शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

शास्त्री जी को किसने मारा ? और क्यों मारा ?


 

लाल बहादुर शास्त्री को किसने मारा और उनकी ह्त्या क्यों की गयी थी, एक खुला रहस्य है, जो कांग्रेसी सरकारों के निहित स्वार्थ, ह्त्या के कलंक और उससे उपजने वाली जनता की नाराजगी से बचने के लिये बनाए रखा गया. लेकिन जनता सरकार क्यों चुप रही, अटल सरकार ने क्यों कुछ नहीं किया और अब मोदी सरकार क्यों चुप है समझ से परे हैं .


इस सम्बन्ध में मेरा एक लेख एक समाचार पत्र में उ लाला बहादुर शास्त्री की ५६वीं पुण्य तिथि पर प्रकाशित हुआ है, वही उद्दृत है


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बीते 11 जनवरी 2022 को लाल बहादुर शास्त्री की ५६वीं पुण्य तिथि पर भी उनकी मौत पर रहस्य जस का तस है. 1966 में ताशकंद में शास्त्री जी की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी. यद्यपि विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार ऐसा लगता है कि सुनियोजित तरीके से उनकी हत्या की गयी थी, लेकिन भारत सरकार ने अभी भी बहुत से गोपनीय दस्तावेज सार्वजनिक नहीं किए हैं, इसलिए रहस्य पर अभी पर्दा पडा है. यद्दपि आधिकारिक तौर पर यही बताया गया था कि उनकी मौत ह्रदय गति रुक जाने हुई .

कुछ समय पहले एक फिल्म आई थी "ताशकंद फाइल्स" जिसमें शास्त्री जी की मौत से संबंधित कई रहस्यमई परिस्थितियों का फिल्मांकन किया गया था लेकिन फ़िल्मी कहानी की अपनी एक सीमा होती है और उन रहस्यों को उजागर नहीं किया जा सकता था जो शास्त्री जी के परिवार को मालूम होते हुए भी सरकार ने सार्वजनिक नहीं किए थे.

हाल ही में पत्रकार अनुज धर की एक किताब प्रकाशित हुई है जिसका शीर्षक है "योर प्राइम मिनिस्टर इज डेड" इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए अनुज धर ने वर्षों कड़ी मेहनत की है और बहुत से ऐसे दुर्लभ और गुप्त दस्तावेजों को प्राप्त कर पुस्तक में सम्मिलित किया है जिससे शास्त्री जी की मौत या हत्या के कारण बिल्कुल स्पष्ट हो गए लगते हैं. लेखक ने सही अर्थों में खोजी पत्रकारिता की सार्थकता सिद्ध कर दी है. इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद शास्त्री जी की मौत एक बार फिर चर्चा में आ गयी है.


शास्त्री जी ताशकंद में युद्ध के बाद के हालात पर वार्ता करने के लिए पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान से शांति समझौते के लिए गए हुए थे। इस समझौते के बाद कुछ ही घंटों के अंदर उनकी अचानक मौत हो गई थी । यद्दपि भारत सरकार ने इस बारे में जनता को कभी कुछ नहीं बताया फिरभी यह मानने के कोई कारण नहीं है कि भारत सरकार को कोई जानकारी नहीं थी. भारत सरकार ने रूस से कुछ पूंछने या जानने की कोशिश नहीं की बल्कि मौत के कारण जनता से छिपाने की लगातार हर संभव कोशिश की गई. ऐसा कांग्रेसी सरकारों ने तो किया ही लेकिन गैर कांग्रेसी सरकारों ने भी शास्त्री जी की मौत से संबंधित गुप्त दस्तावेजों को सार्वजनिक नहीं किया. आधिकारिक तौर पर यही बताया गया कि लाल बहादुर शास्त्री की मौत हृदयाघात के कारण हुई थी.

(क्या नेता जी सुभाष चन्द्र बोस तासकंद में शास्त्री जी के साथ थे ?)


शास्त्री जी के नाती ( बेटी के बेटे ) संजय नाथ सिंह के अनुसार पूरे परिवार का मानना है शास्त्री जी की हत्या हुई थी और उनको जहर दिया गया था. इस संदर्भ में उन्होंने एक इंटरनेट चैनल से बात करते हुए कई अनसुनी बातें बताई. उन्होंने बताया कि ताशकंद में शास्त्री जी और उनकी टीम के सभी सदस्यों के रुकने के लिए एक आधुनिक होटल में व्यवस्था की गई थी जहां स्वास्थ्य सुविधा के लिए इंटेंसिव केयर यूनिट बनाया गया था ताकि किसी भी आपात स्थिति का सामना किया जा सके.

प्रधानमंत्री शास्त्री के दौरे से पहले भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्री, व्यवस्था देखने के लिए ताशकंद गए थे और उन्होंने यह कह कर कि शास्त्री जी बहुत ही साधारण जीवन जीते हैं, इसलिए वह यहां फाइव स्टार होटल में नहीं ठहरेंगे और फिर अकेले शास्त्री जी की रहने की व्यवस्था उस होटल से लगभग 20 किलोमीटर दूर एक विला में करा दी गई था. शास्त्री जी के व्यक्तिगत डॉक्टर सहित उनकी टीम के सभी सदस्यों को उसी होटल में ठहराया गया था . इसलिए जब उन्हें तथाकथित रूप से हृदयाघात पड़ा या उनकी हत्या की गई, और जब उन्हें सहायता की नितांत आवश्यकता थी, उनके पास कोई भी नहीं था. आपको उत्सुकता होगी कि वह सूचना और प्रसारण मंत्री कौन थे, वह थीं श्रीमती इंदिरा गांधी, जो शास्त्री जी की मौत के बाद बने अंतरिम प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा के बाद प्रधानमंत्री बनी थीं.

श्रीमती गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद कहा था शास्त्री जी एक पुरातन पंथी हिंदू थे जिनके पास आधुनिक और नवोन्मेषी विचारों का पूरी तरह अभाव था.

शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बन जाने से नेहरु / गांधी परिवार बेहद गुस्से में था . नेहरु की बहिन विजय लक्ष्मी पंडित ने संसद में शास्त्री की जी भर कर आलोचना की थी जबकि वह कांग्रेस पार्टी में थी विपक्ष में नहीं .

राज नारायण ने बताया था और जो उनके हवाले से संसदीय दस्तावेजों में दर्ज है कि श्रीमती गांधी ने शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कहा था कि मेरे घर का नौकर प्रधानमंत्री बन गया और मैं तो ऐसे ही रह गयी .

शास्त्री जी की अचानक हुई मृत्यु से रूस बहुत असहज स्थिति में था उन्होंने शास्त्री जी का पोस्टमार्टम कराने का प्रस्ताव दिया था ताकि उनकी हत्या का कारण पता चल सके और भारतीय प्रधानमंत्री की मृत्यु दोनों देशों के संबंधों के बीच बाधा ना बने. बताया जाता है कि रूस में भारत के तत्कालीन राजदूत टी एन कौल ने पोस्टमार्टम कराने से यह कहकर मना कर दिया कि यह हिंदुओं में अच्छा नहीं माना जाता क्योंकि इससे मृत शरीर दूषित हो जाता है. टी एन कौल किसके नजदीकी थे यह बताने की आवश्यकता नहीं. 

 नीचे फोटो में नेहरु के पीछे खड़े हैं कौल .

शास्त्री जी के मृत शरीर को कन्धा देते रूसी प्रीमियर और पकिस्तान के राष्ट्रपति


जब शास्त्री जी का मृत शरीर भारत में पालम एअरपोर्ट पर आया तो सभी दुखी थे लेकिन कुछ लोग खुश भी थे . क्यों ?



शास्त्री जी का परिवार और स्टाफ विलाप कर रहा था. सभी अश्रु पूरित थे . जब उनका पार्थिव शरीर भारत लाया गया तो परिवार वालों को काफी समय तक मृत शरीर के पास नहीं जाने दिया गया. बाद में परिवार वालों और कई प्रत्यक्षदर्शियों को उनके चेहरे और शरीर पर अप्राकृतिक नीले और सफेद धब्बे नजर आए। इतना ही नहीं उनके पेट और गर्दन के पीछे कटने के निशान भी देखे गए थे।

उस समय शास्त्री जी की मां जिंदा थी और उन्हें संदेह हुआ तो उन्होंने देसी घी शास्त्री जी के होंठो पर लगाकर कुछ परीक्षण किया और फिर रोते हुए कहा कि उनके बेटे को जहर दिया गया है. परिवार वालों ने शास्त्री जी का पोस्टमार्टम कराने का अनुरोध किया जिसे तत्कालीन सरकार ने यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि इससे अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की छवि को धक्का लगेगा और इस प्रकार शास्त्री जी के मृत शरीर का न तो पोस्टमार्टम कराया गया और न ही कोई अन्य परीक्षण कराया गया.

बड़े दुख और हैरानी की बात है कि एक प्रधानमंत्री की मृत्यु के बाद उसके परिवार वालों के साथ कुछ घंटे पुरानी कांग्रेस की गुलजारी लाल नंदा (जो कार्यवाहक प्रधानमंत्री थे) सरकार का ऐसा व्यवहार क्यों था ? क्या भारत सरकार का कोई प्रभावशाली व्यक्ति शास्त्री जी की हत्या के षड्यंत्र के पीछे था जो हर हालत में शास्त्री जी की मौत को एक सामान्य मौत दिखाना चाहता था.

संजय नाथ सिंह के अनुसार जब वह ताशकंद में थे तो उन्होंने घरवालों से फोन पर बात की और जब उन्हें बताया गया कि पाकिस्तान से समझौते के विरोध में अटल बिहारी वाजपेई और राम मनोहर लोहिया ने ऐलान किया है कि वह काले झंडों से उनका स्वागत करेंगे तो शास्त्री जी ने बताया कि वह ऐसा कुछ लेकर भारत आ रहे हैं, जिसे वह लोग भी पसंद करेंगे और यह मुद्दा बहुत छोटा हो जाएगा. परिवार वालों का अनुमान है कि वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में बात कर रहे थे. आखिर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सार्वजनिक हो जाने से किस परिवार या राजनीतिक दल को खतरा था, यह समझना मुश्किल नहीं.

फरवरी 1966 में संसद में शास्त्री जी की मौत को लेकर काफी हंगामा हुआ. अटल बिहारी बाजपेई, लाल कृष्ण आडवाणी, राम मनोहर लोहिया और राज नारायण ने सरकार से ऐसे ऐसे प्रश्न किए जिसके जवाब में सरकार ने बताया कम, छिपाया ज्यादा. बाजपेई जी ने पूछा कि सोने के पहले शास्त्री जी को दूध का गिलास किसने दिया था, उनका इशारा भारत के तत्कालीन राजदूत टी एन कौल के सरकारी रसोईया जान मोहम्मद की तरफ था, जिसे मास्को से लाकर ताशकंद में शास्त्री जी के रसोइए के साथ बिना वजह लगाया गया था. बाजपेई ने यह भी पूछा कि शास्त्री जी के कमरे में टेलीफोन क्यों नहीं लगा था, जिसके कारण उन्हें अपने घर बात करने के लिए बीमारी की हालत में चलकर दूसरे कमरे में जाना पड़ा. सरकार ने जवाब दिया कि सुइट (कई कमरों वाला फ्लैट नुमा निवास) में टेलीफोन लगा हुआ था यानी किसी अन्य कमरे में था. अटल जी द्वारा यह पूछने पर कि क्या उस समय धर्मा तेजा मास्को में था, सरकार ने जवाब दिया कि वह ताशकंद में नहीं था. इसका मतलब वह मास्को में था. धर्मा तेजा नेहरू जी के दरबारी और कृपापात्र उद्योगपति थे और गांधी परिवार से अंत तक उसके अत्यंत मधुर सम्बन्ध रहे किंतु शास्त्री जी से उसके संबंध मधुर नहीं थे क्योंकि शास्त्री जी ने उसके विरुद्ध कार्यवाही की थी. सरकार ने सदन में स्पष्ट कर दिया कि चूंकि सरकार को शास्त्री जी की मौत के संबंध में संदेह नहीं है, इसलिए कमिशन ऑफ इंक्वायरी गठित नहीं की जाएगी.

1991 में भारत में उपलब्ध सोवियत लैंड नाम की मैगजीन में एक प्रकाशित हुआ जिसे केजीबी की एक पूर्व अधिकारी ने लिखा था उसने बताया कि शास्त्री जी जिस कमरे में ठहरे थे उसे बग किया गया था यानी उसकी कॉल रिकॉर्डिंग के साथ-साथ पूरी जासूसी की जा रही थी. इसमें लिखा है जब शास्त्री जी का सीजर किया गया तो रूस को मालूम हो गया लेकिन भारत सरकार को इसलिए आगाह नहीं किया जा सका क्योंकि तब इस बात का खुलासा हो जाता कि जासूसी की जा रही थी.

