्चिम बंगाल में किया गया. आज अनेक राज्यों में मुस्लिम जनसंख्या सरकार बनाने की स्थिति में है.

पूरे भारत में मुसलमानों की जनसंख्या बहुसंख्यक लोगों की जनसंख्या का लगभग 30% है और यह संख्या ही खतरे का निशान है. ईरान, इराक, अफगानिस्तान और कुछ अन्य देशों में ऐसा ही हुआ जैसा आजकल भारत में हो रहा है और आज यह सभी इस्लामिक देश हैं.

असदुद्दीन ओवैसी आजाद भारत में जिन्ना की भूमिका में है और दुर्भाग्य से हर राजनीतिक दल जवाहरलाल नेहरु की भूमिका में है, सत्ता की लालसा और मुस्लिम वोटों के लालच में देश के भविष्य को गिरवी रखने का कार्य कर रहे हैं.

कर्नाटक के उडुपी में साजिशन रची गई एक घटना हिजाब को मुद्दा बना लिया गया और यह हिजाब उड़ता हुआ उत्तर प्रदेश के चुनाव में पहुंच गया. सारे राजनीतिक दलों ने इसे हाथों-हाथ लपक लिया. जहां समाजवादी पार्टी से हिजाब पर हाथ लगाने वालों के हाथ काटने का बयान दिया गया, प्रियंका वाड्रा ने हिजाब के समर्थन में कहा कि यह महिलाओं का अधिकार है कि वह हिजाब पहनती हैं या बिकनी. असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बना दिया और इस समय उत्तर प्रदेश में ज्यादातर मुसलमान हिजाब के पक्ष में ही गोलबंद होकर मत दे रहे हैं. सारे मुद्दे गौण हो गए हैं अब भाजपा बनाम सभी दल हो गए हैं.

ओवैसी का बयान कि "एक दिन भारत में हिजाबी प्रधानमंत्री बनेगा" बहुत गंभीर है और यह एक पूर्व नियोजित षडयंत्र की तरफ इशारा करता है. इस बयान का यह मतलब कतई नहीं है कि आज की लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनकर कोई मजहबी प्रधानमंत्री बनेगा क्योंकि ऐसा होने में किसी को कोई भी समस्या नहीं है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और लोकतांत्रिक व्यवस्था से चुनकर कोई भी प्रधानमंत्री बन सकता है.

इसके पहले भी भारत के अनेक राज्यों में मुस्लिम मुख्यमंत्री और हिजाबी मुख्यमंत्री भी हुए हैं. 1980 में आसाम में अनवर तैमूर पहली महिला मुस्लिम मुख्यमंत्री बनी और मुफ्ती महबूबा सईद तो बकायदा मुख्यमंत्री रहते हुए भी हिजाब पहनती थीं. मुस्लिम पुरुष मुख्यमंत्रियों की एक लंबी फेहरिस्त है. इसलिए ओवैसी के बयान को किसी भी हालत में सामान्य बयान नहीं माना जा सकता. अपने बयान में ओवैसी ने यह भी साफ कर दिया कि हो सकता है कि उस समय तक वह शायद जिंदा ना रहें, लेकिन यह होगा जरूर. स्पष्ट है कि उनका इशारा सीधे-सीधे उस स्थिति और परिस्थिति की ओर है जब मुसलमान भारत में बहुसंख्यक होंगे और देश में हिजाबी प्रधानमंत्री बनेगा यानी इस्लामिक राष्ट्र और उसका रास्ता ghazwa-e-hind से होकर जाता है.

मुझे भी लगता है कि शायद यह होकर ही रहेगा, समय चाहे जो भी लगे. मैंने अब तक दुनिया के 20 देशों की यात्रा की है और वहां के मूल निवासियों से बात करने में अपने देश और अपनी संस्कृति के प्रति जितनी निष्ठा और समर्पण देखा है, वैसा हिंदुओं में देखने को नहीं मिलता. बड़ी संख्या में ऐसे हिंदू मिलेंगे जिनका अपने निजी स्वार्थ या विभिन्न कारणों से इतना नैतिक पतन हो चुका है कि वह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि वह क्या कर रहे हैं और इस कारण वे जाने अनजाने में इन षड्यंत्रकारियों के साथ ही खड़े नजर आते हैं.

ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी के बयानों से खतरे का आगाज भले ही हो लेकिन उन्होंने अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अनवरत चलाए जा रहे षड्यंत्र की सच्चाई बयान की है. अब यह आप पर निर्भर करता है कि इसे अस्वीकार करें या रोकने के लिए कुछ करें.

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- शिव मिश्र 



केजरीवाल ने पंजाब चुनाव में खालिस्तान अलगाववादियों का सहयोग लिया

 

लोग शायद भूलने लगे होंगे अन्ना हजारे को, और उनके द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन को. लोगों को अब यह भी ठीक से याद नहीं होगा यह आंदोलन किस लिए किया गया था? स्वयं अरविंद केजरीवाल भी यह सब भूल गए हैं.

अन्ना हजारे द्वारा शुरू किए गए आंदोलन की लोकप्रियता को अरविंद केजरीवाल ने पूरी तरह से भुनाया और अन्ना हजारे को दूध की मक्खी की तरह फेंक दिया. लोगों को शक हुआ कि कहीं यह राजनीतिक आंदोलन तो नहीं है, तो अरविंद केजरीवाल ने अपने बच्चों की कसम खाकर लोगों को विश्वास दिलाया कि वह राजनीति में नहीं आएंगे, लेकिन आ गए .

जब उन्होंने राजनीतिक पार्टी बनाई तो बड़ी-बड़ी बातें की, शुचिता और ईमानदारी स्थापित करने कीबड़ी-बड़ी बातें करके लोगों की आशायें आसमान में चढ़ा दी. अभावों में जीने वाले लोग बहुत आशावादी होते हैं और उन्हें हमेशा किसी ने किसी चमत्कार की आशा बनी रहती है. लोगों ने अरविंद केजरीवाल से भी चमत्कार की उम्मीद लगा ली.

अरविंद केजरीवाल के साथ सामान्य लोग ही नहीं, पढ़े लिखे जागरूक और समाज सेवा का जज्बा रखने वाले लोग भी शामिल हो गए.

पार्टी को दिल्ली राज्य की सत्ता तो हासिल हो गई लेकिन केजरीवाल का बौनापन, न्यूनता और वैचारिक संकीर्णता उनका पीछा नहीं छोड़ रही थी. अपने से बड़े कद के अपने साथियों से उहे कुर्सी और राजनीतिक अस्तित्व के लिए हमेशा खतरा दिखाई पड़ता था.

इसलिए उन्होंने एक-एक करके सभी ऐसे लोगों को पार्टी से निकाल बाहर किया चाहे वह योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे शातिर आदमी हों या कुमार विश्वास जैसे विद्वान साहित्यकार.

ऐसे लोग सत्ता पाने के लिए कितना गिर सकते हैं और क्या क्या कर सकते हैं इसका अंदाजा लगाना भी बहुत मुश्किल है.

कुमार विश्वास ने ए एन आई को दिए इंटरव्यू में जो रहस्योद्घाटन किए हैं वह सभी देशभक्त नागरिकों के लिए बहुत व्यथित और विचलित करने वाले हैं. पिछले पंजाब विधानसभा चुनाव के समय भी आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने की काफी हवा बनाई गई और केजरीवाल ने पाकिस्तान समर्थित खालिस्तान की मांग करने वाले संगठनों से जो सीमा पार से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ मिलकर कार्य करते हैं, से भी वित्तीय सहित हर तरह की सहायता ली.

कुमार विश्वास जैसे पार्टी सदस्यों ने जब उन्हें इसके संभावित खतरे से आगाह किया तो केजरीवाल ने जवाब दिया कि इन्हें आपस में लड़वाकर वह स्वयं पंजाब के मुख्यमंत्री बन जाएंगे और खालिस्तान आंदोलनकारियों के कारण यदि पंजाब भारत से अलग होकर खालिस्तान बन जाता है तो वह खालिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री बनेंगे. 

इंटरव्यू के लिए क्लिक करे 

https://twitter.com/i/status/1493846434164383745

इससे बड़ी नीचता और कुछ नहीं हो सकती. केजरीवाल, ओवैसी, महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला मुफ्ती में क्या फर्क है. बाकी लोग तो भूमिका बना रहें हैं लेकिन केजरीवाल तो योजना बना रहे हैं?

राजनीति में स्वच्छता और इमानदारी की मिसाल कायम करने वाला व्यक्ति सत्ता पाने के लिए इस कदर बेकरार है कि कि देश बेचने या तोड़ने से कोई परहेज नहीं है.

आज दिल्ली में जगह जगह शराब की दुकानें खुल गयी हैं, अविकसित और कच्ची कॉलोनियों में भी दुकान खुली है. शराब का सिंडिकेट केजरीवाल की सरपरस्ती में काम कर रहा है. यदि पंजाब की जनता भूलवश केजरीवाल को सत्ता सौंप देती है, तो ड्रग और धर्मांतरण से कराह रहे पंजाब का क्या हाल होगा, कहना मुश्किल है.

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- शिव मिश्रा