शनिवार, 19 जुलाई 2025

कांवड़ यात्रा पर आतंकी हमला ?

 


कांवड़ यात्रा पर आतंकी हमला ?


हिंदुओं की इस भूमि पर हिंदुओं का ही जीना दूभर हो जाए और वे अपने पर्व त्यौहार भी श्रद्धा और भक्ति के साथ शांति पूर्वक न मना सकें, इससे बड़ा दुर्भाग्य हिंदुओं का और इस देश का, नहीं हो सकता. हिन्दुओं की कोई भी धार्मिक शोभायात्रा ऐसी ही नहीं होती जिसमें व्यवधान न डाला जाता हो. अगर शोभा यात्रा के रास्ते में कोई मस्जिद पड़ रही हो तो इस बात की संभावना बहुत ज्यादा है कि उसमें व्यवधान डालने की पहले से ही तैयारी कर ली जाती है. कभी कभी डीजे की तेज आवाज, तो कभी किसी अन्य झूठे कारणों से पत्थरबाजी और सांप्रदायिक संघर्ष शुरू कर दिया जाता है. सबसे दुखद स्थिति यह होती है कि सभी राजनैतिक दल मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ मिलकर हिंदुओं को कटघरे में खड़ा कर देते हैं. सनातन धर्म पर लांछन लगाए जाते हैं और मानसिक रूप से हिंदुओं को इतना प्रताड़ित करने की कोशिश की जाती है कि अगली बार से वे इस तरह की शोभा यात्रियों का हिस्सा न बने. पश्चिम बंगाल केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में तो हिंदू तीज त्योहारों की शोभा यात्रायें सुरक्षित रूप से निकालना असंभव है. पहले तो राज्य सरकारे ही उस पर प्रतिबंध लगा देती हैं और अगर उच्च न्यायालय के आदेश के बाद शोभा यात्राएं निकलती भी है तो उन पर सुनियोजित रूप से हमले किए जाना सामान्य बात हो गई है. इस सब का दूरगामी परिणाम यह हुआ कि चूंकि इन राज्यों में सनातन धर्म को नष्ट करने के जेहादी प्रयासों को सरकारी संरक्षण प्राप्त हो जाता है, इसलिए अधिकांश हिंदू सार्वजनिक रूप से मनाए जाने वाले आयोजनों से विमुख होता जा रहा है. पाकिस्तान और बांग्लादेश के सभी प्रमुख हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया है. पाक अधिकृत कश्मीर की शारदा पीठ पूरी तरह से नष्ट कर दी गई है. जम्मू-कश्मीर में भी स्थिति बहुत अलग नहीं है. साल में एक बार पड़ने वाली अमरनाथ यात्रा तमाम सरकारी प्रयासों के बाद भी डर के माहौल में ही संपन्न होती है. यही हाल वैष्णो देवी यात्रा का भी है. कुछ अंतराल पर कोई न कोई घटना घटती रहती है जो हिंदू तीर्थयात्रियों को मानसिक रूप से प्रताड़ित करती है और सुरक्षा कारणों से बड़ी संख्या में लोग इन तीर्थयात्रियों में चाहते हुए भी नहीं जाते यद्दपि ये यात्राये मुसलमानों की रोजी रोटी से जुडी हैं.

पिछले कुछ वर्षों से कांवड़यात्रा मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर है. कांवड़ यात्रियों की श्रद्धा-भक्ति में शारीरिक तथा मानसिक स्वच्छता, शुद्ध और सात्विक भोजन, संयमित, नशामुक्त एवं ब्रह्मचर्य पालन का विशेष महत्त्व है. कांवड़ यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले कई भोजनालय, ढाबे और खाद्य पदार्थों की दुकानें मुस्लिम समुदाय के लोग छद्म हिन्दू नाम, और देवी देवताओं के नाम से खोलते हैं. अतीत में ऐसी शिकायतें मिलती रही है कि कि छद्म नाम के इन भोजनालयों के भोजन और खाद्य पदार्थों में मल, मूत्र और थूंक मिलाकर कांवड़ियों की श्रद्धा और भक्ति के साथ खिलवाड़ किया जाता है. मुस्लिम तुष्टीकरण में लिप्त सरकारों ने इन शिकायतों पर कभी कोई संज्ञान नहीं लिया जिससे ऐसे हिंदू विरोधी अराजक तत्वों का मनोबल बढ़ता रहा. इस समस्या के समाधान के लिए पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा मार्ग में पड़ने वाले दुकानदारों के लिए दिशा निर्देश जारी किए थे जिसके अंतर्गत प्रत्येक दुकानदार को अपना नाम तथा मोबाइल नंबर स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया जाना था लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों, जो हिंदुओं से व्यापार करके फायदा तो कमाना चाहते हैं लेकिन धोखा जिहाद से धर्म भी भ्रष्ट करना चाहते हैं, को ये रास नहीं आया. इसलिए कट्टरपंथी मुल्लाओं, मौलानाओं के माध्यम से विरोध किया गया, जिससे राजनीतिक दल इनके साथ खड़े हो गए. देश तथा हिन्दू विरोधियों एवं आतंकवादियों के लिए मुफ्त वकालत करने वाले कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे कुख्यात वकील सर्वोच्च न्यायालय पहुँच गए और सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को बनाए रखते हुए हिंदुओं की श्रद्धा भक्ति और धार्मिकता को नजरंदाज करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले पर उस समय तक के लिए रोक लगा दी जब तक इस मामले में अंतिम फैसला नहीं आ जाता और अंतिम फ़ैसला ठंडे बस्ते में है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पहचान उजागर करने के लिए विवश नहीं किया जा सकता. इसके कुछ दिन बाद ही मुंबई उच्च न्यायालय ने मुंबई के एक नामी स्कूल द्वारा छात्राओं के हिजाब और बुर्का पहनकर आने पर लगाए गए प्रतिबंध को अनुचित और गैरकानूनी घोषित करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पहचान छिपाने के लिए विवश नहीं किया जा सकता. इसका सीधा मतलब है कि अगर मामला मुस्लिम समुदाय का है तो किसी न किसी तरह न्यायोचित ठहरा कर फैसला मुस्लिम समुदाय के पक्ष में ही जाएगा.

