गुरुवार, 23 जून 2022

मोदी के 8 साल हैं बेमिशाल पर ...

 

मोदी के 8 साल हैं बेमिशाल पर ...

 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को  सत्ता में आए हुए 8 साल पूरे हो गए हैं. 26 मई 2014 को शपथ लेने वाले नरेंद्र मोदी 30 साल बाद ऐसे पहले प्रधानमंत्री बने जो पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में पहुंचे थे. 

उस समय देश में निराशा का माहौल था.  कांग्रेस के नेतृत्व में संप्रग की लुंज पुंज  सरकार के  भ्रष्टाचार और अन्य कारनामों से जनता त्रस्त  थीनेहरू द्वारा शुरू की गई तुष्टिकरण की नीति  की सभी सीमाएं  तोडती कांग्रेस ने हिंदू और भगवा आतंक गढ़ने के षड्यंत्र के साथ पूरे विश्व में हिंदू और सनातन संस्कृति को बदनाम करने का कुचक्र रचा था. सांप्रदायिक हिंसा विरोधी  कानून का मसौदा तैयार किया गया था जिसमें बहुसंख्यक हिंदुओं को सांप्रदायिक हिंसा और दंगों के लिए दोषी ठहराये जाने का प्रावधान था. गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने इसका  विरोध किया और जनता से जुड़े अन्य संवेदनशील मुद्दे उठाते हुए अपनी स्पष्ट और प्रखर राय रखी. इस तरह कांग्रेश के भ्रष्ट और मुस्लिम परस्त शासन से मुक्त की उत्कंठा में हिंदू जनमानस   मोदी के पीछे चट्टान की तरह खड़ा हो गया और पूर्ण बहुमत से सत्ता सीन कर दिया.  

 ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ का आश्वासन देकर  सत्ता के सिंहासन पर पहुंचे मोदी ने भी जनता को निराश नहीं किया और सबका साथ सबका विकास की सोच से  गरीबों और आम लोगों के जीवन में खुशहाली लाने वाली अनेक योजनाओं के साथ गरीब युवा, महिला, व्यापारी और अल्पसंख्यक वर्ग पर ध्यान केंद्रित किया. जनधन बैंक खाते, आधार और मोबाइल का समन्वित उपयोग करते हुए सीधे लाभार्थियों के खाते में पैसा भेजकर भ्रष्टाचार पर  रोक लगाने का कार्य किया. भारत की विविधता और बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था में एक देश एक टैक्स जैसी योजना को लागू करना आसान नहीं था. देश हित में खतरनाक निर्णय लेने से भी मोदी नहीं चूके और इसलिए नोटबंदी जैसी  योजना भी लागू की जिससे सामान्य जनता को कुछ समय के लिए बहुत परेशानियां हुईं और जिसकी सफलता असफलता, आज भी  बहस का मुद्दा है.  स्वच्छ भारत मिशनउज्जवलाआयुष्मान भारतकिसान सम्मान, हर घर में शौचालयगंगा सफाई अभियान, प्रधानमंत्री आवास योजना, आत्मनिर्भर भारतमेक इन इंडिया जैसी अनेक योजनाओं से सामान्य जनजीवन को राहत देने का कार्य किया. 

 जनता ने मोदी को दूसरे कार्यकाल के लिए भी भारी बहुमत से सत्ता में पहुंचाया. भारतीय जनमानस को जिन मुद्दों ने सबसे अधिक प्रभावित किया उनमें  धारा 370  और राम मंदिर निर्माण प्रमुख हैं.  तीन तलाक कानून बनाने से मुस्लिम  महिलाओं को तो फायदा हुआ ही इससे मोदी का कद और बढ़ गया क्योंकि मुस्लिम व्यक्तिगत कानूनों को  छूने की हिम्मत नेहरू भी नहीं कर सके थेजिसे उन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी किया था. सीएए और एनआरसी पर कानून बनने के नागरिकों में सरकार की  शक्ति और सामर्थ्य पर और अधिक विश्वास जम गया कि  यह सरकार ही देश की एकता और अखंडता सुनिश्चित कर सकती है. 

 ‘राष्ट्र प्रथम’ की नीति के साथ मोदी का सबसे बड़ा योगदान राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का पुनर्जागरण करना है. इसके पहले कांग्रेश के 10 वर्ष के शासनकाल में देश और विदेश में भारत की छवि धरातल पर थीआम भारतीय बहुत असहज और बेबस महसूस करता था. विश्व पटल पर भारत को पुनर्स्थापित और पुनर्परिभाषित करने के लिए मोदी ने ताबड़तोड़ विदेशी दौरे किए. विदेशों में अप्रवासी भारतीयों से खुलकर मिलना उनकी रणनीति का एक बड़ा हिस्सा था जिससे सभी को भारतीय होने पर गर्व महसूस हुआ.  “मोदी मोदी” के नारेयूं ही नहीं लगते इसके पीछे बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो किसी  विचारधारा से नहीं केवल  मोदी से प्रभावित होकर उनके पीछे खड़े हैं और वे  स्वयं को अंधभक्त कहे  जाने की भी परवाह नहीं करते.

 किसी भी दबाव के आगे भारत का  झुकना, मोदी  कार्यकाल का सबसे बड़ा परिवर्तन है. कोविड-19 जैसी भयावह महामारी का भारत ने अपने सीमित संसाधनों से सफलतापूर्वक सामना किया और विपक्ष तथा अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे न झुकते हुए विदेशी वैक्सीन नहीं खरीदी बल्कि देश में ही उत्पादित वैक्सीन से  न केवल भारत की जरूरतें पूरी की बल्कि मित्र देशों को वैक्सीन उपहार भी दिया और निर्यात भी किया. रूस यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में  भारत पर रूस का विरोध करने के अमेरिकी एवं  अंतरराष्ट्रीय दबाव को भारत नें बड़ी कुशलता से अस्वीकार कर दियाजो भारत की स्वतंत्र  विदेश नीति और राष्ट्रहित को वैश्विक स्तर पर रेखांकित करता है. 

 आम जनमानस  से संवाद बनाए रखने का मोदी का अंदाज निराला है. "मन की बात" करने के लिए रेडियो के प्रयोग से वह दूरदराज के लोगों को सीधे अपनी बात पहुंचाने के साथ-साथ सोशल मीडिया के माध्यम से शिक्षित व्यक्तियों से भी  जुड़े रहते हैं. यही कारण है कि आज भी उनकी लोकप्रियता बरकरार है. उनकी  तुलना में  भारत में तो कोई दूर दूर तक नजर नहीं आता, वैश्विक राजनेताओं में भी वे शिखर पर हैं.

 इस सबके बावजूद ऐसा भी नहीं है कि मोदी  लोगों की अपेक्षाओं पर पूरी तरह खरे उतर रहे हैं. चुनाव में उनकी जीत लगभग सत प्रतिशत  हिंदू मतदाताओं के कारण ही होती है लेकिन फिर भी "सबका साथसबका विकास" में  "सबका विश्वास" भी जुड़ गया है, जिसमें  कुछ भी गलत नहीं है लेकिन यदि "सबका विश्वास" हासिल करने के उपक्रम में  हिंदू हितों की अनदेखी की जाए, सनातन संस्कृति  के क्षरण  को न रोका जाए और मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए कर दाताओं कि पैसे की बर्बादी की जाती रहे तो हिंदू जनमानस का विचलित होना स्वाभाविक हैजिसकी शुरुआत हो गयी है. एक हाथ में कुरान और दूसरे में लैपटॉप की बात करके धर्मांधता और कट्टरता बढ़ाने वाले मदरसों पर अंधाधुंध पैसा खर्च किया जा रहा है, जो विश्व के किसी भी धर्मनिरपेक्ष देश में नहीं होता. दुःख की बात है कि  मोदी के दिमाग में “एक हाथ में पुराण और दूसरे में लैपटॉप की बात क्यों नहीं आती? और देश में लगभग खत्म हो रही गुरुकुल परंपरा में चलने वाले संस्कृत विद्यालयों की सुध क्यों नहीं ली जाती?

