मंगलवार, 22 जुलाई 2025
शनिवार, 19 जुलाई 2025
कांवड़ यात्रा पर आतंकी हमला ?
कांवड़ यात्रा पर आतंकी हमला ?
हिंदुओं की इस भूमि पर हिंदुओं का ही जीना दूभर हो जाए और वे अपने पर्व त्यौहार भी श्रद्धा और भक्ति के साथ शांति पूर्वक न मना सकें, इससे बड़ा दुर्भाग्य हिंदुओं का और इस देश का, नहीं हो सकता. हिन्दुओं की कोई भी धार्मिक शोभायात्रा ऐसी ही नहीं होती जिसमें व्यवधान न डाला जाता हो. अगर शोभा यात्रा के रास्ते में कोई मस्जिद पड़ रही हो तो इस बात की संभावना बहुत ज्यादा है कि उसमें व्यवधान डालने की पहले से ही तैयारी कर ली जाती है. कभी कभी डीजे की तेज आवाज, तो कभी किसी अन्य झूठे कारणों से पत्थरबाजी और सांप्रदायिक संघर्ष शुरू कर दिया जाता है. सबसे दुखद स्थिति यह होती है कि सभी राजनैतिक दल मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ मिलकर हिंदुओं को कटघरे में खड़ा कर देते हैं. सनातन धर्म पर लांछन लगाए जाते हैं और मानसिक रूप से हिंदुओं को इतना प्रताड़ित करने की कोशिश की जाती है कि अगली बार से वे इस तरह की शोभा यात्रियों का हिस्सा न बने. पश्चिम बंगाल केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में तो हिंदू तीज त्योहारों की शोभा यात्रायें सुरक्षित रूप से निकालना असंभव है. पहले तो राज्य सरकारे ही उस पर प्रतिबंध लगा देती हैं और अगर उच्च न्यायालय के आदेश के बाद शोभा यात्राएं निकलती भी है तो उन पर सुनियोजित रूप से हमले किए जाना सामान्य बात हो गई है. इस सब का दूरगामी परिणाम यह हुआ कि चूंकि इन राज्यों में सनातन धर्म को नष्ट करने के जेहादी प्रयासों को सरकारी संरक्षण प्राप्त हो जाता है, इसलिए अधिकांश हिंदू सार्वजनिक रूप से मनाए जाने वाले आयोजनों से विमुख होता जा रहा है. पाकिस्तान और बांग्लादेश के सभी प्रमुख हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया है. पाक अधिकृत कश्मीर की शारदा पीठ पूरी तरह से नष्ट कर दी गई है. जम्मू-कश्मीर में भी स्थिति बहुत अलग नहीं है. साल में एक बार पड़ने वाली अमरनाथ यात्रा तमाम सरकारी प्रयासों के बाद भी डर के माहौल में ही संपन्न होती है. यही हाल वैष्णो देवी यात्रा का भी है. कुछ अंतराल पर कोई न कोई घटना घटती रहती है जो हिंदू तीर्थयात्रियों को मानसिक रूप से प्रताड़ित करती है और सुरक्षा कारणों से बड़ी संख्या में लोग इन तीर्थयात्रियों में चाहते हुए भी नहीं जाते यद्दपि ये यात्राये मुसलमानों की रोजी रोटी से जुडी हैं.
पिछले कुछ वर्षों से कांवड़यात्रा मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर है. कांवड़ यात्रियों की श्रद्धा-भक्ति में शारीरिक तथा मानसिक स्वच्छता, शुद्ध और सात्विक भोजन, संयमित, नशामुक्त एवं ब्रह्मचर्य पालन का विशेष महत्त्व है. कांवड़ यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले कई भोजनालय, ढाबे और खाद्य पदार्थों की दुकानें मुस्लिम समुदाय के लोग छद्म हिन्दू नाम, और देवी देवताओं के नाम से खोलते हैं. अतीत में ऐसी शिकायतें मिलती रही है कि कि छद्म नाम के इन भोजनालयों के भोजन और खाद्य पदार्थों में मल, मूत्र और थूंक मिलाकर कांवड़ियों की श्रद्धा और भक्ति के साथ खिलवाड़ किया जाता है. मुस्लिम तुष्टीकरण में लिप्त सरकारों ने इन शिकायतों पर कभी कोई संज्ञान नहीं लिया जिससे ऐसे हिंदू विरोधी अराजक तत्वों का मनोबल बढ़ता रहा. इस समस्या के समाधान के लिए पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा मार्ग में पड़ने वाले दुकानदारों के लिए दिशा निर्देश जारी किए थे जिसके अंतर्गत प्रत्येक दुकानदार को अपना नाम तथा मोबाइल नंबर स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया जाना था लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों, जो हिंदुओं से व्यापार करके फायदा तो कमाना चाहते हैं लेकिन धोखा जिहाद से धर्म भी भ्रष्ट करना चाहते हैं, को ये रास नहीं आया. इसलिए कट्टरपंथी मुल्लाओं, मौलानाओं के माध्यम से विरोध किया गया, जिससे राजनीतिक दल इनके साथ खड़े हो गए. देश तथा हिन्दू विरोधियों एवं आतंकवादियों के लिए मुफ्त वकालत करने वाले कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे कुख्यात वकील सर्वोच्च न्यायालय पहुँच गए और सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को बनाए रखते हुए हिंदुओं की श्रद्धा भक्ति और धार्मिकता को नजरंदाज करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले पर उस समय तक के लिए रोक लगा दी जब तक इस मामले में अंतिम फैसला नहीं आ जाता और अंतिम फ़ैसला ठंडे बस्ते में है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पहचान उजागर करने के लिए विवश नहीं किया जा सकता. इसके कुछ दिन बाद ही मुंबई उच्च न्यायालय ने मुंबई के एक नामी स्कूल द्वारा छात्राओं के हिजाब और बुर्का पहनकर आने पर लगाए गए प्रतिबंध को अनुचित और गैरकानूनी घोषित करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पहचान छिपाने के लिए विवश नहीं किया जा सकता. इसका सीधा मतलब है कि अगर मामला मुस्लिम समुदाय का है तो किसी न किसी तरह न्यायोचित ठहरा कर फैसला मुस्लिम समुदाय के पक्ष में ही जाएगा.
इस बार भी उत्तर प्रदेश सरकार ने लगभग वैसे ही दिशानिर्देश जारी किए हैं लेकिन पुलिस या सम्बंधित विभागों द्वारा अभी तक सतर्कता जांच शुरू नहीं की गई है. एक योगाश्रम के स्वामी यशवीर महाराज ने देखा कि दिल्ली देहरादून राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित एक भोजनालय का नाम “पंडित जी वैष्णो भोजनालय” है लेकिन ढाबे पर लगे बारकोड को स्कैन करने से पता चला कि इसका मालिक सनुव्वर नाम का एक मुस्लिम है और उसके कर्मचारी भी मुस्लिम हैं, जिन्होंने अपना आधार कार्ड दिखाने से मना कर दिया. एक मुस्लिम कर्मचारी ने बताया कि उसका नाम तज्ज्मुल है लेकिन ढाबा मालिक ने नाम बदल कर गोपाल रख दिया और उसके हाथ में कड़ा पहना दिया गया था ताकि वह हिन्दू दिखाई पड़े. उसे कलावा भी पहनने को कहा गया था. स्पष्ट है कि एक मुस्लिम द्वारा अपने ढाबे का नाम पंडित जी वैष्णव भोजनालय रखना कांवड़ियों और अन्य हिदुओं को आकर्षित करने का व्यापारिक प्रयास तो है लेकिन यह सीधे तौर पर ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी का मामला है, हिन्दुओं की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने वाला भी है. ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मालिको और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देशों की सार्थकता स्वयं सिद्ध हो जाती है और सर्वोच्च न्यायलय के स्थगन आदेश पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है.
धोखाधड़ी का यह मामला सामने आने के बाद मुस्लिम तुष्टीकरण में डूबे राजनीतिक दल हाय तौबा करने लगे. राहुल की कांग्रेस और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी में प्रतियोगिता हो गई कि हिंदुओं और सनातन धर्म को कौन अधिक लांछित और अपमानित कर सकता है. जहाँ समाजवादी पार्टी के एक मुस्लिम संसद ने स्वामी यशवीर को आतंकवादी बताते हुए उनकी तुलना पहलगाम में धर्म पूंछ कर हत्या करने वाले आतंकवादियों से की, वहीं दिग्विजय सिंह ने कांवड़ यात्राः को मुस्लिम समुदाय को आतंकित और प्रताड़ित करने का जरिया बताया. उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कांवड़ यात्रा और उप्र सरकार के दिशा निर्देशों को मुस्लिम विरोधी और ध्रुवीकरण का भाजपा का एजेंडा बताया. कांग्रेस और सपा के नेता मीडिया में खुले तौर मुस्लिम समुदाय का पक्ष लेते हुए कुतर्क गढ़ रहे हैं और सनातन धर्म को अपमानित कर रहे हैं. कांवड़ यात्रा 11 जुलाई से शुरू होनी है इसलिए इस बात की भी संभावना है कि यह मामला फिर सर्वोच्च न्यायालय पहुंचेगा और सर्वोच्च न्यायालय एक बार फिर समुदाय विशेष के पक्ष में निर्णय देकर अपनी धर्मनिरपेक्षता और न्यायप्रियता को सर्वश्रेष्ठ ठहराने में पीछे नहीं हटेगा.
राजनैतिक और न्यायिक कुतर्कों के परिपेक्ष में देखा जाए तो मुसलमान हालाल उत्पादों के प्रयोग को धार्मिक अधिकार मानते हैं, चाहे वह मांस हो या अन्य सामान. भारत में मांस से लेकर आटा दाल, चावल, कपड़े, गहने, सौंदर्य प्रसाधन के सामान हलाल मिलने लगे है. अब तो हलाल फ्लैट, विला और मकान भी बनने लगे है. इसका सीधा मतलब भारत में मुस्लिमो के लिए अलग इस्लामिक अर्थव्यवस्था बनाना है. जिसका उद्देश्य छल, कपट, जोर-जबरदस्ती, कानूनी और संवैधानिक जामा पहनाकर हलाल उत्पाद अन्य धार्मिक समुदायों पर थोपना और मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर अन्य धार्मिक समुदायों द्वारा बनाये हुए गैर हलाल उत्पादों को खरीदने से रोकना है.
इस तरह की षड्यंत्रकारी नीति का उद्देश्य दूसरे धार्मिक समुदायों को व्यापारिक रूप से बहिष्कृत कर आर्थिक रूप से कमजोर करना है. इससे सबसे अधिक प्रभावित गरीब तबके के लोग होते हैं. कुछ दशक पहले तक भारतीय वर्ण व्यवस्था रोजगार पूरक थी जिसके हर क्षेत्र में विशेषज्ञ थे, लोहार, बढ़ई, मोची, माली, तेली, कुम्हार, कंहार, निषाद, हलवाई, बनिया, काछी (शब्जी वाला), कुंजड़ा (फलवाला), नाई आदि. आज इन सभी क्षेत्रों से मुस्लिम समुदाय ने हिन्दुओं को बाहर कर दिया है. मुस्लिमों ने भारत के इन आधारभूत व्यवसायों पर एकाधिकार कर लिया है. इन कामो से बेदखल होकर हिन्दू अब जाति प्रमाणपत्र लेकर सरकारी नौकरी के लालच में आजीवन बेरोजगार बने रहते हैं. एक मात्र बचे छोटे छोटे ढाबों और भोजनालयों के व्यवसाय पर भी अब मुसलमानों द्वारा कब्जा किया जा रहा है. मुम्बई से अहमदाबाद और दिल्ली से जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर हिन्दू देवी दवताओं के नाम से, मुस्लिम समुदाय के लोग ढाबे चला रहे हैं. हरद्वार और ऋषिकेश में अनेक मुस्लिम फर्जी हिन्दू नामों से होटल, ढाबे और पूजा प्रसाद आदि की दुकाने चला रहे हैं. कांवड़ के समय तो मामला केवल सुर्ख़ियों में आता है. अनेक ऐसे मामले सामने आये हैं , जिनके विडियो सोशल मीडिया में उपलब्ध हैं, जिसमें मुस्लिम मल मूत्र और थूंक मिला कर खाद्य पदार्थ हिन्दुओं को बेंचते पाए गए. हिन्दू सहित भला किसी भी अन्य व्यक्ति को ऐसे अशुद्ध और प्रदूषित खाद्य पदार्थ खरीदने के लिए मजबूर कैसे किया जा सकता है.
~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~~~
गजवा ए हिन्द अब आपके दरवाजे पर
झांगुर बाबा का अनोखा लव जिहाद जहाँ हिन्दू लड़कियों की लगती थी बोली || सभी का इल्म शामिल है गज़वा-ए-हिंद में
झांगुर बाबा उर्फ जलालुद्दीन को उप्र एटीएस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद कई बड़े खुलासे हो रहे हैं, लेकिन सारांश है, “विदेशों से मिली भारी भरकम धनराशि का उपयोग करके हिंदू युवतियों का धर्मांतरण करना”, जिसका उद्देश्य है भारत को जल्द से जल्द इस्लामिक राष्ट्र बनाना. भारत में रहने वाले अधिकांश मुसलमानों का सपना भी यही है, भले ही कुछ लोग भाईचारा, गंगा जमुनी तहज़ीब और देश के स्वतंत्रता आंदोलन में मुसलमानों की भूमिका का बखान करके अपने अपराध को ढकने का प्रयास करें, जिसके लिए कुख्यात अंतर्राष्ट्रीय जुमले बनाए गए हैं, जिनका उपयोग भारत के अलावा उन सभी देशों में किया जा रहा है जिन्हें निकट भविष्य में इस्लामिक राष्ट्र बनाए जाने की योजना है. इनमे अमेरिका के कुछ राज्यों सहित यूरोप के कई देश शामिल है. इनका उपयोग उन देशों में भी किया गया था जो आज इस्लामिक राष्ट्र हैं. उदाहरण के लिए, “चंद भटके लोगों के कारण पूरी मुस्लिम कौम को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए”, “इस्लाम शांति और भाई चारे का संदेश देता है”, “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता”, “दूसरे धर्मस्थलों को तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई जाती”, “जबरन धर्मांतरण की इस्लाम में मनाही है” आदि.
