रविवार, 14 जुलाई 2024

पीडीए ही ..पीएफआई का एजेंडा है

 



कुछ राजनैतिक दलों के चुनाव जीतने का और पीएफआई के भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का एजेंडा एक क्यों है ? उप्र बना पीएफआई की प्रयोगशाला ….. पीडीए ही ..पीएफआई का एजेंडा है .


केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बन चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल का स्वरूप काफी कुछ पहले जैसा ही है क्योंकि प्रमुख मंत्रालय पुराने मंत्रियों के पास ही हैं जिससे सरकारी नीतियों की निरंतरता बने रहने का राष्ट्रीय विश्वास बना रह सकेगा. इसके पहले कांग्रेस द्वारा भ्रम फैलाने की कोशिश की गई कि चुनाव का जनादेश मोदी के विरुद्ध है, इसलिए उन्हें सरकार बनाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है और बैशाखियों पर टिकी मोदी सरकार पर तेलुगूदेशम और जेडीयू द्वारा लोकसभा अध्यक्ष के साथ साथ प्रमुख मंत्रालय दिए जाने का दबाव है. इसलिए अंतर्विरोधों से घिरी यह सरकार जल्द ही गिर जाएगी. मंत्रालयों को लेकर सरकार के दो बड़े सहयोगी दलों तेलुगु देशम और जनता दल यूनाइटेड के साथ किसी भी तरह का गतिरोध देखने को नहीं मिला. लोकसभा अध्यक्ष पद पर ओम बिड़ला के पुन: चुने जाने के बाद कांग्रेस के दुष्प्रचार का भी अंत हो गया.

अठारहवीं लोकसभा में शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेसी और इंडी गठबंधन के सदस्य हाथ में संविधान की प्रति लहराते हुए पहुंचे लेकिन जब लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने के तुरंत बाद ओम बिड़ला ने श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा 1975 में आपातकाल लगाने और पूरे विपक्ष सहित हजारों निरपराध और निर्दोष देश वासियों को जेल में डालने, प्रेस तथा न्यायपालिका को बंधक बनाने के लिए आपातकाल को देश के लोकतंत्र में काला अध्याय बताया, पूरा माहौल बदल गया. एक निंदा प्रस्ताव पारित किया गया और आपातकाल के दौरान मारे गए लोगों के प्रति 2 मिनट का मौन भी रखा गया. इससे बात बात में संविधान की कॉपी लहराने वाले कांग्रेसियों की स्थिति बहुत असहज हो गई और वे शोर मचाते हुए सदन से बाहर चले गए लेकिन कांग्रेस के वर्तमान सहयोगी दल सदन में बने रहें, जिनके नेता भी आपातकाल के दौरान जेल गए थे और यातनाओं का शिकार हुए थे. आपातकाल की इस 50वीं सालगिरह के अवसर पर भाजपा ने देशभर में विरोध प्रदर्शन कर लोगों को आपात काल की याद दिलाई. राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने भी अपने अभिभाषण में आपातकाल पर कड़ा प्रहार करते हुए इंदिरा गाँधी की तत्कालीन सरकार को कटघरे में खड़ा किया.

इस बार लोकसभा चुनाव का परिणाम कुछ ऐसा है कि भाजपा जीतकर भी खुश नहीं हैं और कांग्रेस हार कर भी बहुत खुश है. कांग्रेस की खुशी का कारण है उसके लोकसभा सांसदों की संख्या 2019 में 52 से बढ़कर 2024 में 99 हो जाना और राहुल गाँधी का रायबरेली और वायनाड दोनों जगह से विजयी हो जाना है. कांग्रेस के सांसदों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है इसलिए उसे लगता है कि जनता ने कांग्रेस को सरकार बनाने का जनादेश दिया है. ऐसा सोचने के पीछे कारण है कि कांग्रेस गठबंधन की संख्या 234 है यदि कांग्रेस के 38 सांसद और चुने गए होते या 38 दलों का समर्थन मिल जाता तो वह सरकार बना सकती थी. अतीत में ऐसा हुआ भी है, जब 2004 में कांग्रेस के 145 सांसद चुने गए थे और भारतीय जनता पार्टी के 138 लेकिन कांग्रेस सरकार बनाने में सफल रही थी. यद्यपि पिछले 45 वर्षों में कांग्रेस केवल दो बार अपने दम पर बहुमत पा सकी है. पहली बार 1980 में घटक दलों के आपसी टकराव के कारण जनता सरकार के पतन के बाद इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में और दूसरी बार 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सहानुभूति बटोरने के उद्देश्य से समय पूर्व चुनाव करवाने के कारण. भ्रष्टाचार और कांग्रेस का चोली दामन का साथ होने के कारण 1989 में राजीव गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस 197 पर सिमट गई और उसके बाद तो बहुमत पाने के लिए जैसे कांग्रेस की भाग्य रेखा ही मिट गई. 1991 में राजीव गाँधी की हत्या की सहानुभूति के बाद भी कांग्रेस 232 सीटें ही जीत सकी. 1996 में 140, 1998 में 141, 1999 में 114, 2004 में 145, 2009 में 206, 2014 में 44 और 2019 में 52 के बाद 2024 में कांग्रेस 99 सीटों का आंकड़ा छू सकी है. यद्यपि पिछले 15 सालों से कांग्रेस 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी है, लेकिन 99 सीट पर पहुँच जाने हैं को कांग्रेस राहुल की बहुत बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर राहुल को कांग्रेस और विपक्ष का सर्वमान्य नेता स्थापित करना चाहती है. इसलिए कृत्रिम रूप से खुशनुमा माहौल बनाया गया है ताकि पार्टी में बिखराव और नेताओं का पलायन रोका जा सके और सहयोगी दलों को भी रखा जा सके.

