मदरसों का मकड़जाल
कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अभियान चला कर यह पता लगाने की कोशिश की थी कि कितने मदरसे अवैध रूप से संचालित किए जा रहे हैं. मुस्लिम संगठनों और नेताओं के हो हल्ला के बीच प्रारंभिक परिणाम चौंकाने वाले थे. कुख्यात मदनी परिवार की छत्रछाया में चलने वाला देवबंद का मदरसा भी अवैध है और उतना ही कुख्यात और भारत विरोधी है जितना की मदनी परिवार. मज़े की बात यह है कि यह अवैध मदरसा इस्लामिक शिक्षा से संबंधित बड़ी बड़ी डिग्रियां देता है और ऐसे विषयों पर भी शोध करवाता है जो कि सभ्य समाज और मानवता विरोधी हैं. इस मदरसे के पाठ्यक्रम में भारत विरोधी और गज़वा ए हिंद की प्रेरणा स्रोत सामिग्री की भरमार है. जिस पर प्रख्यात विद्वान और केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने एक प्रेस वार्ता में विस्तृत चर्चा की थी. ये कोई छिपी बात नहीं है कि देवबंद के इस मदरसे से तालिबान और आईएसआईएस जैसे आतंकवादी संगठन भी खासे प्रभावित हैं और प्रशंसक भी है. कश्मीर में दशकों तक चलती रही आतंकी गतिविधियों का प्रेरणा स्रोत भी देवबंद का यह मदरसा रहा है. यह अवैध मदरसा और देश विरोधी मदरसा स्वयं देश भर में सैकड़ों मदरसे संचालित करता है. प्रायः यहाँ पर पुलिस और विभिन्न खुफिया एजेंसियों के छापे पड़ते रहते हैं, और आतंकवादी बरामद किए जाते हैं. हैरानी की बात है कि इतना सब होने के बाद भी आज तक किसी भी सरकार ने इस मदरसे के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की और वह भी जब मदनी चाचा और भतीजे सनातन धर्म के विरोध में बयान देते रहते हैं.
पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने तीन सदस्यों वाली एक विशेष जांच दल गठित किया था जिसका उद्देश्य अवैध मदरसों और उन्हें वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने वाले व्यक्तियों और संगठनों की पहचान करना था. इस जांच दल ने कुछ दिन पहले सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. जिसके अनुसार प्रदेश में लगभग 13,000 अवैध मदरसे हैं जिनमे 8448 मदरसे ऐसे हैं जिनके वित्तीय स्रोत संदिग्ध हैं और गतिविधियाँ भी. इसलिए इन्हें तत्काल बंद करने की संस्तुति की गई है. बड़ी संख्या में ऐसे मदरसे नेपाल से सटी सीमा के 15 से 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. इनमें सबसे अधिक मदरसे महाराजगंज, श्रावस्ती, सिद्धार्थ नगर, बहराइच आदि में स्थित है. सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि कई ऐसी जगह भी मदरसे, मस्जिदे और दरगाहें बनाई गई है जहाँ पर मुस्लिमों की संख्या नगण्य है. नेपाल सीमा पर तैनात सशस्त्र सीमा बल इस संबंध में सरकार को समय समय पर पहले ही आगाह करता रहा है. यह स्वाभाविक है कि इन्हें पाकिस्तान सहित भारत विरोधी देशों और संगठनों ने भारत में गज़वा ए हिंद की योजना के अंतर्गत आतंकवादी गतिविधियाँ करने तथा गृह युद्ध जैसे हालत उत्पन्न करने के नेटवर्क के रूप में विकसित किया हो. सभी मदरसों ने विशेष जांच दल को बताया की मदरसों का संचालन जकात से किया जाता है लेकिन इस संबंध में वे कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सके.
उत्तर प्रदेश में इस समय लगभग 25,000 मदरसे हैं, जिनमें लगभग 13,000 अवैध हैं. यक्ष प्रश्न है कि अवैध क्यों है? सामान्य समझ की बात यह है कि मोटे तौर पर ऐसे सभी संस्थान जो गैरकानूनी कार्यों और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलग्न हो, अवैध हैं. मदरसों के मामले में सिर्फ उन मदरसों को अवैध माना जाता है जिन्होंने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद में पंजीकरण नहीं कराया हो और उन्हें मान्यता न मिली हो. अधिकांश अवैध मदरसे वर्ष 2000 के बाद खोले गए हैं और इनके खुलने के साथ ही कई गोरखधंधे शुरू हो गए. वैसे तो मदरसों की शिक्षा और गतिविधियों को लेकर हमेशा से गंभीर शिकायतें सामने आती रही हैं, लेकिन तुष्टिकरण आधारित राजनीतिक दल हमेशा यह तर्क देते रहे हैं कि मदरसों में आवांछित गतिविधियों का कारण समुचित वित्तीय साधन और छात्रों के लिए समुचित साधन उपलब्ध न होना है.
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 2004 में मदरसा शिक्षा परिषद का गठन किया था ताकि मान्यता प्राप्त और पंजीकृत करके मदरसों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जा सके तथा मदरसा शिक्षकों को राज्य के अन्य शिक्षकों की तरह वेतन और भत्ते उपलब्ध कराए जा सके. इसके साथ साथ छात्रों को छात्रवृत्तियां भी उपलब्ध कराई जा सके. लेकिन मदरसा शिक्षा परिषद के गठन के बाद भी मूल समस्या है ज्यों की त्यों रही क्योंकि ना तो मदरसों के पाठ्यक्रम में कोई बदलाव हो पाया और असामाजिक और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर अंकुश लग पाया. कुल मिलाकर मदरसा शिक्षा परिषद बनने का परिणाम यह हुआ कि माध्यमिक शिक्षा परिषद के समानांतर एक संगठन खड़ा हो गया और सरकारी खर्चे पर इस्लामिक प्रचार और कट्टरता बढाने की योजना बिना रोक टोक के चल निकली .
वर्ष 2022 में जब मदरसों की पड़ताल की जा रही तब यह सामने आया कि देवबंद मदरसा भी पंजीकृत नहीं है तो मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष इफ्तखार अहमद जावेद ने देवबंद मदरसे की जमकर तारीफ की थी और उसकी तुलना सूर्य से की थी. विशेष जांच दल की रिपोर्ट और संदिग्ध मदरसों पर लगाम कसने की सिफारिश पर उन्होंने सरकार को पत्र लिख कर इन अवैध मदरसों को मान्यता देने की मांग करते हुए कहा कि इन मदरसों में ज्यादातर पसमांदा मुसलमानों के बच्चे पढ़ते हैं, और चूँकि मोदी सरकार पसमांदा मुसलमानों के लिए इतना कुछ कर रही है, तो योगी जी को इन मदरसों को तत्काल मान्यता देकर वैध कर देना चाहिए. उन्होंने कहा कि पिछले आठ वर्षों से यानी योगी सरकार आने के बाद से मान्यता देने का कार्य बंद हो गया है. इफ्तखार अहमद जावेद भाजपा के सदस्य हैं और मदरसा परिषद में जितने भी सदस्य हैं सबकी राजनीतिक पृष्ठभूमि है जिससे यह समझना मुश्किल नहीं है की उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षा परिषद की क्या भूमिका है.
हाल ही में देवबंद मदरसे द्वारा दिया गया एक फतवा सुर्खियों में आया था जिसमें गज़वा-ए-हिंद को धार्मिक कृत्य बताकर हर मुसलमान को इसे पूरा करने का कर्तव्य बताया था. अभी तक हम सभी भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की साजिशों के बारे में सुनते जरूर थे लेकिन भारत का कोई भी मुस्लिम संगठन खुलकर इसकी हिमायत करने की हिम्मत नहीं जुटा सका था, यद्यपि इसमें कोई शक नहीं है कि सभी मुस्लिम संगठन इसके लिए कार्य कर रहे हैं और ज्यादातर भारतीय मुसलमान भी खुलकर न सही, इसका समर्थन अवश्य करते है. इस पर जब अरशद मदनी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि गज़वा ए हिंद हदीस का हिस्सा है, जिसे मानना और पूरा करना हमारा मजहबी दायित्व है. जब गज़वा ए हिंद हमारे मजहब का हिस्सा है और संविधान के अनुसार हमें अपने मजहब का पालन करने की आजादी है, तो फिर इस पर फतवा जारी करने से हमें कोई कैसे रोक सकता है. यानी अब देवबंद दारुल उलूम से गज़वा ए हिंद की आधिकारिक घोषणा हो गई है.
पाकिस्तान के मुल्ला मौलवी और अंतर्राष्ट्रीय इस्लामिक संगठन लगातार गज़वा ए हिंद पूरा करने के लिए कसम खाते हैं बल्कि इसके लिए मदरसों, मस्ज़िदों और जिहादी संगठनों को वित्तीय संसाधन भी उपलब्ध कराते हैं. पीएफआई और उसके अनुषांगिक संगठन सहित भारत के सभी कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन, इस्लामिक आतंकवादी संगठन और सभी अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक संगठन संगठित रूप से गज़वा ए हिंद के अभियान पर कार्य कर रहे हैं. भारत में जिहादी गतिविधियों के लिए मस्ज़िदों का दुरुपयोग कोई नई बात नहीं है. मदरसा कट्टरपंथी और जिहादी मानसिकता तैयार करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. भारत में हर मस्जिद कम से कम एक मदरसा आवश्यक चलाती है और बड़ी मस्जिदें तो कई मदरसे संचालित करती हैं. इसके अलावा कई मुस्लिम संगठन केवल अधिक से अधिक मदरसे और मस्जिदे बनाने में जुटे हैं.
सऊदी अरब तथा कई मुस्लिम देशों में मस्ज़िदों को नमाज़ के समय ही खोला जाता है और उसके बाद बंद कर दिया जाता है. शुक्रवार को तकरीर करने की इजाजत नहीं है लेकिन भारत में हर मस्जिद में न केवल अनेक शक्तिशाली लाउडस्पीकर लगाकर साम्प्रदायिकता को हवा दी जाती है बल्कि शुक्रवार को कई कई घंटे की तकरीरें होती है. तकरीर करने वाले मौलवियों को बाहर से आमंत्रित किया जाता है. जहरीले और भड़काऊ भाषण देने वाले मौलवियों की खासी मांग रहती है. तब्लीगी जमात और दूसरी मुस्लिम संस्थाएँ जलसे आयोजित करती है जिनमें भारत विरोधी भाषण होते हैं. यह सब कुछ गज़वा ए हिंद की परियोजना का हिस्सा है. दुर्भाग्य से कोई भी राजनैतिक दल गज़वा ए हिंद के बारे में बात करना और सुनना पसंद नहीं करता. इसलिए उनके हौसले बुलंद हैं.
आज जरूरत इस बात की है कि सभी मदरसों को या तो प्रतिबंधित किया जाए या उनका सरकारीकरण करके समान शिक्षा व्यवस्था लागू की जाए. मस्ज़िदों को उसी तरह नियंत्रित किया जाए जैसे ये सऊदी अरब ने की जा रही है. जिहादी और कट्टर पंथी तत्वों के विरुद्ध अभियान चलाकर सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए अन्यथा भारत को इस्लामिक राष्ट्र होने से कोई नहीं बचा सकता. भाजपा और मोदी जी से ये जरूर पूंछने की आवश्यकता है कि भारत विकसित राष्ट्र पहले बनेगा या इस्लामिक राष्ट्र. यदि भारत विकाश के साये इस्लामिक राष्ट्र का आकार ले रहा है तो ऐसे विकाश का कोइ मतलब नहीं. राष्ट्र का मजबूत होना सनातन संस्कृति का आधार कितना मजबूत है इस पर निर्भर करता है. इसलिए विकाश से ज्यादा जरूरी हैं सनातन संस्कृति का मजबूत होना जो अब मोदी जो को याद भी है, पता नहीं.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें