गुरुवार, 23 जून 2022

मोहन की भागवत और मोदी का समर्पण

 

मोहन की भागवत और मोदी का समर्पण




अभी हाल ही में मैंने एक लेख में प्रधानमंत्री  मोदी की जमकर तारीफ की थी कि  सरकार किसी दबाव में नहीं आती और ऐसा कहने के पीछे तर्क था कि कुछ समय पहले ही विदेश मंत्री जयशंकर अमेरिका और यूरोप को खरी खरी सुना कर आए थे और यूक्रेन रूस युद्ध में भारत ने अमेरिका और पश्चिमी देशों का रूस का विरोध करने का दबाव बड़ी विनम्रता से अस्वीकार कर दिया  था. कोविड-19 के दौरान की स्वयं प्रधानमंत्री मोदी पर  अमेरिकी वैक्सीन खरीदने का देश विदेश के किसी दबाव का कोई असर नहीं हुआ था लेकिन  पूरा देश उस समय  निराश हुआ  जब भारत सरकार ने  कतर के दबाव में आकर अपनी पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा को पार्टी से निष्कासित कर दिया और कतर को जो जवाब दिया वह न केवल भारत के  धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र  बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान के भी अनुकूल नहीं था.

कतर वही देश है जिसने हिंदू देवी देवताओं के नग्न और अपमानजनक चित्र बनाने वाले एम एफ हुसैन को  नागरिकता प्रदान की थी. ऐसा लगता था कि सरकार इस्लामिक देशों से अपने व्यापारिक और अन्य संबंधों को ध्यान में रखते हुए ऐसा किया लेकिन इससे यह मामला  ठंडा नहीं होगा   और  इस्लामिक देशों का  संगठन और इसके सभी सदस्य देश प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत को कटघरे में खड़ा करने का काम करेंगे . इसमें पाकिस्तान ही  नहीं अफगानिस्तान भी शामिल है, जहां ना तो लोकतंत्र है और न ही मानवाधिकार. धार्मिक सहिष्णुता की तो बात ही क्या करना, जहां विशाल बौद्ध प्रतिमा का सत्तारूढ़ तालिबान ने अपनी क्रूरता और  बहसीपन से विध्वंस किया था. इस्लाम किसी भी धर्म के साथ सह अस्तित्व स्वीकार नहीं करता. यह हमेशा अपनी मांगे मनवाने के लिए वाद, विवाद, दबाव और हिंसा / जिहाद  का सहारा लेता है, जिससे उसे 1400 वर्षों से सफलता मिलती आ रही है. यह  हर उस देश में  दोहराई जाती है, जहां इसका समुचित प्रतिकार नहीं किया जाता. चीन के बारे में तो दुनिया का कोई भी मुसलमान या मुस्लिम देश बात करने से भी डरते हैं.

इस घटनाक्रम की कड़ी ज्ञानवापी प्रकरण से जुड़ी है जहां न्यायालय के आदेश से सर्वे कराया गया था जिसमें फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी भी की गई थी. सर्वे के दौरान काशी विश्वनाथ के प्राचीन मंदिर के मिले प्रमाण पूरे विश्व के लिए चौंकाने वाले थे लेकिन हिंदुओं और मुस्लिमों के एक बड़े वर्ग को यह सब पहले से ही मालूम था.  मुस्लिम पक्ष ने 1991 में बनाए गए पूजा स्थल विशेष अधिनियम कानून का हवाला देकर पहले सर्वे का विरोध किया था और जब उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय से भी बात नहीं बनी तो सर्वे में व्यवधान और विलंब किया. सर्वे पूरा होने के बाद न्यायालय से  सर्वे रिपोर्ट, वीडियो और फोटो सार्वजनिक न करने का  अनुरोध किया, यद्यपि उसके पहले ही कुछ फोटोग्राफ लीक हो गए थे. इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्राचीन मंदिर तोड़कर ही ज्ञानवापी मस्जिद को बनाया गया था जिसमें मंदिर के अवशेष आज भी पूरी तरह से स्पष्ट है. जब कोई शो टाइम सुरेश म्यूजिक स्टार्ट डॉट डॉट पिक्चर लें किसानों स्टार्ट तर्क नहीं रह गया तो मुस्लिम नेताओं के खासतौर से असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं के भड़काऊ बयान आने लगे.

सर्वोच्च न्यायालय ने स्थानीय न्यायालय के स्वयंभू ज्योतिर्लिंग के स्थान को सील करके सुरक्षित और संरक्षित करने के आदेश को बनाए रखा लेकिन बड़ी सफाई से मुकदमे की सुनवाई जिला न्यायाधीश को स्थानांतरित कर दी, जिसका कोई तार्किक आधार नजर नहीं आता.  उल्लेखनीय है कि जो न्यायाधीश इस मामले की सुनवाई कर रहे थे वह पूरी तरह से न्याय के प्रति समर्पित थे और और उन्होंने पूरी पारदर्शिता, निष्पक्षता और निडरता से मामले की सुनवाई की. उन्हें डराने धमकाने की कोशिश भी की गई लेकिन वह विचलित नहीं हुए. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मामले की सुनवाई स्थानांतरित करने से न केवल उनका मनोबल गिरेगा बल्कि पूरी  न्यायपालिका में चीफ मिनिस्टरगलत संदेश चला गया है. जिला न्यायाधीश की अदालत में, मुस्लिम पक्ष ने मामले को लंबा खींचने की भूमिका तैयार की और तारीखों का सिलसिला शुरू हो गया है, अगली सुनवाई 4 जुलाई को है. आशंका है कि इस मामले का हश्र भी  वैसा न हो  जैसा अयोध्या में राम मंदिर के मामले में हुआ था, यानी तारीख पर तारीख, साल दर साल,  लगातार.

इस बीच संघ प्रमुख  श्री मोहन भागवत ने नागपुर में कहा कि  ज्ञानवापी जैसे विशेष श्रद्धा स्थलों के मामले आते रहते हैं लेकिन इस तरह हर रोज नया मामला नहीं लाना चाहिए और हर मस्जिद में शिवलिंग की खोज नहीं करनी चाहिए. पहले भी वह वक्तव्य  दे चुके हैं कि  हिंदू और मुसलमानों के पूर्वज एक हैं, डीएनए एक है. एक कदम आगे जाते हुए उन्होंने यह भी कहा था कि इस्लाम के बिना हिंदुत्व अधूरा है. यह अलग बात है कि जब भी किसी पीएफआई जैसे संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की  जाती है, मुस्लिम पक्ष आरएसएस को आईएसआईएस और बोको हराम जैसा संगठन बताते हुए प्रतिबंध लगाने की मांग करता है. मोहन भागवत जी बड़े  विद्वान  हैं लेकिन पता नहीं उन्हें यह बात मालूम है कि नहीं कि इस्लाम किसी दूसरे धर्म के साथ सह अस्तित्व स्वीकार नहीं करता और जिन देशों के  महापुरुषों ने इस्लाम के प्रति उदारता की है, वे सभी देश आज इस्लामिक राष्ट्र हैं.  इस तरह की उदारता भी तुष्टीकरण ही है. ऐसे में "इस्लाम के बिना हिंदुत्व अधूरा है"  कहना सनातन संस्कृति को श्रद्धांजलि देने जैसा  है.

 

इस बीच मुस्लिम पक्ष द्वारा धार्मिक  ध्रुवीकरण कर मुस्लिमों को लामबंद करने और अपने पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए किया जाने लगा. सोशल मीडिया पर तरह तरह की भ्रामक एवं  हिंदूओं और सनातन  धर्म के लिए अपमानजनक सामग्री परोसी जाने लगी. टीवी चैनलों पर गरमागरम बहस होने लगी. ऐसी ही एक टीवी डिबेट में जहां भगवान भोलेनाथ का अपमान किया जा रहा था, भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने चुनौती देते हुए कहा था कि यदि आप ऐसा  कहेंगे तो हम भी ऐसा  कहेंगे. मुस्लिम पक्ष शायद इसी का इंतजार कर रहा था इसलिए इस मामले को इतना तूल दिया गया ताकि यह मामला अंतरराष्ट्रीय बन जाय इसके लिए उन्हें विपक्षी दलों का भी भरपूर समर्थन मिला जो   तुष्टिकरण करने में इतना आगे चले गए कि वे  स्वधर्म और राष्ट्र धर्म की मर्यादा भी  भूल गए और मोदी विरोध करते करते देश का विरोध करने लगे, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब हो रही है.

नूपुर शर्मा को बलात्कार करने  और उनको और उनके परिवार को जान से मारने की धमकियां मिल रहीं हैं  और उन्हें मारने के लिए इनाम घोषित किए जा चूके हैं. जिस दिन राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री, कानपुर के पास राष्ट्रपति के पैतृक गांव में थे,  मुस्लिम पक्ष द्वारा जुमे की नमाज के बाद कानपुर में  बवाल किया गया और दंगा करने का प्रयास किया गया. कानपुर के दंगो में पीएफआई का हाथ सामने आया है, जिस को प्रतिबंधित करने के लिए केंद्र सरकार  पिछले 2 वर्ष से विचार कर रही  है. कानपुर के काजी भड़काऊ बयान दे रहे हैं, वे कहते हैं  कि पुलिस ज्यादती  कर रही है और  केवल मुस्लिमों को पकड़ रही है. उनके अनुसार दंगा कोई भी करें दोनों पक्ष के लोगों को पकड़ा जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि दंगे में कोई ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है तो फिर ज्यादा लोगों को गिरफ्तार क्यों किया जा रहा है. वे यह भी कहते हैं कि वह सिर पर कफन बांध कर निकलेंगे. 

सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर बहस के दौरान हिंदू देवी देवताओं का लगातार अपमान किया जा रहा है और उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही  नहीं हो रही है. पता नहीं मोदी सरकार इतनी रक्षात्मक होकर क्यों कार्य कर रही है. धारा 370 तो हट गई लेकिन कश्मीर में जमीनी हालात मैं बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ है और टारगेट किलिंग का दौर एक बार फिर वापस आ रहा है. संशोधित नागरिकता का कानून तो बन गया लेकिन इसे  ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. समान नागरिक संहिता का कानून बनाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय भी कई अनुस्मारक दे चुका है, लेकिन सरकार इस पर विचार भी नहीं कर रही.  पश्चिम बंगाल में भयानक नरसंहार हुआ लेकिन प्रधानमंत्री और गृहमंत्री खामोश रहे. पंजाब यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री की स्वयं की जान खतरे में पड़ गयी लेकिन  कार्यवाही ठंडे बस्ते में पड़ी है. इन सब बातों से नाराज चल रहे मोदी भक्त गुस्से में हैं,नूपुर शर्मा के निष्कासन ने आग में घी का काम किया है. यही कारण है कि बिना किसी स्वार्थ के हिंदुओं का एक बहुत बड़ा वर्ग जो मोदी के पीछे चट्टान की तरह खड़ा था, आज  सोशल मीडिया पर उनके विरुद्ध आक्रमक है.

इस बात से सभी सहमत होंगे कि  मोदी की हर चुनावी जीत के पीछे लगभग शतप्रतिशत हिंदू मतों का योगदान है. ऐसे में उनकी मोदी से अपेक्षाएं  बहुत स्वभाविक है. इनकी नाराजगी मोदी और भाजपा को बहुत भारी बढ़ सकती है इसलिए इन्हें नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए. मोदी के समर्थकों को भी इस बात को समझना चाहिए कि उन्होंने जो किया है वह देश हित में ही किया होगा. जब मोदी और देश के विरुद्ध  राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र रचे जा रहे हों, उन्हें थोड़ा धैर्य रखना चाहिये.

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शिव मिश्रा responsetospm@gmail.com

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