भारत में स्वतंत्रता मिले या सत्ता का
हस्तांतरण हुए 70 वर्ष से भी अधिक
हो गए हैं लेकिन सनातन धर्म और सनातन संस्कृति अभी भी स्वतंत्रता प्राप्ति करने के लिए संघर्ष कर रहा है. लगभग सभी परतंत्र
देशों में, यह सामान्य बात
हुई है कि शासकों ने उस देश की संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट
करने के हर संभव प्रयास किए, वहां के बौद्धिक संपदा को
नुकसान पहुंचाया, स्थानीय समाज
के मूल चरित्र को बदलने के क्रम में उस
सभ्यता की प्राचीन उपलब्धियों को दबाया छिपाया और वहां का इतिहास ही बदल दिया ताकि
आगे आने वाली पीढ़ियां अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व महसूस करने के वजाय शर्म महसूस करें. भारत
में इस्लामिक आक्रमणकारियों और अंग्रेजों ने बहुत क्रूरता और धूर्तता से यह सब कुछ
किया और उनके इस कुकृत्य में कुछ भारतीयों ने उनका साथ दिया.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात ऐसे सभी नव
स्वतन्त्र देशों ने अपनी सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्रीय
स्वाभिमान की पुनर्स्थापना के लिए बहुत मेहनत और दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ कार्य
किया और समाज में नव चेतना का संचार किया. आज ऐसे सभी देश जो लगभग उसी समय
स्वतंत्र हुए जब भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी, भारत से बहुत
आगे हैं किन्तु भारत आज भी
आक्रमणकारियों, आतताइयों और
पूर्व शासकों के बुने हुए जाल में फंसा हुआ है. इसका एकमात्र कारण यह है कि
अंग्रेजों से सत्ता का हस्तांतरण जिन लोगों को हुआ वह भी आचार विचार और व्यवहार से
अंग्रेज ही थे. इन लोगों की सिर्फ चमड़ी ही काली नहीं थी, दिल भी
काला था.
गांधी ने देश को धोखे में रखा कि उनकी लाश पर
ही देश का विभाजन होगा किन्तु उनकी सहमति से सांप्रदायिक आधार पर देश का विभाजन
हुआ. एक देश पाकिस्तान बना और दूसरा हिंदुस्तान बना. स्वाभाविक रूप से जनसंख्या की अदला बदली होनी
चाहिए थी, जैसा कि डॉक्टर
भीमराव अंबेडकर और सरदार वल्लभभाई पटेल के अलावा समस्त हिन्दू जनमानस चाहता था लेकिन एक नियोजित षडयंत्र के
तहत जिन लोगों ने पाकिस्तान बनाने में संघर्ष किया था, वे पाकिस्तान नहीं गए और लगभग
सब के सब हिंदुस्तान में हीं जमें रहे. उन्हें भारत में रोकने का पाप
चाचा और बापू ने किया. वसुधैव कुटुम्बकम के प्रणेता सनातन धर्म का मतलब धर्मनिरपेक्ष होता है फिर भी भारत को
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया. चूंकि पूरी कांग्रेस पार्टी सरदार बल्लभ भाई
पटेल को प्रधानमंत्री बनाना चाहती थी, गांधी ने अपनी प्रतिष्ठा का दुरुपयोग करके
जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंप दी. अपनी कमजोर स्थिति को मजबूत
करने के लिए नेहरू अपना एक वोट बैंक बनाना चाहते थे जिसे उन्होंने मुसलमानों को
हिंदुस्तान में रोककर और हिंदुओं से अधिक महत्व देकर बना लिया.
स्वतंत्रता के बाद अपेक्षा की जाती थी कि लगभग 800 वर्ष की गुलामी के दौरान
राक्षसी प्रवृत्ति के लुटेरों, आक्रमणकारियों, और देश पर बलात
कब्जा करने वाले अंग्रेजों ने प्राचीन
भारतीय सभ्यता और संस्कृति को जो क्षति पहुंचाई है, उसे सुधारने के प्रयास किए जाएंगे. राष्ट्रीय
अस्मिता के जिन स्थलों को तोड़ा गया है, उन्हें पुनर्स्थापित किया जाएगा और भारत विश्व गुरु वाली अपनी छवि के
पुनर्निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाना शुरू करेगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. इसके उलट सनातन धर्म के पैरों में और अधिक
बेड़ियां डाल दी गई. संविधान में ऐसे प्रावधान किए गए और ऐसे कानून बना दिए गए
जिससे स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले की यथास्थिति बनाए रखने का दंड भी सनातन
धर्मियों को दिया गया. हिंदू समाज का
दुर्भाग्य देखिए कि सनातन संस्कृति और राष्ट्रीय अस्मिता के जिन प्रतीकों और धर्म स्थलों को मुस्लिम
आतताइयों ने तोड़ा था, उनका पुनर्निर्माण
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी नहीं किया जा सका. यह कैसी स्वतंत्रता है? और संपूर्ण सनातन समाज के
लिए ऐसी स्वतंत्रता का क्या अर्थ है ?
