शुक्रवार, 15 मार्च 2024

आखिर आ ही गया सीएए

 


आखिर आ ही गया सीएए

दिसंबर 2019 में पास किए गये संशोधित नागरिकता कानून की अधिसूचना के बाद 11 मार्च 2024 से यह कानून प्रभावी हो गया है. 4 साल तक ठंडे बस्ते में डालने के बाद भाजपा सरकार ने हिम्मत दिखाई और लोकसभा चुनाव के ठीक पहले यह कानून लागू कर दिया. 2019 में जब संसद में इस विधेयक को पास किया गया तो काफ़ी हो हल्ला हुआ था और शाहीन बाग में तो एक साल से भी अधिक लंबा आंदोलन चलाया गया. लगभग सभी विपक्षी दलों ने इस कानून का विरोध किया. वैसे तो इसमें विरोध करने जैसा  कुछ भी नहीं है लेकिन अगर विरोध का केंद्र बिंदु मुसलमान हों तो मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले सभी राजनीतिक दल इसका विरोध करेंगे ही. आज पूरे विश्व को यह मालूम है कि भारत के राजनीतिक दल वोटो के लालच में मुस्लिम तुष्टिकरण करते हैं और राष्ट्रीय हितों की किसी भी हद तक अनदेखी कर सकते हैं. उनकी सभी नाजायज मांगों को पूरा करने के कारण बहुसंख्यक हिंदू न केवल अपने ही देश में दूसरे दर्जे के नागरिक बन गए हैं बल्कि  तिल तिल कर भारत इस्लामिक राष्ट्र होने की ओर बढ़ रहा है. सत्ता के स्वार्थ में कोई राजनैतिक दल स्वयं इस्लामिक राष्ट्र बनाने में शामिल हो जाय तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

इस बार भी अधिसूचना जारी होने के बाद इसका विरोध शुरू हो गया. मुस्लिम संगठनों को तो करना ही था लेकिन चुनावी वैतरणी पार करने के उद्देश्य से सभी राजनेताओं ने इसका विरोध किया. तुष्टिकरण में सबसे आगे रहने की होड़ में ममता बनर्जीं ने अपनी जान देकर भी सीएए लागू न करने की बात कही. यह छिपी बात नहीं है कि पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के बहुत बड़ी संख्या है, जो तृणमूल कांग्रेस के वोट बैंक है. विभिन्न एजेंसियों की रिपोर्ट बताती है कि राज्य में संगठित गिरोह योजनाबद्ध तरीके से उनके लिए आधार कार्ड राशन कार्ड और वोटर आइडी कार्ड का इंतजाम करते हैं और विभिन्न जगहों पर बसाते हैं. उन्हें सरकारी सुविधाओं का फायदा दिया जाता है. आवश्यकता पड़ने पर इनका प्राइवेट आर्मी की तरह इस्तेमाल  किया जाता है. हाल के कुछ वर्षों में पश्चिम बंगाल में चुनाव के समय होने वाली हिंसा में इन अवैध घुसपैठियों का इस्तेमाल के प्रमाण हैं. इसलिए ये ममता बनर्जीं की बहुत बड़ी राजनैतिक पूंजी है.

तुष्टीकरण के इस खेल में अरविंद केजरीवाल कहाँ पीछे रहने वाले थे तो उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के गैर मुस्लिमों को नागरिकता देकर अपना वोट बैंक बनाना चाहती है. इन देशों से आने वाले गैर मुस्लिम भारत की कानून और व्यवस्था के लिए बहुत बड़ी समस्या बन जाएंगे जो लूटपाट हत्या और बलात्कार जैसे अपराध करेंगे. देश के युवाओं के रोजगार खा जाएंगे और महंगाई बढ़ाने का काम करेंगे. दिल्ली के बारे में सामान्य जानकारी रखने वाले लोगों को मालूम होगा कि केजरीवाल ने किस तरह से दिल्ली में अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए बेहतरीन इंतजाम किए हैं और अपना वोट बैंक बनाया है. पिछली बार सीएए के विरोध में शाहीन बाग में हुए धरना प्रदर्शन के बाद हुए सांप्रदायिक दंगे की रिपोर्ट से पता चला कि दंगों में इन अवैध घुसपैठियों का जमकर इस्तेमाल किया गया था.

तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने कहा कि वह राज्य में सीएए लागू नहीं करेंगे यद्यपि इसे रोकना राज्य सरकार के हाथ में नहीं है क्योंकि यह केंद्रीय कानून है और इसे केंद्रीय अधिकारी ही लागू करेंगे. केरल सरकार ने एक कदम और आगे जाकर सीएए के विरोध में विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर दिया और  सर्वोच्च न्यायालय में इस पर रोक लगाने के लिए याचिका दायर की है. सर्वोच्च न्यायालय याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार भी हो गया है. कांग्रेस भी सीएए लागू करने के खिलाफ़ है और उसका मानना है कि यह असंवैधानिक है क्योंकि यह धर्म के आधार पर नागरिको में भेद करता है. कांग्रेस नेता शशि थरूर ने घोषणा कर दी है कि यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो वह इस कानून को खत्म कर देंगे. उत्तर प्रदेश में  समाजवादी पार्टी, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल भी इसके स्वाभाविक विरोधी हैं. असदुद्दीन ओवैसी जिन्ना की भूमिका में हैं, इसलिए कोई भी राष्ट्रीय मुद्दा हो और वह हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिकता न देखें, हो नहीं सकता. वे सीएए के साथ एनपीआर और एनआरसी को भी जोड़ कर मुसलमानों को भड़काने का काम कर रहे हैं. सभी विपक्षी दलों ने उनका काम आसान कर दिया है.

 अंतर्राष्ट्रीय इस्लामिक वामपंथ गठबंधन के संगठन पूरी मुस्तैदी के साथ भारत की  सीएए का विरोध कर रहे हैं, इस कार्य में  भारत विरोधी अंतर्राष्ट्रीय मीडिया भी उनका साथ दे रही है. बीबीसी, वॉशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स, सीएनएन, अल जज़ीरा आदि भ्रम फैलाने का कार्य कर रहे हैं. भारतीय राजनीतिक दलों के विरोध को देखते हुए अमेरिकी विदेश विभाग ने भी कहा कि वह चिंतित है और इस पर नजर रखे हुए हैं. और तो और सरकारी संरक्षण में हिंदुओं का धार्मिक उत्पीड़न करने वाले घोर सांप्रदायिक और भारत विरोधी इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान ने भी भारत के इस कानून को भेद-भावपूर्ण  बताते हुए कहा कि यह भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का प्रयास है. भारत विरोध के लिए कुख्यात एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि नागरिकता का यह कानून भारतीय संविधान और अंतरराष्ट्रीय मानको के विपरीत है. 

विरोध करने वालों का तर्क है कि इस कानून में मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया इसलिए यह असंवैधानिक है क्योंकि संविधान (अनुच्छेद 14) भारतीय नागरिको के साथ भेदभाव करने के विरुद्ध है. ये विद्वान भूल जाते हैं कि यह कानून भारतीय नागरिको के लिए नहीं, विदेशी नागरिको यानी पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश के नागरिकों के लिए है, जो धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हैं. ये तीनों ही देश मुस्लिम राष्ट्र है तो वहाँ पर मुस्लिमों का धार्मिक उत्पीड़न कैसे हो सकता है और अगर हो रहा है तो संघर्ष करे. एक और तर्क है कि भारत सेक्युलर सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक रिपब्लिक है तो धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में यह भेदभाव क्यों. “सेक्युलर सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक रिपब्लिक” शब्द मूल संविधान का हिस्सा नहीं है। इसे 1975 में इंदिरा गाँधी ने मुस्लिम नेताओं के दबाव में किया था, जो भारत की बहुसंख्यक जनता के साथ धोखाधड़ी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा सहित किसी भी राजनैतिक दल ने इसका विरोध नहीं किया। अगर धर्मनिरपेक्षता की इतनी चिंता है तो पूजा स्थल 1991 कानून, वक्फ बोर्ड कानून, अल्पसंख्यक आयोग, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  क्यों हैं. अल्पसंख्यकों को धार्मिक शिक्षा देने का अधिकार लेकिन हिन्दुओं को नहीं, हिन्दुओं के मंदिरों पर सरकारी कब्जा, किन्तु अल्पसंख्यक संस्थान स्वतन्त्र. भारत में अगर अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव होता तो आजादी के समय मुसलमानों की 3.5 करोड़ जनसंख्या आज 25 करोड़ से अधिक कैसे हो जाती. 