अनुज धर की खोज में यह बात सामने आई है कि १९९८ में रूस के एक अखबार में अहमद सत्ताराव, जिसे रूस ने शास्त्री जी के विला में रसोइए के रूप में लगाया था, का इंटरव्यू छपा जिसमें सता राव ने बताया की शास्त्री जी की मौत रात में 1:00 बजे हुई थी और 3:00 बजे उसे केजीबी ने पूछताछ के लिए पकड़ लिया था क्योंकि केजीबी को शक था कि शास्त्री जी को भोजन में जहर दिया गया था. थोड़ी देर बाद ही भारतीय कुक जान मोहम्मद को भी पकड़ कर वहां लाया गया था. चूंकि जान मोहम्मद भारतीय दूतावास का कर्मचारी था, इसलिए बिना दूतावास को सूचना दिए उसे गिरफ्तार नहीं किया गया होगा. इससे स्पष्ट है कि केवल शास्त्री जी के परिवार वालों को ही उन्हें जहर दिए जाने का संदेह नहीं था बल्कि रूस को उसी समय शक हो गया था और उसने उस पर कार्यवाही भी शुरू कर दी थी. फिर क्या कारण था कि भारत सरकार ने इस विषय में जांच नहीं करवाई. सरकार ने उस समय संसद में भी झूठ बोला था.

2009-10 में कुलदीप नैयर जो शास्त्री जी के प्रेस सलाहकार थे और ताशकंद में उनके साथ थे, ने करण थापर को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें भी शास्त्री जी को जहर दिए जाने का शक था. नैयर ने यह भी बताया कि रूस में भारत के तत्कालीन राजदूत टी एन कौल बाद में विदेश सचिव बन गए थे और तब उन्होंने नैयर पर जहर देने की साजिश पर बात करने पर चेतावनी दी थी.

दहया भाई पटेल जो सरदार बल्लभ भाई पटेल के पुत्र और लोकसभा सांसद थे, ने अपनी किताब में शास्त्री जी की मौत के बारे में बहुत बेबाकी से लिखा था और जहर देकर उनकी ह्त्या काआरोप लगाया था. दुर्भाग्य से दयाभाई की किताब भारत में कहीं भी उपलब्ध नही है. शास्त्री जी का जो सामान वापस आया था उसमें उनका चश्मा भी था. चश्में के खोल में एक छोटी सी पर्ची निकली जिसमें शास्त्री जी की राइटिंग में लिखा था कि मेरे साथ धोखा हुआ है. संजय नाथ सिंह ने यह भी बताया कि जब श्रीमती गांधी उनके परिवार से मिलने आयीं तो उन्होंने कहा था कि अगर शास्त्री जी की ह्त्या हुई है तो सोचिये कि प्रधान मंत्री की ह्त्या करने वाले कितने ताकतवर लोग होंगे और वे आपके परिवार के लिए अब भी ख़तरा हैं इसलिए चुप रहना ही बेहतर है.

लेकिन वह दिन और आज का दिन, सरकार चुप है. केंद्र की वर्तमान मोदी सरकार ने कई मामलों से संबंधित गोपनीय दस्तावेज सार्वजनिक किए हैं फिर भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस या लाल बहादुर शास्त्री दोनों की मौत पर रहस्य ज्यों का त्यों है. देश हित में सरकार को चाहिए शास्त्री जी की मौत से संबंधित सभी गोपनीय दस्तावेज सार्वजनिक करें और एक जांच समिति / आयोग बनाये ताकि उनकी मौत के कारण स्पष्ट हो सकें.

लेकिन सरकार अगर कुछ भी न करे तो क्या आपको मालूम नहीं हो सका कि ह्त्या किसने करवाई और क्यों करवाई ?

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- शिव मिश्रा 




2 टिप्‍पणियां:

  1. यह लेख अपने आप में निर्णय कर रहा है कि शास्त्री जी व सुभाषचंद्र बोस की हत्याओं से नेहरु व इन्दिरा परिवार को लाभ हुआ । लेकिन इन लोगों की मृत्यु वास्तव में प्राकृतिक ही हुई थी । इस तथ्य को स्वीकार करनेवाले 99% लोग हैं । केवल कुछ असामाजिक व सरफिरे लोग इसमें इतना रहस्यमयी बातें डालने से बाज नहीं आते । व एक सनसनीखेज पत्रकारिता को जीवित रखकर भारत देश को गर्त में डालने के अलावा कुछ नहीं करते । अब आगे बढो भाई । कि क्या इसी में उलझे रहोगे कि उनके सातवें बाबा कि मृत्यु पानी पीने से कैसे हुई । जापानी सरकार के अनुसार सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु 17 Aug को जहाज उडते समय ही हो गई थी । वे बहुत बुरी तरह जल चुके थे । व शास्त्री जी अपने पहनावे के कारण ताशकंद की ठंडक नहीं झेल पाए । यही दो सत्य हैं स्वीकार कर सकते हो तो स्वीकारो अन्यथा ऊलजलूल लिखते रहो । जनता मानने को तैयार नहीं है ।

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    उत्तर
    1. Netaji died in Ayodhya where he lived anonymously as Gumnami Baba.
      Shastri ji was murdered.
      Why are you trying to obscure the truth?

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