रविवार, 14 जुलाई 2024

असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में की राष्ट्रविरोधी हरकत : भाजपा का विरोध पर हाथ में संविधान लेकर बैठा राहुल सहित पूरा विपक्ष रहा शांत

 






 

इस समय संसद का विशेष सत्र चल रहा है जिसमें नए चुने गए सांसद सदस्यता की शपथ ले रहे हैं. ओवैसी ने विस्मिल्लाह कहते हुए उर्दू में शपथ ली और इसके बाद जय भीम, जय मीम, जय तेलंगाना, जय फ़िलिस्तीन कहा. ध्यान देने की बात है कि उन्होंने जयहिंद नहीं कहा. इस पर भाजपा सांसदों ने विरोध किया लेकिन कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्षी खेमे से विरोध का कोई स्वर सुनाई नहीं पड़ा.

हैदराबाद से पांचवीं बार सांसद चुने गए ओवैसी एआईएमआईएम यानी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तहादुल मुसलमीन के अध्यक्ष हैं. उनके इस व्यवहार से इस बात की पुष्टि होती है कि मुसलमान सिर्फ मुसलमान होता है . किसी भी देश के प्रति उसकी निष्ठा नहीं, किसी भी समुदाय के प्रति सहिष्णुता नहीं. उसे केवल और केवल मुस्लिम बिरादरी की चिंता होती है और उसके हाथ में केवल इस्लाम का झंडा होता है.

नेहरू ने वोट बैंक की जो फसल बोई थी, आज वह हर राजनीतिक दल की पहली पसंद है और उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त है. उनकी उद्दंडता और आक्रामकता का आलम यह है कि वह देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं या उसमें संलग्न होते हैं तो भी ज़्यादातर राजनीतिक दल उनके समर्थन में खड़े होते हैं. उन्हें मिले विशेषाधिकार की आढ में भारत में गज़वा ए हिंद की योजना पर तेजी से काम हो रहा है. लैंड जिहाद, लव जिहाद, अवैध घुसपैठ और धर्मांतरण के सहारे वे जल्दी से जल्दी भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की जुगत में है.

फ़िलिस्तीन के मामले में भारत का पक्ष बिल्कुल स्पष्ट है. भारत फ़िलिस्तीन की संप्रभुता का पक्षधर है लेकिन वह आतंकवाद के साथ भी खड़ा नहीं हो सकता. अभी हाल ही में फ़िलिस्तीनी आतंकवादी संगठन हमास के आतंकवादियों ने इजरायल में घुसकर अनेक निरपराध इजरायली नागरिको को मार डाला था. अनेक लोगों का अपहरण कर अपने साथ ले गए थे. गाजा पट्टी में इजरायल के सैनिक अभियान का एकमात्र यही कारण है. विमर्श बनाने में माहिर इस्लामिक बिरादरी पूरे विश्व में इजराइल को आक्रमणकारी और आतंकवादी साबित करके फिलिस्तीनियों के पक्ष में विक्टिम कार्ड खेल रही हैं. उन्होंने हमास के कुकृत्य की निंदा नहीं की, बल्कि वे सभी हमास के साथ खड़े हैं. वे न केवल हमास का उत्साहवर्धन कर रहे हैं बल्कि पूरे विश्व से उन्हें हर तरह की सहूलियतें उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहे हैं. युद्धविराम की मांग की जा रही है लेकिन दुनिया का कोई भी मुसलमान हमास से यह नहीं कह रहा है कि वह अपहरण किए गए इजरायली नागरिक को तुरंत रिहा कर दे. यही इस्लामिक कुटिलता है, जिसे मुस्लिम भाईचारा या उम्मा कहा जाता है. आज संसद में ओवैसी द्वारा जय फ़िलिस्तीन का नारा लगाना, देश विरोधी होने के साथ साथ यह प्रदर्शित करता है कि उनका प्रेम भारत से कहीं अधिक फ़िलिस्तीन के प्रति है और उनकी स्वामिभक्ति अपने देश के प्रति नहीं, इस्लाम और इस्लामिक राष्ट्र के प्रति है.

  1. आपको मालूम होगा कि आजादी के पहले हैदराबाद में निजाम की छत्रछाया में हिंदुओं का नरसंहार करने और डरा धमकाकर उनका धर्मांतरण करवाने के लिए रजाकार संगठन नाम से एक आतंकवादी संगठन तैयार किया गया था. मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन यानी एमआईएम नाम से एक राजनैतिक संगठन भी बनाया गया था जिसका उद्देश्य था हैदराबाद को इस्लामिक राष्ट्र बनाना और इसके लिए भारत सरकार का विरोध करते हुए राजनीतिक माहौल तैयार करना. सरदार वल्लभभाई पटेल के निर्देश पर हैदराबाद में हुए ऑपरेशन पोलो के बाद हैदराबाद का भारत में विलय हो गया था. रजाकार संगठन और मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और इसके नेताओं को जेल में डाल दिया गया था. 1957 में नेहरू ने जेल में बंद इन संगठनों के नेताओं को आजाद कर दिया था और एमआईएम से प्रतिबंध भी हटा लिया था. नेहरू की कृपा से इसी मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन के आगे ऑल इंडिया जोड़कर ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम बना दिया गया था, जिसकी अध्यक्षता ओवैसी के बाबा अब्दुल वाहिद ओवैसी को सौंपी गई थी. बाबा के बाद ओवैसी के पिता सलाहुद्दीन ओवैसी और उनके बाद स्वयं असदुद्दीन ओवैसी इस पार्टी के अध्यक्ष बने. 

पूरे देश में घूम घूमकर मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर चुनाव लड़ने वाले ओवैसी मुस्लिम आक्रांताओं को अपना पूर्वज बताते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, सम्मान व्यक्त करते हैं और हमेशा उनकी प्रशंसा भी करते हैं. यह समझना मुश्किल नहीं है कि उनका व्यवहार जिन्ना से कम नहीं है. कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल ओवैसी की राष्ट्र विरोधी हरकतों को नजरंदाज करते हैं. ओवैसी का कवच बनते हुए उन्हें भाजपा की बी टीम बताते हैं. देश के साथ इससे अधिक धोखाधड़ी और क्या हो सकती हैं.

इस बात पर गंभीरता से विचार किया जाना आवश्यक है कि क्या कोई विधायक, सांसद या संवैधानिक पद के लिए चुना गया व्यक्ति सार्वजनिक रूप से देश के प्रति अनादर और दूसरे देश के प्रति स्वामिभक्ति प्रदर्शित कर सकता है.

जब यह कुकृत्य देश की सर्वोच्च संस्था संसद में की जाए तो इससे बड़ा पाप और अपराध क्या हो सकता है?

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