लोग शायद भूलने लगे होंगे अन्ना हजारे को, और उनके द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन को. लोगों को अब यह भी ठीक से याद नहीं होगा यह आंदोलन किस लिए किया गया था? स्वयं अरविंद केजरीवाल भी यह सब भूल गए हैं.
अन्ना हजारे द्वारा शुरू किए गए आंदोलन की लोकप्रियता को अरविंद केजरीवाल ने पूरी तरह से भुनाया और अन्ना हजारे को दूध की मक्खी की तरह फेंक दिया. लोगों को शक हुआ कि कहीं यह राजनीतिक आंदोलन तो नहीं है, तो अरविंद केजरीवाल ने अपने बच्चों की कसम खाकर लोगों को विश्वास दिलाया कि वह राजनीति में नहीं आएंगे, लेकिन आ गए .
जब उन्होंने राजनीतिक पार्टी बनाई तो बड़ी-बड़ी बातें की, शुचिता और ईमानदारी स्थापित करने कीबड़ी-बड़ी बातें करके लोगों की आशायें आसमान में चढ़ा दी. अभावों में जीने वाले लोग बहुत आशावादी होते हैं और उन्हें हमेशा किसी ने किसी चमत्कार की आशा बनी रहती है. लोगों ने अरविंद केजरीवाल से भी चमत्कार की उम्मीद लगा ली.
अरविंद केजरीवाल के साथ सामान्य लोग ही नहीं, पढ़े लिखे जागरूक और समाज सेवा का जज्बा रखने वाले लोग भी शामिल हो गए.
पार्टी को दिल्ली राज्य की सत्ता तो हासिल हो गई लेकिन केजरीवाल का बौनापन, न्यूनता और वैचारिक संकीर्णता उनका पीछा नहीं छोड़ रही थी. अपने से बड़े कद के अपने साथियों से उहे कुर्सी और राजनीतिक अस्तित्व के लिए हमेशा खतरा दिखाई पड़ता था.
इसलिए उन्होंने एक-एक करके सभी ऐसे लोगों को पार्टी से निकाल बाहर किया चाहे वह योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे शातिर आदमी हों या कुमार विश्वास जैसे विद्वान साहित्यकार.
ऐसे लोग सत्ता पाने के लिए कितना गिर सकते हैं और क्या क्या कर सकते हैं इसका अंदाजा लगाना भी बहुत मुश्किल है.
कुमार विश्वास ने ए एन आई को दिए इंटरव्यू में जो रहस्योद्घाटन किए हैं वह सभी देशभक्त नागरिकों के लिए बहुत व्यथित और विचलित करने वाले हैं. पिछले पंजाब विधानसभा चुनाव के समय भी आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने की काफी हवा बनाई गई और केजरीवाल ने पाकिस्तान समर्थित खालिस्तान की मांग करने वाले संगठनों से जो सीमा पार से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ मिलकर कार्य करते हैं, से भी वित्तीय सहित हर तरह की सहायता ली.
कुमार विश्वास जैसे पार्टी सदस्यों ने जब उन्हें इसके संभावित खतरे से आगाह किया तो केजरीवाल ने जवाब दिया कि इन्हें आपस में लड़वाकर वह स्वयं पंजाब के मुख्यमंत्री बन जाएंगे और खालिस्तान आंदोलनकारियों के कारण यदि पंजाब भारत से अलग होकर खालिस्तान बन जाता है तो वह खालिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री बनेंगे.
इंटरव्यू के लिए क्लिक करे
https://twitter.com/i/status/1493846434164383745
इससे बड़ी नीचता और कुछ नहीं हो सकती. केजरीवाल, ओवैसी, महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला मुफ्ती में क्या फर्क है. बाकी लोग तो भूमिका बना रहें हैं लेकिन केजरीवाल तो योजना बना रहे हैं?
राजनीति में स्वच्छता और इमानदारी की मिसाल कायम करने वाला व्यक्ति सत्ता पाने के लिए इस कदर बेकरार है कि कि देश बेचने या तोड़ने से कोई परहेज नहीं है.
आज दिल्ली में जगह जगह शराब की दुकानें खुल गयी हैं, अविकसित और कच्ची कॉलोनियों में भी दुकान खुली है. शराब का सिंडिकेट केजरीवाल की सरपरस्ती में काम कर रहा है. यदि पंजाब की जनता भूलवश केजरीवाल को सत्ता सौंप देती है, तो ड्रग और धर्मांतरण से कराह रहे पंजाब का क्या हाल होगा, कहना मुश्किल है.
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- शिव मिश्रा
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