शुक्रवार, 11 जून 2021

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का आखिर कांग्रेस इतना विरोध क्यों कर रही है? क्या है इसके पीछे का असली एजेंडा? क्या इसमें भी सांप्रदायिकता का खेल है?

 सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का विरोध, असली एजेंडा सांप्रदायिकता का खेल



गांधी परिवार का सत्ता प्रेम जगजाहिर है. सरदार वल्लभ भाई पटेल के पक्ष में बहुमत होने के बाद भी गांधी जी के कारण जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री की कुर्सी मिल गई, इसके बाद नेहरु ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और सत्ता को 7 पीढ़ियों तक बनाए रखने के लिए जो भी हो सकता था वह उन्होंने किया.

जवाहरलाल नेहरू के हिंदू होने पर भी तमाम सवालिया निशान है, जो खोज का विषय हैं लेकिन उन्होंने स्वयं भी कहा था कि- मैं शिक्षा से अंग्रेज, संस्कृति से मुसलमान और संयोगवस हिंदू हूं।

(“I am Englishman by education, Muslim by culture and Hindu merely by accident of birth.”)

संयोग से ही सही एक हिंदू बहुल देश में नेहरू को प्रधानमंत्री बने रहने के लिए हिंदू बने रहना मजबूरी भी थी . एक और छिपी हुई कड़वी सच्चाई यह है कि वह दिल से वामपंथी थे और अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि बनाने के चक्कर में वामपंथी सोवियत रूस के साथ खड़े होकर भी गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अगुआ बनने का नाटक करते रहे.

इस दौरान वह पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक- वामपंथ गठजोड़ की गिरफ्त में आ गए थे . धीरे-धीरे उन्होंने भारत के इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को इस गठजोड़ के हवाले करना शुरू कर दिया और श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद तो इस पर इस्लामी वामपंथ गठजोड़ का पूरी तरह से कब्जा हो गया.

ऐसा नहीं कि है यह सब संयोग से या अनजाने में हो गया था, इसके प्रभाव और परिणामों से नेहरू और श्रीमती गांधी दोनों ही भली भांति परिचित थे लेकिन इस्लामिक वामपंथ गठजोड़ के प्रति स्वाभाविक प्रेम और वोटबैंक की राजनीति ने उन्हें देश के प्रति हो रहे इस भितरघात के प्रति आंखें बंद करने के लिए मजबूर कर दिया.

अगर यह नहीं हुआ होता तो क्या भारत का इतिहास इतना विकृत हुआ होता ? आजादी के 70 साल बाद भी सनातन संस्कृति का स्वरूप इतना बदहाल होता? आक्रांताओं के भयानक जुल्म और ज्यादितियाँ सहकर भी अपनी सनातन पहचान बचाए रखने वाले लोग, अब जान बचाने के लिए अपने ही देश में शरणार्थी बनकर भटक रहे होते ?

तुष्टिकरण और वोट बैंक की इस नीति के कारण न केवल मुगल और अंग्रेजी साम्राज्य में बनी इमारतों को ऐतिहासिक स्मारकों / धरोहरों में बदलने बल्कि हिन्दू धार्मिक स्थलों को तोड़कर बनाए गए गुलामी के प्रतीकों को भी संरक्षित और महिमा मंडित करने का षड्यंत्र रचा गया. तत्कालीन सरकारों ने समय समय पर अनेक कानून बना कर इस षड़यंत्र को सफल बनाने और बहुसंख्यक हिन्दुओं के हाँथ बांधने का पाप भी किया. यही नहीं इन इमारतों को इस्लाम धर्म और मुस्लिम स्वाभिमान से भी जोड़ने का कुत्सित प्रयास किया गया ताकि हिन्दू मुस्लिम विद्वेष के कारण लम्बे समय तक वोटों की फसल काटी जा सके. अंग्रेजों ने भारत में यही किया था और अंग्रेजों से सत्ता संभालने वाले भी काले अंग्रेजों ने भी वही किया .

सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट रोकने में कांग्रेस के अपने स्वार्थ हैं, जिसके लिए तरह तरह के कुतर्क दिए जा रहे हैं और भारत में आजमाए जा चुके सभी पुराने नुस्खे प्रयोग किये जा रहे हैं, इनमें सबसे अचूक है उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका.के माध्यम से सरकार को घेरना, परियोजना में विलम्ब करना और मुफ्त का प्रचार पाना है . उसके अलावा सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में भी जमकर दुष्प्रचार किया जा रहा है.

