सरकार योगी की, सिस्टम किसका
सरकारें बदल जाती है और नये तरीके से काम भी शुरू कर देती है, लेकिन तंत्र (सरकारी
मशीनरी) में बदलाव के लिए बहुत अधिक ध्यान केंद्रित नहीं करती. इसलिए सिस्टम में
बदलाव या तो आता ही नहीं या फिर थोड़े बदलाव में इतना अधिक समय लग जाता है कि सरकार
के बहुत से अच्छे प्रयास व्यर्थ चले जाते हैं. ये सही है कि व्यवस्था में बदलाव
लाना आसान नहीं होता क्योंकि सुधारात्मक और गुणात्मक परिवर्तन का विरोध मानवीय
स्वभाव है. भारत में सरकारी कर्मचारियों की मन: स्थिति अनुशासन, कार्यकुशलता और
ईमानदारी के प्रति सामान्यतय: अनुकूल नहीं होती. इसलिए जो सरकार स्वयं इनका पालन
करते हुए जब सुधारात्मक कदम उठाती है, सरकारी कर्मचारी असहज हो जाते हैं और उसका
प्रत्यक्ष या परोक्ष विरोध करते हैं. कई बार यह विरोध इतना तीव्र होता है कि
सरकारों को कार्य करना भी मुश्किल पड़ जाता है. इसलिए ज्यादातर सरकारे बीच का
रास्ता अपनाती हैं और ईमानदारी, सुचिता, समयपालन, कार्यकुशलता आदि ऊपर से यानी
मंत्रिमंडल स्तर से शुरू करती हैं, जो बेहद आसान होता है. इससे सरकार की छवि अच्छी
बन जाती है और उच्च स्तरपर बदलाव दिखाई पड़ने लगता है, भले ही वह अस्थायी
हो. लेकिन यह पर्याप्त नहीं होता
क्योंकि ऊपर से नीचे तक जो कड़ी बनी होती है वह नहीं टूटती. इसलिए जनता को सरकार
परिवर्तन का जितना लाभ मिलना चाहिए, उतना नहीं मिल पाता क्योंकि उसे उन
विभागों के भ्रष्टाचार से मुक्ति नहीं मिल पाती, जहाँ निरंतर
उसका काम पड़ता है.
विभिन्न सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार भारत की एक प्रमुख समस्या है. सरकारी तंत्र के इस दुर्गुण का भरपूर फायदा असामाजिक, दबंग तथा पैसे वाले लोग उठाते हैं. धीरे धीरे जनता को भी लगने लगा है कि भ्रष्टाचार प्रत्येक सरकार का अभिन्न हिस्सा है, और इसलिए कई बार लोग बेहद निराशा में कहते हैं “कोई नृप होय हमें क्या हानि”. बहुत से सरकारी कर्मचारियों सहित अन्य लोग जो स्वयं ईमानदार होते हैं, भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में अभिमन्यु बनने की बजाय, बेहद मजबूरी में दान दक्षिणा देने को मजबूर हो जाते हैं. भ्रष्टाचार का यह तंत्र जब अपराध जगत से जुड़ जाता है, तो स्थितियां देश और समाज के लिए अत्यंत भयावह हो जाती है.
अगर उत्तरप्रदेश की बात करें तो यहाँ योगी सरकार का दूसरा कार्यकाल चल
रहा है. उनके कार्यकाल में उच्च स्तर पर कोई भ्रष्टाचार सामने नहीं आया. अपराधियों
के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति ने अपराधियों में भय उत्पन्न किया और इससे प्रदेश
की कानून व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार हुआ. महिलाएं और युवतियां बिना भय के घर से
बाहर निकलने लगी. प्रदेश साम्प्रदायिक वातावरण से भयमुक्त होकर दंगामुक्त हो गया.
धरना, प्रदर्शन और आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुई क्षति की वसूली करने
की नीति के कारण सार्वजनिक संपत्तियों को होने वाला नुकसान भी लगभग बंद हो गया. इसलिए
स्वाभाविक रूप से वर्तमान परिस्थितियों में जनता ने सर्वोत्तम विकल्प के रूप में योगी को पुनः सत्ता में पहुंचाया लेकिन अभी भी
जनता सरकारी विभागों के भ्रष्टाचार और गैर पेशेवर कार्यशैली से बुरी तरह त्रस्त है.
इनमें कचहरी, तहसील, ब्लॉक, पुलिस थाना और रजिस्ट्री कार्यालय आदि प्रमुख हैं. अपराधी,
माफिया और बाहुबलियों के पुलिस तथा अन्य सरकारी विभागों से संबंध आज भी खतरनाक
स्तर पर बने हुए हैं.
बांदा जेल में बंद पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के भतीजे और प्रदेश
के चर्चित माफिया मुख्तार अंसारी के विधायक पुत्र अब्बास अंसारी को हाई सेक्युरिटी
जेल चित्रकूट में अधिकारियों की मिलीभगत से ऐशो आराम की सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा
रही थी. सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए अब्बास अंसारी की पत्नी लगभग रोज़ ही
अपने पति से 3-4 घंटे जेल के अन्दर “प्राइवेट रूम” में मिलती थी. जांच के अनुसार इसके
लिए जेल अधिकारियों, कर्मचारियों को भारी
भरकम धनराशि अदा की गई थी. जेल से ही
अब्बास फ़ोन करके लोगों को धमकाने और रंगदारी वसूल करने का कारोबार चलाता था. विडंबना
देखिए कि जिस पुलिस ने उसे पकड़ कर जेल में बंद किया, वही जेल से ही उसे अपराधिक
गतिविधिया चलाने के लिए सभी सुविधाएँ उपलब्ध करा रही थी. पुलिस की कार्यशैली देखिए
कि पिता-पुत्र को पास पास की जेलों में बंद किया, शायद इसलिए कि मिलने आने वालों
को कोई समस्या न हो? मामले का भंडाफोड़ होने के बाद अब्बास अंसारी को अन्य जेल में स्थान्तरित
कर दिया गया और उसकी पत्नी को गिरफ्तार करके उसी चित्रकूट जेल में रखा गया, जहाँ
उसने जेल कर्मचारियों से संपर्क बनाकर अपने पति के लिए सुविधाएँ जुटाने का कार्य
किया था.
दूसरा मामला एक
अन्य माफिया अतीक अहमद का है जो इस समय
गुजरात की एक जेल में बंद है. पुलिस रिपोर्ट के अनुसार उसके इशारे पर बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के
मुख्य गवाह उमेश पाल की दिनदहाड़े गोलियां और बम मारकर हत्या कर दी गई. पुलिस की
प्रारंभिक रिपोर्ट से पता चलता है कि अतीक अहमद ने गुजरात की जेल से वीडियो
कॉन्फ्रेन्सिंग के माध्यम से अपनी पत्नी और गिरोह के अन्य सदस्यों से बात करके
हत्याकांड की योजना बनाई थी. गुजरात में भी अतीक को जेल में विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग की
सुविधा उपलब्ध हो जाती है. गुजरात में भाजपा पांचवीं बार सत्ता में आई है लेकिन
सिस्टम अभी भी पूरी तरह से बदल नहीं पाया है.
ये दोनों मामले यह रेखांकित करने के लिए
पर्याप्त हैं कि योगी सरकार में भी पुराना सिस्टम अभी भी काम कर रहा है. अपराधियों
के लिए बुलडोजर का अभिनव प्रयोग करने वाले योगी के कार्य को देश में बहुत सराहना
मिली और इस कारण देश विदेश में उन्हें बुलडोजर बाबा के नाम से जाना जाता है. उनकी
बुल्डोजर सफलता के कारण अन्य राज्यों में भी बुलडोजर का प्रयोग प्रारम्भ हो गया है.
शुरू में बुलडोजर का बहुत अधिक विरोध हुआ था. इसे गैर कानूनी बताकर मामला उच्च
न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय तक गया, जहाँ प्रदेश सरकार यह सिद्ध करने में सफल रही
कि बुलडोजर केवल अवैध और गैरकानूनी निर्माण पर चलाए जाते हैं जिसके लिए अतीत में
नोटिस भी जारी किये जा चुके हैं. इसके बाद बुल्डोजर के विरोध में विपक्षी दलों
द्वारा बयान तो दिए जाते हैं लेकिन कोई न्यायालय जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता.
यक्ष प्रश्न यह है कि प्रदेश में कितने अवैध और गैर कानूनी निर्माण है? कितनी सरकारी संपत्तियों पर माफियाओं और अपराधियों का कब्जा है? आज की तारीख में सरकार के पास शायद इस तरह का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं होगा क्योंकि इसे कभी महत्वपूर्ण समझा ही नहीं गया. एक अनुमान के अनुसार शायद ही कोई ऐसा शहर हो जहाँ अवैध और गैरकानूनी निर्माण न किये गए हो और सरकारी सम्पत्तियों सहित अन्य व्यक्तियों की निजी संपत्तियों पर कब्जे न किए गये हों. इनकी संख्या बहुत अधिक है. जिम्मेदार सरकारी अधिकारी और कर्मचारी पैसा ऐंठकर बड़ी आसानी से बचकर निकल जाते हैं. यह स्थिति अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है. प्रदेश में न जाने कितने ऐसे लोग हैं जिनकी निजी जमीनों, मकानों और संपत्तियों पर अपराधियों / माफियाओं का आज भी कब्जा है. लोग सरकारी विभागों के चक्कर लगा कर थक जाते हैं लेकिन वांछित कार्रवाई नही होती. अनेक मामले न्यायालयों में लंबित है जिनके निपटारे की संभावना निकट भविष्य में नहीं है.
प्रदेश में
कितनी ही ऐसी संपत्तियां हैं जिन्हें अतीत में सरकारी संरक्षण में अपराधी और भूमाफियाओं
ने हड़प लिया था. कानपुर में देहली सुजानपुर योजना के अंतर्गत भारतीय स्टेट बैंक के
अधिकारियों की हाउसिंग सोसाइटी के लगभग ₹300
करोड़ मूल्य के 200 से भी अधिक भूखंडों पर एक
राजनैतिक दल से संबंध रखने वाले माफिया का आज भी कब्जा है. ये अधिकारी संबंधित
विभागों से लेकर सचिवालय तक चक्कर लगा लगा कर थक चुके हैं. इन्हें अपने जीवनकाल
में भूखंड वापस मिलने की आशा क्षीण हो चुकी है. पिछली सरकारों में अधिकारियों ने
माफियाओं को कब्जा करने में सहयोग दिया था लेकिन आज सरकार बदलने के इतने साल बाद
भी ये अधिकारी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसी माफिया का समर्थन कर रहे हैं, जो
हैरान करने वाली बात है. यह भू माफियाओं
और अधिकारियों के गठजोड़ की निरंतरता को रेखांकित करता है. यह तो सिर्फ एक उदाहरण
है, न जाने कितने ऐसे मामले होंगे.
किसी बड़ी वारदात
के बाद सरकारी अधिकारी अपराधियों के अवैध
और गैरकानूनी निर्माण तथा कब्जा की गई संपत्तियों की तुरंत पहचान कर लेते हैं और
उन पर बुलडोजर चलता है, जो सर्वथा उचित है लेकिन वे कौन हैं जिन्होंने अवैध
निर्माण और कब्जे होने दिए? अधिकारी नियमित रूप से अवैध निर्माण ओर कब्जा के
विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं करते? इसका भी कारण यही है कि सरकारी सिस्टम कमोबेश आज
भी वैसा ही काम कर रहा है, जैसा पहले कर रहा था.
ऐसा नहीं है की
सिस्टम बदला नहीं जा सकता. एक समय था जब पासपोर्ट बनवाना टेढ़ी खीर थी लेकिन आज
बिना विलम्ब और बिना भ्रष्टाचार के बहुत आसानी से पासपोर्ट बन जाता है. इस तरह का सिस्टम
संपत्तियों की खरीद फरोख्त के लिए रजिस्ट्रार ऑफिस में बड़ी आसानी से लागू किया जा
सकता है. परिवहन विभाग, पुलिस थाना, तहसील, कचहरी, चकबंदी आदि जहां पुराना सिस्टम आज
भी संस्थागत रूप में काम कर रहा है, में भी नवाचार और आउटसोर्सिंग से बहुत सारी
समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है.
फ़िल्म ‘द कश्मीर
फाइल्स’ का एक संवाद “सरकार उनकी है, लेकिन
सिस्टम हमारा है” बहुत प्रासंगिक है. अगर सरकार बदली है, तो सिस्टम भी बदलना ही
चाहिए. अब समय आ गया है कि योगी जी को इस पुराने सिस्टम पर भी प्रहार करना चाहिए
ताकि आम जनता को दिन प्रतिदिन होने वाली मुसीबतों से छुटकारा मिल सके और प्रदेश
रामराज्य की ओर तेजी से बढ़ सके.
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_ शिव मिश्रा
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