रविवार, 28 अगस्त 2022

 

भारत छोड़ो, भारत तोड़ो और भारत जोड़ों







कांग्रेस पार्टी एक लंबे अरसे बाद किसी जन संपर्क की शुरुआत करने जा रही है, जिसे नाम दिया गया है भारत जोड़ों यात्रा जो 7 सितंबर 2022 से शुरू होकर कन्याकुमारी से कश्मीर तक 3570 किलोमीटर की दूरी तय करेगी. इसमें 12 राज्य और दो केंद्र शासित प्रदेश शामिल होंगे. मज़े की बात यह है कि यह पद यात्रा होगी और राहुल गाँधी के नेतृत्व में होगी जबकि वह न तो कांग्रेस के अध्यक्ष और न ही इस समय  कांग्रेस का कोई अध्यक्ष हैं. प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि यह यात्रा 1942 में भारत छोड़ो यात्रा से मिलती जुलती बनाई गई होगी लेकिन वास्तविकता में ऐसा बिलकुल भी नहीं है क्योंकि भारत छोड़ो यात्रा ऐसे  समय की गई थी जब  देशभक्ति का ज्वार चरम पर था, उसके बाद “भारत तोड़ो” यात्रा हुई जिसमें कांग्रेस ने देश का विभाजन स्वीकार किया और जिस कारण सांप्रदायिक दंगों में लाखों लोगो  की दर्दनाक हत्या की गई.



स्वतंत्रता के बाद देश में अधिकांश समय कांग्रेस या कांग्रेस समर्थित सरकार ही थी जो भारत के आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन जैसी मूलभूत समस्याएं तो नहीं हल कर सकीं  लेकिन सत्ता में बने रहने के लिए वोटबैंक की राजनीति के अंतर्गत मुस्लिम तुष्टीकरण को बढ़ावा देकर विभाजन की पहले वाली स्थितियां जरूर उत्पन्न कर दीं गईं. इस अभियान का नाम “भारत जोड़ो” किसी के गले नहीं उतर रहा. आखिर भारत कहाँ  टूट रहा है, कहाँ अलगाववादी गतिविधियों चल रही है. पूर्वोत्तर में जहाँ कांग्रेस के समय तमाम अलगाववादी आंदोलन चलते थे वहाँ भी सबकुछ सामान्य है. कांग्रेस शासन में रेडियो, टीवी, बस स्टैंड एअरपोर्ट और हर रेलवे स्टेशन पर उद्घोषणा होती थी कि किसी भी अनजान वस्तु को हाथ न लगाए यह बम हो सकता है, वह स्थिति भी अब नहीं रही. कश्मीर में छुटपुट घटनाएं जरूर हो रही है लेकिन पहले जैसी भयानक स्थिति अब नहीं है. धारा 370 और 35 ए खत्म हो चुकी है. पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक हो चुकी है और अब वह पूरी तरह दबाव  और बेहद खस्ताहाल में है. तो फिर भारत में  क्या जोड़ा  जा रहा है ?  जब राहुल गाँधी और दिग्विजय सिंह कहते हैं कि नफरत का माहौल है, और नफरत के माहौल के विरुद्ध यात्रा निकाली जा रही है, तो इसका निहितार्थ है कि वे भारत का वातावरण विषाक्त करने जा रहे हैं. भारत जोड़ो की परिणति तुष्टीकरण के रूप में निकलने की पूरी संभावना है तब राहुल गाँधी की मंदिर परिक्रमा, जनेऊधारी अवतार और दत्तात्रेय गोत्र का क्या होगा ?

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भारत जोड़ों अभियान के संयोजक  मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह हैं जो कांग्रेस के उन चुनिंदा नेताओं में से है जो पार्टी को फायदा कम नुकसान ज्यादा पहुंचाते हैं. इस यात्रा में उनके साथ मणिशंकर अय्यर, और सलमान खुर्शीद जैसे नेता भी जुड़ गए तो सोने में सुहागा हो जाएगा. दिग्विजय सिंह ने कहा है कि यह यात्रा नफरत के माहौल में, नफरत के खिलाफ़ की जा रही है. सरकार संविधान विरोधी  कार्य कर रही है, महंगाई और बेरोजगारी बढ़ती जा रही है, रुपए का अवमल्यून हो रहा है, बड़े उद्योपतितियों का कर्ज माफ हो रहा है, इसलिए देश बचाने के लिए यह यात्रा आयोजित की गई है. कांग्रेस अध्यक्ष चाहती है कि  एक ऐसी यात्रा हो जिसमे सभी धर्म और वर्ग के लोग शामिल हों और देश तथा संविधान बचाया जा सके.