लेकिन इस सब का एक अत्यंत स्याह पक्ष है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया जा रहा दुष्प्रचार, जिससे देश की छवि को अपूरणीय क्षति पहुंचाई जा रही है. बड़े-बड़े अंतरराष्ट्रीय मीडिया हाउस भी इस अभियान में शामिल हैं, जिनमें झूठी और सनसनीखेज खबरें छापी जा रही है. चूंकि प्रधानमंत्री मोदी हैं, तो आवश्यक रूप से गुजरात दंगों की यादें तो ताजा की ही जाएंगी , हिंदू सांप्रदायिकता, हिंदू उग्रवाद, और हिंदू तालिबान जैसे नए और सनसनीखेज नारे भी गढ़े जाएंगे.

आजकल तो टूलकिट का जमाना आ गया है जिसके हिसाब से नए-नए नैरेटिव बनाए जा रहे हैं. और कुछ लोग अगर यह ठान ले कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि कितनी ही खराब क्यों न हो जाए, मोदी की छवि खराब होनी चाहिए, तो फिर वैसा ही होगा जैसा इस समय हो रहा है.

इन सब कारनामों के पीछे असली एजेंडा है किसी भी तरह भारत की सत्ता पर कब्जा करना, जो राहुल गांधी के अनुसार केवल मोदी की छवि ख़राब करके ही पाई जा सकती है.

इसलिए एक सुनियोजित एजेंडा के अंतर्गत मोटे तौर पर दो मोर्चों पर पर कार्य हो रहा है -

१. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोदी की छवि खराब करना ताकि देश में ही नहीं पूरे विश्व में में भ्रम फैले कि भारत में कुछ भी ठीक नहीं, सब कुछ गलत हो रहा है-

  • चाहे वह कोरोना का प्रबंधन हो,

  • टीकाकरण हो

  • सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट हो,

  • किसान आंदोलन हो,

  • राज्यों के चुनाव हो या या राष्ट्र हित कोई और मुद्दा

२. मुस्लिम समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए कुछ भी करना पड़े, सब किया जाए चाहे तुष्टिकरण की सीमाएं तोड़ने से देश ही क्यों न टूट जाय.

सेंट्रल विस्टा परियोजना से इतनी नफरत क्यों ?

सेंट्रल विस्टा परियोजना इसी बड़े षड्यंत्र का एक छोटा बिंदु मात्र है जिसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जोर शोर से उठाकर भारत को कलंकित करना और मोदी को कट्टर हिन्दू और घनघोर मुस्लिम विरोधी साबित करना है . इन घटनाओं का क्रम देखिये -

  • सेंट्रल विस्टा परियोजना के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने परियोजना को हरी झंडी दिखा दी.

  • इसके बाद भी दिल्ली उच्च न्यायालय में कोरोना महामारी में परियोजना जारी रखने के विरुद्ध जनहित याचिका दायर की गई. उच्च न्यायालय ने परियोजना को रोकने की याचिका को दुर्भावना से प्रेरित बताते हुए इसे खारिज कर दिया और कहा कि सेंट्रल विस्टा एक अहम, आवश्यक राष्ट्रीय परियोजना है. अदालत ने याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.

  • इसके बाद हाई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए पुन: सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की गयी है ।

  • सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया में सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट के विरुद्ध बड़े पैमाने पर प्रायोजित दुष्प्रचार किया जा रहा है, जिसके लिए प्रधानमंत्री मोदी पर व्यक्तिगत हमले भी किए जा रहे हैं.

आप यह जान कर हैरान होंगे कि जहां राष्ट्रीय क्षितिज पर सेंट्रल विस्ता परियोजना का विरोध के लिए कोरोना महामारी और और वित्तीय संसाधनों को महामारी पर खर्च करने को आधार बनाया जा रहा है वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके निर्माण के पीछे हिंदू कट्टरता और इस्लाम के प्रति मोदी की घृणा को रेखांकित और प्रचारित किया जा रहा है. पुरानी संसद को मुस्लिम प्रेरित ऐतिहासिक धरोहर और प्रस्तावित नयी ईमारत को हिन्दू वादी स्मारक प्रचारित किया जा रहा है. जबकि तथ्य है कि पुरानी संसद इमारत को तो स्मारक की तरह ही सहेजे जाने का प्रस्ताव है और तोड़ा नहीं जा रहा है. इस परियोजना की शुरूआत तो स्वयं कांग्रेस सरकार ने की थी जो अन्य महत्वपूर्ण परियोजनाओं की तरह फाइलों में बंद रह गयी

सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट का मामला वाशिंगटन पोस्ट, न्यूयार्क टाइम्स, दि गार्जियन, बीबीसी आदि में प्रमुखता से छाया हुआ है. सभी में सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट के पीछे मोदी की कट्टर हिंदूवादी सोच बताई जा रही है जो भारत से इस्लाम को किसी भी कीमत पर निकाल बाहर करना चाहते हैं और मुगलों से जुड़ी हुई किसी भी चीज को किसी भी कीमत पर ध्वस्त कर देना चाहते हैं..

इनमे प्रकाशित लेखों में पुरानी संसद भवन की इमारत को मुगल शैली से प्रेरित इस्लामिक इमारत बता कर कहा गया है कि इसे मोदी जैसा हिंदू तालिबानी, मुस्लिमों के प्रति अपनी घृणा के कारण ध्वस्त करना चाहता है और एक ऐसी नई इमारत बनाना चाहता है जो हिंदुओं के स्मारक की तरह दिखाई पड़े.

पिछले कुछ समय से द गार्जियन में भारतीय मूल के एक लेखक जो पेशे से मूर्तिकार हैं, और भारत के एक प्रमुख राजनीतिक दल के बेहद करीबी बताए जाते हैं, ऐसे सनसनी खेज लेख छाप रहे हैं. कुछ प्रमुख लेखो के शीर्षक पढ़कर आप हैरान हो जाएंगे -

  • मोदी का संसद पर बुलडोजर चलाना उन्हें एक हिंदू तालिबान के रूप में दर्शाता है, (Modi's bulldozing of parliament shows him as the architect of a Hindu Taliban - The Guardian Jun 2021)

  • कट्टरपंथी मोदी भारत की विरासत को नष्ट करने के लिए कोरोना संकट का उपयोग कर रहे हैं, (Modi the fanatic is using the Coronavirus crisis to destroy India's heritage - The Guardian May 2020)

  • भारत में हिंदू तालिबान का शासन है,( India is ruled by Hindu Taliban- The Guardian)

गार्जियन  के एक लेख Modi’s bulldozing of parliament shows him as the architect of a Hindu Taliban से कुछ अंश जिनसे यह पता चलता है कि भारत के विरुद्ध अन्तराष्ट्रीय स्तर पर षड़यंत्र कितना गहरा है और उससे भी चिंता का विषय है कि इसमें भारत के राजनैतिक दल भी शामिल है.

उद्धरण
" मोदी का संसद पर बुलडोजर चलाना उन्हें एक हिंदू तालिबान के रूप में दर्शाता है. राजसी मुगल-प्रेरित इमारतों को ध्वस्त  करना भारत को इस्लाम से मुक्त करने के लिए घृणित, घमंड से भरे अभियान का नवीनतम चरण है 

भारत की राजधानी नई दिल्ली के केंद्र में, एक मुगल-प्रेरित स्मारक है, जिसमें भारतीय संसद की सीट है। 1911 और 1931 के बीच ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियन द्वारा निर्मित, संसद भवन और उनके भव्य सड़क मार्ग और जल चैनल ईरान के इस्लामी शासकों द्वारा स्थापित और समरकंद के इस्लामी सल्तनत और भारत के मुगल शासकों द्वारा विस्तृत रूप का पालन करते बनायी गयी  हैं। 

लुटियंस ने शायद आधुनिक समय की सबसे महत्वपूर्ण इस्लामी-प्रेरित इमारत को डिजाइन किया था। इमारतें हिंदू मंदिरों और महलों से स्थापत्य प्रतीकों को उद्धृत तो करती हैं, लेकिन भव्य योजना मुगल-इस्लामी परिदृश्य के डिजाइन का अनुसरण करती है, जिसमें रोमन विजयवाद को हल्का संकेत दिया गया है। मेरे विचार से यह दुनिया में कहीं भी सरकारी भवनों का सबसे बड़ा समूह है। 

अप्रत्याशित रूप से, इन इमारतों की इस्लामी उत्पत्ति दिल्ली में वर्तमान शासन को अपमानित करती है। इसलिए तानाशाह मोदी और उसके गुर्गे इसे बर्बाद कर रहे हैं। जैसा कि मैं लिखता हूं, विनाश हो रहा है। यह एक घृणित बात है कि भारत को इस्लाम से मुक्त करने के मोदी के नफरत भरे अभियान को विश्व स्तरीय स्मारक के विनाश के माध्यम से जारी रखने की अनुमति है। हैरानी की बात है कि संयुक्त राष्ट्र विरासत मंच चुप है और विश्व धरोहर निकायों ने अपना मुंह मजबूती से बंद रखा है। क्या वे मोदी से डरते हैं, या उन्हें परवाह नहीं है कि भारत में क्या हो रहा है? 

