रविवार, 14 जुलाई 2024

जहर बोते बोते भारत विरोधी षड्यंत्रों का मोहरा बन गए राहुल गाँधी ?

 और कितना गिरेगी राजनीति ? जहर बोते बोते भारत विरोधी षड्यंत्रों का मोहरा बन गए राहुल गाँधी ?


राहुल गाँधी ने नेता प्रतिपक्ष के रूप में लोकसभा में जो अपना पहला भाषण दिया उससे पूरा देश स्तब्ध रह गया. अपने विवादित भाषण द्वारा हिंदुओं को अपमानित और लांछित करके आपराधिक प्रवृत्ति का सिद्ध करने का प्रयास करते हुए हिंसक और नफरत फैलाने वाला बताया, जिससे भारत का बहुसंख्यक हिंदू मर्माहत हुआ. उन्होंने भाषण ऐसे दिया जैसे वह कोई चुनावी रैली संबोधित कर रहे हों. काल्पनिक और झूठी बातों के सहारे उन्होंने अपने भाषण को झूठ का पुलिंदा बना दिया. राहुल गाँधी के व्यक्तित्व को समझते हुए इस पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए लेकिन नेता विपक्ष का पद एक संवैधानिक पद है जो कांग्रेस को 10 साल बाद नसीब हुआ है क्योंकि 2014 और 2019 में कांग्रेस के पास इतनी सीटें नहीं थी की उसको नेता विपक्ष का पद मिल सकता, इसलिए नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनके भाषण कीं जितनी निंदा की जाय कम है.

अब तक तो पूरी दुनिया यही जानती थी कि हिंदुओं से ज्यादा सहिष्णु अन्य कोई समुदाय इस पृथ्वी पर नहीं है. इसे मानने का सबसे बड़ा कारण है कि उन्होंने कभी हिंसा नहीं की किन्तु पिछले 1500 वर्षों से भी अधिक समय से हिंदू अपने ही देश में हिंसा का शिकार हो रहा है. सातवीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रांता मोहम्मद बिन कासिम के सिंध पर आक्रमण के समय से ही, आक्रांताओं ने भारत में हिंसा का जो तांडव मचाया था, वह अब तक रुका नहीं है. हिंदुओं के साथ उस सीमा तक क्रूरता की गई जिसकी आज कल्पना करना भी मुश्किल है. हिंदू स्त्रियों और बच्चों के साथ तो ऐसा अमानवीय व्यवहार किया गया जो विश्व में अब तक न कही देखा गया और न सुना गया. इन कट्टरपंथी आक्रांताओं द्वारा 8 करोड़ से भी अधिक हिंदुओं का वीभत्स कत्लेआम किया गया, जो इस पृथ्वी पर मानव सभ्यता का सबसे बड़ा नरसंहार है. इसके बाद भी यदि ठेके पर आजादी दिलाने वाली पार्टी का कोई नेता हिंदुओं को हिंसक और नफरत फैलाने वाला बताता है तो इसका मतलब है कि वह सत्ता प्राप्त करने के लिए बेचैन है और वह संसद से अपने वोट बैंक को संदेश दे रहा है तथा हिंदुओं पर हुई हिंसा को न्यायोचित ठहरा रहा है. अप्रत्यक्ष रूप से वह हिंदुओं के प्रति हिंसा को उकसा भी रहा है. इसे हिंदू समुदाय को अत्यंत गंभीरता से लेना चाहिये और भविष्य के खतरे के प्रति सावधान हो जाना चाहिए.

सदन के बाहर तो कांग्रेस लंबे समय से हिंदुओं को अपमानित और लांछित करती आ रही है. मुंबई हमलों के समय पकड़े गए आतंकवादी कसाब के हाथ में कलावा मिलना ताकि यदि वह मर जाए तो उसे हिन्दू आतंकवादी बताया जा सके. कांग्रेस के कई बड़े नेताओं द्वारा भगवा आतंकवाद का मुद्दा उछालना, कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा सिंह को झूठे आरोपों में जेल भेज देना, कुछ उदाहरण हैं जिससे साबित होता है कि कांग्रेस मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए हिंदुओं की बलि चढ़ा सकती है. जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद पहला दंगा राजस्थान में हुआ था. दंगाइयों को पुलिस ने गिरफ्तार किया और सभी दंगाई मुसलमान थे. नेहरू ने फ़ोन करके मुख्यमंत्री से कहा कि दोनों पक्षों यानी हिन्दू और मुसलमानों के बराबर बराबर लोगों को गिरफ्तार करिये तभी आप धर्मनिरपेक्षता का संतुलन बना पाएंगे. कोई सोच सकता है कि देश का प्रधानमंत्री मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए निर्दोष और निरपराध हिंदुओं को भी गिरफ्तार करवाने की बात करता है.

आज भारत में राजनीति सबसे अधिक फायदे का उद्योग है इसलिए हर वह व्यक्ति जो राजनीति में सफल हुआ, वह अपना पूरा घर परिवार इस उद्योग में लगाने की कोशिश करता है. न्यायाधीश, सिविल सेवा और सेना के बड़े अधिकारियों सहित हर कोई राजनीति में उतरने को लालायित रहता है. बड़े बड़े उद्योगपति भी राज्य सभा पहुँचने के अवसर की तलाश में रहते हैं. इसका कारण यह तो बिल्कुल भी नहीं है कि ये सभी देश की सेवा करने के लिए समर्पित है और किसी सदिच्छा से राजनीति में आना चाहते हैं बल्कि इसके पीछे छिपी दौलत, शोहरत और शक्ति ही मुख्य आकर्षण होती है. इसीलिये गाँधी परिवार भी राहुल को प्रधानमंत्री बनाने की कोशिश में जुटा है. राहुल गाँधी द्वारा नेता प्रतिपक्ष का पद स्वीकार करने को भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.

राहुल ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर जो भाषण दिया वह झूठ से मालामाल और नाटकीयता से भरपूर था. स्वतंत्र भारत के इतिहास में अब तक किसी भी नेता प्रतिपक्ष का भाषण इतना स्तरहीन, हिंदू विरोधी और झूठ पर आधारित नहीं रहा. देश को अपेक्षा थी कि शायद अब कांग्रेस रचनात्मक राजनीति शुरू करेगी ताकि प्रधानमंत्री पद के लिए बार बार लाँच किए जाने वाले राहुल गाँधी को परिपक्व, गंभीर और जिम्मेदार राजनीतिज्ञ के रूप में स्थापित किया जा सकेगा. दुर्भाग्य से कांग्रेस पिछली बार 52 सीटों की तुलना में अबकी बार जीती 99 सीटों को अपनी जीत समझने लगी है.

राहुल गाँधी ने अपने भाषण में एक नहीं अनेक झूठ बोले. अग्निवीर पर उनके बोले गए एक झूठ का रक्षा मंत्री ने खंडन भी किया लेकिन वह अपनी बात पर कायम रहे. उसके बाद उस शहीद अग्निवीर के पिता का एक वीडियो दिखाते हुए राहुल ने सरकार और रक्षा मंत्री पर झूठ बोलने का आरोप लगाया लेकिन जब शहीद के पिता और बहन ने राहुल के बयान का खंडन किया तो उनके झूठ का पर्दाफाश हो गया. सदन के अंदर उन्होंने चुनावी रैली की तर्ज पर भाषण दिया और अपने सांसदों को झूठी बातों पर मेजें थपथपाने के लिए प्रोत्साहित किया. यद्यपि उनके भाषण के विवादित अंश निकाल दिए गए हैं लेकिन सीधा प्रसारण होने के कारण, उन्हें अपने वोट बैंक को जो संदेश देना था, वह चला गया और भारतीय लोकतंत्र का जो नुकसान होना था, वह भी हो गया, जिसकी भरपाई नहीं हो सकती. प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान भी राहुल गाँधी अपने सांसदों को हंगामा मचाने के लिए उकसाते देखे गए. नेता प्रतिपक्ष द्वारा की गई इस तरह की असंसदीय और अशोभनीय हरकत भी पहली बार हुई है.

राहुल गाँधी की असली चुनौतियां अब शुरू हुई हैं. अब तक तो वही बिना किसी दलीय और संवैधानिक उत्तरदायित्व के कहीं भी कुछ भी बोलकर निकल जाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं चल सकता. उनके ऊपर देश की विभिन्न अदालतों में गलत बयानी, मान हानि, आदि से संबंधित अनेक मुकदमे लंबित हैं. एक मुकदमे में उनको दो साल की सजा भी हो चुकी है जिसमें उनकी संसद सदस्यता भी रद्द हो गई थी. भ्रष्टाचार के एक मामले में वह जमानत पर हैं. यदि संविधान की प्रति लहराने वाला भी लोकतंत्र के प्रति गंभीर नहीं होगा तो तो इस देश का क्या होगा.

2014 में जनता द्वारा नकार दिए जाने के बाद भी कांग्रेस को उम्मीद थी कि अस्थिरता और गठबंधन की राजनीति के इस दौर में वह भाजपा पर सांप्रदायिक और हिंदूवादी होने का ठप्पा लगा कर अलग थलग कर देगी और पुनः आसानी से सत्ता प्राप्त कर लेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. 2019 में फिर एक बार मोदी सरकार बन गई, जिससे 10 साल तक सत्ता से दूरी की असहनीय पीड़ा से व्याकुल कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव में सत्ता हथियाने के लिए नए नए हथकंडे इस्तेमाल किये. राहुल गाँधी के विदेशी दौरों में भी सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म के अपमान करने का अनेक उदाहरण है. इस्लामिक-वामपंथ गठजोड़ के प्रभाव वाले संगठनों ने उनकी सभाएं प्रयोजित की गयी और भारत विरोधी झूठे विमर्श गढे गए. लोकसभा चुनाव के दौरान भी संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने का झूठा विमर्श बनाया गया, जिसे भारत विरोधी विदेशी शक्तियों के सहयोग से प्रचारित-प्रसारित किया गया. जाति जनगणना करवाने और संपन्न लोगों का धन गरीबों में बांटने का विमर्श चलाकर हिन्दुओं को बांटने का प्रयास किया गया. पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक एकता का अभिनव प्रयोग किया गया, जो वास्तव में पीएफआई का गज़वा ए हिंद के माध्यम से भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का अजेंडा है.

सभी देशवासियों को विशेषतया हिंदुओं को देश विरोधी और झूठ के इन कारोबारियों से सावधान रहने की ही नहीं, उन्हें मुंहतोड़ जबाब देने की आवश्यकता है. हिंदुओं को आपसी एकता बनाकर और अपने इतिहास से सीख लेकर धर्म और संस्कृति बचाने के हर संभव प्रयास करने चाहिए ताकि इतिहास दोहराया न जा सके क्योंकि दिन प्रति दिन खतरा बढ़ता जा रहा है.

~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें