शनिवार, 30 मार्च 2024

वैश्विक घेराबंदी की कोशिश

 




अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने भारत के संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लागू करने की केंद्र सरकार की अधिसूचना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि किसी को भी धर्म या विश्वास के आधार पर नागरिकता से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। आयोग के आयुक्त स्टीफन श्नेक ने एक बयान में कहाकि विवादास्पद नागरिकता कानून पड़ोसी देशों से भागकर भारत में शरण चाहने वालों के लिए धार्मिक भेदभाव पर आधारित है. उन्होंने कहा कि जहां सीएए हिंदुओं, पारसियों, सिखों, बौद्धों, जैनियों और ईसाइयों के लिए नागरिकता का त्वरित मार्ग प्रदान करता है, वहीं कानून स्पष्ट रूप से मुसलमानों को बाहर करता है। अगर कानून का उद्देश्य वास्तव में सताए गए धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करना है, तो इसमें बर्मा के रोहिंग्या मुस्लिम, पाकिस्तान के अहमदिया मुस्लिम, या अफगानिस्तान के हजारा शिया, अन्य भी शामिल किये जाने चाहिए। किसी को भी धर्म या विश्वास के आधार पर नागरिकता से वंचित नहीं किया जाना चाहिए. आयोग ने अमेरिकी सरकार से आग्रह किया है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों की वकालत करने वाले मनमाने ढंग से हिरासत में लिए गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा करने के लिए भारत पर दबाव बनाएं. अमेरिकी सीनेटर बेन कार्डिन ने तो यहाँ तक कहा वे भारत सरकार के इस विवादास्पद कानून और उसके भारतीय मुसलमानों पर पड़ने वाले प्रभाव से बेहद चिंतित हैं. मामले को बदतर बनाने वाली बात यह है कि इसे रमज़ान के पवित्र महीने के दौरान लाया गया है।

यद्यपि भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह भारत का आंतरिक मामला है और किसी देश या विदेशी संस्था को इस पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है लेकिन इससे एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि इन सबकी भाषा बिल्कुल वही है जो भारत के कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं की है. यह समझना मुश्किल नहीं है कि भारत विरोधी षड्यंत्रकारियों के हाथ कितने लंबे हैं और उनका भारत विरोध कितना गहरा है. एक ओर जहाँ वह भारत के राष्ट्रांतरण के षड्यंत्र की सफलता के लिए प्राचीन सनातन धर्म और संस्कृति को वैश्विक स्तर पर बदनाम कर रहे हैं, वही भारत और अमेरिका के आपसी रिश्तों में खटास पैदा करके तकनीक हस्तांतरण तथा मोदी की बढ़ती लोकप्रियता के समक्ष अवरोध खड़े कर रहे हैं. इसके साथ ही सरकार और मोदी विरोधी आंदोलनों के लिए समर्थन जुटाकर भारतीय अर्थव्यवस्था की गति को रोक रहे हैं.

भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने का यह अकेला मामला नहीं है. हाल ही में शराब घोटाले में पिछले छह महीने से लगातार 9 सम्मन देने के बाद भी हाजिर न होने वाले वांछित आरोपी अरविन्द केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार करने पर भी कई देशों ने अनावश्यक टिप्पणियां की और सुनियोजित रूप से मामले को विदेशी मीडिया में प्रचारित और प्रसारित किया गया. पहले जर्मनी और बाद में अमेरिका ने इस मामले में अनुचित प्रतिक्रिया दी.  जर्मनी ने कहा कि उन्होंने मामले का संज्ञान लिया है और उम्मीद करते हैं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और बुनियादी लोकतांत्रिक सिद्धांतों से संबंधित मानकों को इस मामले में भी लागू किया जाएगा. उन्हें निष्पक्ष सुनवाई उपलब्ध होगी और बिना किसी प्रतिबंध के सभी उपलब्ध कानूनी रास्तों का उपयोग करने की छूट उपलब्ध होगी. भारतीय विदेश विभाग ने जर्मन दूतावास प्रमुख को बुलाकर कड़ी आपत्ति ज़ाहिर की और उसके बाद जर्मनी की भाषा में नरमी आ गई लेकिन  इसके बाद भी अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा कि वे स्थिति का बारीकी से निगरानी कर रहे हैं और  चाहते हैं कि केजरीवाल के लिए निष्पक्ष पारदर्शी और समय पूर्ण कानूनी प्रक्रिया उपलब्ध हो. हद तो तब हो गयी जब संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की ओर से एक बयान जारी किया गया कि केजरीवाल की गिरफ्तारी के मद्देनजर उन्हें बहुत उम्मीद है कि भारत में, जैसा कि चुनाव वाले किसी भी देश में होता है, राजनीतिक और नागरिक अधिकारों सहित सभी के अधिकारों की रक्षा की जाएगी, और हर कोई स्वतंत्र और निष्पक्ष माहौल में मतदान करने में सक्षम होगा। कांग्रेस के खातों को फ्रीज करने संबंधित समाचार पर भी अमेरिका सहित कुछ अन्य देशों ने प्रतिक्रियाये दी. हमेशा की तरह भारत विरोधी अंतर्राष्ट्रीय मीडिया बीबीसी, न्यूयॉर्क टाइम्स, द वॉशिंगटन पोस्ट, अल जज़ीरा, सीएनएन आदि ने लेख छापे और विशेष वार्ताएं प्रसारित और प्रकाशित की.

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की इन प्रतिक्रियाओं पर सत्तारूढ़ भाजपा के अलावा किसी अन्य राजनीतिक दल ने विरोध व्यक्त नहीं किया बल्कि आम आदमी पार्टी तथा कांग्रेस ने विदेशी प्रतिक्रियाओं का समर्थन किया है. राहुल गाँधी तो पहले ही देश विदेश में अपनी प्रेस वार्ताओं में यह कह चुके हैं कि भारत में लोकतंत्र नहीं है. शायद उन्हें लगता है कि यदि भारत में लोकतंत्र होता तो निश्चित रूप से कांग्रेस सत्ता में होती है और  भारत में तब तक लोकतंत्र स्थापित नहीं हो सकता जब तक कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं हो जाती.

इन अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं और मीडिया कवरेज से स्पष्ट है कि भारत के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय शक्तियां पूरी तरह सक्रिय है और ये किसी भी हालत में भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति और सामर्थ्य को रोकना चाहती है. जहाँ कुछ देश आज भी भारत को विकसित और सशक्त राष्ट्र की श्रेणी से बहुत दूर एक बड़े बाजार के रूप में बनाए रखना चाहते हैं, वहीं कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन भारत को जल्द से जल्द इस्लामिक राष्ट्र बना कर हजारों वर्ष पहले देखे गए गज़वा ए हिंद के सपने को साकार करना चाहते हैं. संशोधित नागरिकता कानून में मुसलमानों को शामिल करना इस मुहिम में उत्प्रेरक का काम करेगा क्योंकि भारत में अवैध रूप से घुसे पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और रोहिंग्या भारत के नागरिक हो जाएंगे.

भारत लंबे समय से वैश्विक षडयंत्रकारियों के निशाने पर है और स्थिति में कुछ भी  परिवर्तन नहीं हुआ है. स्वतंत्रता प्राप्ति के बहुत पहले से ही कई देशों की बुरी नजर भारत पर रही है. पहली शताब्दी से लेकर 17वी शताब्दी तक विश्व अर्थ व्यवस्था में एक तिहाई हिस्सेदारी के साथ भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था रहा है. इसी कारण भारत सोने की चिड़िया था और इसलिए कुछ देशों की बुरी नजर होना बहुत स्वाभाविक था. भारत पर दो तरह के आक्रमण हुए, धार्मिक और आर्थिक. आक्रमणकारियों ने भारत की अतुल्य अकल्पनीय धन सम्पदा को जितना लूट सकते थे लूटा और ले गए. दार्शनिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रूप से उन्नत सनातन धर्म के सामने अत्यंत दुर्बल, दीन हीन, कबीलाई संस्कृति के अनपढ़ और पैशाचिक प्रवृत्ति वाले इन आक्रमणकारियों ने सनातन धर्म और संस्कृति को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया. ऐसा साल दो साल नहीं, 700 वर्षों के लंबे कालखंड तक होता रहा लेकिन यह सब भी भारतीयों में राष्ट्र की रक्षा के लिए जिस राष्ट्रभक्ति और समर्पण की भावना की आवश्यकता थी, वह पूर्ण रूप से जागृत नहीं कर सका. यह सही है कि अनेक राष्ट्र भक्तों ने राष्ट्र रक्षा के लिए अथक संघर्ष किया और आत्म बलिदान दिया, लेकिन देश में बड़ी संख्या में ऐसे लोग थे जो पूरे घटनाक्रम के मूकदर्शक बने रहे. इसका परिणाम अंग्रेजों की गुलामी के रूप में सामने आया.

इसके बाद संगठित रूप से राष्ट्रीय लूट शुरू हो गई और सनातन धर्म और संस्कृति को पथ भ्रष्ट या नष्ट करने का कुचक्र शुरू हो गया. कालान्तर में देश स्वतंत्रता तो जरूर हुआ लेकिन वैश्विक षडयंत्र ने भारत के दो टुकड़े कर दिए. एक खंड धार्मिक आधार पर पाकिस्तान बन गया लेकिन दूसरा खंड विभाजन का नासूर लिए धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना दिया गया. इसके लिए गाँधी, नेहरू और कांग्रेस इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार थे. कोई कुछ भी कहे इस षड्यंत्रकारी विभाजन को देखकर ऐसा लगता है कि या तो ये समझदार और सक्षम नहीं थे, या षड्यंत्र का शिकार हो गए थे या स्वयं षड्यंत्र में शामिल थे.

दुर्भाग्य से राष्ट्र की एकता और अखंडता तथा सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए जिस तरह एक बड़ा वर्ग पहले मूकदर्शक था, वही स्थिति आज भी है. अंतरराष्ट्रीय वामपंथ-इस्लामिक गठजोड़ के षड्यंत्रकारी संगठन तथा ऐसे दूसरे देश और संस्थान जो भारत से अनुचित लाभ प्राप्त करने में असफल है, मिलकर भारत के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं. ये सभी भारत को कमजोर करने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते हैं. उनकी हमेशा कोशिश रहती है कि सनातन धर्म और सनातन संस्कृति की विकृत छवि प्रस्तुत करें और यह सिद्ध कर सकें कि भारत में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है ताकि भारत में चलाये जा रहे धर्मांतरण के षड्यंत्र से लोगों का ध्यान हटा सकें और राष्ट्रांतरण के लिए गज़वा ए हिंद जैसी योजना को निरंतर ऊर्जा भी प्रदान करते रहे. वे सफल भी हो रहे क्योंकि अधिकांश भारतीय विशेषतय: सनातनी लोग अब मूक दर्शक नहीं सुप्तावस्था में हैं. इसलिए ये देश कब तक सुरक्षित रह सकेगा कहना मुश्किल है.

चुनाव का मौसम है, विभिन्न राजनैतिक दलों के वक्तव्यों और प्रतिबद्धताओं से स्पष्ट है कि भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति की रक्षा करने वाले दल कौन हैं, उन्हें ही वोट दें. यही समय है, सही समय है जब सभी देशवासी महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से ऊपर उठकर देश बचाने का प्रयास करें. महंगाई और बेरोजगारी केवल भारत की नहीं, वैश्विक समस्या है, जब देश ही नहीं बचेगा, हमारी संस्कृति ही नहीं बचेगी, तो सभी समस्याएं खत्म भी हो जाये तो क्या लाभ.

~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

 

 

 

 

 

 

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