राजनीति का भ्रष्टाचार
आखिरकार दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद
केजरीवाल गिरफ्तार हो ही गए. ये गिरफ्तारी ईडी द्वारा 9 सम्मन देने के बाद भी कैजरीवाल
के उपस्थित न होने के कारण उनके निवास पर छापेमारी की गयी. पूंछ तांछ में प्रश्नों का जबाब न देने
और जांच में सहयोग न करने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया. न्यायालय ने केजरीवाल को 6
दिन की रिमांड पर प्रवर्तन निदेशालय को सौंप दिया है. इसके पहले केजरीवाल ने ईडी
के सभी सम्मनों को यह कहकर खारिज कर दिया था कि ये गैर कानूनी है. गिरफ्तारी से
बचने के लिए वह निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक गुहार लगा चूके हैं
लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली. उनकी यह गिरफ्तारी शराब घोटाले के अंतर्गत की
गयी है. दिल्ली जल बोर्ड में वित्तीय अनियमितताओं के लिए भी उन्हें सम्मन जारी किया
गया है. नैतिकता, सुचिता, ईमानदारी और देश के लिए समर्पित राजनीति करने के नाम पर
सत्ता में आई आम आदमी पार्टी के कई बड़े नेता मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन संजय
सिंह आदि अभी भी जेल में हैं और उन्हें सर्वोच्च न्यायालय तक से जमानत नहीं मिल
पाई है.
इसके पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भ्रष्टाचार के मामले
में जेल जाना पड़ा. पश्चिम बंगाल में भ्रष्टाचार के अनगिनत मामले सामने आए जिसमे कई
मंत्री और विधायक जेल की हवा खा रहे हैं. तमिलनाडु में सरकार के मंत्री सेंथिल
बालाजी जेल में हैं, और कई जेल जाने की राह पर है. कई राज्यों के मुख्यमंत्री और
मंत्री जांच एजेंसियों के राडार पर हैं और उनमें से भी कई शीघ्र ही जेल जा सकते
हैं. कांग्रेस की अगुवाई वाली एंडी एलायंस के घटक दल केंद्र सरकार पर जांच
एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रहे हैं लेकिन अभी तक जो नेता एजेंसी द्वारा
जेल भेजे गए उनकी जमानत किसी भी अदालत से नहीं हो पाई है जो यह रेखांकित करता है
कि उनके विरुद्ध कितने मजबूत और पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध है. इसके विपरीत कोई भी
विपक्षी दल मोदी सरकार के पिछले 10 साल के कार्यकाल से संबंधित भ्रष्टाचार का कोई
भी मुद्दा सामने नहीं ला सकी है. भारत के वर्तमान परिवेश में ये मोदी सरकार की
सबसे बड़ी उपलब्धि कही जायेगी. भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करना और सही
दिशा देना भी छोटा कार्य नहीं है और इसके साथ ही देश की बड़ी जनसंख्या के लिए मुफ्त
राशन, पक्के मकान, शौचालय, नल का जल, मुफ्त गैस सिलिंडर और किसान सम्मान निधि देना
बेहद उल्लेखनीय कार्य है. इतने बड़े लाभार्थी वर्ग, विकासोन्मुख योजनाओं, आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद पर प्रभावी कार्रवाई के
कारण मोदी सरकार के विरुद्ध सत्ता विरोधी कोई लहर नहीं है. वैश्विक परिवेश में
भारत का मान सम्मान बढ़ा है और मोदी की छवि बेहद सफल और लोकप्रिय वैश्विक राजनेता के
रूप में जानी जाती है. ऐसे में तीसरी बार भाजपा सरकार बनने में विपक्ष सहित किसी
को कोई संदेह नहीं है लेकिन आरोप और प्रत्यारोप मजबूरी की औपचारिकता है.
भ्रष्टाचार भारत की बहुत बड़ी बीमारी है, और तमाम प्रयासों के बाद भी इस
पर रोक लगना तो दूर, कम होने की भी कोई सूरत नजर नहीं आ रही. इसका सबसे बड़ा कारण
है राजनीतिक भ्रष्टाचार, जो देश को आजादी मिलने के पहले ही शुरू हो गया था. आजादी
के बाद तो राजनीतिक दलों ने सत्ता हासिल करने के लिए वित्तीय ही नहीं, हर तरह के
भ्रष्टाचार किये और आज राष्ट्र के समक्ष जो गम्भीर चुनौतियां हैं, उनका सबसे बड़ा
कारण भ्रष्टाचार ही है. भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए सभी सरकारों और राजनीतिक
दलों ने समय समय पर बड़े बड़े वायदे किए, लेकिन धरातल पर विशेष कुछ नहीं हुआ. यदि मोदी
सरकार के पिछले 10 वर्ष के कार्यकाल को छोड़ दें जिसमें सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई
भी गंभीर आरोप नहीं है, स्वतंत्रता के बाद केंद्र में कोई भी ऐसी सरकार नहीं रहीं
जिसपर भ्रष्टाचार के आरोप न लगे हो.
कांग्रेस की कोई भी सरकार इससे अछूती नहीं रही. देश के प्रथम आम चुनाव
से पहले ही 1951 में जवाहर लाल नेहरू की पहली सरकार के दौरान ही मूंदड़ा स्कैंडल
सामने आया था, उनके दामाद फिरोज खान गाँधी ने उजागर किया था लेकिन अपने वित्तमंत्री
टीटी कृष्णामचारी की बलि देकर नेहरू ने इसे निपटा दिया. सरकारी उपक्रम बनाने में
भी चुनावी फंड जुटाने को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. इंदिरा गाँधी के
कार्यकाल में रक्षा सौदों में दलाली के गंभीर आरोप लगे थे. उनके समय हुआ कुख्यात नागरवाला
कांड आज भी इतिहास के चर्चित घोटालों में गिना जाता है. 1973 में मारुति घोटाला
सुर्खियों में आया था, जिसमें सोनिया गाँधी को बिना किसी तकनीकी योग्यता के कंपनी
का प्रबंध निदेशक नियुक्त कर दिया गया था. मिस्टर क्लीन के नाम से विख्यात राजीव
गाँधी पर बोफोर्स घोटाले में सोनिया गाँधी के रिश्तेदार क्वात्रोची के माध्यम से
रिश्वत लेने का आरोप लगा. एचडीडब्लू पनडुब्बी घोटाले ने उनकी सरकार को बेनकाब कर
दिया था. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही उनकी सरकार वापसी नहीं कर सकी. कांग्रेस की
पीवी नरसिम्हा राव सरकार तो बहुमत जुटाने में “वोट के बदले नोट” में फंसी रही. हर्षद
मेहता कांड भी इसी बीच हुआ. 2004 से 2013 तक कांग्रेस की संप्रग सरकारों के दोनों कार्यकाल
भ्रष्टाचार के पर्याय बन गए थे. टूजी, कोलगेट, सत्यम, हसनअली टैक्स घोटाला, देवास
एंट्रिक्स जैसे अनेकों घोटाले रोज़ रोज सामने आते थे. नेशनल हेराल्ड, वाड्रा डीएलएफ़,
अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर, कॉमनवेल्थ खेल, जैसे घोटाले लोगों की स्मृति में आज
भी ताजा हैं. नेशनल हेराल्ड घोटाले में सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी दोनों ही
जमानत पर हैं. जनता दल की गठबंधन सरकार में सुखराम का टेलीकॉम घोटाला और केतन
पारिख का वित्तीय घोटाला सुर्खियों में रहे. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में ताबूत
घोटाले का आरोप तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिस पर लगा था.
ऐसा नहीं है कि घोटाले केवल केंद्र की सरकारों में ही हुए, राज्य सरकारें
भी पीछे नहीं रहीं. क्षेत्रीय दलों की सरकारे बनने के बाद तो जैसे घोटालों की बाढ़
आ गई. हर क्षेत्रीय दल ने अपना वर्चस्व बढ़ाने, सत्ता बनाए रखने के लिए जमकर
भ्रष्टाचार किया और वोटों के लालच में मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपनाकर न केवल
हिंदू एकता और सनातन धर्म के विरुद्ध काम किया बल्कि कदम कदम पर राष्ट्रीय एकता और
अखंडता के साथ समझौता भी किया, जिसके दुष्परिणाम पूरा देश भुगत रहा है. कांग्रेस
के नेतृत्व वाले इंडीअलायन्स के प्रमुख घटक राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद
यादव को भ्रष्टाचार के कई मामलों में सजा हो चुकी है और कई मुकदमे अभी भी चल रहे
हैं जिनमे नौकरी के बदले जमीन का मामला प्रमुख है और उसमें भी बड़ी सजा की संभावना
है. अब तक पांच मामलों में उन्हें 32.5 वर्ष की सजा हो चुकी है. इस समय वह
चिकित्सा कराने के लिए पैरोल पर जेल के बाहर है. जेल की जितनी सजा उन्हें और काटनी
है शायद वे उनके वर्तमान जीवनकाल में संभव भी ना हो सके लेकिन नैतिकता को ताक पर
रखकर वह पार्टी का चुनाव प्रचार कर रहे हैं, प्रधानमंत्री मोदी को गालियां दे रहे
हैं, गठबंधन की बैठकों में हिस्सा ले रहे
हैं और सार्वजनिक रैलियो में अन्य नेताओं के साथ मंच भी साझा कर रहे हैं. दूसरे
नेताओं की भी इससे कोई आपत्ति नहीं, क्योंकि उनमे से अधिकांश किसी न किसी घपले
घोटाले में फंसा है. एक सजायाफ्ता कैदी को ये सुविधा और उसका दु:साहस कानून का
दुरुपयोग नहीं, कानून की धज्जियां उड़ाना
है. शायद यह कानून की ही कमजोरी है.
भारत की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था ही देश की दुर्दशा का सबसे बड़ा
कारण है और यह व्यवस्था संविधान में बनाई गयी है. ब्रिटेन की चुनावी प्रणाली की
नकल करके बनायी गयी बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था भारत के लिए कदापि उपयुक्त नहीं है.
इस व्यवस्था के कारण ही विभिन्न दलों के बीच अनैतिक प्रतिस्पर्धा होती है. भारत
में राजनीति एक उद्योग बन गया है. क्षेत्रीय दल भी राजनीति के माध्यम से पुराने
समय के राजे रजवाड़े बन गए हैं, जो भारत को
वित्तीय और राजनीतिक रूप से खोखला करता जा रहा है. इन दलों द्वारा मतदाताओं को
लुभाने के लिए धर्म और जाति का जमकर उपयोग किया जाता है, इससे हिन्दु समाज आंतरिक
संरचनात्मक व्यवस्था में पहले से भी अधिक विखंडित हो गया है. सामाजिक समरसता की
दिन प्रतिदिन कमी होती जा रही है. धार्मिक ध्रुवीकरण करने फायदा उठाने के लिए
मुस्लिम तुष्टीकरण की सारी सीमाएं टूट और अब तो हिंदू समाज को तोड़ने की भी सारी
जुगत लगाई जा रही है. अगड़े, पिछड़े, दलित आदिवासी और अल्पसंख्यकों की एकजुटता के
नाम पर सांप्रदायिक विषमता उत्पन्न की जा रही है.
अभी तक क्षेत्रीय दल ही जातिगत भावनाओं को भड़काते थे लेकिन अब
कांग्रेस जैसा राजनीतिक दल जो ठेके पर देश
को आजादी दिलाने का दावा करता है, मुस्लिम हितों की वकालत करता है, भी जातिगत जनगणना की पुरज़ोर वकालत कर रहा है और
इसे हर मर्ज की दवा साबित करने की कोशिश कर रहा है और जातिगत संघर्ष की पृष्ठभूमि
तैयार कर रहा है. यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि सबसे पुरानी पार्टी के नेता राहुल गाँधी ने
अपनी भारत जोड़ा न्याय यात्रा में केवल जातिगत जनगणना पर ही प्रमुखता से बात की और
एक तरह से लोगों को वर्ग संघर्ष के लिए उकसाया. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी,
बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम जैसे दल जातिगत
विभेद उत्पन्न करने के साथ साथ मुस्लिम तुष्टीकरण की भी सारी सीमाएं लांघ चुके हैं,
लेकिन कांग्रेस से इतने गैर जिम्मेदारी के आचरण की अपेक्षा नहीं थी. अब इसके बाद कांग्रेस ने राष्ट्र विरोधी के हर कार्य के साथ
अपने आपको संबद्ध कर लिया हैं और राष्ट्रीय दायित्व का उसका स्तर क्षेत्रीय दलों
से भी नीचे गिर चुका है.
सभी विपक्षी दल जांच एजेंसियों द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध की जा
रही कार्रवाई पर शोर शराबा कर रहे हैं और इसे राजनीति प्रेरित कदम बता रहे हैं. मोदी
सरकार द्वारा बिना किसी विपरीत प्रतिक्रिया के चुपचाप निडरता से काम करते रहना,
उसकी सबसे बड़ी ताकत बन गई है जिससे जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है. विपक्षी दलों
द्वारा की जा रही अनर्गल बयानबाजी से उनकी स्थिति और अधिक कमजोर होती जा रही है. ऐसे
में वे स्वयं नरेंद्र मोदी की तीसरी बार ताजपोशी का रास्ता साफ करते जा रहे हैं. देश
की जनता का ये उत्तरदायित्व है की वही उसी दल का समर्थन करें जो राष्ट्र की गंभीर चुनौतियों
को समझता हो और उनका सफलतापूर्वक सामना करते हुए अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन कर
सकता हो. देश में दो दलीय व्यवस्था की अत्यंत आवश्यकता है, इस पर सरका को गंभीरता
से विचार करना चाहिए.
~~~~~~~शिव
मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~
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