शनिवार, 27 सितंबर 2025

लद्धाख से राष्ट्र विरोधी खेल शुरू

 


लद्धाख से राष्ट्र विरोधी खेल शुरू || सोनम वांगचुक है मोहरा, पीछे है कांग्रेस और डीप स्टेट सेना || वामपंथ-इस्लामिक गठजोड़ का सफ़र - हमास बाया क़तर-नेपाल-भारत और चीन बाया नेपाल-कांग्रेस-भारत


देश के शांति प्रिय क्षेत्र लद्दाख में शुरू हुए आंदोलन ने अचानक हिंसक रूप ले लिया, जिसमें चार प्रदर्शनकारियों की मृत्यु हो गई और अनेक घायल हो गए. कहने को तो प्रदर्शनकारियों की चार प्रमुख मांगे हैं, लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा, कारगिल और लेह को अलग-अलग लोकसभा सीट बनाना और सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों की भर्ती करना. लेकिन यह मांगे अनिन्तिम नहीं हैं. इन मांगों पर 6 अक्टूबर 2025 को वार्ता प्रस्तावित थी जिस सिलसिले में 25 सितंबर को उच्च स्तरीय समिति के साथ वार्ता होनी थी. लद्दाख पहले जम्मू- कश्मीर राज्य का हिस्सा था. अनुच्छेद 370 और 35A हटने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था. जम्मू कश्मीर को विधानसभा सहित और लद्दाख को विधानसभा रहित केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था. प्रदर्शन कारियों के अनुसार सरकार ने उस समय हालात सामान्य होने के बाद पूर्ण राज्य का दर्जा देने का आश्वासन दिया था. आखिर ऐसा क्या हुआ कि वार्ता शुरू होने के ठीक एक दिन पहले ही प्रदर्शनकारियों ने हिंसा कर दी.

इसका कोई सीधा और सपाट उत्तर तो नहीं मिल सकता लेकिन किसी न किसी को आशंका थी कि वार्ता में बात बन गयी तो फिर आन्दोलन का क्या होगा, इसलिए जान बूझ कर हिंसा करवाई गयी. भूख हड़ताल पर बैठे दो बुजुर्ग लोगों के अस्पताल में भर्ती होने के बाद बंद का आह्वान किया था। लेह में सुरक्षा बलों की गाड़ियों को जला दिया गया और भाजपा कार्यालय में आग लगा दी गई। लद्दाख स्वायत्तशासी प्रशासनिक कार्यालय में भी तोड़-फोड़ की गई और पुलिसवालों पर पथराव किया गया। इसके लिए वातावरण काफी पहले से गर्म किया जा रहा था. श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में,आंदोलन के कारण हुए सत्ता परिवर्तन के बाद इस तरह के बयान दिए जाते रहे हैं कि अब भारत में भी ऐसा होगा लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो सका क्योंकि राजनीतिक प्रकृति तथा सेना और अर्धसैनिक बलों की विशेष संरचना के कारण भारत में ऐसा हो भी नहीं सकता. कुछ लोग इसे भारत के लोकतंत्र की परिपक्वता भी कहते हैं.

हाल के दिनों में नेपाल में हुए जेन-जेड प्रदर्शनों के बाद सरकार के पतन से कांग्रेस सहित भारतीय विपक्ष बहुत उत्साहित है और राहुल गांधी को तो विश्वास हो गया है कि बिल्ली के भाग्य से छींका अवश्य टूटेगा और वह बिना चुनाव के ही प्रधानमंत्री बन जाएंगे. जनता द्वारा कांग्रेस को नकारने के कारण मिल रही लगातार असफलता को छुपाने के लिए राहुल ने मोदी सरकार पर वोट चोरी का जो आरोप लगाना शुरू किया उसकी प्रेरणा उन्हें बांग्लादेश से, और निर्देश डीप स्टेट से मिले हैं. बांग्लादेश में चुनाव पर प्रश्न चिन्ह लगने के बाद शेख हसीना को जान बचाकर भागना पड़ा था और देश का नेतृत्व अमेरिकी कठपुतली मोहम्मद यूनुस के हाथों सौंप दिया गया था, जो देश में रह भी नहीं रहे थे. नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध और भ्रष्टाचार बहुत बड़ा मुद्दा बना लेकिन पूरे आंदोलन के पीछे विदेशी शक्तियों और विदेशी धन की बड़ी भूमिका थी.

भारत एक बहुत बड़ा देश है जहाँ इस तरह सत्ता पलट संभव नहीं है. इसलिए भारत के लिए अलग तरह की रणनीति बनाई गई जिसके अंतर्गत पहले मोदी सरकार के दो समर्थको चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को भाजपा से समर्थन वापस लेने का दबाव बनाया गया. जब सफलता नहीं मिली तो भाजपा में टूट फूट की कोशिश की गयी और प्रधानमंत्री पद के महत्वाकांक्षी नेताओं को तैयार करने की कोशिश हुई. भाजपा और आरएसएस के मध्य भी दूरियां बढ़ाने की कोशिश की गई ताकि मोदी को सत्ता से बाहर किया जा सके भले ही सरकार भाजपा की ही बनी रहे, लेकिन मिशन एमएमजी ( मोदी मस्ट गो) को सफलता नहीं मिली. इसलिए रणनीति बदलते हुए देश के अलग-अलग हिस्सों में उग्र आंदोलन करके मोदी सरकार को आलोकप्रिय बनाने की कोशिश रही ही है ताकि यदि मध्यावधि चुनाव हो तो मोदी को सत्ता से बेदखल किया जा सके. मोदी सरकार के अच्छे कार्य करने वाले कुशल और लोकप्रिय मंत्रियों के विरुद्ध षड्यंत्रकारी झूठी खबरें चलाकर उनको पद छोड़ने पर मजबूर करने का कुचक्र भी रचा गया है, जिनमें अमित शाह, नितिन गडकरी, अश्विनी वैष्णव जैसे मंत्री शामिल है ताकि मोदी को कमजोर किया जा सके.

अगले वर्ष 26 जनवरी तक इस आंदोलन को पूरे उफान पर पहुंचाने की योजना है. इसलिए लद्दाख यदि एक और मणिपुर बन जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. लद्दाख में हुये हिंसक प्रदर्शन के पीछे कांग्रेस, चीन, वामपंथ - इस्लामिक गठजोड़ और डीप स्टेट की बड़ी भूमिका है, जो भारत को अस्थिर करने की कोशिश में लगे हैं. जिस समय लद्दाख में हिंसा का तांडव हो रहा था ठीक उसी समय उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, झारखंड और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में "आई लव मोहम्मद" के नाम पर अराजकता पूर्ण प्रदर्शन किये जा रहे हैं. कुछ समय पहले ही राहुल गांधी ने मलेशिया के एक छोटे से द्वीप में जाकिर नायक और जॉर्ज सोरोस के पुत्र एलेग्जेंडर सोरोस से मुलाकात की थी. इन घटनाओं में आपस में समानता लगती है और सरकार को इसकी गहनता से छानबीन करनी चाहिए.

  1. लद्दाख में हुए हिंसक प्रदर्शन को समझने के लिए सोनम वांगचुक को समझना जरूरी है, जो कहने को तो सामाजिक या पर्यावरण कार्यकर्ता है लेकिन वास्तव में वह विदेशी शक्तियों का मोहरा है.  
  2. उनके पिता अब्दुल्लाऔर मुफ्ती सरकारों में मंत्री रहे हैं.  
  3. आमिर खान की फिल्म 3 ईडियट्स में एक इडियट के रूप में उनकी भूमिका द्वारा उन्हें नायक के रूप में उभारा गया था .  
  4. उसे कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं जिसमें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार भी शामिल है.सभी जानते हैं कि रेमन मैग्सेसे पुरस्कार कैसे और किन व्यक्तियों को मिलता है. अरविंद केजरीवाल को भी रोमन मैग्सेसे अवार्ड मिला था और उसके बाद उन्होंने एक बहुत बड़ा आंदोलन तत्कालीन सरकार के विरुद्ध खड़ा किया था. वह भारत की सत्ता पर तो नहीं लेकिन दिल्ली राज्य की सत्ता पर कब्जा जमाने में सफल हो गए थे.  
  5. सोनम वांगचुक भी पुरस्कार प्राप्त करने के बाद राजनीतिक आंदोलन चलाने लगे.उनका संगठन स्टूडेंट एजुकेशनल एंडकल्चरल मूवमेंट ऑफ़ लदाख, जिसे उन्होंने 1988 में स्थापित किया था को विदेशों से भारी मात्रा में चंदा मिलता रहा है जिस पर मोदी सरकार बनने के बाद रोक लग गई थी और तभी से सोनम वांगचुक भाजपा के विरुद्ध आग उगल रहे हैं.  
  6. वह मोहम्मद यूनुस के मित्र हैं और हाल में पाकिस्तान की यात्रा भी कर चुके हैं.  
  7. पिछले 2-3 वर्षो में कई बार अनशन पर बैठ चुके हैं और लद्दाख से दिल्ली तक की पैदल यात्रा भी कर चुके हैं.  

उनकी मांगे अलोकतांत्रिक तो नहीं कहीं जा सकती लेकिन वे विशुद्ध राजनैतिक हैं और नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी तथा कांग्रेस का समर्थन करती दिखाई पड़ती हैं. आजादी के 72 साल तक लद्दाख जम्मू और कश्मीर का हिस्सा था और पूरी तरह उपेक्षित था लेकिन कभी स्वतंत्र राज्य की मांग नहीं की गयी और ना हीं अधिक स्वायत्तता की मांग की गई. विकास और रोजगार के मामले में भी यह क्षेत्र उपेक्षा का शिकार रहा रहा लेकिन अब जबकि वह जम्मू कश्मीर से अलग होकर एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है, केंद्र सरकार द्वारा विकास की अनेक योजनाएं शुरू की गई हैं. आर्थिक सहायता भी पहले से कई गुना अधिक प्राप्त हो रही है. लद्दाख में पहले केवल दो जिले थे लेह और कारगिल. केंद्र सरकार द्वारा विकास को गति देने के लिए पांच और नए जिले द्रास, ज़ांस्कर, नूब्रा, शाम, और चंगथांग बनाकर जिलों की संख्या 7 की गई है. इस क्षेत्र पर केंद्र सरकार जितना ध्यान दे रही है उतना स्वतंत्रता के बाद पहले कभी नहीं दिया गया. ऐसे में 3 लाख जनसंख्या वाले इस क्षेत्र के लिए पूर्ण राज्य की मांग करना न्याय संगत भले ही कहा जाए लेकिन केंद्र शासित प्रदेश की तुलना में लाभकारी बिल्कुल भी नहीं हो सकता. मुस्लिम बाहुल्य कारगिल के लिए अलग लोकसभा सीट की मांग करने का औचित्य समझना मुश्किल नहीं है.

अपनी मांगों को लेकर सोनम वांगचुक 10 सितंबर से 35 दिनों के अनशन पर बैठे थे और उनके साथ लद्दाख अपेक्स बॉडी के कुछ लोग भी बैठे थे. 23 सितंबर को इनमें से दो बुजुर्ग व्यक्तियों को स्वास्थ्य कारणों से अस्पताल में दाखिल कराया गया, जिसे मुद्दा बनाकर 24 सितंबर को सोशल मीडिया के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को इकट्ठा होने के लिए कहा गया. सोनम वांगचुक ने भाषण में भीड़ को उकसाया और कहा कि जो नेपाल में हुआ, श्रीलंका और बांग्लादेश में हुआ, वह भारत में क्यों नहीं हो सकता. कुछ समय पहले ही उन्होंने भीड़ को संबोधित हुए अरब क्रांति का था. उदहारण दिया था इस सब का उद्देश्य छात्रों को भड़काना था, उन्होंने छात्रों को जेन- जेड कह कर संबोधित किया.

कोई भी शांतप्रिय लोकतांत्रिक आंदोलन अरब -क्रांति और पड़ोसी देशों में हुई हिंसा का उदाहरण देकर भीड़ को नहीं उकसा सकता. एकत्रित की गई भीड़ ने चुनाव आयोग तथा भाजपा कार्यालय को आग के हवाले कर दिया. कई सरकारी गाड़ियों को नुकसान पहुंचाया और सार्वजनिक संपत्ति को स्वाहा किया. सब कुछ वैसा ही किया गया जैसा नेपाल में हुआ था. हैरानी तब हुई जब सुरक्षा बलों ने 6 नेपाली नागरिकों को घटनास्थल से गिरफ्तार किया जिन्होंने हिंसा और आगजनी में अपनी भूमिका स्वीकार करते हुए बताया कि उन्हें इस कार्य के लिए बुलाया गया था. उन्होंने यह भी बताया कि नेपाल में भी उन्होंने जैन-जेड प्रदर्शन के दौरान भी हिंसा और आगजनी में हिस्सा लिया था. यह सभी कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता है. सुरक्षा एजेंसियां उनसे पूछताछ कर रही हैं लेकिन पूरे घटनाक्रम के पीछे डीप स्टेट, वामपंथी इस्लामिक गठजोड़ की स्पष्ट भूमिका नजर आती है.

नेपाल की हिंसा में कतर की भूमिका भी दृष्टिगोचर हुई थी क्योंकि बड़ी संख्या में नेपाली नागरिक कतर में काम करते हैं जिनके संबंध हमास जैसे आतंकी संगठनों से होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. कतर में कार्यरत नेपाली नागरिक बड़े पैमाने पर नेपाल में धर्मांतरण में सक्रिय भूमिका निभाते हैं. उन्होंने नेपाल में हाल में हुई हिंसा में सक्रिय सहयोग किया.

सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया है. पुलिस और प्रशासन ने 50 से अधिक व्यक्तियों को हिरासत में लिया और उनसे पूछताछ के आधार पर सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया है. स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है लेकिन प्रश्न है कि इतने दिन से लद्दाख को जलाने की योजना बनाई जाती रही पर पुलिस और प्रशासन को इसकी भनक नहीं लगी. यह केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों की भी एक बड़ी चूक दर्शाता है. सोनम वांगचुक से मंत्रणा के आधार पर ही राहुल गांधी यह बात दोहराते हैं कि चीन द्वारा लद्दाख के बड़े भूभाग पर कब्जा किया गया है. मीडिया से बात करते हुए सोनम वांगचुक ने लगभग वही सब बातें दोहराई जिसे राहुल गांधी दोहराते रहते हैं. इससे कांग्रेस के साथ गांठ है इससे उन्होंने स्वयं इनकार नहीं किया है क्योंकि इन सबका श्रोत डीप स्टेट है.

मोदी सरकार को चाहिए कि वह किसान आंदोलन तथा शाहीन बाग आंदोलन से सबक लेते हुए किसी भी देश विरोधी आंदोलन के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित कर या लचीला रुख अपना कर हिंसा करने का अवसर प्रदान न करें. इससे न केवल विश्व को गलत संदेश जाता है बल्कि देश विरोधियों के हौसले भी बुलंद होते हैं. सभी राष्ट्र भक्तों को भी भारत विरोधी षड्यंत्रकारियों से स्वयं सावधान रहने की अत्यंत आवश्यकता है, और दूसरों को भी जागरूक करने की आवश्यकता है, ताकि राष्ट्र को अस्थिर करने का कोई भी अभियान सफल न हो सके.

~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~

शनिवार, 20 सितंबर 2025

भगवान विष्णु पर टिप्पणी मामला :कोलेजियम है न्याय पालिका की सड़ांध का कारण

 


भगवान विष्णु पर टिप्पणी मामला || भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई धार्मिक तो हैं, लेकिन धर्मनिरपेक्ष नहीं ? || क्या कोलेजियम है न्याय पालिका की सड़ांध का कारण और हिन्दू हितो के लिए घातक?


नाम में क्या रखा है, को सत्य सिद्ध करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई की हिन्दुओं की मूर्ति पूजा का उपहास उड़ाने वाली एक टिप्पणी से हिंदुओं में उबाल है. मामला मध्य प्रदेश के खुजराहो स्थित जावरी मंदिर यूनेस्को से संरक्षित विश्व धरोहर का है, जिसकी देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण करता है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की सात फीट ऊंची एक खंडित मूर्ति है, जिसके दोनों हाथ और सिर नहीं है। याचिकाकर्ता राकेश दालाल ने भगवान विष्णु की क्षतिग्रस्त मूर्ति के पुनर्निर्माण और पुनर्स्थापन की मांग करते हुए जनहित याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि मूर्ति मुगल आक्रमणों के दौरान क्षतिग्रस्त की गयी थी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण तथा केंद्र सरकार की लापरवाही से इसका संरक्षण नहीं हो पा रहा है, जो भक्तों के पूजा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. मुख्य न्यायाधीश गवई और न्यायाधीश ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हए कहा कि "आपकी याचिका, जनहित याचिका नहीं, प्रचार याचिका है।" गवई ने याचिकाकर्ता से कहा कि यदि आप भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हैं, तो उनके पास जाइए और उनसे प्रार्थना कीजिए, वही कुछ कर सकते हैं. यह पुरातात्विक स्थल है, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को अनुमति देनी होगी. वह यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा कि इस बीच, अगर शैववाद से कोई आपत्ति न हो, तो आप शिव लिंग की पूजा कर सकते हैं, खजुराहो में सबसे बड़ा शिव लिंग है.”