भारत की पवित्र देवभूमि को गज़वा-ए-हिंद के माध्यम से इस्लामिक राष्ट्र बनाने की योजना इस्लाम के उदय होने के ठीक बाद ही बन गई थी. इस कारण भारत पर अनेक इस्लामिक आक्रान्ताओं द्वारा आक्रमण किए गए और सल्तनत भी कायम की गई लेकिन अथक कोशिशों के बाद भी भारत को इस्लामिक राष्ट्र नहीं बनाया जा सका. कुछ हद तक इसका श्रेय अंग्रेजों को भी जाता है, जिन्होंने सभी इस्लामिक शासकों को अपने आधीन कर लिया था. गज़वा ए हिंद की योजना पर पानी फिर जाने के कारण भारत के मुसलमानों ने मुस्लिम देशों, कट्टरपंथियों और जिहादियों के सहयोग से अंग्रेजी शासन में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके हिंदुओं के विरुद्ध भयानक रक्तपात शुरू कर दिया था और इसका उपयोग जबरन धर्मांतरण के लिए भी किया गया था. गाँधी, नेहरू सहित कांग्रेस के कई नेता देश के लिए अभिशाप बन गए जिन्होंने मुस्लिम तुष्टीकरण के आगे नतमस्तक होते हुए धर्म के आधार पर देश का बंटवारा स्वीकार किया और पाकिस्तान बना कर गज़वा-ए-हिंद की योजना को सफल करने में भरपूर सहयोग किया. देश के विभाजन के बाद सत्ता पर काबिज नेहरू ने मुस्लिम तुष्टिकरण के माध्यम से आजीवन गज़वा-ए-हिंद के लिए ही काम किया. जिसे उनकी पीढ़ियों ने भी, न केवल आगे बढ़ाया, बल्कि देश में ऐसा वातावरण तैयार कर दिया कि आज हर राजनीतिक दल मुस्लिम तुष्टिकरण की कोई भी सीमा लांघने को तैयार हैं. इसी कारण अनेक झांगुर बाबा किसी न किसी भी देश में पूरे देश में सक्रिय हैं.
आसपास के गांवों में साइकिल पर फेरी लगाकर अंगूठी और नग बेचने वाला जलालुद्दीन चार पांच साल के अंदर ही सैकड़ों करोड़ का मालिक बन गया, ये धर्मांतरण में लगे दूसरे मुस्लिमों के लिए अनुकरणीय तो हो सकता है लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं लगाया जाना चाहिए कि वह पैसा कमाने के लिए यह सब कर रहा था. सामान्य मुस्लिम की तरह उसके लिए यह धार्मिक दायित्व और जिहाद का कार्य था. वह तब भी यही करता था, जब वह बेहद गरीब था और फेरी लगाता था. उसे अच्छी तरह मालूम है कि सूफी और आलिया का अशिक्षित और अभावग्रस्त लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ता है. भारत में इस्लामिक साम्राज्य बनाने और बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करने में सूफियों और औलियाओं की बहुत बड़ी भूमिका रही है. इसलिए वह पीर बाबा बनकर संतान पाने, शराब छुड़ाने, गरीबी दूर करने आदि के लिए दुआएं करके लोगों में इस्लाम के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने लगा. भारत में अधिकांश दरगाहें, मदरसे, जलसे, उर्स आदि काफी लंबे समय से धर्मांतरण के लिए उपयोग किए जाते हैं. जलालूद्दीन ने मुंबई की हाजी अली दरगाह से जुड़कर धर्मांतरण के लिए धन उपलब्ध कराने वाले अरब देशों के कट्टरपंथियों और जेहादियों से संपर्क बनाए और भारत में विशेषकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण के लिए अपना खुद का नेटवर्क तैयार कर लिया. उसकी धन सम्पत्तियों, आलीशान कोठियों, और विलासितापूर्ण जीवन का विस्तार से चर्चा मीडिया में हो रही है, लेकिन यह धर्मान्तरण का उत्प्रेरक है ताकि अशिक्षित और गरीब परिवारों की भोली भाली हिंदू नवयुवतियों को आसानी से आकर्षित करके धर्मांतरित किया जा सके. सिंधी दंपति नीतू और नवीन धर्मांतरित होकर नसरीन और जमालुद्दीन बनकर धर्मांतरण व्यवसाय में लग गए और लगातार दुबई जाकर विदेशी आकाओं से संपर्क बनाते रहे.
