शनिवार, 6 सितंबर 2025

और ……अब हलाल टाउनशिप !

 


और ……अब हलाल टाउनशिप ! || ग़ज़वा ए हिंद का आखिरी चरण प्रारम्भ


हलाल टाउनशिप का मामला सुर्खियों में है। मुंबई के नेरल-कर्जत क्षेत्र में एक हलाल टाउनशिप ने, केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, पूरे भारत में सनसनी फैला दी है। सोशल मीडिया पर इस हलाल टाउनशिप के विज्ञापन का वीडियो प्रसारित हो रहा है, जिसकी भाषा भी सांप्रदायिक और जहरीली है. इसमें कहा गया है कि “अगर किसी रिहायसी समिति में अपने सिद्धांतों से समझौता करना पड़े तो यह बिल्कुल भी सही नहीं है, इसलिए यह हलाल टाउनशिप केवल मुसलमानों के लिए बनाई गई है, जिसमें बच्चे हलाल वातावरण में सुरक्षित होकर पलेंगे और बढ़ेंगे. ये आपके पैसे का नहीं, आपके भविष्य का निवेश है.” आपको यह सुनने में असामान्य लग सकता है कि कोई भवन निर्माता ऐसी टाउनशिप का निर्माण कैसे कर सकता है जो सिर्फ मुसलमानों के लिए हो, लेकिन ऐसा तो हर उस देश में चुपचाप होता आया है जहाँ मुस्लिम होते हैं. भारत में भी यह बहुत पहले से हो रहा है. अबकी बार सार्वजानिक घोषणा करके, विज्ञापन देकर किया जा रहा है. जिसका मतलब है कि " हम ऐसा करेंगे, कोई क्या कर लेगा हमारा." यह एक चुनौती हैं, हिन्दुओं के साथ-साथ इस देश की संवैधानिक कानून और व्यवस्था के लिए भी। अतीत साक्षी है कि समुदाय विशेष की हठधर्मिता, कानून और व्यवस्था तोड़ने की जिहादी प्रवृत्ति के विरुद्ध भारत में कभी कुछ नहीं किया गया. इसलिए अबकी बार कुछ होगा, इसकी संभावना भी नहीं है। सबसे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हिंदुओं ने जिहादी दुष्कृत्यों के विरुद्ध कभी संगठित आवाज नहीं उठाई, क्योंकि हिंदुओं ने तो जैसे गांधी की बात को गांठ बांध लिया है कि उन्हें भाई चारा कायम रखने के लिए जिहादियों के हाथ मर मिटना चाहिए।

 

भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, अगर आप इसे शाब्दिक अर्थ में लेते हैं तो आप गलत सिद्ध हो जायेंगे । वास्तव में भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नहीं, धर्मनिरपेक्ष धर्मशाला है जिसमें हिंदू भले ही बहुसंख्यक हों लेकिन वे संविधान प्रदत्त धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हैं। संविधान में ही उनके साथ इस तरह का भेदभाव किया गया है, जो कालांतर में धीरे धीरे उनकी सनातन संस्कृति और धर्म को दीमक की तरह चट कर जाएगा। हर क्षेत्र में उनके साथ होने वाला भेदभाव असामान्य नहीं, संविधान प्रदत्त है। उन्हें अपने गुरुकुल खोलने का अधिकार नहीं है. धार्मिक शिक्षा देने का अधिकार नहीं है। उनके मंदिर स्वतंत्र नहीं, सरकार के अधीन हैं. जिनकी आय, हड़प कर सरकार दूसरे धर्मों पर खर्च करती है। उन पर अनेक सामाजिक आर्थिक और धार्मिक प्रतिबंध, संवैधानिक रूप से लगे हैं । इसके विपरीत दूसरे धर्म न केवल अपने विद्यालय / मदरसे खोलने के लिए स्वतंत्र हैं बल्कि ऐसी धार्मिक शिक्षा देने के लिए भी स्वतंत्र हैं जो राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए घातक है। उनके अपने व्यक्तिगत कानून है, चाहे भले ही वे राष्ट्र की धर्मनिरपेक्षता को तार तार करते राष्ट्र को टुकड़ों में बांटने को प्रेरित करते हो।