गवई की यह टिप्पणियाँ हैरान करने वाली है क्योंकि किसी भी दृष्टिकोण से ये मुख्य न्यायाधीश स्तर के व्यक्ति की टिप्पणियां नहीं लगती. अगर बताया न जाए कि यह टिप्पणियां किसने की है तो ऐसा लगेगा कि किसी लंपट, अनपढ़ गंवार और कट्टरपंथी व्यक्ति की फूहड़ टिप्पणियां हैं । ये साधारण टिप्पणियां नहीं हैं, विशेषकर, एक ऐसे न्यायाधीश की, जो हिंदू नहीं है. अन्य धर्म के व्यक्ति से अपेक्षा होती है कि वह दूसरे धर्म का अपमान नहीं करेगा लेकिन उन्होंने किया, जो सर्वोच्च न्यायालय के अभिलेख का हिस्सा है. इससे बहुसंख्यक हिंदू समाज की भावनाएं आहत हुई हैं और उनमें बहुत आक्रोश है। कुछ दिन पहले उनकी ही पीठ ने एक दरगाह, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है, से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को आदेश दिया था कि वह दरगाह की मरम्मत और रख रखाव करें। यह याचिका भी उससे अलग नहीं थी, तो फिर गवई ने यह टिप्पणी क्यों की? कोई इस पर कितना भी विचार करें, कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिलेगा.

इस तरह की टिप्पणियों का एक ही उद्देश्य होता है, हिंदू धर्म का अपमान करना, जो उन्होंने सामान्य आंबेडकरवादी की तरह कर दिया, फिर इस पर इतना हो हल्ला क्यों? हिन्दुओं ने ही सबको ये अधिकार दे रखा है क्योंकि कि हिन्दू धर्म पर प्राय: इस तरह की टिप्पणियां होती रहती हैं और हिंदू समुदाय द्वारा कभी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की जाती. इसलिए सभी इस तरह की टिप्पणियां करने के शौक़ीन हो गए हैं, चाहे राजनीतिज्ञ हों, नौकरशाह हों, न्यायाधीश हों या दूसरे धर्म के लोग. आज हिन्दुओं के समक्ष यह अत्यधिक गंभीर समस्या है। गवई कोई साधारण व्यक्ति नहीं है. वह विद्वान हैं, उन्होंने वकालत की है, वह उच्च और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश रहे हैं, और अब भारत के मुख्य न्यायाधीश हैं. ऐसे व्यक्ति से यह अपेक्षा अनुचित नहीं है कि वह अपने वचन और कर्म से सर्व-धर्म समभाव की भावना प्रकट करेगा भले ही उसके मन में कितनी ही कटुता और विष क्यों न भरा हो.

मुख्य न्यायाधीश यदि अपने न्यायिक धर्म का पालन करना चाहते, तो सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को साधारण शब्दों में याचिका के बिन्दुओं पर विचार करने का आदेश दे सकते थे क्योंकि यह दो धर्मों के मध्य का विवाद नहीं था और इसी तरह की याचिका पर यही पीठ एक आदेश कुछ दिन पहले दे चुकी है। यदि गवई चाहते तो बिना किसी टिप्पणी के भी इस याचिका को खारिज कर सकते थे, कोई कुछ कहता. इसलिए उनकी ये टिप्पणियां अनजाने की गयी टिप्पणियां नहीं कहा जा सकता, जिनसे हिंदू समुदाय को एक उपेक्षा भरा संदेश मिला है कि आप धार्मिक शिकायतें लेकर सर्वोच्च न्यायालय न आयें, अपने आराध्य देव से प्रार्थना करके अपनी शिकायत का निवारण करवाये. लेकिन यदि ऐसा करना पड़ा तो हिन्दुओं को संविधान के अनुसार नहीं, धर्म ग्रंथो के अनुसार चलना पडेगा और संवैधानिक व्यवस्था चूर-चूर हो जाएगी, जिसके अंतर्गत ही सर्वोच्च न्यायालय का सम्मान है.

यदि गवई की टिप्पणी पर सूक्ष्मता से विचार किया जाए तो वह मूर्ति पूजा और हिंदू समुदाय का उपहास है, और यह घोषित विचारधारा इस्लामिक चरमपंथियों की है। क्या यही धर्म निरपेक्षता है, जिसके अनुसार यदि किसी चर्च, दरगाह और मस्जिद का मामला आएगा तो उस पर सुनवाई होगी और फैसला भी होगा, लेकिन हिन्दू धर्म स्थल का मामला उपहास करते हुए छोड़ दिया जाएगा। क्यों सर्वोच्च न्यायालय वक्फ बोर्ड मामले की सुनवाई कर रहा है? याचिका कर्ताओं से अल्लाह के पास जाने के लिए क्यों नहीं कहा गया. कृष्ण जन्मभूमि और ज्ञानवापी मंदिर के मामले में मुस्लिम समुदाय से अल्लाह के पास जाने के लिए कहा जा सकता था। विष्णु हरि मंदिर को तोड़कर बनाई गई संभल की विवादित जुमा मस्जिद भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है, तो उस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मुस्लिम समुदाय से क्यों नहीं कहा कि वह पुरातत्व विभाग के पास जाकर अपनी शिकायत करें, उसमें तो पुरातत्व सर्वेक्षण के कर्मचारी घुस भी नहीं पा रहे हैं.

गवई ने एक और टिप्पणी की, जो सबसे अधिक खतरनाक है, जिस पर मीडिया में चर्चा नहीं हुई. उन्होंने याचिकाकर्ता से कहा कि अगर शैववाद से कोई आपत्ति न हो तो शिवलिंग की पूजा कर सकते हैं, खुजराहो में सबसे बड़ा शिवलिंग है। इसका ये मतलब यह बिलकुल भी नहीं है कि गवई हिंदू धर्म के बारे में नहीं जानते बल्कि यह कहकर वह सनातन धर्म के शैव और वैष्णव, संप्रदायों के बीच का अंतर रेखांकित कर हिंदूओं को नए तरह से विभाजित करना चाहते हैं, जो आज के अंबेडकरवादी कर ही रहे हैं।

जिस समय गवई को मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति मिली तो मीडिया में यह चर्चा हुई कि वह भारत के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश हैं, जो सही भी है, लेकिन गवई ने प्रतिक्रिया व्यक्त करने में देर नहीं की और कहा कि वह भारत के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश हैं। भगवान बुद्ध को हिंदू धर्म के अनुसार विष्णु का अवतार माना जाता है, इसलिए बौद्ध धर्म को संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार हिन्दू धर्म का ही एक पंथ माना जाता है. तो क्या भगवान विष्णु का इतना अनादर करने वाला बौद्ध हो सकता है? शायद नहीं, वह बौद्ध तो बिल्कुल भी नहीं हो सकता, अंबेडकर वादी हो सकता है। अंबेडकर ने जो 22 प्रतिज्ञाएं ली थी, उनमें अधिकांश हिंदू धर्म के विरुद्ध थी. गवई आंबेडकरवादी बौद्ध हैं जिन्होंने मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद सपरिवार भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी की यात्रा की और बौद्ध जन्मभूमि जाने वाले पहले भारतीय मुख्य न्यायाधीश बने। उन्होंने बुद्ध के जन्म स्थान नेपाल को ‘विचारकों और सुधारकों का उद्गम स्थल’ बताया था, जिन्होंने विद्मान मानदंडों को चुनौती दी, नैतिक चिंतन को प्रेरित किया और समाज को बेहतर बनाने का प्रयास किया। गवई को ये जरूर ज्ञात होगा कि अभी हाल के नेपाल आन्दोलन में सर्वोच्च न्यायालय को आग के हवाले कर दिया गया था. इससे स्पष्ट है कि वह धार्मिक तो हैं, लेकिन मेरे विचार से धर्मनिरपेक्ष नहीं.

यद्दपि गवई ने कहा वह पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष हैं और उनकी टिप्पणियों को सोशल मीडिया पर गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया लेकिन उन्होंने जो कहा उस पर खेद प्रकट नहीं किया. हिन्दू विरोध यदि न्यायपालिका की धर्मनिरपेक्षता का पैमाना है तो वह धर्मनिरपेक्ष हैं और धर्मनिपेक्षों से हिंदू धर्म के प्रति सहिष्णुता या सहृदयता की आशा करना व्यर्थ है क्योंकि उनका उद्गम स्रोत कॉलेजियम एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें विशेष प्रकार के लोग ही न्यायाधीश बन पाते हैं. इसलिए स्वतंत्रता के बाद से आज तक किसी ने कोई ऐसा मुख्य न्यायाधीश नहीं देखा होगा जिसका हिंदू धर्म के प्रति पक्षधरता तो छोड़िए, सहृदयता और सहजता का भाव रहा हो।

11 साल से लगातार सत्ता में रहने के बाद भी मोदी सरकार न्यायपालिका के हिन्दू विरोधी स्वरूप में जरा भी परिवर्तन नहीं कर सकी है. अब यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि “सरकार मोदी की, लेकिन सिस्टम कांग्रेस का. इसलिए पूरे हिन्दू समाज का दायित्व है कि न्यायपालिका के प्रति सम्मान का भाव रखते हुए उसके हर हिन्दू विरोधी कार्य का खुलकर विरोध किया जाय और कोलेजियम व्यवस्था का तब तक तीव्र विरोध होना चाहिए जब तक यह नहीं समाप्त नहीं हो जाता क्योंकि यह विमर्शकारी वामपंथियों और चरमपंथियों का सबसे प्रभावी अड्डा है. जागृत हिन्दू समाज को अब और अधिक दबाया नहीं जा सकता, लेकिन सभी को इसकी अनुभूति कारवाना भी समय की माँग है.

~~~~~~~~~~~~ Shiv Prakash Mishra ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

शनिवार, 13 सितंबर 2025

नेपाल के बाद भारत की बारी ?

 


नेपाल के बाद भारत की बारी ? || नेपाल से पहले की गयी थी भारत में कोशिश लेकिन मोदी की सतर्कता के कारण ट्रम्प पीछे हटे || मलेशिया में राहुल गाँधी, अलेक्सेंडर सोरोस और जाकिर नाइक ने तय की नयी योजना


नेपाल में स्थिति अब लगभग साफ हो गई है और सत्ता परिवर्तन की जो मुहिम "जेन-जी" आंदोलन के रूप में शुरू की गई थी, वह अपने मुकाम पर पहुंच गई है। प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली इस्तीफा देकर फरार हो गए हैं. एक पूर्व प्रधानमंत्री को सेना ने बमुश्किल बचाया लेकिन उनकी पत्नी को जिंदा जला कर मार दिया गया. कई मंत्रियों के साथ हिंसा मारपीट की गई और सर्वोच्च न्यायालय सहित अनेक सरकारी भवनों को आग लगा दी गई । हिंसक उपद्रवी भीड़ ने जब पशुपति नाथ मंदिर पर हमला किया और तोड़ फोड़ शुरू की तो सेना को मोर्चा संभालना पडा. पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री बन गयी हैं जो यथाशीघ्र नई सरकार बनाने के लिए चुनाव करवाएंगी. चुनावी प्रक्रिया पूरी करने में 6 महीने से 1 वर्ष का समय लग सकता है तब तक नेपाल में अस्थिरता का वातावरण तो रहेगा ही । इस आंदोलन में पहली बार जेन-जी का नाम सामने आया जिसका मतलब होता है ऐसे लोग जिनकी उम्र 30 वर्ष से कम हो यानी इसमें अधिकांश छात्र हैं लेकिन इसे छात्र आंदोलन कहना इसलिए सही नहीं होगा क्योंकि पूरे आंदोलन की बागडोर कोई अदृश्य विदेशी शक्ति संभाल रही थी. इसमें धीरे-धीरे अराजक तत्व भी शामिल हो गए. इस्लामी कट्टरपंथी आतंकी संगठन हिजबुल आईएसआईएस और आईएसआई के भी शामिल हो जाने की सूचना मिली है क्योंकि पशुपतिनाथ मंदिर पर आक्रमण करने वाले ना तो हिंदू हो सकते हैं और न हीं नास्तिक ।

नेपाल की इस अद्भुत लगने वाली क्रांति ने केवल 2 दिन में प्रधानमंत्री को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया । फरार प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की वामपंथी सरकार के गिरने का रंच मात्र दुःख भारत को तो नहीं होना चाहिए क्योंकि वे नेपाल के हितों कीं अनदेखी कर चीन के लिए कार्य कर रहे थे. नेपाल की बहुत बड़े भूभाग पर चीन का कब्जा हो गया था लेकिन वह नया मानचित्र बना कर भारत के बड़े हिस्से को नेपाल का बता रहे थे. भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद और देश की बर्बादी के कारण जनता में उनके प्रति बेहद आक्रोश था. विडम्बना थी कि नेपाल की सरकार पक्ष और विपक्ष मिला कर चला रहे थे । इसलिए जमकर भ्रष्टाचार हो रहा था और यह बहुत बड़ा मुद्दा था, लेकिन पूरे आंदोलन में भ्रष्टाचार के अलावा सोशल मीडिया पर लगा प्रतिबंध भी एक बड़ा कारण रहा. इसलिए इस आंदोलन के पीछे बहुराष्ट्रीय अमेरिकी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और विदेशी शक्तियां ना हो ऐसा संभव नहीं।

कुछ समय पहले बांग्लादेश में इस तरह का हिंसक आंदोलन हुआ था और प्रधानमंत्री शेख हसीना को जान बचाकर भागना पड़ा था और भारत में शरण लेनी पड़ी थी. अंतरिम सरकार के रूप में अमेरिकी कठपुतली मोहम्मद यूनुस, जो दुर्भाग्य से नोबेल शांति पुरस्कार विजेता भी है, प्रधानमंत्री नियुक्त हुए लेकिन इतने लम्बे समय के बाद भी चुनाव कराने की स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है. वह सीधे अमेरिकी निर्देशों पर काम कर रहे हैं। उसके पहले श्रीलंका में भी इस तरह के हिंसक आंदोलन हुए थे और वहां भी राजनेताओं के विरुद्ध व्यापक संघर्ष हुआ था. वहां के राष्ट्रपति को जान बचाकर भागना पड़ा था. व्यापक हिंसा में सरकारी भवन, राष्ट्रपति भवन प्रधानमंत्री भवन को आग लगा दी गई थी और वहां के सामान लूट लिए गए थे. अराजकता का वीभत्स तांडव देखने को मिला जो सत्ता परिवर्तन का कारण बना। पाकिस्तान में वैसे तो बहुत कम समय ही चुनी हुई सरकार सत्ता में रह पाती है क्योंकि सेना जब चाहती है, सत्ता पर कब्जा कर लेती है. इसलिए इमरान खान को हटाये जाने की चर्चा बहुत ज्यादा मीडिया में नहीं हुई. इमरान की सरकार जनता द्वारा चुनी गई थी लेकिन जैसे ही उन्होंने अमेरिका के विरुद्ध बोलना शुरू किया, चुनाव में धांधली, भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर उनके विरुद्ध आंदोलन खड़ा किया गया और फिर सत्ता परिवर्तन हो गया और अब वे जेल में हैं । इस समय इंडोनेशिया में भी इस तरह का आंदोलन चलाया जा रहा है और कोई हैरत की बात नहीं कि थोड़े दिन में वहां भी सत्ता परिवर्तन देखने को मिले.

इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि सभी देश भारत के पड़ोसी देश हैं, जहाँ की घटनाओं के बाद भारत में यह माहौल बनाने की कोशिश की जाती है कि अब भारत में भी ऐसा होगा और मोदी सरकार का तख्ता पलट हो जाएगा । कांग्रेस काफी दिनों से इसकी आस लगाए बैठी है और इसके लिए खास प्रयास भी कर रही है लेकिन उसे इस कार्य में सफलता नहीं मिल रही है. ऐसा भी नहीं है कि भारत में इस तरह के प्रयास नहीं किये जा रहे हैं. वास्तव में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ही इस तरह के प्रयास शुरू हो गए थे क्योंकि अंतरराष्ट्रीय संगठन जो भारत में खुलकर खेल रहे थे, उनके काम पर मोदी सरकार ने अंकुश लगा दिया था. डीप स्टेट और विदेशी शक्तियों के इशारे पर काम करने वाले लाभार्थियों की दुकान बंद हो गई हैं. इनमें राजनेताओं के साथ पत्रकार, नौकरशाह, न्यायाधीश, सामाजिक और गैर सरकारी संगठनों के कर्ताधर्ता तथा प्रतिनिधि भी शामिल हैं । 2019 में मोदी सरकार की भारी बहुमत के साथ वापसी ने डीप स्टेट और कांग्रेस की नींद उड़ा दी. ये सब किसी भी हालत में मोदी सरकार को और बर्दाश्त नहीं करना चाहते हैं. इसलिए अमेरिकी एजेंसियों ने कुछ संगठनों के माध्यम से भारत में भी कार्यवाही तेज की. लोकतंत्र मजबूत करने, मतदाताओं को जागरूक करने आदि के नाम पर भारी भरकम राशि सरकार के विरुद्ध विमर्श तैयार करने मे की गयी ताकि उसे सत्ता से हटाया जा सके और अगर जरूरत पड़े तो जनता के आक्रोश के दम पर बड़ा जन आंदोलन खड़ा करके सरकार को सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सके, जैसा कि श्रीलंका, और बांग्लादेश मे हुआ और अब नेपाल में भी वहीं पटकथा दोहराई गई।

