एक और हिन्दू मंदिर पर सरकारी कब्जा
तामिलनाडू के प्राचीनतम मंदिरों में से एक विश्व प्रसिद्ध चिदम्बरम मंदिर को सरकारी नियंत्रण में लाने के लिए राज्य सरकार द्वारा कुत्सित प्रयास किया जा रहा है.
ये दक्षिण भारत के अलावा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी सुर्ख़ियों में रहा पर पता नहीं कोरा पर इसका कोइ संदर्भ क्यों नहीं है.
मंदिर के पुजारी विरोध मार्च पर
वे सभी लोग जो मंदिर मुक्ति के पक्षधर हैं संभवत: उन्हें इसकी जानकारी अवश्य होगी और उनसे अनुरोध है कि इस घटना से सम्बंधित जानकारी सभी चिंतित लोगों को अवश्य दें.
तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस की गठबंधन सरकार का हिंदू विरोधी घृणित चेहरा एक बार फिर सामने आया है. राज्य के प्राचीनतम मंदिरों में से एक विश्व प्रसिद्ध चिदम्बरम मंदिर को सरकारी नियंत्रण में लाने के लिए राज्य सरकार द्वारा कुत्सित प्रयास किया जा रहा है. स्टॅलिन सरकार ने मंदिर में पुलिस भेजकर अपने इरादे साफ़ कर दिए. पुलिस ने 11 पुजारियों के विरुद्ध इस आधार पर मुकदमा दर्ज किया कि उन्होंने श्रद्धालुओं को, विशेषतय: दलितों को मंदिर में प्रवेश से रोका.
मंदिर के गर्भगृह में पुलिस भेजने के कुकृत्य का बचाव करते हुए धार्मिक मामलों के मंत्री पीके शेखरबाबू ने कहा कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि मंदिर के अंदर श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो और इसके लिए सरकार इस मंदिर को अपने नियंत्रण में लेने के प्रयासरत है, क्योंकि सभी श्रद्धालु ऐसी मांग कर रहे हैं. इस संबंध में यह बात ध्यान देने योग्य है कि सर्वोच्च न्यायालय ने 2014 में मद्रास उच्च न्यायालय के 2009 के आदेश को रद्द करते हुए यह व्यवस्था दी थी कि पोधु दीक्षितर ही मंदिर चलाएंगे और राज्य सरकार का इसमें कोई दखल नहीं होगा. पोधु दीक्षितर भगवान शिव के उन शिष्यों के वंशज माने जाते हैं जो उनके साथ आये थे. राज्य सरकार चिदम्बरम मंदिर को सरकारी नियंत्रण में लाने के लिए प्रयासरत है जिसके लिए मंदिर में की प्रतिदिन की जाने वाली पूजा अर्चना से लेकर विभिन्न आयोजनों पर पैनी निगाह रखती है और पुजारियों का उत्पीड़न करती है.
प्रत्येक वर्ष “आनी थिरुमंजनम” त्योहार के अवसर पर मंदिर में भारी भीड़ एकत्र होती है. पौराणिक मान्यता है कि आनी उथिरम के दिन ही भगवान शिव कुरुंदई वृक्ष के नीचे तपस्यारत ऋषि मणिक्कवाकर से प्रसन्न होकर प्रकट हुए थे और आनंद तांडव के माध्यम से उन्हें उपदेश दिया था. नृत्य करते भगवान शिव का यह रूप ही नटराज कहलाया । 4 दिन चलने वाले इस त्योहार में उथ्रम नक्षत्र में भगवान नटराज का अभिषेक किया जाता है. सुरक्षा कारणों से इन चार दिनों में श्रद्धालुओं को पवित्र मंच, जो छोटा और सीमित स्थान है, के ऊपर खड़े होने या पूजा करने की अनुमति नहीं दी जाती है। इस वर्ष भी 24 से 27 जून तक मनाए जाने वाले इस त्योहार पर यह व्यवस्था की गयी थी. इसे बहाना बनाकर तमिलनाडु सरकार ने आपत्ति जताई और मंदिर में पुलिस भेज कर इस व्यवस्था को रोक दिया.