भ्रम फैलाने की इस प्रक्रिया में लोग यह भूल जा रहे हैं कि वर्तमान संशोधित नागरिकता कानून इन तीन पड़ोसी देशों के गैर मुस्लिमों के लिए विशेष कानून है जबकि नागरिकता प्रदान करने की सामान्य प्रक्रिया अभी भी है जिसके अंतर्गत पूरे विश्व के किसी भी देश के नागरिक को नागरिकता का आवेदन करने का अधिकार है और उसके आधार पर ही पाकिस्तान सहित अन्य देशों के मुसलमानों को भी नागरिकता प्रदान की गई है।

2019 में जब संशोधित नागरिकता कानून पास हुआ था उस समय इसके विरोध में बहुत बड़ा आंदोलन खड़ा करने का षड्यंत्र रचा गया था आंदोलन के स्वरूप को देखकर ऐसा लगता था कि यह आंदोलन केवल  भारतीय मुसलमानों द्वारा चलाया जा रहा है लेकिन इसे सभी विपक्षी  दलों का समर्थन प्राप्त था और  भारत विरोधी शक्तियां, जिनमे इस्लामिक वामपंथ गठजोड़ से सम्बद्ध सभी संगठन शामिल हैं, ने पूरे आंदोलन का वित्तपोषण किया था. यह छिपी बात नहीं है कि भारत के ज्यादातर मुस्लिम संगठनों और उनके अंतरराष्ट्रीय प्रायोजकों का उद्देश्य भारत को दारुल इस्लाम यानी इस्लामिक राष्ट्र बनाना है. इस कानून का विरोध करने वालों अधिकांश मुसलमानों और मुस्लिम संगठनों का संबंध गज़वा ए हिंद से है. ये सभी इस कानून में मुसलमानों को भी शामिल करवाकर अवैध मुस्लिम घुसपैठियों को भारत का नागरिक बनाकर भारत का जनसंख्या परिवर्तन करना चाहते हैं. कोई भी राजनैतिक दल इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं है कि अगर इस कानून में मुसलमानों को भी शामिल कर लिया जाये तो भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनने में ज़रा भी देर नहीं लगेंगी.

 1971 में बांग्लादेश बनने के समय लगभग 5 करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थी भारत में आ गए थे. भारत की सेनाओं ने अपनी जान पर खेलकर बांग्लादेश का निर्माण करवाया था. यह सही है कि युद्ध में पाकिस्तान बुरी तरह से पराजित हुआ था और उसके नब्बे हजार  सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. भारत इन सैनिकों का इस्तेमाल पाक अधिकृत कश्मीर प्राप्त करने के लिए कर सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यह मान लेना उचित नहीं होगा कि इंदिरा गाँधी को इतनी समझ नहीं थी. इंदिरा गाँधी ने आम चुनाव में भारतीय जीत को जमकर भुनाया और अपने घोषणा पत्र में यह भी कहा कि वह शरणार्थियों की की सम्मानजनक वापसी होगी किन्तु कोई बांग्लादेशी शरणार्थी वापस गया, इसका कोई प्रमाणिक दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं है. इस बात की संभावना भी नहीं लगती कि कोई बांग्लादेशी घुसपैठिया या शरणार्थी भारत आकर अपने आप बांग्लादेश वापस चला जाएगा. इस प्रश्न का आज भी कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है कि बांग्लादेश युद्ध से भारत को क्या हासिल हुआ. दो जगहों पर स्थित बंटा हुआ पाकिस्तान, भारत के लिए ज्यादा अच्छा था या पाकिस्तान और बांग्लादेश के रूप में दो स्वतंत्र इस्लामिक राष्ट्र भारत के लिए अच्छे हैं.

