बुधवार, 15 सितंबर 2021

गाय, सनातन संस्कृति और न्यायिक दृष्टिकोण

 


 


अभी हाल ही में प्रयागराज उच्च न्यायालय ने वैदिक, पौराणिक, सांस्कृतिक महत्व व सामाजिक उपयोगिता को देखते हुए गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का सुझाव दिया है जो बहुत ही स्वागत योग्य है। हिंदुस्तान के वर्तमान हालात को देखते हुए किसी न्यायाधीश द्वारा इस तरह का निर्णय और सुझाव निश्चित रूप से साहसिक है, वरना आज  कुछ  न्यायाधीश प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष दिखाई देने के चक्कर में संवैधानिक बाध्यता ओं का हवाला देते हुए अजीबोगरीब फैसले दे  देते हैं, या फिर फैसले देने से बचते रहते हैं.

 

न्यायाधीश महोदय का बहुत-बहुत साधुवाद  खास तौर से इस बात के लिए कि उन्होंने  पौराणिक, धार्मिक और आर्थिक महत्व को रेखांकित  करते हुए कहा कि भारत में गाय को माता माना जाता है और यह हिंदुओं की आस्था का विषय है और आस्था पर चोट  करने से देश कमजोर होता है। उच्च न्यायालय ने कहा कि  गौमांस खाना किसी का मौलिक अधिकार नहीं है। जीभ के स्वाद के लिए जीवन का अधिकार नहीं छीना जा सकता। बूढ़ी बीमार गाय भी कृषि के लिए उपयोगी होती है इसलिए  इसकी हत्या की अनुमति देना ठीक नहीं। यह भारतीय कृषि की रीढ़ है।

 

न्यायाधीश ने गौ माता को राष्ट्रीय पशु का दर्जा देने की बात इसलिए की क्योंकि ऐसा करने से गाय संरक्षित पशु की श्रेणी में आ जाएगी और फिर गोवध पर लोगों को सख्त सजा का प्रावधान हो जाएगा. हाल के वर्षों में किसी भी उच्च न्यायालय द्वारा केंद्र सरकार को दी गई यह बेहद अच्छी सलाह  है, लेकिन केंद्र सरकार इस पर अमल करेगी इसकी संभावना बिल्कुल भी दिखाई पड़ती है क्योंकि ऐसा करने से राजनीतिक वातावरण बहुत गर्म हो जाएगा और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों की जमात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार में लग जाएगी. इसके पहले भी विभिन्न उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय भी केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए सिफारिश कर चुके हैं  लेकिन केंद्र कि किसी भी सरकार ने राजनीतिक कारणवश उस पर  विचार तक नहीं किया.

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बहुत उम्मीदें हैं लेकिन अब तो वह भी अपने लोकप्रिय  नारे “सबका साथ, सबका विकास” में “सबका विश्वास” भी  जोड़ चुके हैं, और ऐसा लगता है कि इस समय वह छद्म  धर्मनिरपेक्षता वादियों के दबाव में हैं, इसलिए बहुत कम उम्मीद है कि वह भी इस दिशा में जल्द ही कोई कदम उठाएंगे.

गाय इतनी महत्वपूर्ण  क्यों ?

सनातन ​ग्रंथों के अनुसार गाय सृष्टि मातृका कही जाती है। गाय के रूप में पृथ्वी की करुण पुकार और विष्णु से अवतार के लिए निवेदन के प्रसंग पुराणों में बहुत मिलते  हैं। इसलिए  गाय सहज रूप से भारतीय जनमानस में रची-बसी है। गौ सेवा को एक सनातन  कर्तव्य के रूप में माना जाता  है। वैदिक ग्रंथों के अनुसार गाय के सन्दर्भ में निम्न बिंदु बहुत महत्वपूर्ण हैं  -

