रविवार, 28 अगस्त 2022

 

भारत छोड़ो, भारत तोड़ो और भारत जोड़ों







कांग्रेस पार्टी एक लंबे अरसे बाद किसी जन संपर्क की शुरुआत करने जा रही है, जिसे नाम दिया गया है भारत जोड़ों यात्रा जो 7 सितंबर 2022 से शुरू होकर कन्याकुमारी से कश्मीर तक 3570 किलोमीटर की दूरी तय करेगी. इसमें 12 राज्य और दो केंद्र शासित प्रदेश शामिल होंगे. मज़े की बात यह है कि यह पद यात्रा होगी और राहुल गाँधी के नेतृत्व में होगी जबकि वह न तो कांग्रेस के अध्यक्ष और न ही इस समय  कांग्रेस का कोई अध्यक्ष हैं. प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि यह यात्रा 1942 में भारत छोड़ो यात्रा से मिलती जुलती बनाई गई होगी लेकिन वास्तविकता में ऐसा बिलकुल भी नहीं है क्योंकि भारत छोड़ो यात्रा ऐसे  समय की गई थी जब  देशभक्ति का ज्वार चरम पर था, उसके बाद “भारत तोड़ो” यात्रा हुई जिसमें कांग्रेस ने देश का विभाजन स्वीकार किया और जिस कारण सांप्रदायिक दंगों में लाखों लोगो  की दर्दनाक हत्या की गई.



स्वतंत्रता के बाद देश में अधिकांश समय कांग्रेस या कांग्रेस समर्थित सरकार ही थी जो भारत के आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन जैसी मूलभूत समस्याएं तो नहीं हल कर सकीं  लेकिन सत्ता में बने रहने के लिए वोटबैंक की राजनीति के अंतर्गत मुस्लिम तुष्टीकरण को बढ़ावा देकर विभाजन की पहले वाली स्थितियां जरूर उत्पन्न कर दीं गईं. इस अभियान का नाम “भारत जोड़ो” किसी के गले नहीं उतर रहा. आखिर भारत कहाँ  टूट रहा है, कहाँ अलगाववादी गतिविधियों चल रही है. पूर्वोत्तर में जहाँ कांग्रेस के समय तमाम अलगाववादी आंदोलन चलते थे वहाँ भी सबकुछ सामान्य है. कांग्रेस शासन में रेडियो, टीवी, बस स्टैंड एअरपोर्ट और हर रेलवे स्टेशन पर उद्घोषणा होती थी कि किसी भी अनजान वस्तु को हाथ न लगाए यह बम हो सकता है, वह स्थिति भी अब नहीं रही. कश्मीर में छुटपुट घटनाएं जरूर हो रही है लेकिन पहले जैसी भयानक स्थिति अब नहीं है. धारा 370 और 35 ए खत्म हो चुकी है. पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक हो चुकी है और अब वह पूरी तरह दबाव  और बेहद खस्ताहाल में है. तो फिर भारत में  क्या जोड़ा  जा रहा है ?  जब राहुल गाँधी और दिग्विजय सिंह कहते हैं कि नफरत का माहौल है, और नफरत के माहौल के विरुद्ध यात्रा निकाली जा रही है, तो इसका निहितार्थ है कि वे भारत का वातावरण विषाक्त करने जा रहे हैं. भारत जोड़ो की परिणति तुष्टीकरण के रूप में निकलने की पूरी संभावना है तब राहुल गाँधी की मंदिर परिक्रमा, जनेऊधारी अवतार और दत्तात्रेय गोत्र का क्या होगा ?