मोदी सरकार का वर्तमान स्वरूप भले ही पहले जैसा हो लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अपने दम पर बहुमत न पाने वाली भाजपा को नीतिगत निर्णयों में पहली जैसी शक्ति ओर स्वतंत्रता नहीं होगी. उसे हर महत्वपूर्ण मामले में सहयोगियों को विश्वास में लेना होगा. जातिगत जनगणना और मुस्लिम आरक्षण पर सहयोगी दलों के साथ मतभेद स्पष्ट है, किंतु समान नागरिक संहिता, जनसंख्या कानून, वक्फ बोर्ड, पूजा स्थल कानून आदि पर सहयोगियों को साथ ले पाना मुश्किल ही नहीं असंभव लगता है. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और हरियाणा में अपेक्षित सफलता न मिलने की कसक भाजपा को लंबे समय तक टीसती रहेगी. यदि शीघ्र ही असफलता के कारणों की पहचान और उनका निराकरण नहीं किया गया तो महाराष्ट्र, हरियाणा, बिहार और झारखण्ड के आगामी विधानसभा चुनावों में भी लोकसभा चुनाव की प्रतिछाया दिखाई पड़ सकती है जिससे भाजपा को दीर्घकालिक नुकसान की संभावना बनी रहेंगी.

उत्तर प्रदेश का मामला सभी राज्यों से सर्वथा अलग है जहाँ भाजपा को सबसे अधिक नुकसान हुआ है. योगी आदित्यनाथ की हिंदूवादी और कट्टर राष्ट्रवादी छवि, बेहतर कानून व्यवस्था, काशी तथा अयोध्या के विकास और 500 वर्षों के संघर्ष के बाद राम मंदिर निर्माण के बावजूद भाजपा का दयनीय प्रदर्शन क्यों रहां, इस पर ईमानदारी और गंभीरता से चिंतन की आवश्यकता है. यद्यपि भाजपा प्रत्येक संसदीय क्षेत्र की समीक्षा कर रही है लेकिन स्थानीय नेताओं द्वारा लीपापोती के जो प्रयास हो रहे हैं, उससे असली कारण पता चल सकेंगे, इसकी संभावना बहुत कम है. यह सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की दुर्दशा के लिए स्थानीय नेताओं की भूमिका, कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता, संघ की उदासीनता और प्रतिबद्ध समर्थकों की नाराज़गी जिम्मेदार है. भाजपा नेतृत्व द्वारा मुस्लिमों विशेषतय: पसमांदा मुस्लिमों को रिझाने के लिए किए गए अनेक प्रयास और तदनुसार उन पर बढ़ता वोट-विश्वास का भ्रम भी भाजपा के निराशाजनक प्रदर्शन का एक बहुत बड़ा कारण है, क्योंकि इससे अंधभक्त कहे जाने वाले भाजपा के प्रतिबद्ध समर्थक नाराज हो गए. चुनाव परिणामों के विश्लेषण से भाजपा का यह भ्रम जितनी जल्दी दूर हो जाए, अच्छा है.

उत्तर प्रदेश, जहाँ कभी भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग की बदौलत उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की थी, आज हिंदू एकता तोड़ने, जातीय विषमता बढ़ाने और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने का प्रयोगशाला बन गया है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय संगठनों की सक्रियता और आर्थिक सहायता का बहुत बड़ा योगदान है. इसलिए प्रदेश के राजनीतिक वातावरण की सघन छानबीन और सूक्ष्म विश्लेषण की भी अत्यंत आवश्यकता है. प्रदेश में पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (केवल मुस्लिम पढ़े) एकता, का पहला परीक्षण बेहद सफल रहा है. इसे मात्र चुनाव जीतने का प्रयोग समझना भारी भूल होगी. वास्तव में उत्तर प्रदेश और बिहार में लंबे समय से इस पर काम किया जा रहा है, जिसकी पुष्टि पीएफआई के ठिकानों पर छापेमारी के दौरान बरामद किए गए दस्तावेज़ों से होती है. कई राजनैतिक दल मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए कुख्यात हैं, किंतु उनका उद्देश्य किसी भी तरह सत्ता प्राप्त करना रहा है लेकिन अब यह बहुउद्देशीय परियोजना बन गया है, जिसका लाभ राजनीतिक दलों के अतरिक्त राष्ट्रान्त्रण में लगे देश विरोधी, कट्टरपंथी सांप्रदायिक शक्तिओं को भी होगा क्योंकि इससे उनका अंतिम उद्देश्य पूरा हो सकेगा.

यह आवश्यक है कि भाजपा को केवल चुनाव जीतने के लिए नहीं बल्कि देश का वर्तमान धर्मनिरपेक्ष स्वरूप बनाए रखने और देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिये हिंदू समाज की एकता तोड़ने के बृहद षड्यंत्र को सख्ती से कुचलना चाहिए. इसके लिए सभी राष्ट्रवादी शक्तिओं का सहयोग भी अत्यंत आवश्यक है.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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