यह देश के बहुसंख्यक समाज के साथ की गई ऐसी धोखाधड़ी है, जिस की पीड़ा से पूरा हिंदू जनमानस कराह रहा है. अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण 500 साल के संघर्ष, जिसमें 70 वर्ष स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के हैं, के बाद सर्वोच्च न्यायालय
के आदेश पर हो रहा है, लेकिन मथुरा और
काशी जिनका भारत की प्राचीन सभ्यता और
संस्कृति के साथ-साथ धार्मिक और पौराणिक महत्व है, अभी भी अस्मिता पर गहरा आघात है.
इन सभी धर्म स्थलों पर विवाद उन मुसलमानों ने, जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान नहीं गए थे, दायर कर रखा है. कांग्रेसी
सरकारों ने राम को काल्पनिक पात्र ही नहीं बताया बल्कि धर्म स्थलों की 1947 की पहली वाली यथास्थिति को बनाए रखने का कानून
बनाने का महापाप भी किया है. राम का नाम लेकर सत्ता में आयी भाजपा भी इस दिशा में किंकर्तव्यविमूढ़ दिखाई पड़ती है.
हिंदुओं के मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण है. श्रद्धालुओं के चढ़ावे से होने वाली आमदनी सरकारी खजाने में जाती है और केवल एक छोटा सा हिस्सा मंदिरों के रखरखाव पर खर्च किया जाता है. कई राज्यों में मंदिरों से होने वाली आय मुस्लिम और क्रिश्चियन धर्म स्थलों और उनके द्वारा चलाई जा रही संस्थाओं को दी जाती है. शायद आज की सरका रें ही नहीं, हम सब भी भूल गए हैं कि देश की सभ्यता, कला व संस्कृति, और भारतीय दर्शन के उद्भव और विकास में इन मंदिरों का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है. शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में इन मंदिरों के कारण भारत के विश्व गुरु बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ था. सनातन का दुर्भाग्य देखिये कि इनके मंदिर आज भी स्वतंत्र नहीं है. इसके विपरीत दूसरे धर्म के पूजा स्थलों को सरकारी धन उपलब्ध कराया जा रहा है बल्कि उन्हें बड़ी मात्रा में विदेशी धन भी प्राप्त होता है और इस धन का बड़ा भाग धर्मांतरण और सनातन संस्कृति को लांछित करने पर खर्च किया जाता है. इस समय जब मंदिर मुक्ति के लिए आंदोलन चलाए जा रहे हैं, भाजपा की उत्तराखंड सरकार ने चारो धाम का अधिग्रहण करने का दुस्साहस किया था, भारी विरोध के बाद इसे वापस लिया गया है.
कुछ समय पहले संत महात्माओं द्वारा आयोजित धर्म
संसद में कालीचरण महाराज द्वारा गांधी के प्रति कुछ शब्दों का प्रयोग किया गया था, जिसके कारण कांग्रेस की
छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र सरकार द्वारा उनके विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत कर गिरफ्तार किया गया था. किसी भी अमर्यादित भाषा
का समर्थन तो नहीं किया जा सकता लेकिन संत कालीचरण महाराज के बोलने की स्वतंत्रता
के अधिकार की रक्षा होनी चाहिए. गांधी को पैगंबर बनाकर सनातन धर्म के संत और
महात्माओं का निरादर किया जाना स्वीकार नहीं किया जा सकता. इसी तरह हरिद्वार धर्म
संसद में दिए गए भाषण के आधार पर जितेंद्र नारायण त्यागी ( पूर्व वसीम रिजवी) को
गिरफ्तार किया गया था. उनकी रिहाई को लेकर यति नरसिंहानंद हरिद्वार में उपवास कर रहे
थे, उन्हें भी
गिरफ्तार किया गया है और उन पर धर्म संसद के अलावा अन्य कई मामले दर्ज किए गए हैं.
कोई भी व्यक्ति समझ सकता है कि वसीम रिजवी द्वारा कुरान की आयतों के विरुद्ध
सर्वोच्च न्यायालय जाने, मोहम्मद नाम की
एक पुस्तक लिखने और बाद में सनातन धर्म
अपनाने के कारण वह वामपंथी इस्लामिक गठजोड़ के निशाने पर हैं. चूंकि वसीम रिजवी का
धर्मांतरण डासना मंदिर में यति नरसिंहानंद की देखरेख में हुआ था जिन्होंने वसीम
रिजवी को अपना गोत्र प्रदान किया था, वह भी आतंकवादियों सहित इस गठजोड़ के निशाने पर
हैं. बेहद चौंकाने वाली बात यह है कि भाजपा की उत्तराखंड सरकार ने तथाकथित
धर्मनिरपेक्ष इस्लामिक वामपंथ गठजोड़ के दबाव में इन्हें गिरफ्तार किया है. इससे
हिंदू जनमानस में बहुत रोष व्याप्त है. उत्तराखंड में पिछले 5 साल में भाजपा तीन
मुख्यमंत्री बदल चुकी है, पर ऐसा लगता है कि भाजपा ने अब सरेंडर कर दिया है और इस
देव भूमि में पुन: सरकार न बनाने का आत्मघाती निर्णय ले लिया है.
धर्म संसद के विरुद्ध याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल और उनकी पार्टी कांग्रेस का हिंदू और सनातन धर्म विरोध जग जाहिर है. इसलिए उन्होंने जो टिप्पणियां की उस पर आश्चर्य नहीं लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह इन याचिकाओं पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और त्वरित कार्यवाही की वह अवश्य चौंकाने वाली है. कुछ समय पहले कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार पर दायर की गई एक जनहित याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहते हुए सुनवाई नहीं की थी कि इसमें अत्यधिक विलंब हो चुका है. 15 मिनट के लिए पुलिस हटाने (ओवैसी) , २० करोड़ मुसलमान 100 करोड़ हिंदुओं पर भारी पड़ेंगे (वारिस पठान) , मोदी की बोटी बोटी काट देंगे ( इमरान मसूद), हर हिंदू आतंकवादी नहीं होता पर हर आतंकवादी हिंदू ही क्यों होता है (रहमानी), जैसे बयानों पर सर्वोच्च न्यायालय खामोश रहता है. कुछ समय पहले कांग्रेस के सहयोगी तौकीर रजा ने कानून अपने हाथ में लेकर हिंदुओं के खात्में की चेतावनी देते हुए कहा था उन्हें हिंदुस्तान में छिपने की कोई जगह नहीं मिलेगी, इस पर भी सर्वोच्च न्यायालय मौन रहा.
न्यायालय द्वारा इस
तरह की कुछ खास याचिकाओं पर ही त्वरित
कार्यवाही जनमानस को उद्वेलित करती है लेकिन सबसे बड़ी पहेली यह है कि पिछले कुछ वर्षों से मोदी सरकार भी इस तरह के
मामलों में शिथिल हो गई लगती है और कई मामलों में तो ऐसा लगता है कि सरकार सर्वोच्च
न्यायालय के कंधे पर ही बंदूक रखकर चलाना चाहती है. मामला चाहे शाहीन बाग का हो, किसान आंदोलन का हो, विधानसभा चुनाव
के दौरान पश्चिम बंगाल में हुए हिंदुओं के भयानक नरसंहार का हो या फिर स्वयं
प्रधानमंत्री की पंजाब में हुई षड्यंत्रकारी सुरक्षा चूक का हो, यह समझ से परे है कि
क्यों इस तरह के मामलों में सरकार लुंज पुंज और असहाय नजर आती है?
सरकार की
मजबूरियां हो सकती है लेकिन सनातन हिंदू समाज की तो कोई मजबूरी नहीं है. पूरे समाज
को संगठित होकर, जाति, उपजाति,
वर्ण आदि का भेद भूलकर जन जागरण करना होगा और
सरकार पर दबाव बनाना होगा. समय तेजी से निकल रहा है और सनातन समाज नित नए
चक्र व्यूह में फंसता जा रहा है. स्थिति
"अभी नहीं तो कभी नहीं" वाली आ
गई है. पूरे हिन्दू समाज को संगठित होकर
अपने हित में आवाज उठानी होगी अन्यथा बहुत
देर हो जायेगी.
- -- शिव
मिश्रा
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