  • ·       ऋग्वेद में गाय को अघन्या कहा गया है। यजुर्वेद के अनुसार गौ अनुपमेय है। अथर्ववेद में गाय को संपतियों का घर कहा गया है ।
  • ·       पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गौएँ  साक्षात विष्णु रूप होती है, गौयें  सर्व वेदमयी और वेद गौमय है.
  • ·       भगवान शिव के प्रिय पत्र ‘बिल्वपत्र’ की उत्पत्ति गाय के गोबर में से ही हुई थी।
  • ·       गरुड़ पुराण में  वैतरणी पार करने के लिए गौ दान का महत्व बताया गया है।
  • ·       सप्त ऋषियों ने कामधेनु नामक गाय को देवताओं को प्रदान किया था . कामधेनु के बारे में कहा जाता है कि वह जहां भी होती थीं, वहां किसी भी चीज की कमी नहीं होती थी और संपन्नता, समृद्धि और शक्ति का अनुपम समन्वय होता था.
  • ·       गाय में 33 कोटि देवी-देवता निवास करते हैं। ( कोटि का अर्थ करोड़ नहीं होता बल्कि प्रकार होता है ) ये देवता हैं- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्‍विन कुमार। ये मिलकर कुल 33 होते हैं।
  • ·       गुरु वशिष्ठ ने गाय के कुल का विस्तार किया और उन्होंने गाय के नए परिवार और प्रकार बनाए थे उनके नाम उस समय  कामधेनु, कपिला, देवनी, नंदनी, भौमा आदि था।
  • ·       भगवान श्रीकृष्ण  तो गाय के महत्व को रेखांकित करने के लिए स्वयं गोपालक (ग्वाला ) बने और गाय पूजा शुरू की. गौशालाओं के निर्माण शुरुआत उन्होंने ही की थी. उन्हें सार ज्ञानकोष गोचरण से ही प्राप्त हुआ था।
  • ·       भगवान राम के पूर्वज महाराजा दिलीप नन्दिनी गाय की पूजा करते थे।

 


सनातन धर्म की बहुत बड़ी विशेषता है कि इसमें किसी नियम को किसी पर  जबरदस्ती नहीं थोपा जाता  है. वेद पुराण भी केवल  मार्गदर्शन का काम करते हैं  और उनमें गाय का इतना महिमामंडन  यह संकेत करता है कि अगर संसार को बचाना है तो गाय को बचाना ही होगा. कम से कम भारत के संदर्भ में तो हमें कह सकते हैं कि गाय को बचा कर ही हम इस देश को बचा सकते है|

 

ऐसा भी  नहीं है कि केवल सनातन धर्म या हिंदू समाज ही गाय के बारे में ऐसी पवित्र सोच रखता है,  बल्कि दूसरे धर्म के संस्थापको, प्रवर्तकों और अन्य महापुरुषों ने भी गाय को अत्यंत पूजनीय और महत्वपूर्ण बताया है.

  • ·       ईसा मसीह ने कहा था  कि एक गाय या बैल को मारना एक मनुष्य को मारने के समान है।
  • ·       गुरु गोविंदसिंहजी ने कहा, ‘यही देहु आज्ञा तुरुक को खापाऊं, गौ माता का दुःख सदा मैं मिटाऊं।'
  • ·       जैन आगमों में कामधेनु को स्वर्ग की गाय कहा गया है और प्राणिमात्र को अवध्या माना है। भगवान महावीर के अनुसार गौ रक्षा बिना मानव रक्षा संभव नहीं।
  • ·       पं. मदनमोहन मालवीय की अंतिम इच्छा थी कि भारतीय संविधान में सबसे पहली धारा सम्पूर्ण गौवंश हत्या निषेध की बने। पंडित मदनमोहन मालवीय का कथन था कि यदि हम गायों की रक्षा करेंगे तो गाएं हमारी रक्षा करेंगी।
  • ·       महर्षि अरविंद ने कहा था कि गौ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की धात्री होने के कारण कामधेनु है। इसका अनिष्ट चिंतन ही पराभव का कारण है।
  • ·       मुस्लिम कवि रसखान ने कहा- 'जो पशु हों तो कहा बसु मेरो, चरों नित नंद की धेनु मंझारन।'
  • ·       स्वामी दयानन्द सरस्वती ने  गाय के लिए आर्थिक व्याख्या करते हुए कहा कि एक गाय अपने जीवनकाल में 4,10,440 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है जबकि उसके मांस से 80 मांसाहारी लोग अपना पेट भर सकते हैं।


क्या कहते हैं प्राचीन ग्रंथ और वैज्ञानिक शोध

    सनातन परम्परा में माना जाता है कि गाय का दूध अमृत और दूध के सभी पदार्थ अमृत तुल्य  होते हैं.  संभवत गाय संसार में एकमात्र प्राणी है जिसके मल मूत्र में भी अनेक औषधीय गुण हैं. आयुर्वेदिक पद्धति में गाय के  मूत्र और गोबर से अनेक जटिल और असाध्य बीमारियों का  सफलतापूर्वक उपचार किया जाता है.

    गाय सकारात्मक ऊर्जा का सृजन करती है और यह दुर्लभ गुण गाय  के अलावा किसी अन्य प्राणी में नहीं देखा गया है.

    गाय की पीठ पर रीढ़ की हड्डी में स्थित सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकिरण को रोक कर वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं। यह पर्यावरण के लिए लाभदायक है।

    गाय की रीढ़ में स्थित सूर्यकेतु नाड़ी सर्वरोगनाशक, सर्वविषनाशक होती है जो सूर्य के संपर्क में आने पर स्वर्ण  उत्पादन करती है जो गाय के सभी उत्पादों में विद्यमान होता है.

    पृथ्वी पर सामान्यतया सभी जीव ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड गैस छोड़ते हैं लेकिन  गाय  एकमात्र ऐसा जीव है जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है.

    गाय के दूध दही घी मूत्र और गोबर द्वारा निर्मित पंचगव्य मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर कई असाध्य रोगों का उपचार करता है ।

    गाय के गोबर में विटामिन B12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो रेडियोधर्मी किरणों को भी सोख  लेने की क्षमता रखता हैइससे से निकला धुंआ  कीटाणु और दुर्गंध नाशक होता है ।

    गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिए लाभदायक हैं जो  सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते। अनुमानत:  एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है।

    गाय का गोबर प्राचीन काल से ही चर्म रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है और यह अत्यंत लाभकारी पाया गया है. गोबर में अनेक जीवाणु होते हैं जो कीटाणु नाशक होते हैं और भूमि को उर्वरा बनाते हैं । गाय के गोबर का प्रयोग घर और मकानों की लिपाई पुताई में काम आता है. मांगलिक कार्यों में गाय के गोबर आंगन की लिपाई की जाती है.

·       गौ उत्पादों पर किये गए वैज्ञानिक शोधों से  अनेक आश्चर्यजनक तथ्य सामने  आये हैं जिन्हें सम्पूर्ण मानवजाति की भलाई के लिए उपयोग किया जा सकता है. 

 

भारत में गौ हत्या का प्रारंभ उस समय से हुआ जब से राक्षसी प्रवृत्ति के पाशविक और  बर्बर  आक्रांताओं ने भारत में प्रवेश किया। हिन्दू लाख समझाते रहे कि गौमाता सारे संसार की जननी के समान है।उसके शरीर के हर अंश में लोक कल्याण छिपा है. इसलिये उसकी हत्या नहीं, उसका पूजन किया जाना चाहिये पर इन राक्षसों पर कोई असर नहीं पड़ा। आज भी मूर्खता और विद्वेष के कारण बहुत से विधर्मी गौहत्या करते हैं और इसलिए यह गौ रक्षकों और गौ भक्षकों  के बीच विवाद का सबसे बड़ा कारण है.

वैसे तो सनातन संस्कृति नष्ट करने के प्रयास लगभग 2000 वर्षों से किए जा रहे हैं लेकिन आज स्वतंत्र भारत में भी सनातन संस्कृति को आघात पहुंचाने और आस्था को ठेस पहुंचा कर हिंदुओं का अपमान करने के उद्देश्य से कई अन्य धर्मावलंबी सार्वजनिक रूप से गोकशी करते हैं और गौ मांस खाने की पार्टियां ( बीफ फेस्टिवल) आयोजित करते हैं और सरकार असहाय साबित होती हैं. अंग्रेजी शासन में हिंदुओं का इसलिए मजाक उड़ाया जाता था कि वह गाय को माता मानते हैं.  वे अपने अल्प ज्ञान के कारण कभी यह नहीं समझ सके कि हिन्दू गौवंश का इतना सम्मान क्यों करते हैं ?

