मंगलवार, 31 जनवरी 2023

बहुत बड़ा षड्यन्त्र है राम चरित मानस जलाना,

मुझे यह जानकर भी भी आश्चर्य नहीं है कि स्वामी प्रसाद ने जो वक्तव्य दिया, वह अखिलेश यादव की सहमति से नहीं, उनके कहने से दिया है। उत्तर प्रदेश की यह घटना बिहार की पुनरावृत्ति है जहाँ तेजस्वी यादव की सहमति  और उनके कहने से ही चंद्रशेखर यादव ने रामचरित मानस पर बुरा भला कहा था।

बिहार में जातिगत  जनगणना चल रही है, जिसे राज्य सरकार अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर कर रही है और इस इसकी रिपोर्ट के प्रकाशन पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाए जाने की संभावना है। बिहार में तो इस लिए भूमिका बनाई जा रही थी।

उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव भी लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य हिंदू समाज में जातिगत विभाजन को और अधिक उभारना तथा अगड़े पिछड़ों की राजनीति करके दलित और पिछड़ों को गोलबंद करना है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद समाज में जातिगत विभाजन की रेखा कमजोर पड़ी है और कम से कम मतदान करने के मामले में जाति पांति बहुत अधिक महत्त्व नहीं रहा है। इसलिए मंडल की राजनीति करने वाले लालू और मुलायम का एमवाई  समीकरण (मुस्लिम यादव गठजोड़) चुनाव जीतने में कारगर नहीं रहा।

इसलिए किसी भी कीमत पर चुनाव जीतने के लिए ये इन दोनों पार्टियों की रणनीति है की हिंदू समाज में जितना संभव हो जातिगत वैमनस्यता फैलाई जाए। अखिलेश यादव तो पिछले चुनाव में जिन्ना, को सरदार बल्लभ भाई पटेल के बराबर खड़ा कर दिया था। उस समय लक्ष्य केवल मुसलमान वोट थे।  अबकी बार पिछड़े और दलितों को एक साथ लक्ष्य बनाया गया है।

स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान के बाद जब अखिलेश यादव से उनकी प्रतिक्रिया पूछी गई तो उन्होंने मौर्य का न केवल समर्थन किया बल्कि यह भी कहा कि वह स्वामी प्रसाद मौर्य से कहेंगे कि वह जातिगत जनगणना के मामले में आगे बढ़ें. इसके बाद जब अखिलेश यादव लखनऊ में आयोजित माँ पीतांबरा 108 महायज्ञ मैं आहूति देने पहुंचे तो कुछ लोगों ने उन्हें काले झंडे दिखाए, उनकी पार्टी द्वारा प्रयोजित भी हो सकते हैं। अखिलेश ने जैसे पहले से तैयार किए गए बयान के आधार पर तुरंत कहा की भाजपा हमें मंदिर जाने से भी रोकती है, वह नहीं चाहते कि मैं धर्म यज्ञ में शामिल होऊँ  क्योंकि भाजपा हमें शूद्र  समझती  हैं।  

एक  दिन बाद उन्होंने न केवल स्वामी प्रसाद मौर्या को राष्ट्रीय महासचिव बना दिया बल्कि बिना किसी के पूछे ही एक बयान दिया कि वह शूद्र  हैं और उन्हें रामचरित मानस के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है। उनके इस बयान के बाद ही एक स्वयंभू संस्था प्रकट हो गयी है जिसने अपने आप को ओबीसी महासभा बताया और स्वामी प्रसाद मौर्या और अखिलेश यादव की जिंदाबाद के नारे लगाए और रामचरित मानस के पन्ने जला दिए।

इसलिए 2024 के लोकसभा चुनाव तक तुलसीदास, रामचरितमानस और अन्य हिंदू धर्म ग्रंथ निशाने पर रहेंगे। इनके विरोध करने और इन्हें जलाने के लिए, पिछड़े और दलितों के नाम से बनाई गई है फर्जी संस्थाएँ और संगठन जगह जगह आयोजन करेंगे ताकि पुलिस और प्रदर्शनकारियों में संघर्ष हो और समाजवादी पार्टी अपनी राजनीति आगे बढ़ा सकें।

अखिलेश यादव को शायद  यह बात नहीं मालूम कि अगर वह ऐसा करते हैं तो यह उत्तर प्रदेश में पहली बार नहीं होगा।  इससे पहले  राम स्वरूप वर्मा के नेतृत्व में अर्जक संघ नामक संस्था कार्य करती थी जिसने इस तरह के  बहुत कार्य किये थे, लेकिन वह अपने बलबूते कभी विधायक भी नहीं बन पाए. एक और उदाहरण है, मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी विधायक रामपाल सिंह यादव का, जिन्होंने इन्हीं चौपाइयों के आधार पर विधानसभा के अंदर रामचरित मानस के पन्ने फाड़े थे। वह उत्तर प्रदेश में काफी कुख्यात हुए और उनका नाम रामपाल सिंह यादव की जगह मानस फाड़ यादव पड़ गया। इसके बाद वे गुमनामी में खो गए और मर गए ।

इसलिए अखिलेश यादव की यह नीति एक समुदाय विशेष को तो पसंद आएगी, लेकिन पिछड़े और दलित वर्ग से कोई बड़ा समर्थन मिलेंगे इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती और फिर अखिलेश यादव सत्ता के लिए यूं ही दशकों तक सर छटपटाते  रहेंगे।

 


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