नेशनल हेराल्ड घोटाला और गांधी परिवार
प्रवर्तन निदेशालय द्वारा राहुल और
सोनिया गाँधी को पूछ्ताछ के लिए बुलाए जाने से कांग्रेस बुरी तरह तिलमिला गई है और
इसे लोकतंत्र का अपमान, विपक्ष
की आवाज कुचलने और प्रतिशोध की कार्यवाही बता रही है. पार्टी के वफादारों ने राहुल गांधी को प्रवर्तन निदेशालय में पेश होने की घटना को राजनीतिक रूप से भुनाने के लिए पूरे भारत में प्रवर्तन निदेशालय के कार्यालय के सामने प्रदर्शन आयोजित किए. दिल्ली
में अशोक गहलोत और भूपेश बघेल, राहुल गांधी के साथ कार्यकर्ताओं
को लेकर प्रवर्तन निदेशालय में जाना चाहते थे,जिन्हें पुलिस ने हिरासत में लिया
गया. घटनास्थल दिल्ली में होने के कारण पूरा तमाशा मीडिया में छाया रहा.
राहुल गांधी से 3
दिन तक लगातार पूछताछ के
बाद अगली तारीख का सम्मन भी थमा दिया गया. संभावना है कि राहुल से कई चक्र में पूछताछ की जाएगी और थकी हुई
कांग्रेश
हर बार तमाशा नहीं कर पाएगी और पूरे घटनाक्रम से जनता की उत्सुकता भी स्वत: समाप्त
हो जाएगी 23 जून को सोनिया गांधी को प्रवर्तन निदेशालय के
सामने पेश होना है, उस समय तक कांग्रेश अपने विरोध की धार कितनी कायम रख पायेगी यह देखने की बात होगी, यद्यपि कांग्रेस ने जनता की सहानुभूति बटोरने
के लिए उनकी बीमारी को भी हथियार की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
यह मामला जिस नेशनल हेराल्ड से जुड़ा है उसे 1938 में जवाहरलाल नेहरू ने लगभग पांच हजार स्वतंत्रता सेनानियों से चंदा लेकर शुरू
किया था जिसके लिए एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड (एजेएल) नाम की कंपनी बनाई गई थी. यह कंपनी अंग्रेजी में नेशनल
हेराल्ड, हिंदी में नवजीवन और उर्दू में कौमी आवाज प्रकाशित करती थी. यद्यपि एजेएल बनाने वाले सभी लोग कांग्रेसी नहीं थे फिर भी आजादी
के बाद इस पर कांग्रेस का कब्जा हो गया और सभी समाचार पत्र केवल कांग्रेस का मुखपत्र बनकर
रह गये. पक्षपातपूर्ण और एक तरफा समाचार देने वाले पत्र-पत्रिकाओं और टीवी चैनलों की उम्र बहुत लंबी नहीं
होती और यही इन सब अखबारों के साथ हुआ. कांग्रेस के सत्ता में होने के बाद भी इस
की वित्तीय स्थिति अच्छी कभी नहीं रही जो शोध का
विषय है कि यह स्वाभाविक था या वित्तीय गड़बड़ियों के कारण हो रहा था. इस कंपनी के पास दिल्ली, मुंबई और अन्य जगहों पर कई हजार करोड़ की अचल
संपत्तियां हैं.
एजेएल की वित्तीय हालत सुधारने के लिए कांग्रेस ने इसे पार्टी फंड से ₹90 करोड़
का ऋण दिया लेकिन कंपनी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ
और 2008 में कंपनी ने सभी प्रकाशन बंद कर दिए. यह बहुत असामान्य बात है कि केंद्र में सत्ताधारी कांग्रेश की कंपनी के समाचार पत्रों का प्रकाशन वित्तीय संकट के कारण बंद हो जाए जबकि पार्टी राजीव
गांधी फाउंडेशन जैसे पारिवारिक ट्रस्ट और संगठनों के लिए बड़ी कुशलता से वित्तीय
प्रबंधन करती है. 2010 में यंग
इंडियन प्राइवेट लिमिटेड (वाईआईएल) नाम की एक कंपनी बनाई गयी, जिसमें
राहुल और सोनिया गांधी की 76 % हिस्सेदारी है, बाकी
परिवार के विश्वसनीय स्वर्गीय मोती लाल बोहरा और ऑस्कर फर्नांडीज जैसे लोगों के
पास है. कांग्रेश ने एजेएल को दिया गया 90 करोड का
ऋण यंग इंडियन को ट्रांसफर कर दिया, जिसमें से यंग इंडियन कांग्रेस को केवल ₹50 लाख का भुगतान करती है और शेष
89.5 करोड़ रुपए का ऋण कांग्रेस द्वारा माफ कर दिया
जाता है. यह भी सामान्य नहीं है क्योंकि इस तरह के सौदे
बैंकिंग उद्योग में होते हैं जहां फंसे हुए ऋणों को पारदर्शी
तरीके से कोई ऐसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी खरीदती है. इस 50 लाख
रुपए के भुगतान के बदले यंग इंडियन को एजेएल कंपनी का मालिकाना हक प्राप्त हो जाता हैं. इस अधिग्रहण के बाद यंग
इंडियन ने एजेएल के समाचार पत्रों को पुनः प्रकाशित करने का कोई प्रयास नहीं किया और यहीं से संदेह गहराता चला गया कि आखिर इस अधिग्रहण का उद्देश्य क्या था?
सबसे पहली बात कांग्रेस जो एक राजनीतिक दल है, ने
एजेल कंपनी को ऋण क्यों दिया ?
जबकि एजेएल के पास हजारों
करोड़ रुपए की अचल संपत्तियां थी, जिसके
आधार पर कोई भी बैंक ऋण दे सकता था और कंपनी की वित्तीय स्थिति पर
नजर भी रख सकता था जिससे बहुत
संभव था कि कंपनी बच जाती और आज भी यह समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे
होते. दूसरी बात अगर कांग्रेस का उद्देश्य अपना ऋण वसूल करना था तो इसे पारदर्शी
तरीके से एजेएल की अचल संपत्तियां बेंच कर
क्यों नहीं किया गया ? कांग्रेस ने अपने ₹90 करोड़ के ऋण के बदले केवल 50 लाख
रुपए लेकर आईजेएल कंपनी और उसकी सभी चल अचल संपत्तियां यंग इंडियन को क्यों दे दी ? अगर कांग्रेस 89.5
करोड़ रुपए का का ऋण माफ कर सकती है तो फिर पूरे ₹90 करोड़ का पूरा ऋण माफ माफ क्यों नहीं किया ? अगर कांग्रेस पूरे 90 करोड़
का ऋण माफ कर देती तो एजीएल को पुनर्जीवित करने की संभावना बनी रह
सकती थी. अगर कांग्रेस एजेएल कंपनी को पुनर्जीवित नहीं भी करना चाहती थी तो भी इसकी अचल संपत्तियां पार्टी के लिए खरीद सकती थी. चूंकि यंग इंडियन, राहुल और सोनिया गांधी
के व्यक्तिगत स्वामित्व का संगठन है, इसलिए
एजेएल की हजारों करोड़ की परिसंपत्तियों के मालिक भी राहुल और सोनिया गांधी बन गए या कांग्रेश द्वारा बना दिए गए.
साधारण
समाज का कोई भी व्यक्ति इस पूरे खेल को समझ
सकता है जिस आधार पर डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने कोर्ट
का दरवाजा खटखटाया था, जहां यह मामला लंबित है और इस मामले में सोनिया
और राहुल जमानत पर चल रहे हैं.
इस खेल को अगर सावधानी से
देखें तो पाते हैं कि यंग इंडियन ने केवल 50 लाख
रुपए के बदले एजेएल की दो हजार करोड़ से भी अधिक कीमत की चल अचल संपत्तियां हासिल कर ली. इस तरह
कमाए गए लाभ पर आयकर देना होता है, जिसकी नोटिस आयकर विभाग ने दे रखी
है.
प्रवर्तन
निदेशालय इस प्रकरण में मनी लांड्रिंग की जांच कर रहा है, जिसमें पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं. सबसे
बड़ी बात है कि कांग्रेस या गांधी परिवार अब तक आयकर और प्रवर्तन निदेशालय की
कार्यवाही के विरोध में न्यायालय नहीं पहुंचा है. शायद उन्हें
लगता है कि कोई राहत नहीं मिलेगी. इसलिए
कांग्रेस पूरे जोर शोर से यह प्रदर्शित
करना चाहती है कि मोदी सरकार राजनीतिक पूर्वाग्रह के कारण गांधी परिवार के विरुद्ध बदले की
भावना से कार्य कर रही है. ऐसा
करके वह जनता की सहानुभूति बटोरना चाहती है, लेकिन कांग्रेस का नाम
भ्रष्टाचार के साथ इतना जुड़ चुका है इसलिए शायद ही वह अपने उद्देश्य में सफल हो सके.
प्रवर्तन निदेशालय ने पिछले कुछ महीनों में कई मामलों में काफी सावधानी और मेहनत से साक्ष्य एकत्रित करने की प्रणाली विकसित की है जिसके कारण महाराष्ट्र के दो मंत्रियों अनिल देशमुख और नवाब मलिक तथा दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन को जमानत भी नहीं मिल सकी है. राहुल और सोनिया गांधी को भी प्रवर्तन निदेशालय के मामले में न्यायालय से कोई अग्रिम जमानत नहीं मिली है. चूंकि प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ में आरोपित अपने साथ एडवोकेट नहीं ले जा सकता, इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि राहुल और सोनिया गांधी प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ में कुछ ऐसे महत्वपूर्ण राज उगल देंगे जो उनके जेल जाने का मार्ग प्रशस्त करेंगे. केंद्र सरकार फूंक-फूंक कर कदम रख रही है ताकि किसी भी स्तर पर जनता को यह संदेश न जाए कि गांधी परिवार या कांग्रेश के साथ ज्यादती की जा रही है.
इस बात
का पूरा प्रयास किया जा रहा है कि यदि राहुल
और सोनिया को जेल जाने की नौबत आती है तो इसके पीछे न्यायिक बल अवश्य हो ताकि
राजनीतिक विद्वेष का कांग्रेस का आरोप झूठा साबित हो जाए. इस तरह
की जेल यात्रा के बाद गांधी परिवार का राजनीतिक तिलिस्म पूरी तरह ढह जाएगा और
कांग्रेश में विखंडन और बिखराव की प्रक्रिया इतनी तेज हो
जाएगी जिसे संभालना कांग्रेस के किसी नेता के
बस में नहीं होगा.
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शिव मिश्रा ResponseToSPM@gmail.com
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