  1. मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए शाहीन बाग आंदोलन के नाम पर दिल्ली में 6 महीने तक जमावड़ा लगाया गया. दुर्भाग्य से सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस आंदोलन के विरोध में निर्णय देने के बजाय समझौते के लिए अपने वार्ताकार नियुक्त कर दिए, जिन्होंने स्थिति को और भी जटिल बना दिया. अंत में दिल्ली दंगे आयोजित किये गए. सरकार पर तो असर नहीं पड़ा लेकिन आंदोलन अपनी मौत मर गया ।  
  2. किसान आंदोलन के रूप में भारत में सत्ता परिवर्तन के लिए एक नया विमर्श खड़ा करने की कोशिश की गई. कथित आंदोलनकारी किसान दिल्ली की सीमाओं को घेर कर एक साल से भी अधिक समय तक बैठे रहे, जिससे अरबों रुपए का राष्ट्रीय नुकसान हुआ लेकिन इसे सरकार की परिपक्वता कहा जाय या कमजोरी, उसने आंदोलनकारियों के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग नहीं किया. मामला सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंचा लेकिन भारत की न्याय व्यवस्था विमर्शकारियों के प्रभाव से कभी अछूती नहीं रही. यद्यपि सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानून भारत की कृषि व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए बेहद उपयोगी थे लेकिन न्यायपालिका के असहयोग और कथित किसानों की हठधर्मिता के कारण सरकार ने कृषि कानून वापस ले लिये। कथित आंदोलनकारी सरकार द्वारा अचानक उठाये गए इस कदम के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे, इसलिए वे कृषि कानून वापस होने के बाद भी आंदोलन समाप्त करने के लिए तैयार नहीं हुए और न्यूनतम समर्थन मूल्य की संवैधानिक गारंटी को लेकर फिर से आंदोलन करने का प्रयास किया गया. गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजधानी दिल्ली में इन कथित किसानों द्वारा उपद्रव किया गया. तिरंगे का अपमान हुआ और लाल किले से तिरंगा हटाकर एक धर्म विशेष का झंडा लगाकर भारत के सामाजिक ताने-बाने को झुलसाने की कोशिश भी की गई. मीडिया के एक वर्ग ने इस आग में घी डालने का काम किया. भरपूर प्रयास किए गए कि गणतंत्र दिवस के अवसर पर लोगों को सड़क पर लाया जा सके और सरकार पर दबाव बनाकर सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सके लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 
  3. 2024 के आम चुनाव के लिए अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रकारियों, इस्लामिक चरमपंथियों और वामपंथियों ने विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस, के साथ मिलकर मोदी को चुनाव में मात देने की पूरी कोशिश की और वे आंशिक रूप से इसमें सफल भी हुए क्योंकि मोदी अपने दम पर बहुमत पाने से चूक गए लेकिन नायडू और नीतीश के सहारे सरकार बनाने में सफल हो गए । इन चुनावों में अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रकारियों का अभियान शायद सफल भी हो सकता था यदि जनता के बीच विपक्ष की थोड़ी सी भी साख होती, खासतौर से कांग्रेस की, जिसको जनता ने राष्ट्र विरोधी हरकतों के लिए अपने दिल दिमाग से निकाल दिया है. यही कारण है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा विदेशी शक्तियों से सांठ गांठ करके और इस्लामिक- वामपंथ गठजोड़ की बैसाखियों के सहारे भारत की सब्जा सत्ता पर कब्जा करने का सपना देख रही है.  

वैसे यह गांधी परिवार के लिए बड़ी बात नहीं है. नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक सभी इस कार्य में लिप्त रहे हैं. किसी का भी लगाव देश के प्रति दिखाई नहीं पड़ा. सबके दिल में भारत की सनातन संस्कृति और सनातन धर्म के प्रति बेहद नफरत का भाव है। उन्हें भारत भूमि से नहीं, उसकी सत्ता प्यार है. इसलिए सत्ता में रह कर कभी राष्ट्रहित की परवाह नहीं करते । नेहरू, इंदिरा, राजीव और सोनिया गांधी के नेतृत्व में चली कांग्रेस की कठपुतली सरकारों के देश विरोधी और हिंदू विरोधी कार्यों की एक लंबी सूची है। कांग्रेस सरकार का प्रधानमंत्री भले ही गांधी परिवार का ना हो लेकिन वह कांग्रेस की रीति नीति से अलग नहीं हो सकता. नरसिम्हा राव जैसे विद्वान व्यक्ति ने भी पूजा स्थल, वक्फ बोर्ड, अल्पसंख्यक आयोग को संवैधानिक दर्जा देने जैसे कई कानून बनाकर देश और सनातन धर्म का कितना नुकसान किया है, इसका सहज अनुमान लगाना मुश्किल है. मनमोहन सिंह का तो प्रधानमंत्री के रूप में कोई अस्तित्व ही नहीं था, सब कुछ सोनिया के राष्ट्रविरोधी और विदेशी सलाहकार करते थे। बेहाल राहुल विदेशी इशारे पर भारत के साथ ऐसा कुछ करना चाहते हैं, जो और उनके परिवार और कांग्रेस ने कभी न किया हो। वह दो मोर्चों पर एक साथ काम कर रहे हैं, पहला हिंदू समाज और सनातन धर्म को नष्ट भी करना चाहते हैं और दूसरा देश की सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं. हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म को नष्ट करते हुए सत्ता प्राप्त करें या सत्ता प्राप्त करके हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म नष्ट करे, लेकिन अंतिम लक्ष्य है भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाना, जो मुस्लिम भी चाहते हैं । इसलिए दोनों एक दुसरे के संपूरक हैं.

ऑपरेशन सिन्दूर के बाद अमेरिका और भारत के बिगड़ते संबंधो के बीच भी एक बहुत बड़ा षड़यंत्र किया गया जिसमें मोदी के दोंनो समर्थकों नितीश और नायडू को भाजपा से समर्थन वापसी के लिए दबाव बनाया गया. इसके लिए कांग्रेस ने एक उद्योग पति सहित उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ को भी मोहरा बनाया लेकिन मामले की भनक मोदी और अमित शाह को लग गयी जिससे अमेरिकी चाल बेकार हो गयी और राहुल गाँधी का सपना एकबार फिर टूट गया. जातिगत जनगणना, चुनाव आयोग पर प्रश्न चिन्ह लगाना और चुनाव प्रक्रिया को संदिग्ध बनाना डीप स्टेट का एजेंडा है, जिसे “वोट चोर गद्दी छोड़” नारा लगाकर राहुल गांधी दोहरा रहे हैं. कई बार अमेरिकी डीप स्टेट, राहुल गांधी के माध्यम से आंदोलन खड़ा करने की कोशिश कर चुका है लेकिन एक तो भारत की परिस्थितियों अलग है, जनता में सरकार के प्रति कोई आक्रोश नहीं है, कांग्रेस का भ्रष्टाचार और राष्ट्र विरोधी गतिविधियां जनता भूली नहीं है और राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता किसी को भी विश्वास नहीं है. इसलिए अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्रकारियों और कांग्रेस का तख्ता पलटने का एजेंडा कभी पूरा नहीं हो सकेगा। नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका बहुत छोटे देश हैं जिनकी तुलना में भारत बहुत बड़ा देश है, जिसकी अर्थव्यवस्था दुनिया की चौथी सबसे बड़ी है.

नरेंद्र मोदी के रूप में भारत को राजनैतिक रूप से कुशल और परिपक्व नेतृत्व प्राप्त है. पुलिस, अर्ध सैनिक बल, और सेना का अपना विशिष्ट चक्र व्यूह है. इसलिए भारत में पड़ोसी देशों की तरह तख्ता पलट की कोई संभावना नहीं है. फिर भी कोई आग न लगा सके, इसके लिए घर में रखे राजनैतिक, सामाजिक और सांप्रदायिक ज्वलनशील पदार्थों पर कठोर नियंत्रण और सतत निगरानी अत्यंत आवश्यक है. समूचे राष्ट्र को जागरूक रहने की आवश्यकता है.

~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~



शनिवार, 6 सितंबर 2025

और ……अब हलाल टाउनशिप !

 


और ……अब हलाल टाउनशिप ! || ग़ज़वा ए हिंद का आखिरी चरण प्रारम्भ


हलाल टाउनशिप का मामला सुर्खियों में है। मुंबई के नेरल-कर्जत क्षेत्र में एक हलाल टाउनशिप ने, केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, पूरे भारत में सनसनी फैला दी है। सोशल मीडिया पर इस हलाल टाउनशिप के विज्ञापन का वीडियो प्रसारित हो रहा है, जिसकी भाषा भी सांप्रदायिक और जहरीली है. इसमें कहा गया है कि “अगर किसी रिहायसी समिति में अपने सिद्धांतों से समझौता करना पड़े तो यह बिल्कुल भी सही नहीं है, इसलिए यह हलाल टाउनशिप केवल मुसलमानों के लिए बनाई गई है, जिसमें बच्चे हलाल वातावरण में सुरक्षित होकर पलेंगे और बढ़ेंगे. ये आपके पैसे का नहीं, आपके भविष्य का निवेश है.” आपको यह सुनने में असामान्य लग सकता है कि कोई भवन निर्माता ऐसी टाउनशिप का निर्माण कैसे कर सकता है जो सिर्फ मुसलमानों के लिए हो, लेकिन ऐसा तो हर उस देश में चुपचाप होता आया है जहाँ मुस्लिम होते हैं. भारत में भी यह बहुत पहले से हो रहा है. अबकी बार सार्वजानिक घोषणा करके, विज्ञापन देकर किया जा रहा है. जिसका मतलब है कि " हम ऐसा करेंगे, कोई क्या कर लेगा हमारा." यह एक चुनौती हैं, हिन्दुओं के साथ-साथ इस देश की संवैधानिक कानून और व्यवस्था के लिए भी। अतीत साक्षी है कि समुदाय विशेष की हठधर्मिता, कानून और व्यवस्था तोड़ने की जिहादी प्रवृत्ति के विरुद्ध भारत में कभी कुछ नहीं किया गया. इसलिए अबकी बार कुछ होगा, इसकी संभावना भी नहीं है। सबसे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हिंदुओं ने जिहादी दुष्कृत्यों के विरुद्ध कभी संगठित आवाज नहीं उठाई, क्योंकि हिंदुओं ने तो जैसे गांधी की बात को गांठ बांध लिया है कि उन्हें भाई चारा कायम रखने के लिए जिहादियों के हाथ मर मिटना चाहिए।

 

भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, अगर आप इसे शाब्दिक अर्थ में लेते हैं तो आप गलत सिद्ध हो जायेंगे । वास्तव में भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नहीं, धर्मनिरपेक्ष धर्मशाला है जिसमें हिंदू भले ही बहुसंख्यक हों लेकिन वे संविधान प्रदत्त धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हैं। संविधान में ही उनके साथ इस तरह का भेदभाव किया गया है, जो कालांतर में धीरे धीरे उनकी सनातन संस्कृति और धर्म को दीमक की तरह चट कर जाएगा। हर क्षेत्र में उनके साथ होने वाला भेदभाव असामान्य नहीं, संविधान प्रदत्त है। उन्हें अपने गुरुकुल खोलने का अधिकार नहीं है. धार्मिक शिक्षा देने का अधिकार नहीं है। उनके मंदिर स्वतंत्र नहीं, सरकार के अधीन हैं. जिनकी आय, हड़प कर सरकार दूसरे धर्मों पर खर्च करती है। उन पर अनेक सामाजिक आर्थिक और धार्मिक प्रतिबंध, संवैधानिक रूप से लगे हैं । इसके विपरीत दूसरे धर्म न केवल अपने विद्यालय / मदरसे खोलने के लिए स्वतंत्र हैं बल्कि ऐसी धार्मिक शिक्षा देने के लिए भी स्वतंत्र हैं जो राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए घातक है। उनके अपने व्यक्तिगत कानून है, चाहे भले ही वे राष्ट्र की धर्मनिरपेक्षता को तार तार करते राष्ट्र को टुकड़ों में बांटने को प्रेरित करते हो।

 

कर्जत में बन रही हलाल टाउनशिप की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसके 65% से अधिक फ्लैट हाथों हाथ बिक चुके हैं। बिल्डर का कहना है कि चूंकि इस टाउनशिप के लिए मुसलमानो ने ही अधिक आवेदन किया था इसलिए उसने इसे पूरी तरह मुसलमानों के लिए ही बना दिया और जब मुसलमानों के लिए बन रही है तो इसे हलाल होना ही चाहिए. अपने इस कुकृत्य को न्यायोचित ठहराते हुए उसका कहना है कि ज्यादातर जगह हिंदू, किसी मुसलमान को किराए पर मकान नहीं देते और अगर तैयार होते हैं तो मांसाहार न करने की शर्त लगा देते हैं। सोसाइटी के अन्दर कुर्बानी करने के लिए मना करते हैं. इसलिए हलाल टाउनशिप का निर्माण पूरी तरह संवैधानिक और न्यायोचित है। सोशल मीडिया में इस टाउनशिप के विज्ञापनों की भरमार है लेकिन सरकार ने अपने आप इस पर कोई कदम नहीं उठाया. अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भेज कर 2 हफ्ते में जवाब मांगा है कि कैसे रेरा ने इस परियोजना को अनुमति प्रदान की। विज्ञापन के कारण ही यह मामला सुर्ख़ियों में आया अन्यथा मीरा रोड, ठाणे जैसे अनेक स्थानों पर कई ऐसी सोसाइटी हैं जो केवल मुसमानो के लिए बनाई गयी हैं.


  1. हलाल का जाल अब केवल मांस तक सीमित नही रहा बल्कि यह दैनिक जीवन में प्रयोग किए जाने वाले सभी उत्पादों और सेवाओं पर फैल गया है. सौंदर्य प्रसाधन, घर गृहस्थी के सभी सामान, दवाइयां, अस्पताल, ईट, सीमेंट, सरिया, फ्लैट, विला साहित लगभग सभी वस्तुओं और सेवाओं पर हलाल का शिकंजा कस गया है. यही नहीं कच्चे माल, भण्डारण, और पूरी औद्योगिक इकाई पर भी हलाल प्रमाणन आवश्यक है। हलाल प्रमाणन के नाम पर उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं से बड़ी रकम वसूली जाती है, जिसका उपयोग इस्लामीकरण के लिए किया जाता है. जिसमे आतंकवाद, धर्मांतरण तथा जिहाद की परियोजनाओं को वित्तीय सहायता दी जाती हैं. जमीयत उलेमा-ए-हिंद जो भारत में हलाल प्रमाणन की सबसे बड़ी संस्था है, आतंकवादियों, दंगाइयों और मुस्लिम अपराधियों के मुकदमें लडती है और भारत के इस्लामीकरण के आन्दोलनों को धन देती है. गजवा ए हिन्द के कार्य को ये इस्लामिक आदेश मानते है. अयोध्या, मथुरा और काशी के मुकदमें हो या संशोधित नागरिकता कानून, समान नागरिक संहिता, वक्फ बोर्ड आदि के आन्दोलन सब को धन हलाल की कमाई से ही दिया जाता है.  

जैसा हमेशा होता आया है, मुसलमानों की प्रथाकतावादी और जिहादी गतिविधियों को धार्मिक और अल्पसंख्यक लवादा ओढ़ा कर बचाव किया जा रहा है. मुस्लिम राजनेताओं के साथ, महाराष्ट्र के कुछ हिंदू हृदय सम्राटों ने भी परियोजना के पक्ष में कुतर्क देकर समर्थन किया है।