नेपाल की सीमा से लगे उत्तर प्रदेश और बिहार के जिले हमेशा से मुस्लिम कट्टरपंथियों और जिहादियों के पसंदीदा स्थान रहे हैं, जहाँ से आतंकवादियों को भी हर संभव सहायता उपलब्ध कराई जाती है. यहाँ अवैध मदरसों, मसजिदों और दरगाहों की भरमार है. आतंकवादी इन स्थानों का प्रयोग न केवल ठहरने के लिए बल्कि पुलिस की पकड़ से बचने के लिए नेपाल भागने के लिए भी करते रहे हैं. इन मदरसों, दरगाहों आदि के लिए बड़ी मात्रा में विदेशों से फंडिंग होती है. प्रदेश में मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले दलों की सरकारों के समय जिहादी यहाँ पूरी निडरता से धर्मांतरण सहित अन्य देश विरोधी कार्य बिना रोक टोक के करते रहे हैं. इन पर अब भी पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जा सकी है.
झांगुर बाबा उर्फ जलालूद्दीन के यहाँ मुस्लिम लड़कों को हिंदू नामों से हिंदू लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाने का प्रशिक्षण दिया जाता था. निकाह के लिए इन लड़कियों को धर्मांतरण के लिए विवश किया जाता था. हिंदू लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाकर धर्मांतरण कराने के लिए लड़कियों के जातिवार रेट इस तरह निश्चित किये थे, ब्राह्मण 15-16 लाख, पिछड़ी जाति 10-12 लाख, दलित 8-10 लाख, जिन्हें मुस्लिम लडको को पुरूस्कार के रूप में दिया जाता था. इससे इस गिरोह के सूत्र भारत के एक कुख्यात मदरसा तथा अरब के बड़े षड्यंत्रकारियों से जुड़े होने की संभावना है, क्योंकि इनका मानना है कि भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने में ब्राह्मण सबसे बड़ी बाधा है. इसलिए लंबे समय से ब्राह्मण इनके निशाने पर हैं. विदेशी फंडिंग के सहारे हिंदुओं में जातिगत विभेद उभारने तथा दलितों एवं पिछड़ों को सवर्ण जातियों, विशेषकर ब्राह्मणों के विरुद्ध खड़ा करने का कार्य किया जा रहा हैं. दलितों और पिछड़ों के प्रमुख नेताओं को बड़े पैमाने पर धन दिया जाता है और उनके माध्यम से जाति - वर्ग संघर्ष उत्पन्न करने की कोशिश की जाती है. पीएफआई से बरामद जिन दस्तावेजों का एनआईए ने खुलासा किया है, उनके अनुसार पिछड़े दलित और मुसलमानों( पीडीए) को संगठित कर गज़वा-ए-हिंद में शामिल करना है. इस्लामिक राष्ट्र बनने के बाद धर्मान्तरित न होने वाले दलितों और पिछड़ों के साथ वही करना है, जो पाकिस्तान और बांग्लादेश में किया गया. इस मामले का खुलासा भी एक दलित युवती द्वारा ही किया गया, जिस पर दलित, पिछड़े और पीडीए सभी मौन हैं.
जिहादी जलालूद्दीन से संबंधित 40 बैंक खातों में 106 करोड़ की विदेशी फंडिंग का पता चला है. हैरान करने वाली बात है कि सभी बैंको में अत्याधुनिक एएमएल-सीएफटी (एंटी मनी लांड्रिंग-कमबैटिंग फाइनैंस टू टेरोरिज्म) प्रणाली लागू होने के बाद भी केंद्र सरकार की एफआईयू (फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट) इसे क्यों नहीं पकड़ सकी. बलरामपुर जिले के एक छोटे से गांव मधुपुर में फेरी लगाने वाला एक गरीब मुसलमान कई एकड़ जमीन पर करोड़ों रुपए लागत की एक कोठी का निर्माण करवाता रहा और स्थानीय अभिसूचना इकाई सोती रही. जिला प्रशासन को इसकी खबर भी नहीं लगी. उसी कोठी में सैंकड़ों हिंदू युवतियों का धर्मांतरण और निकाह किया जाता रहा.
ब्रिटेन के ग्रूमिंग गैंग की तरह उत्तर प्रदेश के फूलपुर जिले में एक नाबालिग दलित युवती को केरल ले जाकर जबरन धर्मांतरण कराने और आतंकी बनाने की कोशिश की गई. प्रयागराज पुलिस की जांच में सामने आया है कि दलित युवती को पड़ोस में रहने वाली मुस्लिम महिला बहला फुसलाकर अपने एक मुस्लिम दोस्त के साथ दिल्ली और उसके बाद केरल ले गई. त्रिशूर में उसका जबरन धर्मांतरण कराया गया और उसके बाद आत्मघाती दस्ते में शामिल करने के लिए ट्रेनिंग दी जाने लगी. उसे अफगानिस्तान भेजा जाना था जहाँ उसे आईएसआईएस खुरासन में शामिल करा कर आतंकवादियों की सेक्स स्लेव बनाया जाना था. किसी तरह लड़की ने अपनी माँ को फ़ोन किया, और फिर उत्तर प्रदेश पुलिस उसे बरामद कर वापस ले आयी. इस मामले की गहनता से जांच की जा रही है.
इस तरह के मामले जहाँ हिंदू परिवारों में उचित संस्कार न दिया जाना रेखांकित करते हैं वहीं प्रखंड हिंदू संगठनों की सक्रिय भूमिका की आवश्यकता पर भी बल देते हैं. हिंदू एकता का अभाव, राजनैतिक स्वार्थ बस जातिगत को बढ़ावा दिया जाना और धर्म से विमुखता भी बहुत बड़ा कारण है. सरकार को धर्मांतरण विरोधी सख्त कानून बनाकर इस समस्या के समाधान के लिए गंभीरता से कार्य करना चाहिए. विश्व में शायद भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ अल्पसंख्यक समुदाय बहुसंख्यक समुदाय का धर्म परिवर्तन कराते हैं अन्यथा पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं का क्या हुआ सबको मालूम है.
~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
एनसीईआरटी की पुस्तकों में ही नहीं, इतिहास का पुनर्लेखन आवश्यक
||साप्ताहिक समीक्षा || भारत का बदलता इतिहास || क्यों एक अनपढ़ विदेशी मूल के व्यक्ति को स्वतन्त्र भारत का शिक्षा मंत्री बनाया गया || एनसीईआरटी की पुस्तकों में ही नहीं, इतिहास का पुनर्लेखन आवश्यक
जो देश और सभ्यता अपना इतिहास नहीं संभाल सकती, वह न तो अपना वर्तमान सुव्यवस्थित कर सकती है और न ही अपना भविष्य सुरक्षित कर सकती है. भारत में तो साथ यही होता आया है और यही इस देश की सभी समस्याओं की जड़ है. भारत सरकार ने हाल में एनसीईआरटी की इतिहास की पुस्तकों में मामूली सा बदलाव किया है, जिसके पक्ष-विपक्ष में तर्कों और कुतर्कों के साथ बहस छिड़ गई है.
भारत पर अनेक विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण हुए लेकिन सातवीं शताब्दी के बाद इस्लामिक आक्रांताओं ने राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करने का वीभत्स कार्य जितनी निर्दयता, बहशीपन और अकल्पनीय क्रूरता से किया, वैसा उदाहरण विश्व में कहीं नहीं मिलता. किसी भी राष्ट्र का इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं हो सकता, जिसके शासकों ने आक्रांताओं के कुकृत्यों और अत्याचारों को न केवल ढकने का काम किया हो बल्कि उनके भयानक अत्याचारों को महिमा मंडित कर अपनी ही सभ्यता और संस्कृति को कलंकित करने का काम किया हो. भारत में स्वतंत्रता के बाद जब अपने अतीत के गौरवमयी इतिहास को अपनी भावी पीढ़ियों के समक्ष रखकर उन्हें राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए दृढ़ संकल्पित करने का समय था, बजाय इसके उसे विकृत रूप में प्रस्तुत करके अपने बच्चों तथा युवाओं को अपने जड़ों से विमुख करने का कार्य किया गया. आश्चर्यजनक है कि ऐसा करने वाले कोई और नहीं कथित स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्र शिल्पी के रूप में विभूषित किए जाने वाले लोग हैं, जो ठेके पर भारत को स्वतंत्रता दिलाने वाला राजनैतिक दल से सम्बंधित है.