 

कर्जत में बन रही हलाल टाउनशिप की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसके 65% से अधिक फ्लैट हाथों हाथ बिक चुके हैं। बिल्डर का कहना है कि चूंकि इस टाउनशिप के लिए मुसलमानो ने ही अधिक आवेदन किया था इसलिए उसने इसे पूरी तरह मुसलमानों के लिए ही बना दिया और जब मुसलमानों के लिए बन रही है तो इसे हलाल होना ही चाहिए. अपने इस कुकृत्य को न्यायोचित ठहराते हुए उसका कहना है कि ज्यादातर जगह हिंदू, किसी मुसलमान को किराए पर मकान नहीं देते और अगर तैयार होते हैं तो मांसाहार न करने की शर्त लगा देते हैं। सोसाइटी के अन्दर कुर्बानी करने के लिए मना करते हैं. इसलिए हलाल टाउनशिप का निर्माण पूरी तरह संवैधानिक और न्यायोचित है। सोशल मीडिया में इस टाउनशिप के विज्ञापनों की भरमार है लेकिन सरकार ने अपने आप इस पर कोई कदम नहीं उठाया. अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भेज कर 2 हफ्ते में जवाब मांगा है कि कैसे रेरा ने इस परियोजना को अनुमति प्रदान की। विज्ञापन के कारण ही यह मामला सुर्ख़ियों में आया अन्यथा मीरा रोड, ठाणे जैसे अनेक स्थानों पर कई ऐसी सोसाइटी हैं जो केवल मुसमानो के लिए बनाई गयी हैं.


  1. हलाल का जाल अब केवल मांस तक सीमित नही रहा बल्कि यह दैनिक जीवन में प्रयोग किए जाने वाले सभी उत्पादों और सेवाओं पर फैल गया है. सौंदर्य प्रसाधन, घर गृहस्थी के सभी सामान, दवाइयां, अस्पताल, ईट, सीमेंट, सरिया, फ्लैट, विला साहित लगभग सभी वस्तुओं और सेवाओं पर हलाल का शिकंजा कस गया है. यही नहीं कच्चे माल, भण्डारण, और पूरी औद्योगिक इकाई पर भी हलाल प्रमाणन आवश्यक है। हलाल प्रमाणन के नाम पर उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं से बड़ी रकम वसूली जाती है, जिसका उपयोग इस्लामीकरण के लिए किया जाता है. जिसमे आतंकवाद, धर्मांतरण तथा जिहाद की परियोजनाओं को वित्तीय सहायता दी जाती हैं. जमीयत उलेमा-ए-हिंद जो भारत में हलाल प्रमाणन की सबसे बड़ी संस्था है, आतंकवादियों, दंगाइयों और मुस्लिम अपराधियों के मुकदमें लडती है और भारत के इस्लामीकरण के आन्दोलनों को धन देती है. गजवा ए हिन्द के कार्य को ये इस्लामिक आदेश मानते है. अयोध्या, मथुरा और काशी के मुकदमें हो या संशोधित नागरिकता कानून, समान नागरिक संहिता, वक्फ बोर्ड आदि के आन्दोलन सब को धन हलाल की कमाई से ही दिया जाता है.  

जैसा हमेशा होता आया है, मुसलमानों की प्रथाकतावादी और जिहादी गतिविधियों को धार्मिक और अल्पसंख्यक लवादा ओढ़ा कर बचाव किया जा रहा है. मुस्लिम राजनेताओं के साथ, महाराष्ट्र के कुछ हिंदू हृदय सम्राटों ने भी परियोजना के पक्ष में कुतर्क देकर समर्थन किया है।

पूरे भारत में हर शहर, कस्बे गांव में मुस्लिम संप्रदाय के लोग समूह में रहते हैं। तुष्टिकरण शास्त्री तर्क देते हैं कि यह असुरक्षा की अल्पसंख्यक मानसिकता है, जो सर्वथा गलत है। प्राय: हिंदू बाहुल्य गांव, कस्बे, शहर और मोहल्ले में, हाउसिंग सोसाइटी के अन्दर एक ही टावर में हिंदुओं के बीच अकेला मुस्लिम परिवार बड़े आराम से रहता है लेकिन मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में अकेला हिंदू रहने की सोच भी नहीं सकता। ऐसा क्यों है? इसके लाखो जवाब, मोपला से लेकर नोआखाली तक और कश्मीर से केरल तक बिखरे पड़े है। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में, जैसे ही हिंदू अल्पसंख्यक हो जाते हैं, उन्हें या तो पलायन या फिर धर्मांतरण को मजबूर किया जाता है.

भारत के नौ राज्यों जम्मू कश्मीर, मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल, पंजाब, लक्ष्यद्वीप और लद्दाख में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुकें हैं. 100 से भी अधिक जिलों में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं. यहाँ अब क्या होगा, अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. सुनियोजित रूप से समुदाय विशेष देश के लगभग 40% जिलों में ये चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने की स्थिति में आ चूका है. यह भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के जिहाद का हिस्सा है, जिसे "गजवा ए हिन्द" का नाम दिया गया है.

हलाल कुछ और नहीं जिहाद का अर्थ शास्त्र है. जिसके उत्पाद के बारे में मुस्लिम तर्क देते हैं कि यह उनके धर्म का हिस्सा है, लेकिन दुनिया में बहुत से ऐसे देश हैं जहां हलाल उत्पादन की अनुमति नहीं है, तो वहां मुसलमान कैसे रहते हैं. हलाल की धार्मिकता के अनुसार मुसलमान को दारुल इस्लाम में रहना चाहिए. भारत दारुल हरम है जहाँ मुसलमानों का रहना हराम है. दारुल हरम में रहने वाले मुसलमान को जहन्नुम की आग में जलना पड़ता है और भयंकर यातनाएं सहनी पड़ती हैं, लेकिन मुसलमान यहां रहते हैं और घुसपैठ करके आ भी रहे हैं। वास्तविकता में हलाल, जिहाद का हथियार हैं, जिसे नए-नए क्षेत्रों में आजमाया जा रहा है। भारत में अनजाने में गैर मुस्लिम कितने ही हलाल उत्पाद इस्लेमाल करते हैं, शायद उन्हें भी नहीं मालूम होगा। बस, रेल और वायुयान में बड़ी संख्या में हलाल प्रमाणित खानपान की वस्तुएं दी जा रही है. इसका मुख्य कारण है कि एक ओर जहां इससे मुसलमानो की मांग पूरी हो जाती है तो वहीं हिंदुओं और दूसरे गैर मुस्लिम समुदाय द्वारा इस पर कोई आपत्ति नहीं की जाती है, क्योंकि हिन्दू तो जागरूक ही नहीं होते और उन्हें इसकी चिंता भी नहीं होती कि वे क्या खा रहे हैं और क्यों खा रहे हैं।

भारत ऐसा राष्ट्र है, जहाँ जिहादियों के हाथों 10 करोड़ से भी अधिक हिंदुओं, बौद्धों, सिखों और जैनियों का नरसंहार हुआ. ये पृथ्वी पर मानव सभ्यता का सबसे बड़ा नरसंहार है. किसने किया? क्यों किया? इस पर हमेशा विचार करते रहने की आवश्यकता है, लेकिन इससे भी बड़ी बात है कि जिन महान लोगों ने मरना स्वीकार किया, धर्मान्तरण नहीं किया, उन पर गर्व करने की आवश्यकता है. उनका मान रखने के लिए, हमें यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि अब इतिहास नहीं दोहराने दिया जाएगा, चाहे इसके लिए कोई भी त्याग क्यों न करना पड़े.

गाँधी और नेहरू की तरह मुस्लिम तुष्टिकरण करने वालो से अत्यधिक सावधान रहने आवश्यकता है, जिन्होंने हिन्दुओं के साथ विश्वासघात किया और भारत को धर्मनिरपेक्ष धर्मशाला बना दिया. विश्व का इतिहास साक्षी है कि जिन देशों में तुष्टिकरण हुआ, डेमोग्राफी बदल गयी. मोपला, और नोआखाली जैसे कांड हुए. कालांतर में सब के सब इस्लामिक राष्ट्र बन गये.

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