नव रात्र का प्रथम दिन - प्रथम दुर्गा : श्री शैलपुत्री
श्री दुर्गा का प्रथम रूप
श्री शैलपुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती
हैं। नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है।
विधि :
नवरात्र के पहले दिन
सर्वप्रथम गनेश वंदना के लिए कलश की स्थापना करें फिर एक चौकी पर माता शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर
स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धीकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी
चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका, सप्त घृत मातृका की स्थापना भी करें। इसके
उपरांत व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती
मंत्रों द्वारा मां शैलपुत्री सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें।
इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा और मंत्र
पुष्पांजलि मां शैलपुत्री को अर्पित करें। मां शैलपुत्री की पूजा के समय इन मंत्रों
का जाप करना बहुत फलदायक होता है।
शैलपुत्री का
ध्यान
वन्दे
वांछितलाभाय चन्द्रर्धकृत शेखराम्।
वृशारूढ़ा
शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम्॥
पूणेन्दु
निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
पटाम्बर
परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल
वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां
लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥
मां शैलपुत्री की साधना
के लिए साधक अपने मन को “मूलाधार चक्र” में स्थित करते हैं। इनको साधने से
“मूलाधार चक्र” जागृत होता है और यहीं से योग चक्र आरंभ होता है जिससे अनेक प्रकार
की सिद्धियों कि प्राप्ति होती है।
शैलपुत्री की
स्तोत्र पाठ
प्रथम
दुर्गा त्वंहिभवसागर: तारणीम्।
धन
ऐश्वर्यदायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी
त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य
दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी
त्वंहिमहामोह: विनाशिन।
मुक्तिभुक्ति
दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥
शैलपुत्री की कवच
ओमकार:
मेंशिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार:
पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥
श्रींकारपातुवदने
लावाण्या महेश्वरी ।
हुंकार
पातु हदयं तारिणी शक्ति स्वघृत।
फट्कार
पात सर्वागे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥
‘ऊं’ ऐं ह्रीं
क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊं शैलपुत्री देव्यै नम:’ का नित्य एक माला जाप करने से हर प्रकार की शुभता प्राप्त
होती है। ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से शैलपुत्री की आराधना करने वाले भक्तों
की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
मां शैलपुत्री की
साधना
साधकों को यह जान लेना भी
आवश्यक है कि मां शैलपुत्री कि साधना मनोवांछित लाभ के लिए की जाती है। इनकी साधना
का सबसे उत्तम समय सायं पांच बजे से सात बजे के बीच है। मां शैलपुत्री की पूजा
श्वे़त पुष्पों से करनी चाहिए और इन्हें मावे से बने भोग लगाने चाहिए। श्रृंगार
में मां शैलपुत्री को चंदन अर्पित करना सर्व फलदायक होता है।
पूजा का ज्योतिष
दृष्टिकोण
देवी दुर्गा के प्रथम
स्वरूप मां शैलपुत्री की साधना का संबंध चंद्रमा से है। कालपुरूष सिद्धांत के
अनुसार कुण्डली में चंद्रमा का संबंध चौथे भाव से होता है। अतः मां शैलपुत्री की
साधना का संबंध व्यक्ति के सुख,
सुविधा, माता, निवास स्थान, पैतृक संपत्ति, वाहन सुख, और चल-अचल संपत्ति से भी है। ज्योतिष शास्त्र के जानकारों
के अनुसार जिनकी कुण्डली में चंदमा किसी नीच ग्रह से प्रताड़ित है या चंद्रमा नीच
का है। उन्हें मां शैलपुत्री की साधना सर्वश्रेष्ठ फल देती है। मां शैलपुत्री की
साधना का संबंध व्यक्ति के मन से भी है। इनकी साधनासे साधक की मनोविकृति दूर होती
है।
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