 कश्मीर में धारा 370 खत्म होने के बाद आशा थी कि स्थितियां बहुत जल्द ही बदल जाएगी और घाटी में हिंदू सुरक्षित हो जाएंगे. नए परिसीमन से बहुत उम्मीदें थीजिससे प्रदेश का परिदृश्य बदला जा सकता था लेकिन नए परिसीमन ने स्थितियों को और जटिल बना दिया है. प्रदेश में  बहुसंख्यक मुस्लिमों को आज भी अल्पसंख्यक माना जा रहा है और अलगाववादियों तथा उनके सहयोगियों, पत्थरबाजों पर पहले की ही तरह धन की बरसात की जा रही है. पुलिस और सरकारी विभाग अलगाववादियों के दबाव में काम कर रहे हैं, और हिंदू आज ही भेदभाव के शिकार हैं. महबूबा मुफ्ती, अब्दुल्ला और अन्य अलगाववादी नेता अभी अनाप-शनाप और अनर्गल बातें करके घाटी का ही नहीं पूरे देश का माहौल बिगाड़ रहे हैं और सरकार खामोश है.

 पश्चिम बंगाल में  जम्मू कश्मीर का इतिहास दोहराया जा रहा है. जनता ने मोदी और अमित शाह से बहुत उम्मीदें लगाई थी लेकिन विधानसभा चुनाव के दौरान और उसके बाद भाजपा कार्यकर्ताओं, समर्थकों  और मतदाताओं का जिस बर्बरता से नरसंहार हुआउसने विभाजन की यादें ताजा कर दी. लोग पलायन कर गए. सबसे दुखद और आश्चर्यजनक बात यह रही कि मोदी और अमित शाह ने जनता को ही नहीं, अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को भी  उनके हाल पर छोड़ दिया. तृणमूल कांग्रेश कार्यकर्ताओं  ने पूरे राज्य में जमकर उत्पात मचाया और दहशत का माहौल बना दिया. लोग लुटते, पिटते और मरते रहे लेकिन केंद्र सरकार तमाशबीन बनी रही. ममता बनर्जी ने राज्यपाल के साथ साथ प्रधान मंत्री  और गृह मंत्री  का जितना अपमान किया, उतना स्वतंत्र भारत में शायद ही किसी मुख्यमंत्री ने किया हो. केंद्र से कोई सहायता और सुरक्षा न मिलने के कारण अपनी और परिवार की जान बचाने के लिए मजबूरन भाजपा के बड़े नेता और कार्यकर्ता तृणमूल में शामिल होते जा रहे हैं किंतु भाजपा चुप है. केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार के विरुद्ध कोई भी  कार्यवाही नहीं कीजिससे एक विशेष राजनैतिक और मजहबी वर्ग के हौसले बुलंद है मोदी और अमित शाह खामोश क्यों रहे ये आज भी एक गूढ़ रहस्य है. 

 

ज्ञानवापी मस्जिद मामले में तमाम तथ्य और प्रमाण उपलब्ध हो जाने के बाद भी भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघविश्व हिंदू परिषदबजरंग दल आदि का कहीं अता पता नहीं है. इसके विपरीत मुस्लिम समुदाय का हर छोटा बड़ा नेता बेहद आक्रामक होकर अनर्गल प्रलाप कर रहा है. कुछ नेताओं के बयान तो राष्ट्र की एकता और अखंडता पर सीधा हमला हैं लेकिन सरकार ने उनके विरुद्ध अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की है. पीएफआई जैसे संगठन पर दिल्ली दंगों के बाद से ही रोक लगाने की मांग की जा रही है, लेकिन सरकार सबका विश्वास पाने के लिए खामोश है. 

महाराष्ट्र में राजनैतिक नंगनांच और कानून का दुरूपयोग, केरल में हिन्दुओं की राजनैतिक हत्याएं आदि अनेक ऐसे मामले हैं, जिससे लोग  धीरे धीरे व्याकुल हो रहें हैं.  समान नागरिकता कानून, मुस्लिमों को अल्पसंख्यक का अनावश्यक दर्जा और मदरसों का  वित्त पोषण, मंदिर मुक्ति के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया, संशोधित नागरिकता कानून को ठंडे बस्ते में डालना जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण मसलों  पर ढुलमुल रवैया, मोदी और भाजपा को  बहुत भारी पड़ेंगा. समय रहते अगर भाजपा ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाये तो केंद्र की सत्ता में उसका सफ़र बहुत लंबा नहीं होगा. 

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- शिव मिश्रा 

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