स्वतंत्रता के बाद भी तथाकथित  धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वालों ने भी बहुसंख्यक हिन्दुओं की इस धार्मिक सामाजिक और वैज्ञानिक मान्यता को बेरहमी से नजरअंदाज किया. कांग्रेसी सांसदों द्वारा गौ हत्या निषेध का बिल लाने पर नेहरू ने कहा था कि पूरे देश में गोवध निषेध का कानून लागू करना बेहद बेतुका और पिछड़ेपन का परिचायक होगा. इस बिल के विरोध में उन्होंने अपने सांसदों को धमकी देते हुए कहा था कि  यदि यह बिल पास हो जाता है तो वह अपने पद से त्यागपत्र दे देंगे. कुछ समकालीन लेखकों के अनुसार जवाहरलाल नेहरू स्वयं गौ मांस खाते थे और इसलिए वह गौ हत्या निषेध विधेयक के बिलकुल  खिलाफ थे.  


गाय और भारत की  राजनीति

भारत में राजनीतिक तुष्टिकरण का धंधा बहुत पुराना है किंतु अब यह निम्नता  के उस  स्तर तक पहुँच चुका  है जब कई राजनीतिक दल भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति पर भी सीधा आघात करने से नहीं चूकते. अयोध्या, मथुरा और  काशी के मुद्दे इसी तुष्टीकरण की पराकाष्ठा है तो हिन्दुओं की भीरुता या बर्दास्त करने की असीमित क्षमता. स्वतन्त्र भारत में गौ हत्या की निरंतरता राजनीतिक तुष्टिकरण और  केंद्र सरकार की दीन हीन स्थिति का परिचायक रही है. ऐसा नहीं है कि यह स्थिति आज आ गई है, आजादी के बाद से यही स्थित चली आ रही है .

 

गोकशी  विदेशी आक्रांताओं  ने जो पाशविक  स्वभाव के  बहसी कबीलाई और बर्बर थे, ने शुरू किया था और अंग्रेजों ने इसे चलने दिया और  हिंदुओं के लिए सबसे ज्यादा मर्माहत करने वाली शर्मनाक बात यह  है कि आजादी के बाद भी तत्कालीन सरकार ने इसे चलते रहने दिया. प्रसिद्ध साधू-सन्यासियों, पंडित मदन मोहन मालवीय सहित कई कांग्रेसी नेता चाहते थे कि गौ हत्या के लिए एक राष्ट्रव्यापी कानून बनाया जाए लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेसी नेताओं द्वारा लाए गए बिल का धमकी देकर विरोध किया था कि यदि बिल पास हो गया तो वह इस्तीफा दे देंगे. इसके पीछे का कारण केवल यह नहीं है कि उन पर स्वयं गौ मांस खाने का आरोप लगता था, बल्कि यह विशुद्ध वोटों की तुष्टिकरण नीति थी. दूसरा कारण कांग्रेस सहित सभी दलों के हिंदू नेताओं  और जनता का अत्यंत भीरू और सब कुछ सहन करनेवाला  स्वभाव था जो हजारों साल के गुलामी के कारण  आज भी बरकरार है.

दूसरे धर्मावलंबियों की धमकियों के आगे नतमस्तक होते हुए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए प्रगतिशील फैसले को रद्द करके रूढ़िवादी कानून बना दिया जाते हैं लेकिन हिंदुओं के इस देश में हिंदुओं की सुनने वाला शायद कोई नहीं है. 1966 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने साधू-सन्यासियों को वचन दिया था कि यदि उनकी  सरकार बनी  तो वह गौ हत्या बंद  करने के लिए कानून बनाएंगी किंतु बाद में वह वामपंथ इस्लामिक गठजोड़ के आगे झुक गई और अपने वायदे से मुकर गई. विरोध स्वरूप साधु सन्यासियों ने संसद के सामने विशाल प्रदर्शन किया जिसकी अगुवाई स्वामी करपात्री जी महाराज कर रहे थे. इंदिरा गांधी  ने निहत्थे साधू सन्यासियों पर गोली चलवा दी, जिससे सैकड़ों साधु मारे गए. बाद में कई साधुओं ने दिल्ली में गौ हत्या कानून बनाने के लिए आमरण अनशन करते हुए अपने प्राण त्याग दिए. 7 नवम्बर 1966 को  घटी इस घटना के बाद स्थिति जस की तस है अंतर केवल यह आया है कि कुछ राज्य सरकारों ने अपने-अपने राज्यों में गौ हत्या कानून बनाये हैं लेकिन ये  कानून भी प्रभावी नहीं है और ज्यादातर क़त्लखानों में आज भी गौ हत्या की जा रही हैं.


आश्चर्यजनक बात यह भी है कि ऐसे राज्यों जहां गौ हत्या पर प्रतिबंध है, से गोवंश की तस्करी दूसरे राज्यों में की जाती है जहां इन पर प्रतिबंध नहीं है और वहां इनका कत्ल कर दिया जाता है.  यही नहीं उत्तर भारत के कई राज्यों से गोवंश  तस्करी करके नेपाल और बांग्लादेश ले जाये  जाते हैं, और सुरक्षा एजेंसियां कुछ नहीं करती जिसका मुख्य कारण सीमा पर  भ्रष्टाचार है.  सिस्टम इतना लाचार और लचर हो गया है कि वह स्वयं देश के विरुद्ध काम कर रहा है. जब कभी गौ रक्षक ऐसे लोगों को पकड़ते हैं, तो अपना अपराध छिपाने के लिए, धर्म विशेष के लोग राजनीतिक दलों की शरण में हाय तौबा मचा कर मॉब लिंचिंग का हव्वा खड़ा करते हैं और   बहुसंख्यको को डराने का काम करते हैं.

 

गौ हत्या निषेध कानून बनाने के अलावा भी केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें गौ संरक्षण की दिशा में सक्रियता नहीं दिखा रही है और न ही गौ संरक्षण के लिए कोई प्रोत्साहन या प्रयाप्त भरण-पोषण राशि ही दी जाती है. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद यद्यपि गौ हत्या निषेध का कानून बहुत सख्ती से अमल में लाया जा रहा है और अनधिकृत रूप से चल रहे क़त्ल खानों पर लगाम लगाई गई है. इसके बहुत ही सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं और गोवंश की रक्षा की जा रही है लेकिन इसके कारण कई नई समस्याओं का भी उदय हो गया है. पर्याप्त संख्या में गौशाला ना होने के कारण, गोवंश  छुट्टा घूमते  हैं और किसानों की फसल बर्बाद करते हैं. किसान और ग्रामीण इनको वंश को पकड़कर  गौशाला में ले जाते हैं लेकिन संसाधन ना होने के कारण गौशाला संचालक इन्हें पुनः छोड़ देते हैं. ग्रामीण अंचलों में यह स्थिति अत्यंत विकराल हो रही है.


 राज्य सरकार को तुरंत इसमें हस्तक्षेप करके पर्याप्त संख्या में नई गौशालाये खोलना चाहिए और इनमें गोवंश के भरण-पोषण के लिए समुचित संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए. पूरे देश में ज्यादातर गौशालाये गो भक्तों के अंशदान से चल रही हैं लेकिन इनकी बढ़ती संख्या जो हर्ष का विषय होनी चाहिए थी वह लोगों की परेशानियों का कारण बनती जा रही है. जब तक केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारें अधिक से अधिक नई गौशालाएं  नहीं खोलती और इन्हें  आर्थिक रूप से मजबूत  नहीं करती, इस समस्या का स्थाई समाधान नहीं निकल सकता.


समय की मांग है कि सरकारें तुरंत  न केवल गौहत्या निषेध कानून  बनाए बल्कि गौसंरक्षण के लिए अधिकाधिक धन उपलब्ध कराएं अन्यथा इस दिशा में कोई विशेष  प्रगति नहीं हो सकेगी. 

                            - शिव मिश्रा 

-    लेखक भारतीय  स्टेट बैंक के सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक एवं समसामयिक मामलो के लेखक हैं

 

       

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