प्रश्न बहुत स्वाभाविक है कि आखिर मोदी सरकार ने अपने 11 वर्ष के शासन के उपरान्त ये बदलाव क्यों शुरू किये जब उनका बहुमत भी नहीं है, और सरकार चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के समर्थन से बनी है. 11 वर्ष का समय शैक्षणिक, ऐतिहासिक और आर्थिक परिवर्तन के लिए पर्याप्त समय होता है. इतने समय के बाद इन परिवर्तनों की झलक सामाजिक परिवर्तन के रूप में दिखाई पड़ जानी चाहिए थी. दुर्भाग्य से मोदी सरकार ने सत्ता में आने के तुरंत बाद विरूपित और प्रदुषित इतिहास को सुधारने कार्य नहीं किया, जो सनातन संस्कृति को कलंकित कर भावी पीढ़ियों को गौरवमयी अतीत से विमुख करने के लिए बनाया गया था. 2014 में सत्ता में आने के बाद तत्कालीन शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी ने इस दिशा में कार्य शुरू किया लेकिन विपक्ष और विमर्शकारी शक्तियों ने विरोध शुरू किया और सरकार ने न केवल स्मृति ईरानी को ऐसा करने से रोका बल्कि विरोधियो को शांत करने के लिए उनका मंत्रालय भी बदल दिया. इसके बाद बने शिक्षा मंत्रियों प्रकाश जावडे़कर और रमेश पोखरियाल को मंत्री पद गंवाकर राजनैतिक रूप से हाशिए पर भेज दिया गया. हो सकता है कि इसका कारण भी शिक्षा में आवश्यक बदलाव की दिशा में बढ़ने के प्रयास रह हो. वर्तमान शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान प्रधानमंत्री मोदी के करीबी हैं और सरकार तथा भाजपा की रीतिनीति से भली भांति परिचित हैं, इसलिए उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में ऐसा कोई क्रांतिकारी बदलाव किया हो, किसी को पता नहीं है. वह शिक्षा के अलावा अन्य सभी मुद्दों पर खुलकर बात करते हैं. कई बार कुछ न करना, कुछ करने से बेहतर होता है.
सोशल मीडिया की कृपा से जागरूक हुए भारतीय जनमानस को अब यह मालूम है कि जो इतिहास विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है, वह इतिहास है ही नहीं. इतिहास के नाम पर भावी पीढि़यों को गुमराह करने के लिए जो इतिहास लिखा गया था उसका उद्देश्य झूठी और काल्पनिक बातों को जोड़कर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद समाप्त करना था. स्वतंत्रता के बाद किसी भी राष्ट्र के लिए राष्ट्रीय स्वाभिमान का पुनर्जागरण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है और इसके लिए शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करना आवश्यक होता है ताकि भावी पीढ़ियों को उनके गौरवमयी संस्कृति तथा इतिहास की सच्चाई से परिचित कराया जा सके चाहे कितनी ही कड़वी क्यों न हो. सैकड़ों साल की गुलामी के बाद स्वतंत्र हुए भारत के पहले शिक्षा मंत्री का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण था. शैक्षणिक क्षेत्र में किये जाने वाले कार्य, राष्ट्र के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे. जवाहर लाल नेहरू ने प्रधानमंत्री बनने के बाद मौलाना अबुल कलाम आजाद को भारत का पहला शिक्षा मंत्री बनाया, जो न तो शिक्षित थे और न ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति से परिचित थे. उनका तो जन्म भी भारत में नहीं मक्का में हुआ था. उनका पूरा नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था और उनके पिता मौलवी खैरुद्दीन एक इस्लामी विद्वान थे, जो इस्लाम का प्रचार करने के लिए भारत आकर कोलकाता में बस गए थे। मौलाना आज़ाद ने घर पर ही पारंपरिक इस्लामी शिक्षा प्राप्त की थी. ऐसा व्यक्ति भारतीय शिक्षा मंत्री के रूप में जो कर सकता था, उसने वही किया.
इतिहास लेखन का कार्य ऐसे व्यक्तियों को सौंपा गया जो हिंदू और हिंदुत्व से घृणा करते थे तथा उसे कलंकित और लांछित करने के लिए जाने जाते थे. रोमिला थापर, इरफान हबीब और डीएन झा जैसे हिंदू हिंदुत्व और राष्ट्र विरोधियो को इतिहास लिखने का कार्य सौंप दिया गया. इनमें से तीनों को संस्कृति नहीं आती थी. रोमिला थापर और डीएन झा को संस्कृत के आलावा अरबी फारसी उर्दू का भी ज्ञान नहीं था. हिंदू विरोधी और वामपंथी मानसिकता के इन लोगों ने मिलकर प्राचीन भारतीय इतिहास से लेकर मध्ययुगीन और आधुनिक भारत का इतिहास लिख डाला. ऐसे में जो होना था वही हुआ. आर्यों को भारत पर आक्रमणकारी और बाहरी बताया गया ताकि कोई मुस्लिम आक्रांताओं पर अंगुली न उठा सके. इसके लिए सिंधु घाटी सभ्यता की वास्तविकता को विरूपित करके प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया गया. सिकंदर को महान बताते हुए, “जो जीता वही सिकंदर” का विमर्श बनाते हुए, विजेता भी बना दिया गया. चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों को अतिवादी / आतंकवादी बताया गया. छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप जैसे महान राष्ट्र सपूतों को डाकुओं के रूप में प्रस्तुत किया गया लेकिन अकबर को महान बना दिया गया. गजनवी के सोमनाथ पर किये गए आक्रमणों को इस्लामिक जिहाद के बजाय धन दौलत की लूट के लिए साधारण डकैतियां बताया गया. इस्लामिक आक्रांताओं और मुगलों द्वारा किये गए हिंदू नरसंहार को छिपाने का कार्य किया गया.
भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ आक्रान्ताओं द्वारा लगभग 10 करोड़ हिंदुओं का नरसंहार किया गया, जिसका वर्णन पश्चिमी देशों के इतिहास में तो मिलता है लेकिन भारतीय इतिहास में इसकी कोई चर्चा तक नहीं है. इस्लामिक आक्रांताओं ने अनेक महत्वपूर्ण हिंदू, जैन और बौद्ध मंदिरों को नेस्तनाबूद करके उन पर मस्ज़िदों का निर्माण करवाया लेकिन भारतीय इतिहास से यह पूरी तरह गायब हैं. बाबर, अकबर और औरंगजेब सहित सभी मुगल और मुस्लिम शासकों को महिमामंडित करने के लिए उनके द्वारा किए गए अत्याचारों और अमानवीय कृत्यों पर पर्दा डालने का काम किया गया. जोधा बाई जैसे काल्पनिक चरित्रों का निर्माण किया गया और अकबर को महान बना दिया गया. जजिया कर और उसको वसूल करने के अपमानजनक तौर तरीकों को छुपा दिया गया. औरंगजेब जैसे क्रूर और कट्टरपंथी इस्लामिक शासक, जिसने अनेक महत्वपूर्ण हिंदू मंदिरों को करवाकर मस्जिद बनवाई थी, द्वारा कई मंदिरों को दान देना और पुनरुद्धार करना लिखा गया. स्वतंत्रता संग्राम के अनेक महान सपूतों को इतिहास से पूरी तरह गायब कर दिया गया. सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा करने की बात करने वाले सभी महापुरुषों का किसी न किसी रूप में चरित्र हनन किया गया और उन्हें खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया गया.
जवाहरलाल नेहरू इस्लाम के विचारधारा के बहुत नजदीक थे और विदेशी आक्रांताओं की तरह सनातन धर्म और संस्कृति को मिटाने पर तुले थे. इसलिए उन्होंने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे इस्लामिक कट्टरपंथी को जीवन पर्यंत शिक्षा मंत्री बनाए रखा और उसके बाद हुमांयू कबीर जैसे व्यक्तियों को शिक्षा मंत्री बनाकर सनातन विरोधी शैक्षणिक वातावरण बनाए रखने का कार्य किया. नूर उल हसन जैसे व्यक्तियों को शिक्षा मंत्री बनाकर कांग्रेस की दूसरी सरकारों ने भी इस परंपरा को बनाए रखा.
मोदी सरकार ने एनसीईआरटी की किताबों में जो परिवर्तन किए हैं वह पेड़ की पत्तियों पर पानी डालने जैसा है. भारतीय इतिहास को सत्य के नजदीक ले जाने के लिए व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता है जिसके लिए पूरे इतिहास की समीक्षा और पुनर्लेखन की आवश्यकता है. पूर्ण बहुमत होते हुए पिछले दो कार्यकालों में मोदी सरकार इस दिशा में कार्य करने के लिए साहस नहीं जुटा सकी तो फिर अब बैसाखियों के सहारे टिकी सरकार में छोटे मोटे परिवर्तनों पर प्रश्न तो उठेंगे ही. जो हुआ वह पूरी तरह उचित तो है, लेकिन जो किया गया वह बहुत कम है.
~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
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