सोमवार, 2 अगस्त 2010

धोखा

आँखों का धोखा,
जिसे मंजिल
समझने की भूल,
अक्सर कर जाते है
ठोकर लगनी होती है जहाँ ,
चाह कर भी नहीं संभल पाते है,
लड़खड़ाते है,
गिरते है ,
और
फिर उठ कर चल देते है ,
यंत्रवत
उसी राह पर ,
बंद होठो की पीड़ा ,
अंधरे में विसर्जित कर ,
जैसे जो कुछ हुआ
वह कुछ नया नहीं है ,
भुला देते है ,
जल्द ही बड़ी से बड़ी ठोकर ,
और दर्द का अहसास ,
और ,
फिर भटकने लगते है ,
नयी मरीचकाओं के बीच .........
***** शिव प्रकाश मिश्र **********

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

सर्वोच्च न्यायालय ने यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन ऐक्ट 2004 को असंवैधानिक करार देने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के 22 मार्च 2024 के फैसले पर लगाई रोक

हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए कुछ निर्णय चर्चा में रहे जिनमें न्यायिक सर्वोच्चता के साथ साथ न्यायिक अतिसक्रियता भी परलक्...