पूरे भारत में हर शहर, कस्बे गांव में मुस्लिम संप्रदाय के लोग समूह में रहते हैं। तुष्टिकरण शास्त्री तर्क देते हैं कि यह असुरक्षा की अल्पसंख्यक मानसिकता है, जो सर्वथा गलत है। प्राय: हिंदू बाहुल्य गांव, कस्बे, शहर और मोहल्ले में, हाउसिंग सोसाइटी के अन्दर एक ही टावर में हिंदुओं के बीच अकेला मुस्लिम परिवार बड़े आराम से रहता है लेकिन मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में अकेला हिंदू रहने की सोच भी नहीं सकता। ऐसा क्यों है? इसके लाखो जवाब, मोपला से लेकर नोआखाली तक और कश्मीर से केरल तक बिखरे पड़े है। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में, जैसे ही हिंदू अल्पसंख्यक हो जाते हैं, उन्हें या तो पलायन या फिर धर्मांतरण को मजबूर किया जाता है.

भारत के नौ राज्यों जम्मू कश्मीर, मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल, पंजाब, लक्ष्यद्वीप और लद्दाख में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुकें हैं. 100 से भी अधिक जिलों में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं. यहाँ अब क्या होगा, अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. सुनियोजित रूप से समुदाय विशेष देश के लगभग 40% जिलों में ये चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने की स्थिति में आ चूका है. यह भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के जिहाद का हिस्सा है, जिसे "गजवा ए हिन्द" का नाम दिया गया है.

हलाल कुछ और नहीं जिहाद का अर्थ शास्त्र है. जिसके उत्पाद के बारे में मुस्लिम तर्क देते हैं कि यह उनके धर्म का हिस्सा है, लेकिन दुनिया में बहुत से ऐसे देश हैं जहां हलाल उत्पादन की अनुमति नहीं है, तो वहां मुसलमान कैसे रहते हैं. हलाल की धार्मिकता के अनुसार मुसलमान को दारुल इस्लाम में रहना चाहिए. भारत दारुल हरम है जहाँ मुसलमानों का रहना हराम है. दारुल हरम में रहने वाले मुसलमान को जहन्नुम की आग में जलना पड़ता है और भयंकर यातनाएं सहनी पड़ती हैं, लेकिन मुसलमान यहां रहते हैं और घुसपैठ करके आ भी रहे हैं। वास्तविकता में हलाल, जिहाद का हथियार हैं, जिसे नए-नए क्षेत्रों में आजमाया जा रहा है। भारत में अनजाने में गैर मुस्लिम कितने ही हलाल उत्पाद इस्लेमाल करते हैं, शायद उन्हें भी नहीं मालूम होगा। बस, रेल और वायुयान में बड़ी संख्या में हलाल प्रमाणित खानपान की वस्तुएं दी जा रही है. इसका मुख्य कारण है कि एक ओर जहां इससे मुसलमानो की मांग पूरी हो जाती है तो वहीं हिंदुओं और दूसरे गैर मुस्लिम समुदाय द्वारा इस पर कोई आपत्ति नहीं की जाती है, क्योंकि हिन्दू तो जागरूक ही नहीं होते और उन्हें इसकी चिंता भी नहीं होती कि वे क्या खा रहे हैं और क्यों खा रहे हैं।

भारत ऐसा राष्ट्र है, जहाँ जिहादियों के हाथों 10 करोड़ से भी अधिक हिंदुओं, बौद्धों, सिखों और जैनियों का नरसंहार हुआ. ये पृथ्वी पर मानव सभ्यता का सबसे बड़ा नरसंहार है. किसने किया? क्यों किया? इस पर हमेशा विचार करते रहने की आवश्यकता है, लेकिन इससे भी बड़ी बात है कि जिन महान लोगों ने मरना स्वीकार किया, धर्मान्तरण नहीं किया, उन पर गर्व करने की आवश्यकता है. उनका मान रखने के लिए, हमें यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि अब इतिहास नहीं दोहराने दिया जाएगा, चाहे इसके लिए कोई भी त्याग क्यों न करना पड़े.

गाँधी और नेहरू की तरह मुस्लिम तुष्टिकरण करने वालो से अत्यधिक सावधान रहने आवश्यकता है, जिन्होंने हिन्दुओं के साथ विश्वासघात किया और भारत को धर्मनिरपेक्ष धर्मशाला बना दिया. विश्व का इतिहास साक्षी है कि जिन देशों में तुष्टिकरण हुआ, डेमोग्राफी बदल गयी. मोपला, और नोआखाली जैसे कांड हुए. कालांतर में सब के सब इस्लामिक राष्ट्र बन गये.

संभल हिंसा रिपोर्ट, सच्चाई की एक बहुत छोटी सी झलक


संभल हिंसा रिपोर्ट, सच्चाई की एक बहुत छोटी सी झलक || पूरा देश संभल होने के कगार पर || कांग्रेस भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने को आतुर


नवंबर 2024 में उत्तर प्रदेश के संभल में विवादित जुमा मस्जिद के न्यायिक सर्वेक्षण के दौरान काफी हिंसा हुई थी. मस्जिद से आवाहन करके बुलाई गई विशेष संप्रदाय की भीड़ ने पुलिस पर अचानक आक्रमण किया जिसके जवाब में पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। मुस्लिम पक्ष के दो समुदायों, तुर्कों और पठानों के बीच बरसों से चल रही रंजिश ने भी घातक संघर्ष का रूप ले लिया। दोनों पक्षों में आपस में जमकर फायरिंग हुई जिसमें चार लोगों की मृत्यु हो गई और कई लोग घायल हो गए, लेकिन तुष्टिकरण में लिप्त राजनीतिक दलों ने आसमान सिर पर उठा लिया और मुसलमानों की आपसी हिंसा में मारे गए लोगों को पुलिस द्वारा की गई हत्या करार दिया. सपा ने तो मृतकों के घर जाकर ५-५ लाख रुपये की नकद धनराशि भेंट की थी.

यह हिंसा उस समय हुई जब न्यायालय द्वारा नियुक्त कोर्ट कमिश्नर और उनके साथ दोनों पक्षों के वकील विवादित जामा मस्जिद के सर्वे के लिए जा रहे थे. योगी सरकार की कार्य कुशलता और पुलिस की तत्परता से हिंसा पर रोक तो लग गई लेकिन राजनीतिक आरोपों के परिपेक्ष में घटना की विस्तृत जांच के लिए एक तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन कर दिया. प्रयागराज उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवेंद्र कुमार अरोड़ा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग ने संभल हिंसा पर अपनी रिपोर्ट उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप दी है. न्यायिक आयोग के अन्य सदस्यों में भारतीय पुलिस सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी अरविंद कुमार जैन और भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्ति अधिकारी अमित मोहन प्रसाद भी शामिल थे.

संभल में विष्णु हरि मंदिर को तोड़कर बनाई गई जुमा मस्जिद का ताजा विवाद पिछले साल 19 नवंबर से तब शुरू हुआ जब अधिवक्ता हरि शंकर जैन और विष्णु शंकर जैन सहित हिंदू याचिकाकर्ताओं ने संभल जिला अदालत में एक याचिका दायर की कि शाही जुमा मस्जिद हरि मंदिर के ऊपर बनाई गई है. अदालत ने सर्वेक्षण का आदेश देकर कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति कर दी. कोर्ट कमिश्नर के साथ दोनों पक्षों के वकील 19 नवंबर को विवादित जुमा मस्जिद में सर्वेक्षण के लिए गए और सर्वेक्षण का कार्य भी किया. सर्वेक्षण के शेष बचे कार्यों को पूरा करने के लिए 24 नवंबर को कोर्ट कमिश्नर पुनः विवादित जुमा मस्जिद में पहुंचे. सुंनयोजित षड्यंत्र के अंतर्गत विवादित मस्जिद से लाउडस्पीकर द्वारा घोषणा करके समुदाय विशेष के लोगों की भीड़ एकत्र की गई, जिसने कोर्ट कमिश्नर, हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं और पुलिस पर जान लेवा हमला किया गया. परिणामस्वरूप चार लोगों की मौत हो गई और 29 पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए. पुलिस ने हिंसा के सिलसिले में समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर्रहमान बर्क और मस्जिद समिति के प्रमुख ज़फर अली के खिलाफ मामला दर्ज किया, साथ ही 2,750 अज्ञात लोगों के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की. इनमें कई वांछित अपराधियों को जेल भेजा जा चुका है और अनेक अभी भी फरार चल रहे हैं.

450 पन्नों की न्यायिक आयोग की रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी गई है जिसमें न केवल 24 नवंबर 2024 को हुई हिंसा का विस्तृत विवरण दिया गया है बल्कि अब तक हुई प्रमुख हिंसात्मक घटनाओं और दंगों का भी वर्णन किया गया है. इसमें बताया गया है कि संभल में हिंदुओं की आबादी बहुत तेजी से घट रही है. स्वतंत्रता के समय 1947 में संभल में हिंदुओं की आबादी 45% से अधिक थी जो 2025 में घटकर केवल 15% रह गई है. इन 78 सालों में 30% कम हुई हिंदू आबादी का कारण है, आजादी के बाद 1947, 1948, 1953, 1958, 1962, 1976, 1978, 1980, 1990, 1992, 1995, 2001, 2019 में 15 से अधिक सुनियोजित दंगों में किए गए हिंदू नरसंहार की घटनाये, भयाक्रांत हिंदुओं का पलायन, और जबरन धर्मांतरण. 1978 के दंगे के बाद हिंदुओं की संख्या तेजी से घटती चली गई। रिपोर्ट में हरिहर मंदिर के ऐतिहासिक अस्तित्व के साक्ष्य मिलने का वर्णन किया गया है। बाबर के समय से हिंदुओं के लगातार दमन, जनसंख्या बदलाव, सुनियोजित दंगे, आतंकी नेटवर्क, तथा नशे के कारोबार सहित कई गैर कानूनी कार्यों का भी वर्णन किया गया है. संभल में दंगों का आयोजन हिंदुओं की संपत्तियों पर कब्जा करने, डरा धमकाकर उन्हें पलायन करने के लिए विवश करने और जबरन धर्मांतरण करने के लिए किया जाता था. संभल कई सारे आतंकवादी संगठनों का अड्डा बन चुका है. दंगों में विदेशी हथियारों का प्रयोग किया गया था, इसके साक्ष्‍य भी न्‍यायिक आयोग को मिले हैं।

रिपोर्ट में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर रहमान वर्क ने उकसाने वाला भाषण दिया और मुसलमान से कहा कि वह इस देश के मालिक हैं. संभल की जामा मस्जिद हमारी थी, हमारी है और हमारी रहेगी, वह इसे बाबरी मस्जिद की तरह छीनने नहीं देंगे. रिपोर्ट में संभल को आतंकी संगठनों के अड्डे के तौर पर चिन्हित किया गया है. अलकायदा और हरकत-उल-मुजाहिद्दीन जैसे संगठनों की गतिविधियों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि अवैध हथियार और नशे के कारोबारी बहुत पहले से सक्रिय हैं. अमेरिका ने जिस मौलाना आसिम उर्फ सना-उल-हक को आतंकवादी घोषित किया था, उसका सम्बन्ध भी सम्भल से बताया गया है.

24 नवंबर 2024 को जिस दिन हिंसा हुई थी उस दिन एक बड़ा दंगा आयोजित करने की योजना बनाई गई थी जिसके लिए बाहर से भी उपद्रवियों को बुलाया गया था, लेकिन भारी मौजूदगी से बड़ा नुकसान टल गया। यह भी सामने आया है कि दंगों की आड़ में हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया गया. संभल के 68 तीर्थ स्थलों और 19 पावन कूपों पर कब्जे की घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि यह सब योजनाबद्ध तरीके से किया गया. हरिहर मंदिर पर कब्जे के प्रयासों का भी जिक्र है. योगी सरकार ने इन तीर्थ स्थलों और पावन कूपों के पुनरुद्धार के लिए योजना बना कर 30 मई 2025 को इसका शिलान्यास भी कर दिया है .

न्यायिक आयोग की रिपोर्ट में 24 नवंबर 2024 को हुई हिंसक घटना से सम्बंधित साक्ष्यों के अतिरिक्त, सब कुछ पहले से ही उपलब्ध है जिसे लगातार राजनीतिक कारणों से अनदेखा किया जाता रहा है.

संभल स्थित हरिहर मंदिर का महत्व यह है कि पौराणिक वर्णन के अनुसार यहां पर कलयुग में भगवान विष्णु का कलकी अवतार होना है. इस कारण इस मंदिर का पौराणिक और अत्यंत धार्मिक महत्व हजारों वर्षो से है, जिसके कारण ही उसे बाबर के सिपह-सालार द्वारा तोड़ा गया था. इतिहास में इसका वर्णन है. सबसे प्रमाणिक वर्णन सीताराम गोयल ने अपनी पुस्तक “हिन्दू टेम्प्ल व्हाट हैपनड टू देम” में किया है. इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि हरि मंदिर को तोड़कर ही जुम्मा मस्जिद का निर्माण किया गया था. यह विवादित मस्जिद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के स्वामित्व में है लेकिन राजनीतिक संरक्षण में स्थानीय मुसलमानो ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के कर्मचारियों को खदेड़ दिया. आज पुरातत्व विभाग का कोई भी कर्मचारी मस्जिद के अंदर घुसने की हिम्मत नहीं कर सकता. षड्यंत्र के तहत ऐसा करने का कारण यह था ताकि मस्जिद के अंदर मनचाहा नया निर्माण करवाया जा सके. मस्जिद की इंतजामियां समिति ने दीवारों पर मोटा प्लास्टर करवा कर उनपर अंकित देवी देवताओं के चित्रों और हिंदू प्रतीक चिन्हों को ढकवा दिया. बाहरी दीवारों पर ऐसे रासायनिक रंग रोगन की पुताई करवा कर उस पर उकेरे गए हिंदू प्रतीक चिन्हों को ढकने के साथ-साथ उसे अत्यंत कमजोर बना देने का कार्य किया ताकि वह आसानी से टूट कर गिर जाए और फिर उसकी जगह नया निर्माण करवाया जा सके. मस्जिद परिसर के अंदर पवित्र कूप स्थित है जहां पर शादी -विवाह के समय हिंदू अपनी रस्म अदायगी करने जाते थे लेकिन मुलायम सिंह की तत्कालीन सरकार के समय इसे बंद करवा दिया गया. देवी देवताओं की मूर्तियों के कक्ष के बाहर नई दीवारे खड़ी करके उन्हें स्थाई रूप से ढक दिया गया. न्यायिक सर्वेक्षण के दौरान हुई हिंसा के बाद गस्त के दौरान पुलिस को कई हिंदू मंदिर, कूप और तीर्थ स्थल मिले, जिनमें कई का जीर्णोद्धार किया जा चुका है. पवित्र तीर्थ और कूपों के संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री योगी ने योजना बना कर कार्य शुरू किया है, जो सनातन संस्कृति के संरक्षण की दिशा में किया गया प्रशंसनीय कदम है.

जहां तक संभल में जनसंख्या परिवर्तन का प्रश्न है, यह स्थिति पूरे भारत अनेक स्थानों की है. गजवा-ए-हिंद के षड्यंत्र के अंतर्गत भारत को जल्द से जल्द इस्लामी राष्ट्र बनाने के लिए जनसंख्या परिवर्तन एक महत्वपूर्ण एजेंडा है जिसके लिए, अधिक से अधिक संताने उत्पन्न करने के साथ-साथ अवैध घुसपैठ को जिहादी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. एक मुस्त वोटो के लालच में भारत के ज्यादातर राजनीतिक दल तुष्टिकरण में इतना गिर चुके हैं कि उन्हें भारत के इस्लामिक राष्ट्र हो जाने की की चिंता नहीं है. गांधी और नेहरू ने गजवा-ए-हिंद के अनुपालन में ही भारत के विभाजन और पाकिस्तान बनाने का कार्य किया था. विभाजन के बाद भी कालांतर में हिंदुस्तान को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिए इसे धर्मनिरपेक्षता की धर्मशाला बना दिया और मुसलमानों को पाकिस्तान जाने नहीं दिया. यह सब भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने के कांग्रेस के कुत्सित षडयंत्र का हिस्सा है. भाजपा को यदि अपवाद माना जाए तो आज स्थिति यह है कि सभी दल किसी न किसी रूप में गजवा ए हिंद के लिए ही काम कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस हिन्दू विरोधी मुस्लिम संगठन के रूप में कार्य कर रही है जिसका उद्देश्य भारत को जल्दी से जल्दी इस्लामिक राष्ट्र बनाना है.

देर तो बहुत हो चुकी है लेकिन अभी भी कुछ न कुछ किया जा सकता है जिसके लिए सभी राष्ट्रभक्तों को एक जुट होकर पाशविक शक्तियों से संघर्ष करना होगा. अन्यथा जब भारत ही नहीं बचेगा तो संभल, अयोध्या, काशी और मथुरा कैसे बच पाएंगे?

~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~`

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