तमिलनाडु अत्यंत प्राचीन, अद्भुत अलौकिक और आध्यात्मिकता के प्रमुख मंदिरों का राज्य है लेकिन दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद मंदिरों पर सरकारी नियन्त्रण और सनातन संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट करने का बृहत अभियान नेहरू के संरक्षण में तमिलनाडु से ही शुरू हुआ. भारत की कथित स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी यहाँ सनातन संस्कृति और ब्राह्मण विरोधी अभियान रुका नहीं है. राज्य के ज्यादातर ब्राह्मण दूसरे राज्यों या विदेशों में पलायन कर चुके हैं, केवल वही बचे हैं जो नहीं जा सकते हैं या जो वहीं जीना-मरना चाहते हैं. तमिलनाडु में चिदंबरम मंदिर ही एक ऐसा बड़ा प्राचीन मंदिर बचा है जो राज्य सरकार के नियंत्रण में नहीं है लेकिन राज्य में जब भी डीएमके की सरकार होती है तो इस मंदिर पर सरकारी कब्जे का प्रयास किया जाता है. करुणानिधि, जो कट्टर हिंदू विरोधी थे और इसलिए अपने अपने आप को नास्तिक बताते थे किन्तु वह प्रो क्रिश्चियन और प्रो मुस्लिम थे, ने भी इस मंदिर पर नियंत्रण करने का कई बार प्रयास किया था लेकिन वह सफल नहीं हो सके. अब उनके पुत्र और वर्तमान मुख्यमंत्री स्टालिन उनके अधूरे काम को पूरा करना चाहते हैं.
तमिलनाडु की हिंदू और ब्राह्मण विरोधी राजनीति में ऐसा माना जाता है कि मंदिरों के रूप में राज्य की विश्व प्रसिद्ध धरोहरें केवल ब्राह्मणों से संबंधित है. इसलिए उन पर नियंत्रण करने से दलित, पिछड़े, मुस्लिम और क्रिश्चियन समुदाय खुश होगे. करुणानिधि की तो पूरी राजनीति हिंदू विरोधी और ब्राह्मण विरोधी मानसिकता पर आधारित थी जिसे उनके पुत्र स्टालिन आगे बढ़ा रहे हैं. उन्होंने सरकारी नियंत्रण वाले मंदिरों से प्राप्त आय का उपयोग दूसरे धर्मों करने की शुरुआत की. आज तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्य, मंदिरों के चढ़ावे को क्रिश्चियनो की धर्मयात्रा और मुसलमानों के लिए हज सब्सिडी के रूप में इस्तेमाल करते हैं. पिछले वर्षों में तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने राज्य के प्रमुख मंदिरों से 10-10 लाख रूपये जबरन वसूले थे ताकि उस धनराशि का मदरसों और यतीमखानों में मुफ्त राशन उपलब्ध कराने में उपयोग किया जा सके. सरकार ने हिंदू मंदिरों में किसी भी धर्म, संप्रदाय और जाति से पुजारी नियुक्त करने का कानून भी बनाया है जिस कारण प्राचीन परंपराएं मान्यताएँ और आध्यात्मिकता का बड़ी तेजी से क्षरण हो रहा है. डीएमके अपनी राजनीति के लिए दलित और ब्राह्मण वर्ग को आमने सामने करने का हमेशा प्रयास करती रहती है. इस योजना के अंतर्गत किसी दलित से शिकायत पत्र लेकर मंदिर के पुजारियों के विरुद्ध दलित विरोधी कानून का जमकर दुरुपयोग किया जाता है.
चिदम्बरम मंदिर के संबंध में पौराणिक और ऐतिहासिक तथ्य है कि मंदिर की स्थापना से पूर्व तमिलनाडु का यह भूभाग विशाल वनीय प्रदेश था जिसका नाम तिल्लई वन था, जहाँ अनेक ऋषि मुनि तपस्या करते थे और विभिन्न अनुष्ठान करते थे. ऋषि मुनियों की कठिन साधना से प्रसन्न होकर शिवजी यहाँ प्रकट हुए और आनंद तांडव नृत्य किया था. भगवान शिव के आनंद तांडव का दर्शन करने के लिए भगवान विष्णु भी आदिशेष के रूप में यहां प्रकट हुए थे जो अब भी इस मंदिर में गोविन्दराज के रूप में विराजमान हैं. मंदिर में पूजे जाने वाला भगवान शिव का प्राथमिक स्वरूप नृत्य देव एवं लौकिक नर्तक नटराज का है। मंदिर के पूर्वी गोपुरम पर उनके नृत्य की विभिन्न मुद्राएं अंकित हैं, जो वास्तव में केवल नृत्य मुद्राएं नहीं, अपितु आध्यात्मिक रूप से 108 कारण अथवा गतियां हैं, जिनका शास्त्रीय नृत्य में प्रयोग किया जाता है.
तमिलनाडु सरकार द्वारा प्रसिद्ध थिल्लाई नटराज मंदिर या चिदम्बरम मंदिर में पुलिस भेज कर नियंत्रण करने के प्रयास को सभी राजनीतिक दलों ने अनदेखा किया. केवल भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई ने इसका विरोध किया लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व या केंद्र सरकार ने न तो विरोध किया और न ही राज्य सरकार से यह पूछने की कोशिश की कि वह सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय और संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन क्यों कर रही है, जिससे मंदिर मुक्ति आंदोलनकारियों और सभी हिन्दुओं में भारी क्षोभ है.
अमेरिका और मिस्र की सफल विदेश यात्राओ के बाद जिस ढंग से प्रधानमंत्री मोदी ने मध्यप्रदेश में अपने कार्यकर्ताओं का उत्साह वर्धन किया और समान नागरिक संहिता पर चर्चा की, उससे पूरे देश में यह संदेश गया था कि भाजपा ने कर्नाटक की जबरदस्त हार से सीख ली है लेकिन चिदम्बरम मंदिर पर चुप्पी से लगता है कि अपनी आदत के अनुसार दो कदम आगे और चार कदम पीछे चलने वाली भाजपा अभी वहीं खड़ी है जहाँ कर्नाटक चुनाव से पहले थी. कर्नाटक के तत्कालीन भाजपा मुख्यमंत्री वसव राज बोम्मई ने राज्य में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की घोषणा की थी जिसका कांग्रेस ने जबरदस्त विरोध किया था लेकिन दुर्भाग्य से बोम्मई को केंद्रीय नेतृत्व का साथ नहीं मिल सका. वहां कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर विरोधियो और वर्ग विशेष द्वारा प्रयोजित हमलों पर भी त्वरित और प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई और परिणाम सामने है. तमिलनाडु में भी भाजपा के कई बड़े कार्यकर्ता जेलों में बंद किए जा रहे हैं. सड़क चौड़ी करने, मजारों, दरगाहों, मस्ज़िदों और चर्चों को रास्ता देने के नाम पर प्राचीन मंदिर तोड़े जा रहे हैं लेकिन कोई भी राजनीतिक दल आवाज नहीं उठा रहा है.
यद्दपि तमिलनाडु में भाजपा के पास तुरंत खोने के लिए कुछ नहीं है लेकिन इसके गलत संदेश पूरे देश में जाते हैं. मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, और तेलंगाना जहाँ निकट भविष्य में चुनाव होने हैं, में भी अनेक महत्वपूर्ण मंदिर सरकारी नियंत्रण में हैं. केंद्र सरकार कानून बनाकर इन सभी मंदिरों को राज्य सरकार के चंगुल से एक झटके से मुक्त कर सकती है और अपनी छवि में सुधार कर समर्थकों का एक बड़ा वर्ग तैयार कर सकती है, अन्यथा इन राज्यों में केवल राजस्थान ही भाजपा के पास आ पाएगा और वह भी गहलोत-पायलट झगड़े के कारण लेकिन छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना आदि में कर्नाटक का इतिहास दोहराए जाने की पूरी संभावना है, क्योंकि केवल लच्छेदार भाषणों और राष्ट्रवाद के गीत गाने से हिंदुओं का दिल नहीं जीता जा सकता. भाजपा को चाहिए कि हिंदू समाज के लिए न सही, अपनी राजनीति के लिए ही सही, ऐसे कदम त्वरित गति से उठाने चाहिये अन्यथा 2024 लोकसभा चुनावों के लिए बहुत देर हो जाएगी.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
इस घटना ने मुझे स्तब्ध किया और इस पर मैंने कई मीडिया स्पेस में लेख भी लिखे. मेरा हाल में प्रकाशित एक लेख
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें