पंचम दुर्गा : श्री स्कंदमाता
सिंहासन गता नित्यम पदमाश्रित कर द्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी ।।
या
देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमो नमः॥
श्री दुर्गा का पंचम रूप
श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें
स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है।
इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती
हैं।
नवरात्रि के
पांचवें दिन का महत्व
नवरात्रि-पूजन के पांचवें
दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है. इस चक्र में अवस्थित मन वाले
साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है. वह विशुद्ध
चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर हो रहा होता है.साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना मां
स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन होता है. इस समय साधक को पूर्ण सावधानी के
साथ उपासना की ओर अग्रसर होना चाहिए. उसे अपनी समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र
रखते हुए साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए.
मां स्कंदमाता की उपासना
से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं. इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति
और सुख का अनुभव होने लगता है. उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है.
स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है. यह
विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है,
अतः साधक को स्कंदमाता की
उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए.
सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री
देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है. एक
अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक् परिव्याप्त रहता है. यह
प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता रहता है. हमें एकाग्रभाव से मन
को पवित्र रखकर माँ की शरण में आने का प्रयत्न करना चाहिए. इस घोर भवसागर के
दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ बनाने का इससे उत्तम उपाय दूसरा नहीं
है
माता स्कंदमाता
के मंत्र
1. या
देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
2. या
देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
3.
महाबले महोत्साहे. महाभय विनाशिनी.
त्राहिमाम
स्कन्दमाते. शत्रुनाम भयवर्धिनि..
4. ओम
देवी स्कन्दमातायै नमः॥सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु
सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
पहाड़ों पर रहकर सांसारिक
जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता। नवरात्रि में पांचवें दिन इस
देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता
है।
स्कंद कुमार कार्तिकेय की
माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान
स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं।
इस देवी की चार भुजाएं
हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली
भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे
वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान
रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।
इनकी उपासना से भक्त की
सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री
देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र
रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने
में कठिनाई नहीं आती है।
उनकी पूजा से मोक्ष का
मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है।
यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य
और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।
“सिंहासनगता
नित्यं पद्याञ्चितकरद्वया।
शुभदास्तु
सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥“
श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय)
की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी
पूजा और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली
सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं।
इनकी आराधनासे मनुष्य
सुख-शांति की प्राप्ति करता है। सिह के आसन पर विराजमान तथा कमल के पुष्प से
सुशोभित दो हाथो वाली यशस्विनी देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी है।
नवरात्री दुर्गा
पूजा पंचमी तिथि – स्कंदमाता की पूजा
भगवान स्कन्द जी बालरूप
में माता की गोद में बैठे होते हैं इस दिन साधक का मन विशुध्द चक्र में अवस्थित
होता है. स्कन्द मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजायें हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कन्द को गोद में पकडे हैं और दाहिनी निचली
भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पकडा हुआ है। माँ का वर्ण पूर्णतः
शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजितरहती हैं। इसी से इन्हें पद्मासना की देवी और
विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भीकहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है|
माँ स्कंदमाता सूर्यमंडल
की अधिष्ठात्री देवी हैं| इनकी उपासना करने से साधक अलौकिक तेज की
प्राप्ति करता है | यह अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम
का निर्वहन करता है| एकाग्रभाव से मन को पवित्र
करके माँ की स्तुति करने
से दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है|
स्कन्दमाता की
पूजा विधि :
कुण्डलिनी जागरण के
उद्देश्य से जो साधक दुर्गा मां की उपासना कर रहे हैं उनके लिए दुर्गा पूजा का यह
दिन विशुद्ध चक्र की साधना का होता है. इस चक्र का भेदन करने के लिए साधक को पहले
मां की विधि सहित पूजा करनी चाहिए. पूजा के लिए कुश अथवा कम्बल के पवित्र आसन पर
बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी प्रकार से शुरू करना चाहिए जैसे आपने अब तक केचार
दिनों में किया है फिर इस मंत्र से देवी की प्रार्थना करनी चाहिए “सिंहासनगता
नित्यं पद्माश्रितकरद्वया. शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी.अब पंचोपचार
विधि से देवी स्कन्दमाता की पूजा कीजिए. नवरात्रे की पंचमी तिथि को कहीं कहीं भक्त
जन उद्यंग ललिता का व्रत
भी रखते हैं. इस व्रत को
फलदायक कहा गया है. जो भक्त देवी स्कन्द
माता की भक्ति-भाव सहित
पूजन करते हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है. देवी की कृपा से भक्त की मुराद
पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि रहती है.
स्कन्दमाता की
मंत्र :
सिंहासना
गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया |
शुभदास्तु
सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||
या
देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
स्कन्दमाता की
ध्यान :
वन्दे
वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा
चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा
विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय
पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर
परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल
वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया
लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥
स्कन्दमाता
की स्तोत्र पाठ :
नमामि
स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार
गहराम्॥
शिवाप्रभा
समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां
जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता
सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता
यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां
विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता
विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार
भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां
त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी
सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां
पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी
शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका
धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द
काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी
प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी
गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति
कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां
नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि
त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥
स्कन्दमाता
की कवच :
ऐं
बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा।
हृदयं
पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री
हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वांग
में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥
वाणंवपणमृते
हुं फ्ट बीज समन्विता।
उत्तरस्या
तथाग्नेव वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणां
भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी।
सर्वदा
पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥
वात, पित्त, कफ जैसी बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को
स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए और माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण
करना चाहिए || नवरात्री में दुर्गा सप्तशती पाठ किया जाता हैं
स्कन्द माता कथा
:
दुर्गा पूजा के पांचवे
दिन देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा होती है. कुमार कार्तिकेय
को ग्रंथों में सनत-कुमार, स्कन्द कुमार के नाम से पुकारा गया है. माता इस
रूप में पूर्णत: ममता लुटाती हुई नज़र आती हैं. माता का पांचवा रूप शुभ्र अर्थात
श्वेत है. जब अत्याचारी दानवों का अत्याचार बढ़ता है तब माता संत जनों की रक्षा के
लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का अंत करती हैं. देवी स्कन्दमाता की चार भुजाएं
हैं, माता अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक
भुजा में भगवान स्कन्द या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिये बैठी
हैं. मां का चौथा हाथ भक्तो को आशीर्वाद देने की मुद्रा मे है. देवी स्कन्द माता
ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं इन्हें ही माहेश्वरी और गौरी के नाम से जाना जाता
है. यह पर्वत राज की पुत्री होने से पार्वती कहलाती हैं, महादेव की वामिनी यानी पत्नी होने से माहेश्वरी कहलाती हैं और अपने गौर वर्ण
के कारण देवी गौरी के नाम से पूजी जाती हैं.
माता को अपने पुत्र से
अधिक प्रेम है अत: मां को अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता
है. जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते है मां उस पर अपने पुत्र के समान
स्नेह लुटाती हैं|
सबसे पहले चौकी (बाजोट)
पर स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से
शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी,
तांबे या मिट्टी के घड़े
में जल भरकर उस पर कलश रखें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें।
इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा स्कंदमाता सहित समस्त
स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें।
इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा,
आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद
वितरण कर पूजन संपन्न करें।
संतान प्राप्ति हेतु जपें स्कन्द माता का मंत्र। जिन व्यक्तियों को संतानाभाव हो, वे माता की पूजन-अर्चन तथा मंत्र जप कर लाभ उठा सकते हैं। मंत्र अत्यंत सरल है -
'ॐ स्कन्दमात्रै नम:।।'
निश्चित लाभ होगा।
कवच
ऐं
बीजालिंकादेवी पदयुग्मधरापरा।
हृदयंपातुसा
देवी कातिकययुताघ्
श्रींहीं
हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा।
सर्वाग
में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदाघ्
वाणवाणामृतेहुं
फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतुघ्
इन्द्राणी
भैरवी चौवासितांगीचसंहारिणी।
सर्वदापातुमां
देवी चान्यान्यासुहि दिक्षवैघ्
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