||साप्ताहिक समीक्षा || भारत का बदलता इतिहास || क्यों एक अनपढ़ विदेशी मूल के व्यक्ति को स्वतन्त्र भारत का शिक्षा मंत्री बनाया गया || एनसीईआरटी की पुस्तकों में ही नहीं, इतिहास का पुनर्लेखन आवश्यक
जो देश और सभ्यता अपना इतिहास नहीं संभाल सकती, वह न तो अपना वर्तमान सुव्यवस्थित कर सकती है और न ही अपना भविष्य सुरक्षित कर सकती है. भारत में तो साथ यही होता आया है और यही इस देश की सभी समस्याओं की जड़ है. भारत सरकार ने हाल में एनसीईआरटी की इतिहास की पुस्तकों में मामूली सा बदलाव किया है, जिसके पक्ष-विपक्ष में तर्कों और कुतर्कों के साथ बहस छिड़ गई है.
भारत पर अनेक विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण हुए लेकिन सातवीं शताब्दी के बाद इस्लामिक आक्रांताओं ने राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करने का वीभत्स कार्य जितनी निर्दयता, बहशीपन और अकल्पनीय क्रूरता से किया, वैसा उदाहरण विश्व में कहीं नहीं मिलता. किसी भी राष्ट्र का इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं हो सकता, जिसके शासकों ने आक्रांताओं के कुकृत्यों और अत्याचारों को न केवल ढकने का काम किया हो बल्कि उनके भयानक अत्याचारों को महिमा मंडित कर अपनी ही सभ्यता और संस्कृति को कलंकित करने का काम किया हो. भारत में स्वतंत्रता के बाद जब अपने अतीत के गौरवमयी इतिहास को अपनी भावी पीढ़ियों के समक्ष रखकर उन्हें राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए दृढ़ संकल्पित करने का समय था, बजाय इसके उसे विकृत रूप में प्रस्तुत करके अपने बच्चों तथा युवाओं को अपने जड़ों से विमुख करने का कार्य किया गया. आश्चर्यजनक है कि ऐसा करने वाले कोई और नहीं कथित स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्र शिल्पी के रूप में विभूषित किए जाने वाले लोग हैं, जो ठेके पर भारत को स्वतंत्रता दिलाने वाला राजनैतिक दल से सम्बंधित है.
प्रश्न बहुत स्वाभाविक है कि आखिर मोदी सरकार ने अपने 11 वर्ष के शासन के उपरान्त ये बदलाव क्यों शुरू किये जब उनका बहुमत भी नहीं है, और सरकार चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के समर्थन से बनी है. 11 वर्ष का समय शैक्षणिक, ऐतिहासिक और आर्थिक परिवर्तन के लिए पर्याप्त समय होता है. इतने समय के बाद इन परिवर्तनों की झलक सामाजिक परिवर्तन के रूप में दिखाई पड़ जानी चाहिए थी. दुर्भाग्य से मोदी सरकार ने सत्ता में आने के तुरंत बाद विरूपित और प्रदुषित इतिहास को सुधारने कार्य नहीं किया, जो सनातन संस्कृति को कलंकित कर भावी पीढ़ियों को गौरवमयी अतीत से विमुख करने के लिए बनाया गया था. 2014 में सत्ता में आने के बाद तत्कालीन शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी ने इस दिशा में कार्य शुरू किया लेकिन विपक्ष और विमर्शकारी शक्तियों ने विरोध शुरू किया और सरकार ने न केवल स्मृति ईरानी को ऐसा करने से रोका बल्कि विरोधियो को शांत करने के लिए उनका मंत्रालय भी बदल दिया. इसके बाद बने शिक्षा मंत्रियों प्रकाश जावडे़कर और रमेश पोखरियाल को मंत्री पद गंवाकर राजनैतिक रूप से हाशिए पर भेज दिया गया. हो सकता है कि इसका कारण भी शिक्षा में आवश्यक बदलाव की दिशा में बढ़ने के प्रयास रह हो. वर्तमान शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान प्रधानमंत्री मोदी के करीबी हैं और सरकार तथा भाजपा की रीतिनीति से भली भांति परिचित हैं, इसलिए उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में ऐसा कोई क्रांतिकारी बदलाव किया हो, किसी को पता नहीं है. वह शिक्षा के अलावा अन्य सभी मुद्दों पर खुलकर बात करते हैं. कई बार कुछ न करना, कुछ करने से बेहतर होता है.
सोशल मीडिया की कृपा से जागरूक हुए भारतीय जनमानस को अब यह मालूम है कि जो इतिहास विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है, वह इतिहास है ही नहीं. इतिहास के नाम पर भावी पीढि़यों को गुमराह करने के लिए जो इतिहास लिखा गया था उसका उद्देश्य झूठी और काल्पनिक बातों को जोड़कर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद समाप्त करना था. स्वतंत्रता के बाद किसी भी राष्ट्र के लिए राष्ट्रीय स्वाभिमान का पुनर्जागरण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है और इसके लिए शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करना आवश्यक होता है ताकि भावी पीढ़ियों को उनके गौरवमयी संस्कृति तथा इतिहास की सच्चाई से परिचित कराया जा सके चाहे कितनी ही कड़वी क्यों न हो. सैकड़ों साल की गुलामी के बाद स्वतंत्र हुए भारत के पहले शिक्षा मंत्री का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण था. शैक्षणिक क्षेत्र में किये जाने वाले कार्य, राष्ट्र के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे. जवाहर लाल नेहरू ने प्रधानमंत्री बनने के बाद मौलाना अबुल कलाम आजाद को भारत का पहला शिक्षा मंत्री बनाया, जो न तो शिक्षित थे और न ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति से परिचित थे. उनका तो जन्म भी भारत में नहीं मक्का में हुआ था. उनका पूरा नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था और उनके पिता मौलवी खैरुद्दीन एक इस्लामी विद्वान थे, जो इस्लाम का प्रचार करने के लिए भारत आकर कोलकाता में बस गए थे। मौलाना आज़ाद ने घर पर ही पारंपरिक इस्लामी शिक्षा प्राप्त की थी. ऐसा व्यक्ति भारतीय शिक्षा मंत्री के रूप में जो कर सकता था, उसने वही किया.
इतिहास लेखन का कार्य ऐसे व्यक्तियों को सौंपा गया जो हिंदू और हिंदुत्व से घृणा करते थे तथा उसे कलंकित और लांछित करने के लिए जाने जाते थे. रोमिला थापर, इरफान हबीब और डीएन झा जैसे हिंदू हिंदुत्व और राष्ट्र विरोधियो को इतिहास लिखने का कार्य सौंप दिया गया. इनमें से तीनों को संस्कृति नहीं आती थी. रोमिला थापर और डीएन झा को संस्कृत के आलावा अरबी फारसी उर्दू का भी ज्ञान नहीं था. हिंदू विरोधी और वामपंथी मानसिकता के इन लोगों ने मिलकर प्राचीन भारतीय इतिहास से लेकर मध्ययुगीन और आधुनिक भारत का इतिहास लिख डाला. ऐसे में जो होना था वही हुआ. आर्यों को भारत पर आक्रमणकारी और बाहरी बताया गया ताकि कोई मुस्लिम आक्रांताओं पर अंगुली न उठा सके. इसके लिए सिंधु घाटी सभ्यता की वास्तविकता को विरूपित करके प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया गया. सिकंदर को महान बताते हुए, “जो जीता वही सिकंदर” का विमर्श बनाते हुए, विजेता भी बना दिया गया. चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों को अतिवादी / आतंकवादी बताया गया. छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप जैसे महान राष्ट्र सपूतों को डाकुओं के रूप में प्रस्तुत किया गया लेकिन अकबर को महान बना दिया गया. गजनवी के सोमनाथ पर किये गए आक्रमणों को इस्लामिक जिहाद के बजाय धन दौलत की लूट के लिए साधारण डकैतियां बताया गया. इस्लामिक आक्रांताओं और मुगलों द्वारा किये गए हिंदू नरसंहार को छिपाने का कार्य किया गया.
भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ आक्रान्ताओं द्वारा लगभग 10 करोड़ हिंदुओं का नरसंहार किया गया, जिसका वर्णन पश्चिमी देशों के इतिहास में तो मिलता है लेकिन भारतीय इतिहास में इसकी कोई चर्चा तक नहीं है. इस्लामिक आक्रांताओं ने अनेक महत्वपूर्ण हिंदू, जैन और बौद्ध मंदिरों को नेस्तनाबूद करके उन पर मस्ज़िदों का निर्माण करवाया लेकिन भारतीय इतिहास से यह पूरी तरह गायब हैं. बाबर, अकबर और औरंगजेब सहित सभी मुगल और मुस्लिम शासकों को महिमामंडित करने के लिए उनके द्वारा किए गए अत्याचारों और अमानवीय कृत्यों पर पर्दा डालने का काम किया गया. जोधा बाई जैसे काल्पनिक चरित्रों का निर्माण किया गया और अकबर को महान बना दिया गया. जजिया कर और उसको वसूल करने के अपमानजनक तौर तरीकों को छुपा दिया गया. औरंगजेब जैसे क्रूर और कट्टरपंथी इस्लामिक शासक, जिसने अनेक महत्वपूर्ण हिंदू मंदिरों को करवाकर मस्जिद बनवाई थी, द्वारा कई मंदिरों को दान देना और पुनरुद्धार करना लिखा गया. स्वतंत्रता संग्राम के अनेक महान सपूतों को इतिहास से पूरी तरह गायब कर दिया गया. सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा करने की बात करने वाले सभी महापुरुषों का किसी न किसी रूप में चरित्र हनन किया गया और उन्हें खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया गया.
जवाहरलाल नेहरू इस्लाम के विचारधारा के बहुत नजदीक थे और विदेशी आक्रांताओं की तरह सनातन धर्म और संस्कृति को मिटाने पर तुले थे. इसलिए उन्होंने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे इस्लामिक कट्टरपंथी को जीवन पर्यंत शिक्षा मंत्री बनाए रखा और उसके बाद हुमांयू कबीर जैसे व्यक्तियों को शिक्षा मंत्री बनाकर सनातन विरोधी शैक्षणिक वातावरण बनाए रखने का कार्य किया. नूर उल हसन जैसे व्यक्तियों को शिक्षा मंत्री बनाकर कांग्रेस की दूसरी सरकारों ने भी इस परंपरा को बनाए रखा.
मोदी सरकार ने एनसीईआरटी की किताबों में जो परिवर्तन किए हैं वह पेड़ की पत्तियों पर पानी डालने जैसा है. भारतीय इतिहास को सत्य के नजदीक ले जाने के लिए व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता है जिसके लिए पूरे इतिहास की समीक्षा और पुनर्लेखन की आवश्यकता है. पूर्ण बहुमत होते हुए पिछले दो कार्यकालों में मोदी सरकार इस दिशा में कार्य करने के लिए साहस नहीं जुटा सकी तो फिर अब बैसाखियों के सहारे टिकी सरकार में छोटे मोटे परिवर्तनों पर प्रश्न तो उठेंगे ही. जो हुआ वह पूरी तरह उचित तो है, लेकिन जो किया गया वह बहुत कम है.
~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
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