कांग्रेस की इस भारत जोड़ो यात्रा में  योगेन्द्र यादव, मेधा पाटेकर सहित लगभग 150 सिविल सोसायटी के नेता और कार्यकर्ता भी भाग लेंगे, उन्हें  राहुल ने अपनी यात्रा को तपस्या बताते हुए  कहा है कि नफरत फैलाने वालों के अलावा इस यात्रा में सभी का स्वागत किया जाएगा यानी इसमें भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों के लिए कोई स्थान नहीं होगा. योगेंद्र यादव और मेधा पाटेकर जैसे नेताओं के बारे में पूरा देश जानता है कि ये पेशेवर आंदोलनकारी हैं और कहीं भी, कभी भी, किसी के भी साथ आंदोलन कर सकते हैं बशर्ते इनका इनका स्वार्थ पूरा हो. यह सभी आंदोलनकारी शाहीन बाग और किसान आंदोलन में  भी थे. मेधा पाटेकर ने तो वर्षों तक नर्मदा बचाओ आंदोलन की आड़ में सिंचाई और अन्य जरूरतों के लिए नर्मदा पर  बनाए जाने वाले बांध को रोके रखा. योगेन्द्र यादव तो यूपीए सरकार के खिलाफ़ अन्ना आंदोलन में भी थे.

कांग्रेस की भारत जोड़ों यात्रा ऐसे समय शुरू हो रही है जब उस उसके पास कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है. सिकुड़ते सिमटते जनाधार के बीच कांग्रेस के दिग्गज नेता कांग्रेस छोड़ते जा रहे हैं और ऐसे में ये सवाल खड़ा होना बहुत लाजिमी है कि जो पार्टी अपने नेताओं को ही नहीं जोड़ पा रही है वह देश को कैसे जोड़ पाएगी. ये आशंका सही साबित होती जा रही है कि कांग्रेस पार्टी केवल गाँधी परिवार की पार्टी बनकर रह गई है जिसमें केवल परिवार के वफादारों के लिए जगह है और कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति कांग्रेस में नहीं बचेगा.

इस समय विभिन्न क्षेत्रीय नेता प्रधानमंत्री की दावेदारी के लिए अपना दावा ठोक रहे हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव पहले से  ही मैदान में हैं, और बिहार में नीतीश कुमार के पलटी मारने के बाद एक और प्रधानमंत्री मटेरियल दावेदारों में शामिल हो गया है. दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन के भ्रष्टाचार और हवाला मामले में जेल जाने के बाद शराब घोटाला सुर्खियों में है और उसके बाद उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के जेल जाने के हालात बन गए हैं. अपने ऊपर लगे आरोपों को भी अपना हथियार बनाकर विरोधियो पर झूठे आरोप प्रत्यारोप करने में माहिर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने लोगों का ध्यान उनके भ्रष्टाचार से ध्यान  हटाने के उद्देश्य से ही सही, यह घोषणा कर दी है कि 2024 में उनका  सीधा मुकाबला भाजपा से होगा और अरविंद केजरीवाल अगले प्रधानमंत्री बनेंगे. उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बनने में असफल रहे समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भी प्रधानमंत्री पद के लिए अपना दावा ठोंक दिया है. ऐसे में कांग्रेस की भारत जोड़ों यात्रा  राहुल गाँधी के प्रधानमंत्री पद के दावे को मजबूत कर पाएगी, इसमें भी संदेह है.

समझा जाता है कि पांच महीने तक चलने वाली इस यात्रा के बीच में ही कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल जाएगा जो राहुल गाँधी की इस यात्रा के बाद उनके कद और महत्त्व के सामने  बौना और लुंज पुंज नजर आएगा और उसकी स्थिति मनमोहन सिंह से भिन्न नहीं हो पाएगी. गाँधी परिवार भी यही चाहेगा कि कांग्रेस का अध्यक्ष गाँधी परिवार के प्रति पूरी तरह से निष्ठावान हो लेकिन ऐसी स्थिति में वह न तो स्वतंत्र रूप से कार्य कर पाएगा और न ही पार्टी को मजबूत कर पाएगा. इसके परिणाम स्वरूप  गाँधी परिवार हमेशा अपरिहार्य बना रहेगा और यही गाँधी परिवार का लक्ष्य भी है.

2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर अभी से यह सवाल किए जा रहे हैं कि इस लड़ाई में विपक्षी दलों में आपसी सहयोग और सामंजस्य कैसे बनेगा। यदि  कोई गठबंधन बनता भी  है तो उसका नेतृत्व कौन करेगा। भारत जोड़ो यात्रा परोक्ष रूप से गठबंधन के नेतृत्व करने की कांग्रेस क्षमता को रेखांकित करेगी जिसे कितने  विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त होगा, यह भी यक्ष प्रश्न है, क्योंकि इससे न केवल कांग्रेस की राजनैतिक शक्ति का संदेश पूरे देश में जाएगा बल्कि  विपक्षी गठबंधन के नेतृत्व के बारे में भी स्पष्ट धारणा बनती नजर आएगी, यद्यपि क्षेत्रीय नेताओं की महत्वाकांक्षा के कारण ऐसा होना बेहद मुश्किल है.

भारत जोड़ों यात्रा के समक्ष एक सबसे बड़ी चुनौती राहुल गाँधी की देश में उपलब्धता को लेकर भी है क्योंकि वह हर एक दो महीने के अंतराल पर विदेश भ्रमण करते हैं इसलिए कहीं ऐसा न हो कि भारत जोड़ों यात्रा में भारत छोड़ों यात्रा भी शामिल हो जाए. सोनिया, राहुल और यात्रा के संयोजक और संचालकों के वक्तव्यों  से यह धारणा भी बनती जा रही है की यात्रा के दौरान जहर की खेती, मौत के सौदागर जैसी राहुल सोनिया की परंपरागत शैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति नफरत के भाव भी व्यक्त किए जा सकते हैं जिससे यह यात्रा सद्भावना की जगह दुर्भावना यात्रा बन सकती है क्योंकि राहुल गाँधी पर किसी का भी नियंत्रण नहीं है और राहुल गाँधी का अपनी भाषा और संवाद शैली पर कोई नियंत्रण नहीं है. इसलिए इस बात की प्रबल संभावना है कि इस यात्रा का लाभ कांग्रेस से ज्यादा भाजपा को मिल सकता है.

एक और अबूझ पहेली यह है कि इस यात्रा से प्रियंका वाड्रा को एकदम दूर रखा गया है. सोनिया की नजरों में क्या राहुल प्रियंका वाड्रा के तुलना में कमजोर पड़ते जा रहे हैं जो प्रियंका की छाया से राहुल को बचाते हुए “रि-लांच” किया जा रहा है.  

इस यात्रा से कांग्रेस यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि नरेंद्र मोदी का विकल्प राहुल हैं, किंतु इसकी त्वरित प्रतिक्रिया स्वरूप विपक्षी एकता खंडित हो जाएगी क्योंकि प्रधानमंत्री पद के अन्य दावेदार कभी राहुल गाँधी को विकल्प स्वीकार नहीं कर सकते. इसलिए इस यात्रा से थोड़े समय के लिए कांग्रेस अपने आंतरिक मुद्दों से जनता का ध्यान तो बंटा सकती है लेकिन लंबी अवधि में इस यात्रा का उसे कोई फायदा होगा यह कहना बहुत मुश्किल है.

-    शिव मिश्रा responsetospm@gmail.com







 

 

 

बॉलीवुड में बायकॉट का ट्रेंड

 

बॉलीवुड और बायकॉट



हाल में आमिर खान की फ़िल्म लाल सिंह चड्ढा के बायकॉट की अपील सोशल मीडिया में सुर्खियों में थी लेकिन आमिर ने इसे हल्के में लिया. जिन कारणों से बायकॉट किया जा रहा था उसके लिए क्षमा याचना तो दूर, खेद भी प्रकट नहीं किया और इसका परिणाम यह हुआ कि फ़िल्म बुरी तरह से फ्लॉप हो गई. इसके पहले भी कई फिल्मों के बायकॉट की अपील की गई थी जिनका प्रभावी असर देखने को मिला था. भारत जैसे देश में जहाँ फ़िल्म सेंसर बोर्ड भी अपना काम निष्पक्षता और ईमानदारी के साथ न कर पा रहा हो तो बायकॉट प्रगतिशील न होते हुए भी एक अच्छा कार्य है जो समाज को फिल्मी कृतियों से बचाने के लिए फ़िल्म निर्माताओं को अनुशासित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है.



स्वतंत्रता प्राप्ति के समय धार्मिक आधार पर देश के बंटवारे के बावजूद यहां के बहुसंख्यक समुदाय ने उदारता दिखाते हुए भारत में सभी धर्मों के अनुयायियों को समान अधिकार दिए जिसमें इस्लाम के मतावलंबी भी शामिल थे जो अपने लिए पाकिस्तान बना चुके थे।  इस बात में किसी को संदेह नहीं हो सकता कि इस देश का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप सिर्फ बहुसंख्यक हिन्दुओं की उदारता और सहृदयता के कारण ही बचा हुआ है।  दुर्भाग्य से विभाजन  के बाद  हिंदी फ़िल्म जगत को ऐसे लोगों ने ही  अपने कब्जे में कर लिया जिन्होंने भारत को  विभाजित करने   और पाकिस्तान बनाने में  महत्त्व पूर्ण भूमिका अदा की थी. विभाजन के बाद ऐसे सांप्रदायिक और जिहादी मानसिकता के तत्व भारत में ही रहे  और कुछ प्रगतिशील लेखक मंच में शामिल हो गए और कुछ वामपंथी दलों में लेकिन बड़ी संख्या में लोग तुष्टीकरण के  लाभार्थी बनने के लिए कांग्रेस से जुड़ गए. इन सभी ने मिलकर हिंदी फ़िल्म जगत का  हिंददुओं  और सनातन संस्कृति के प्रति घातक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया. इस गिरोह ने पटकथा, गीत, संगीत, संवाद और अभिनय  के माध्यम से सनातन संस्कृति को लांछित और अपमानित करने का जितना घृणित कार्य किया उतना  विदेशी आक्रांता भी नहीं कर सके थे.

दुर्भाग्य से फ़िल्म जगत से जुड़े हिंदू और सनातनी लोगों ने भी इसका विरोध नहीं किया और न हीं दर्शकों की तरफ से ही  कोई प्रतिवाद किया गया. दर्शकों के डर से पहले मुस्लिम कलाकार हिंदू नाम रखकर कार्य करते थे. कालान्तर में  यह सभी मुखर होकर  मुस्लिम नाम  से न केवल कार्य करने लगे बल्कि  हिंदू और सनातन संस्कृति पर प्रहार करके पूरे सनातन समाज को विकृत और दिग्भ्रमित करने का कार्य  करने लगे. ऐसे लोगो में नामचीन पटकथा लेखक, गीतकार, संगीतकार, संवाद लेखक ओर नायक नायिकाओं तथा अतिरिक्त भूमिकाएं निभाने वाले लोग भी शामिल हैं.

सनातन धर्म दुनिया का है एक मात्र धर्मनिरपेक्ष और सर्वाधिक  उदार धर्म है जिसकी संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम पर आधारित है और जिसमें सभी धर्मावलंबियों के लिये सम्मान  एवं सामानता की अवधारणा का मूल तत्व है. शुरुआत में हिंदी फ़िल्म जगत में  ऐसी फ़िल्में बनती थी जिसमें कोई न कोई धार्मिक गीत भजन आदि अवश्य होता था और उनके कथानक में हिंदू धर्म के प्रति आदर और ईश्वर के प्रति गहरी आस्था होती थी. संभवत: दर्शकों में फ़िल्म की स्वीकार्यता बनाना और पैसे कमाना इसका उद्देश्य रहा होगा. दुर्भाग्य से हिन्दू धर्म की उदारता को मूर्खता और कायरता मानकर सनातन के प्रति घृणा का भाव रखने वाले कट्टरपंथियों  द्वारा  सुनियोजित षड़यंत्र के अंतर्गत हिन्दुओं में  हीनभावना भरने और उनके धर्मग्रंथों के विरुद्ध भ्रामक प्रचार करने के लिए फिल्मों को माध्यम बनाने लगे.