बांग्लादेश बनने के बाद भारत में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों की बाढ़ आ गई, जो आज भी अनवरत जारी है. बेरोजगारी महंगाई पर छाती पीटने वाले राजनैतिक दल इस बात का कोई जवाब नहीं देते कि इन घुसपैठियों ने भारत महंगाई और बेरोजगारी में कितना बड़ा योगदान किया है.  कुछ समय पहले म्यांमार से भागे रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी के रूप मेंबांग्लादेश पहुंचे जिनके नाम पर बांग्लादेश ने अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से जमकर वित्तीय सहायता और प्रशंसा प्राप्त की. लेकिन सारे के सारे रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेशी घुसपैठियों की तरह भारत आ गए. हाल के दिनों में बांग्लादेश सीमा पार कर भारत आए बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की संख्या लगभग 5 करोड़ है. अगर 1971 के बांग्लादेश युद्ध के बाद आए घुसपैठियों की पूरी संख्या देखी जाए तो यह लगभग 10 करोड़  के आसपास  है. कई देशों की कुल जनसंख्या भी इतनी नहीं है जितनी संख्या मुस्लिम घुसपैठियों की भारत में है, लेकिन विरोध हो रहा है नए कानून से  कुछ सौ या कुछ लाख गैर मुस्लिम शरणार्थियों का. आज कोई भी स्थान ऐसा नहीं है जहाँ पर बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिये न हो. पश्चिम बंगाल से केरल तक, तमिलनाडु से लेकर जम्मू तक और उत्तराखंड की सुदूर दुर्गम स्थानों पर भी इन घुसपैठियों की पैठ हो चुकी है. गंभीरता का अंदाजा आप केवल इस बात से लगा सकते हैं कि रेलवे ट्रैक के किनारे झुग्गी झोपड़ी लगाकर रहने वाले इन अवैध घुसपैठियों की इतनी बड़ी संख्या है कि आधे घंटे के अंदर देश का पूरा रेलवे नेटवर्क ठप कर सकते हैं. संशोधित नागरिकता के कानून से भारत में रह रहे मुसलमान किसी भी तरीके से प्रभावित नहीं है। उनका विरोध केवल शक्ति प्रदर्शन करके तुष्टिकरण में लगे राजनीतिक दलों को उनकी औकात बताना हैं. गज़वा ए हिंद की योजना में कोई विघ्न बाधा न पहुंचे, इसका प्रयास भी लगता है।

ये सही है कि मोदी सरकार ने इस कानून की अधिसूचना जारी करने में आवश्यकता से अधिक विलंब किया। हो सकता है उनका इरादा इसे हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में डालने का रहा और लोकसभा चुनाव में राजनैतिक लाभ लेने के उद्देश्य से लागू किया गया हो। जो भी हो देर आए दुरुस्त आए। सभी राष्ट्रवादियों को इसका स्वागत करना चाहिए। अगर राष्ट्रहित में कोई काम राजनैतिक लाभ के लिए भी किया जा रहा है तो उन्हें राजनैतिक लाभ देने में कोई हर्ज नहीं है। ये भी सही है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में मुस्लिम समुदाय को रिझाने के लिए लगातार प्रयास करते रहे हैं और इस कार्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी उनका साथ देता रहा है। हकीकत यह है कि भाजपा और आरएसएस कुछ भी कर ले मुस्लिम समुदाय ना तो भाजपा को पसंद करता था, ना ही पसंद करता है और ना करेगा। इसलिए भाजपा का  चुनावी लाभ के लिए तुष्टीकरण या संतृप्तिकरण करना बेकार है। बिना हिंदुओं समर्थन के भाजपा की सरकार बनना संभव नहीं है, इस बात को भाजपा और आरएसएस जितनी जल्दी समझ जाएं, उनके हित में है   और राष्ट्र के हित में भी.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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