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भारत जोड़ों अभियान के संयोजक  मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह हैं जो कांग्रेस के उन चुनिंदा नेताओं में से है जो पार्टी को फायदा कम नुकसान ज्यादा पहुंचाते हैं. इस यात्रा में उनके साथ मणिशंकर अय्यर, और सलमान खुर्शीद जैसे नेता भी जुड़ गए तो सोने में सुहागा हो जाएगा. दिग्विजय सिंह ने कहा है कि यह यात्रा नफरत के माहौल में, नफरत के खिलाफ़ की जा रही है. सरकार संविधान विरोधी  कार्य कर रही है, महंगाई और बेरोजगारी बढ़ती जा रही है, रुपए का अवमल्यून हो रहा है, बड़े उद्योपतितियों का कर्ज माफ हो रहा है, इसलिए देश बचाने के लिए यह यात्रा आयोजित की गई है. कांग्रेस अध्यक्ष चाहती है कि  एक ऐसी यात्रा हो जिसमे सभी धर्म और वर्ग के लोग शामिल हों और देश तथा संविधान बचाया जा सके.

कांग्रेस की इस भारत जोड़ो यात्रा में  योगेन्द्र यादव, मेधा पाटेकर सहित लगभग 150 सिविल सोसायटी के नेता और कार्यकर्ता भी भाग लेंगे, उन्हें  राहुल ने अपनी यात्रा को तपस्या बताते हुए  कहा है कि नफरत फैलाने वालों के अलावा इस यात्रा में सभी का स्वागत किया जाएगा यानी इसमें भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों के लिए कोई स्थान नहीं होगा. योगेंद्र यादव और मेधा पाटेकर जैसे नेताओं के बारे में पूरा देश जानता है कि ये पेशेवर आंदोलनकारी हैं और कहीं भी, कभी भी, किसी के भी साथ आंदोलन कर सकते हैं बशर्ते इनका इनका स्वार्थ पूरा हो. यह सभी आंदोलनकारी शाहीन बाग और किसान आंदोलन में  भी थे. मेधा पाटेकर ने तो वर्षों तक नर्मदा बचाओ आंदोलन की आड़ में सिंचाई और अन्य जरूरतों के लिए नर्मदा पर  बनाए जाने वाले बांध को रोके रखा. योगेन्द्र यादव तो यूपीए सरकार के खिलाफ़ अन्ना आंदोलन में भी थे.

कांग्रेस की भारत जोड़ों यात्रा ऐसे समय शुरू हो रही है जब उस उसके पास कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है. सिकुड़ते सिमटते जनाधार के बीच कांग्रेस के दिग्गज नेता कांग्रेस छोड़ते जा रहे हैं और ऐसे में ये सवाल खड़ा होना बहुत लाजिमी है कि जो पार्टी अपने नेताओं को ही नहीं जोड़ पा रही है वह देश को कैसे जोड़ पाएगी. ये आशंका सही साबित होती जा रही है कि कांग्रेस पार्टी केवल गाँधी परिवार की पार्टी बनकर रह गई है जिसमें केवल परिवार के वफादारों के लिए जगह है और कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति कांग्रेस में नहीं बचेगा.

इस समय विभिन्न क्षेत्रीय नेता प्रधानमंत्री की दावेदारी के लिए अपना दावा ठोक रहे हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव पहले से  ही मैदान में हैं, और बिहार में नीतीश कुमार के पलटी मारने के बाद एक और प्रधानमंत्री मटेरियल दावेदारों में शामिल हो गया है. दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन के भ्रष्टाचार और हवाला मामले में जेल जाने के बाद शराब घोटाला सुर्खियों में है और उसके बाद उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के जेल जाने के हालात बन गए हैं. अपने ऊपर लगे आरोपों को भी अपना हथियार बनाकर विरोधियो पर झूठे आरोप प्रत्यारोप करने में माहिर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने लोगों का ध्यान उनके भ्रष्टाचार से ध्यान  हटाने के उद्देश्य से ही सही, यह घोषणा कर दी है कि 2024 में उनका  सीधा मुकाबला भाजपा से होगा और अरविंद केजरीवाल अगले प्रधानमंत्री बनेंगे. उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बनने में असफल रहे समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भी प्रधानमंत्री पद के लिए अपना दावा ठोंक दिया है. ऐसे में कांग्रेस की भारत जोड़ों यात्रा  राहुल गाँधी के प्रधानमंत्री पद के दावे को मजबूत कर पाएगी, इसमें भी संदेह है.

समझा जाता है कि पांच महीने तक चलने वाली इस यात्रा के बीच में ही कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल जाएगा जो राहुल गाँधी की इस यात्रा के बाद उनके कद और महत्त्व के सामने  बौना और लुंज पुंज नजर आएगा और उसकी स्थिति मनमोहन सिंह से भिन्न नहीं हो पाएगी. गाँधी परिवार भी यही चाहेगा कि कांग्रेस का अध्यक्ष गाँधी परिवार के प्रति पूरी तरह से निष्ठावान हो लेकिन ऐसी स्थिति में वह न तो स्वतंत्र रूप से कार्य कर पाएगा और न ही पार्टी को मजबूत कर पाएगा. इसके परिणाम स्वरूप  गाँधी परिवार हमेशा अपरिहार्य बना रहेगा और यही गाँधी परिवार का लक्ष्य भी है.

2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर अभी से यह सवाल किए जा रहे हैं कि इस लड़ाई में विपक्षी दलों में आपसी सहयोग और सामंजस्य कैसे बनेगा। यदि  कोई गठबंधन बनता भी  है तो उसका नेतृत्व कौन करेगा। भारत जोड़ो यात्रा परोक्ष रूप से गठबंधन के नेतृत्व करने की कांग्रेस क्षमता को रेखांकित करेगी जिसे कितने  विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त होगा, यह भी यक्ष प्रश्न है, क्योंकि इससे न केवल कांग्रेस की राजनैतिक शक्ति का संदेश पूरे देश में जाएगा बल्कि  विपक्षी गठबंधन के नेतृत्व के बारे में भी स्पष्ट धारणा बनती नजर आएगी, यद्यपि क्षेत्रीय नेताओं की महत्वाकांक्षा के कारण ऐसा होना बेहद मुश्किल है.

भारत जोड़ों यात्रा के समक्ष एक सबसे बड़ी चुनौती राहुल गाँधी की देश में उपलब्धता को लेकर भी है क्योंकि वह हर एक दो महीने के अंतराल पर विदेश भ्रमण करते हैं इसलिए कहीं ऐसा न हो कि भारत जोड़ों यात्रा में भारत छोड़ों यात्रा भी शामिल हो जाए. सोनिया, राहुल और यात्रा के संयोजक और संचालकों के वक्तव्यों  से यह धारणा भी बनती जा रही है की यात्रा के दौरान जहर की खेती, मौत के सौदागर जैसी राहुल सोनिया की परंपरागत शैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति नफरत के भाव भी व्यक्त किए जा सकते हैं जिससे यह यात्रा सद्भावना की जगह दुर्भावना यात्रा बन सकती है क्योंकि राहुल गाँधी पर किसी का भी नियंत्रण नहीं है और राहुल गाँधी का अपनी भाषा और संवाद शैली पर कोई नियंत्रण नहीं है. इसलिए इस बात की प्रबल संभावना है कि इस यात्रा का लाभ कांग्रेस से ज्यादा भाजपा को मिल सकता है.

एक और अबूझ पहेली यह है कि इस यात्रा से प्रियंका वाड्रा को एकदम दूर रखा गया है. सोनिया की नजरों में क्या राहुल प्रियंका वाड्रा के तुलना में कमजोर पड़ते जा रहे हैं जो प्रियंका की छाया से राहुल को बचाते हुए “रि-लांच” किया जा रहा है.  

इस यात्रा से कांग्रेस यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि नरेंद्र मोदी का विकल्प राहुल हैं, किंतु इसकी त्वरित प्रतिक्रिया स्वरूप विपक्षी एकता खंडित हो जाएगी क्योंकि प्रधानमंत्री पद के अन्य दावेदार कभी राहुल गाँधी को विकल्प स्वीकार नहीं कर सकते. इसलिए इस यात्रा से थोड़े समय के लिए कांग्रेस अपने आंतरिक मुद्दों से जनता का ध्यान तो बंटा सकती है लेकिन लंबी अवधि में इस यात्रा का उसे कोई फायदा होगा यह कहना बहुत मुश्किल है.

-    शिव मिश्रा responsetospm@gmail.com







 

 

 

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