शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

पहलगाम में काफिरों पर कहर | आतंकवाद का धर्म है और धर्म का ही आतंक है

 


पहलगाम में काफिरों पर कहर | आतंकवाद का धर्म है और धर्म का ही आतंक है | आतंवादियों ने न जाति पूँछी और न ये कि पीडीए कौन है

कश्मीर में पहलगाम की खूबसूरत वादियों में छुट्टियां मनाने गए लोगों को इस्लामिक आतंकियों ने बेहद क्रूरता से मौत के घाट उतार दिया. इन मुस्लिम उन्मादी राक्षसों ने सैलानियों से उनका नाम पूछा, धर्म पूछा और हिंदुओं तथा सभी गैरमुस्लिमों को निर्दयता पूर्वक गोलियों से भून दिया. लोगों से कलमा पढ़ने को कहा गया. कपड़े उतरवाकर खतना देखा गया और 28 लोगों को मौके पर ही निर्ममता पूर्वक मार डाला गया. इससे भारत की षड्यंत्रकारी छद्म धर्मनिरपेक्षता ओर मुस्लिम तुष्टीकरण के उस नारे की एक बार पोल खुल गयी कि आतंकवादियों का धर्म नहीं होता. भारत में तो आतंकवाद का धर्म बिल्कुल स्पष्ट है और किसी को भी भ्रम में नहीं रहना चाहिए. जातिगत जनगणना की मांग करने वाले और पीडीए की बदौलत सत्तासीन होने का सपना देखने वाले राजनेताओं की आंखें खुल जानी चाहिए कि मुस्लिम आतंकवादियों ने किसी की जाति नहीं पूछी, नहीं पूछा कि वे पीडीए है. उनके लिए केवल यह जानना जरूरी था कि वे हिंदू हैं और इसी आधार पर सभी को मौत के घाट उतार दिया.

इस घटना से पूरे देश में उबाल है. लोगों में बेहद गुस्सा है आतंकवादियों तथा पाकिस्तान के लिए और थोडा केंद्र सरकार के लिए भी. निश्चित रूप से इस बात की समीक्षा की जानी चाहिए कि इतनी बड़ी घटना की नैतिक जिम्मेदारी किसकी है. राज्य की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार के पास है, जिसमें गृहमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की महत्वपूर्ण भूमिका है. आखिर इतनी बड़ी सुरक्षा चूक कैसे हो गई. जहाँ खुफिया एजेंसियों की विफलता स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है, वहीं राज्य में स्थानीय राजनेताओं के दबाव में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती में की गई कटौती भी एक प्रमुख कारण है. उपराज्यपाल की कार्यप्रणाली राजनैतिक रूप से सही भले ही हो लेकिन जम्मू कश्मीर जैसे आतंकवाद से प्रभावित अति संवेदनशील राज्य के लिए रणनीतिक रूप से बहुत उपयुक्त कभी नहीं रही. केंद्र सरकार जोरशोर से इस बात का प्रचार करती रही कि राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति बिल्कुल सामान्य है, जिसके पीछे भी उपराज्यपाल का सही वस्तुस्थिति से अवगत न कराना प्रमुख कारण हो सकता है.

अधिकांश क्षेत्रों में सफलता अर्जित करने वाले अजित डोभाल भी राज्य की स्थिति से अनभिज्ञ कैसे बने रहे. केंद्र सरकार को राज्य की सुरक्षा स्थिति की सघन समीक्षा करनी चाहिए और बिना किसी राजनीतिक बाजीगरी के सुरक्षा कमजोरियों को तुरंत दूर किया जाना चाहिए. केंद्रीय सुरक्षा बलों को घाटी में तब तक रहना चाहिए जब तक आतंकवाद का पूरी तरह से खात्मा नहीं हो जाता. राज्य के पुलिस और प्रशासनिक कर्मचारी अब केंद्र शासित प्रदेशों के कैडर का हिस्सा है, इसीलिए राज्य के अधिक से अधिक कर्मचारियों को दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों में तत्काल स्थानांतरित करने की आवश्यकता है, जिनके स्थान पर दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों के कर्मचारियों अधिकारियों को लाया जा सकता है. इससे राज्य के कर्मचारियों और पृथकतावादियों के बीच का वर्षों से चला आ रहा तंत्र टूट सकेगा और राज्य का वातावरण बदलने में सहायता मिल सकेगी.

पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद भारत के लिए नया नहीं है. दशकों से हम लोग आतंकवाद के साये में ही रहते आए हैं. हमने वह समय भी देखा है जब रेडियो और टीवी पर लगातार सूचनाएं प्रसारित की जाती है कि किसी भी लावारिस वस्तु को हाथ न लगाएं यह बम हो सकता है. रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर गाड़ियों की सूचनाओं के बीच में यह सूचना लगातार प्रसारित की जाती थी. लोग जब घरों से कार्यालय, व्यवसाय या किसी कार्य से बाहर जाते थे तो उन्हें विश्वास नहीं होता था कि वह वापस आ पाएंगे और घर वाले भी वापस आने तक चिंता में डूबे रहते थे. मोदी सरकार बनने के बाद आतंकवाद पर जबरदस्त अंकुश लगा इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती. धारा 370 हटाना, जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करना बहुत सकारात्मक कदम था. राज्य में कानून व्यवस्था को सामान्य बनाना बहुत बड़ी चुनौती थी जिसमें भी मोदी सरकार को बहुत सफलता मिली. अच्छा होता यदि जम्मू को भी अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाता, तो आतंकवाद के प्रभाव को केवल घाटी तक सीमित किया जा सकता था. जम्मू कश्मीर में बाहरी लोगों द्वारा संपत्ति खरीदने और स्थायी निवासी बनने के मामले में मोदी सरकार कमजोर पड़ गयी. राज्य में लोकसभा और विधानसभा सीटों के परिसीमन के मामले में भी केंद्र सरकार हिचकिचाहट से बाहर नहीं निकल पाई, इस कारण आज भी राज्य में सत्ता की धुरी कश्मीर घाटी है, जो भारत विरोधियों और पृथकतावादियों से बुरी तरह प्रभावित है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ दिन पहले ही फारूक अब्दुल्ला ने मुर्शीदाबाद हिंदू नरसंहार और पलायन पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि यह भारत की मुस्लिमों के प्रति नफरत की राजनीति का परिणाम है. इंजीनियर रशीद का लोकसभा में दिया गया भाषण भी कश्मीर घाटी के माहौल को रेखांकित करता है. एक प्रश्न यह भी है कि राज्य में चुनाव करवाने की इतनी जल्दी क्या थी जबकि इससे सुधरते माहौल का पटरी से उतरने का खतरा था, जो सही साबित हो गया. हो सकता है इसके पीछे सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का दबाव हो जब उन्होंने कहा था कि राज्य को लंबे समय तक लोकतंत्र से बिरत नहीं रखा जा सकता लेकिन देश की एकता और अखंडता की जिम्मेदारी तो केंद्र सरकार की है.

भारत में हर आतंकवादी घटना को पाकिस्तान से जोड़ दिया जाता है, यह भारत के मुस्लिम संगठनों और मुस्लिम तुष्टिकरण का राजनीतिक विमर्श है, जो सरकारों के लिए भी उपयुक्त होता है लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि पाकिस्तान चाहे कितना ही ज़ोर लगा ले बिना स्थानीय समर्थन और सहयोग के भारत में किसी आतंकवादी घटना को अंजाम नहीं दिया जा सकता. भारत की विडंबना है कि हम स्थानीय आतंकवादियों पर कार्रवाई करना तो दूर उनकी तलाश तक नहीं करते और जब कभी स्थानीय रंगे हाथों पकड़े जाते हैं तो विभिन्न राजनैतिक दल उन्हें बचाने का प्रयास करते हैं और सफल भी हो जाते हैं. इस काम में न्यायपालिका का भी भरपूर समर्थन मिलता है उनके लिए रात 12:00 बजे सर्वोच्च न्यायालय खुल जाता है. उन्हें जेल जाने से बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायलय में एक ही दिन में तीन तीन बेंचों का गठन कर जमानत देना सुनिश्चित कर लिया जाता है. कोई देश चाहे कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, जब तक आतंकवाद की स्थानीय इकाइयों को नष्ट नहीं करता, आतंकवाद का सफाया नहीं कर सकता.

भारत विश्व का इकलौता देश है जहाँ, इस्लामिक आक्रान्ताओं और मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा 10 करोड़ हिंदुओं का नरसंहार किया गया. वह देश भी कितना दुर्भाग्यशाली है जो आज तक यह नहीं समझ सका कि आतंकवाद का धर्म होता है. हिंदुओं का नरसंहार करना कुछ लोगों का धार्मिक कृत्य है. इस नासमझी के कारण ही भारत में आतंकवाद के विरुद्ध भारत में कभी कोई गंभीर लड़ाई लड़ी ही नहीं गई. कश्मीर मामले में भी मोदी सरकार का मत था कि घाटी के आतंकवाद पर सांप्रदायिक दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए और इसलिए आतंकवाद से लड़ने के लिए विकास का मॉडल चुना गया. जम्मू कश्मीर को जितनी केंद्रीय सहायता आज तक दी गयी उतनी तो उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े और गरीब राज्यों को भी कभी नहीं दी गई. घाटी को दी गई इस सहायता राशि का बड़ा हिस्सा राजनेताओ ने हड़प लिया, जो अप्रत्यक्ष रूप से अलगाववादियों और आतंकवादियों को भी पहुंचता रहा क्योंकि राज्य में राजनीति और आतंकवाद दोनों एक दूसरे के पूरक हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की अपेक्षा के अनुरूप आतंकवादियों और उनके आकाओं को मिट्टी में मिला देने की चेतावनी देते हुए कहा है कि उन्हें ऐसी सजा मिलेगी जिसकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते. संतोष की बात है कि पूरा विश्व भारत के साथ खड़ा है लेकिन भारत की उस राजनीति का क्या करें, जिसमें समूचा विपक्ष आतंकवादियों और पाकिस्तान के साथ खड़ा है क्योंकि उनकी पूरी राजनीति मुस्लिम तुष्टिकरण पर ही आधारित है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी “सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास” के नारे के साथ भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की धुन में है. उन्हें लगता है कि हिन्दुओं के विरुद्ध नफरत की भावना तथा भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की कामना को विकास के मॉडल से दूर किया जा सकता है, जो पूरी तरह से गलत है. यह वही गलती है जिससे विश्व की कई सभ्यताएं नष्ट हो गई और दुनिया में इस्लामिक राष्ट्रों की संख्या बढ़कर 57 हो गई. इस्लामिक विद्वान कहते हैं कि गज़वा-ए-हिंद धार्मिक कृत्य है, तो फिर इससे कौन इनकार कर सकता है कि भारत निशाने पर हैं.

~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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