आज ऐसी अनगिनत फ़िल्में हैं जिनमें हिंदू देवी देवताओं का मजाक उड़ाया गया है तथा हिंदू संस्कृति को दकियानूस, अंधविश्वासी और पिछड़ा साबित करने का कार्य किया गया है. सेंसर बोर्ड  भी प्रगतिशीलता के नाम पर खामोश रहा और आज भी यह घृणित कार्य बदस्तूर जारी है. फ़िल्में केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं होती बल्कि ये इतिहास का हिस्सा  भी होती  हैं जिनका प्रत्यक्ष रूप से मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है, ये  किसी देश की संस्कृति को प्रदुषित और संक्रमित करने में वायरस सी भी अधिक तेज गति से कार्य करती है. इसलिए हिंदी फ़िल्म जगत में किया गया यह घृणित कार्य, गलत इतिहास लिखे जाने से भी ज्यादा बड़ा संगीन अपराध है .

भारतीय प्रबंध संस्थान अहमदाबाद के तत्कालीन प्रोफेसर धीरज शर्मा ने हिंदी फ़िल्म जगत के इस चलन पर शोध किया था जिसके नतीजे आश्चर्यजनक है, जिसके अनुसार बॉलीवुड की फिल्मों में 58% भ्रष्ट नेताओं को ब्राह्मण दिखाया गया है. 62% फिल्मों में बेइमान कारोबारी को वैश्य दिखाया गया है. फिल्मों में 74% फीसदी सिख किरदार मज़ाक का पात्र बनाया गया. जब किसी महिला को बदचलन दिखाने की बात आती है तो 78 % उनके नाम ईसाई होते हैं. 84% फिल्मों में मुस्लिम किरदारों को मजहब में पक्का यकीन रखने वाला, बेहद ईमानदार दिखाया गया है, यहां तक कि अगर कोई मुसलमान खलनायक हो तो वो भी उसूलों का पक्का हे दिखाया जाता है और उसे गरीबों के मसीहा और रॉबिनहुड की तरह दर्शाया जाता है.

सरकारी संरक्षण में पल रहे इन कट्टरपंथियो का गिरोह इतना शातिर है कि  फ़िल्म सेंसर बोर्ड पर भी इनका कब्जा है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कलात्मकता हे की आड़ में न जाने कितने घृणित कारनामे फिल्मों के माध्यम से किए गए.  2014 में आमिर की फिल्म पीके में हिंदू देवी देवताओं जितना अपमान किया गया उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है. हिंदू संगठनों ने इसके विरुद्ध आवाज तो उठाई लेकिन आमिर खान ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि  जिसे अच्छी लगे वह देखें और जिसे  अच्छी न लगे वह न देखें.  इससे आमिर जैसे एजेंडा धारी कट्टरपंथियों का हौसला पता चलता है. हिंदू संगठनों के बहिष्कार की अपील के बाद भी फ़िल्म ने 340 करोड़ से अधिक की कमाई की थी. पीके फ़िल्म की सफलता से यह बात भी रेखांकित होती है  कि दशकों तक बॉलीवुड द्वारा हिंदू धर्म के विरुद्ध किए जा रहे दुष्प्रचार ने  हिंदुओं का मन मस्तिष्क कितना दूषित कर दिया है .

सोशल मीडिया क्रांति ने हिंदू जन जागरण के  अभियान में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसके कारण हिंदू समाज अब इन कट्टरपंथियों का सफलता पूर्वक सामना करने के लिए तैयार हो गया है. यही कारण है कि द कश्मीर फाइल्स जैसी फ़िल्म के विरुद्ध इस गिरोह के घृणित दुष्प्रचार के बाद भी जनता ने उसे हाथों हाथ लिया और कई ऐसी फिल्मों का सफलतापूर्वक बायकॉट भी किया जिनमें कट्टरपंथियों का एजेंडा शामिल था.

हाल में राष्ट्रवादियों द्वारा आमिर खान की फ़िल्म लाल सिंह चड्ढा के बहिष्कार की अपील की गई थी जिसका कारण आमिर का हिंदू देवी देवताओं और सनातन संस्कृति के प्रति अनादर का भाव और अतीत में किए गए दुष्कृत्य हैं. लाल सिंह चड्ढा बुरी तरह से फ्लॉप हो गयी. यद्द्यपि फिल्म फोरेस्ट गंप के की नक़ल है लेकिन इसमें शातिराना तरीके से बहुत सी आपत्तिजनक् बातें डाली गयी हैं, जैसे मुंबई का आतंकवादी हमला, अयोध्या बाबरी विवाद, कारगिल युद्ध आदि. भारतीय सेना का भी अपमान किया गया है. यह भी समझ से परे है कि फ़िल्म का नाम लाल सिंह चड्ढा ही क्यों रखा गया है? मोहम्मद जमालउद्दीन सिद्दिकी या ताहिर हुसैन कुरेशी आदि क्यों नहीं? इसलिए क्योंकि भारत में धर्मनिरपेक्षता की आड़ में आमिर जैसा कट्टरपंथी व्यक्ति, हिंदुओं ओर सिखों का अपमान बड़े आराम से कर सकता है. आमिर की ज्यादातर फिल्मों की तरह इसमें भी पाकिस्तान को बहुत अच्छा बताने की कोशिश की गई है.

इस फ़िल्म से एक बार फिर यह साबित हो गया है कि आमिर खान जैसे लोग न सुधरे हैं न सुधरेंगे. आमिर खान कट्टर पंथी मुसलमान है, इससे कोई समस्या लेकिन अगर वह कहें कि उनकी बीवी तो हिंदू होगी लेकिन बच्चे मुसलमान होंगे, तो ये  अपमान जनक है. लव जिहाद से उन्होंने अभी तक दो शादियां की हैं और वह भी दोनों हिंदू लड़कियों से, जिनके बच्चों को मुसलमान बनाकर उन्हें  तलाक दे दिया. उन्होंने नरेन्द्र मोदी की  जमकर भर्त्सना करते हुए उन्हें मुस्लिम नरसंहार का जिम्मेदार ठहराया था, जबकि गोधरा नरसंहार के बारे में उन्होंने जबान भी नहीं खोली थी. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दूसरे कट्टरपंथियों के साथ  उन्हें भी  हिंदुस्तान में डर लगा था. लाल सिंह चड्ढा  की एक पात्र करीना खान का परिवार विभाजन के समय पाकिस्तान से मार कर भगाया गया था लेकिन उसने उन्ही अफगान लुटेरों के वंशज से शादी की ओर बेटे का नाम रखा तैमूर, जो सभी हिंदुओं के लिए अपमानजनक है और  लोग इसे कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं.

किसी भी फ़िल्म या वस्तु का सांप्रदायिक आधार पर बायकाट नहीं होना चाहिए लेकिन जो व्यक्ति या संस्थाये हिंदू देवी देवताओं का अपमान करें, सनातन संस्कृति का उपहास उड़ा कर उसके विरुद्ध अभियान चलाएं,  और  देश विरोधी गतिविधियों में शामिल हों, उनके विरुद्ध लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से विरोध स्वरूप जो भी करना पड़े, अनुचित नहीं कहा जा सकता. सनातन संस्कृति को बचाने, सुरक्षित और सरंक्षित करने के लिए, सरकार की भरोसे न बैठ कर समूचे  हिन्दू समाज को स्वयं आगे आकर आवश्यक कदम उठाने पड़ेंगे.

-    शिव मिश्रा




श्रीराम मंदिर निर्माण का प्रभाव

  मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के मंदिर निर्माण का प्रभाव भारत में ही नहीं, पूरे ब्रहमांड में और प्रत्येक क्षेत्र में दृष्ट्गोचर हो रहा है. ज...