मोदी ने तीसरे दर्जे के बिमल पटेल को अपना वास्तुकार नियुक्त किया है। पटेल इसके प्रतिस्थापन को इस तरह से डिजाइन करेंगे जैसे अल्बर्ट स्पीयर ने अपने फ्यूहरर के नेतृत्व का अनुसरण किया, लेकिन, निश्चित रूप से, पटेल के पास स्पीयर की प्रतिभा का एक भी हिस्सा नहीं है। 

यह वैचारिक रूप से प्रेरित, नफरत से भरा विनाश 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस और पूरे भारत में इस्लामी और मुगल स्मारकों की बर्बरता का अनुसरण करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी भारत के सभी इस्लामी स्मारकों को मिटाने और 200 मिलियन भारतीय मुसलमानों को हटाने से कम कुछ नहीं चाहते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उसने पहले ही लाखों भारतीय मुसलमानों से भारतीय नागरिकता जबरन छीन ली है और उन्हें राज्यविहीन कर दिया है - एक ऐसा अपराध जिसके लिए उन्हें दंडित नहीं किया गया है, भले ही भारत संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों की घोषणा का एक हस्ताक्षरकर्ता है। जिनमें से नागरिकता एक केंद्रीय सिद्धांत है। 

संसद के लिए जगह की कमी के कारण इस भव्य दृश्य के विनाश को उचित ठहराने का ढोंग कमजोर है। भारत के राष्ट्रीय संग्रहालय, जिसे ध्वस्त होने वाली इमारतों में से एक में रखा गया है, को कला के कई अमूल्य और नाजुक कार्यों को खतरे में डालते हुए, अपने अद्भुत संग्रह के लिए अपर्याप्त स्थान पर ले जाया जाना है। मोदी के कार्यकाल की समाप्ति से पहले काम खत्म करने के लिए यह सब ख़तरनाक गति से किया जाएगा। भारतीय अदालतों पर इस मूर्खतापूर्ण योजना को मानने के लिए दबाव डाला गया और पत्रकारों और अन्य टिप्पणीकारों को धमकाया गया। 

दुख की बात है कि कोविड -19 ने देश को तबाह कर दिया है, लेकिन बेपरवाह तानाशाह विचारधारा यह सुनिश्चित करती है कि केंद्रीय विस्टा परियोजना का खर्च  $ 2 बिलियन है, जबकि भारत के करोड़ों गरीब और निराश्रितों को अपने लिए खर्च करना पड़ता है। वे सैकड़ों हजारों की संख्या में मर रहे हैं। अदृश्य और अनाम नागरिकों की लाशों पर मोदी अपने लिए एक अश्लील स्मारक बना रहे हैं। 

मैं यहां मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब से तुलना करता हूँ, जिसने १७वीं शताब्दी में पूरे भारत में धार्मिक घृणा के कारण हिंदू स्मारकों और मंदिरों को नष्ट कर दिया था। मोदी हमारे समय के लिए औरंगजेब हैं। उनके शासन की तुलना अफगानिस्तान में तालिबान से की जाती है, जो वैचारिक उत्साह के साथ शासन करने का भी प्रयास करते हैं। 

सांस्कृतिक स्वीकृति और वर्चस्व स्थापित करने के लिए मोदी के हिंदू तालिबान को स्मारकों की जरूरत है। सभी फासीवादी-झुकाव वाले राजनेताओं की तरह, मोदी को उम्मीद है कि राष्ट्र के दिल में छवियों को नियंत्रित करके, वह अपने भारत की एक नई दृष्टि तैयार करेंगे, जो उन्हें महात्मा गांधी और वल्लभभाई पटेल के साथ केंद्र में रखता है। 

इसमें प्रदर्शित अहंकार और उनकी अन्य व्यर्थ परियोजनाओं ने भारतीय लोकतंत्र को भारी जोखिम में डाल दिया है। मोदी ने हाल ही में उत्तर कोरिया में किम जोंग-उन की हंसी-मजाक वाली मिमिक्री में खुद के नाम पर एक क्रिकेट स्टेडियम खोला। उन्होंने हिंदू-गुजराती स्वतंत्रता सेनानी वल्लभभाई पटेल की एक स्मारकीय प्रतिमा बनवायी। यह स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से चार गुना बड़ा है, अकल्पनीय रूप से अश्लील है और इसकी कीमत $400m से अधिक है। ये अति-राष्ट्रवादी मोदी तालिबानियों के लिए रैली करने के लिए इमारतें हैं। 

ब्रिटिश सिविल सेवक जॉन स्ट्रैची ने 1884 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दिए गए एक व्याख्यान में घोषणा की कि "भारत जैसा कोई देश नहीं है और यह भारत के बारे में पहला और सबसे आवश्यक तथ्य है जिसे सीखा जा सकता है"। भारत में एकीकृत धर्म, संस्कृति और परंपरा की तलाश में, वह उन्हें नहीं मिला। वे जो देखने में असफल रहे, वह है विविधता के लिए भारत की क्षमता, भारत की अपरिहार्य बहुस्तरीय जटिलता, भारत का विलक्षणता से इंकार। वह भारत को एक साझा भाषा या परंपरा के बिना एक समग्र बनाने के रूप में नहीं देख सकता था। उनकी राष्ट्र-राज्य मानसिकता एकता और विविधता को साथ-साथ रहते हुए नहीं देख सकती थी। 

भारतीयों को एक प्रणाली में मजबूर करने के ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रयासों ने अकाल और दासता को जन्म दिया। इसने भारतीयों को सांस्कृतिक हीनता के लिए मजबूर कर दिया ताकि ईसाई नैतिकता हावी हो सके और ब्रिटिश व्यापारिक हित फल-फूल सकें। मेरा मानना ​​है कि आज भारत में फासीवादी सरकार वही कर रही है जो अंग्रेज नहीं कर सकते थे। मोदी और उनके नव-औपनिवेशिक गुर्गे देश पर हिंदू विलक्षणता थोप रहे हैं। 

संसद भवनों का विनाश एक फासीवादी शासन द्वारा भारतीय मानस पर अधिकार करने का प्रतिनिधित्व करता है। इसकी अति-राष्ट्रवादी दृष्टि किसी भी कीमत पर सभी भारतीयों पर हिंदू प्रभुत्व की है, और मोदी इसके वास्तुकार के रूप में भारत पर शासन करेंगे, अपने दाहिने हाथ को सलामी, हथेली खोलकर, हिंदू भगवान विष्णु की नकल करते हुए। " उद्धरण समाप्त

ये एक लेख के कुछ अंश हैं दूसरे लेख और भी ज्यादा खरतनाक भाषा में हैं और जब ऐसे लेख विदेशों के बड़े बड़े मीडिया में हों तो इसका मतलब आसानी से समझा जा सकता है .

ऐसे लेख सामान्यतय: प्रायोजित होते है और ऐसे अनेक लेख विदेशी मीडिया में हैं. भारत से सम्बंधित नकारात्मक फोटो और सामिग्री ऊंचे दामों में बिक रही है. सूचना हैं कि बरखा दत्त और राणा अयूब के शमशान में जलते शव और गंगा में बहती लाशों से सम्बंधित फोटो और सामिग्री अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों में लाखों डालर में बेंचे जा रहें हैं . ये सब क्या हो रहा है ? कितने लोग भारत में इसके बारें में जानते हैं और समझते हैं और सोचते हैं ?

पूरे भारत में पक्ष और विपक्ष में लोग खड़े हैं, कम से कम सोशल मीडिया से तो यही लगता है. देश में बिलकुल वैसे ही हालात हैं जैसे विदेशी आक्रान्ताओं के भारत पर आक्रमण के समय थे. ऐसे हालातों के कारण ही भारत एक हजार वर्ष तक गुलाम रहा और सनातन संस्कृति को इतनी क्षति हुई, जिसकी भरपाई कभी संभव नहीं हो पायेगी . अब स्थितियां ज्यादा ख़राब है और अगर ऐसा ही चलता रहा तो अगले २० -३० वर्षों में भारत की तश्वीर एकदम से बदल जायेगी. उस समय आप सब का क्या होगा ? जरा कल्पना कीजिये.

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- शिव मिश्र


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