इस बार भी उत्तर प्रदेश सरकार ने लगभग वैसे ही दिशानिर्देश जारी किए हैं लेकिन पुलिस या सम्बंधित विभागों द्वारा अभी तक सतर्कता जांच शुरू नहीं की गई है. एक योगाश्रम के स्वामी यशवीर महाराज ने देखा कि दिल्ली देहरादून राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित एक भोजनालय का नाम “पंडित जी वैष्णो भोजनालय” है लेकिन ढाबे पर लगे बारकोड को स्कैन करने से पता चला कि इसका मालिक सनुव्वर नाम का एक मुस्लिम है और उसके कर्मचारी भी मुस्लिम हैं, जिन्होंने अपना आधार कार्ड दिखाने से मना कर दिया. एक मुस्लिम कर्मचारी ने बताया कि उसका नाम तज्ज्मुल है लेकिन ढाबा मालिक ने नाम बदल कर गोपाल रख दिया और उसके हाथ में कड़ा पहना दिया गया था ताकि वह हिन्दू दिखाई पड़े. उसे कलावा भी पहनने को कहा गया था. स्पष्ट है कि एक मुस्लिम द्वारा अपने ढाबे का नाम पंडित जी वैष्णव भोजनालय रखना कांवड़ियों और अन्य हिदुओं को आकर्षित करने का व्यापारिक प्रयास तो है लेकिन यह सीधे तौर पर ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी का मामला है, हिन्दुओं की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने वाला भी है. ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मालिको और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देशों की सार्थकता स्वयं सिद्ध हो जाती है और सर्वोच्च न्यायलय के स्थगन आदेश पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है.

धोखाधड़ी का यह मामला सामने आने के बाद मुस्लिम तुष्टीकरण में डूबे राजनीतिक दल हाय तौबा करने लगे. राहुल की कांग्रेस और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी में प्रतियोगिता हो गई कि हिंदुओं और सनातन धर्म को कौन अधिक लांछित और अपमानित कर सकता है. जहाँ समाजवादी पार्टी के एक मुस्लिम संसद ने स्वामी यशवीर को आतंकवादी बताते हुए उनकी तुलना पहलगाम में धर्म पूंछ कर हत्या करने वाले आतंकवादियों से की, वहीं दिग्विजय सिंह ने कांवड़ यात्राः को मुस्लिम समुदाय को आतंकित और प्रताड़ित करने का जरिया बताया. उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कांवड़ यात्रा और उप्र सरकार के दिशा निर्देशों को मुस्लिम विरोधी और ध्रुवीकरण का भाजपा का एजेंडा बताया. कांग्रेस और सपा के नेता मीडिया में खुले तौर मुस्लिम समुदाय का पक्ष लेते हुए कुतर्क गढ़ रहे हैं और सनातन धर्म को अपमानित कर रहे हैं. कांवड़ यात्रा 11 जुलाई से शुरू होनी है इसलिए इस बात की भी संभावना है कि यह मामला फिर सर्वोच्च न्यायालय पहुंचेगा और सर्वोच्च न्यायालय एक बार फिर समुदाय विशेष के पक्ष में निर्णय देकर अपनी धर्मनिरपेक्षता और न्यायप्रियता को सर्वश्रेष्ठ ठहराने में पीछे नहीं हटेगा.

राजनैतिक और न्यायिक कुतर्कों के परिपेक्ष में देखा जाए तो मुसलमान हालाल उत्पादों के प्रयोग को धार्मिक अधिकार मानते हैं, चाहे वह मांस हो या अन्य सामान. भारत में मांस से लेकर आटा दाल, चावल, कपड़े, गहने, सौंदर्य प्रसाधन के सामान हलाल मिलने लगे है. अब तो हलाल फ्लैट, विला और मकान भी बनने लगे है. इसका सीधा मतलब भारत में मुस्लिमो के लिए अलग इस्लामिक अर्थव्यवस्था बनाना है. जिसका उद्देश्य छल, कपट, जोर-जबरदस्ती, कानूनी और संवैधानिक जामा पहनाकर हलाल उत्पाद अन्य धार्मिक समुदायों पर थोपना और मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर अन्य धार्मिक समुदायों द्वारा बनाये हुए गैर हलाल उत्पादों को खरीदने से रोकना है.

इस तरह की षड्यंत्रकारी नीति का उद्देश्य दूसरे धार्मिक समुदायों को व्यापारिक रूप से बहिष्कृत कर आर्थिक रूप से कमजोर करना है. इससे सबसे अधिक प्रभावित गरीब तबके के लोग होते हैं. कुछ दशक पहले तक भारतीय वर्ण व्यवस्था रोजगार पूरक थी जिसके हर क्षेत्र में विशेषज्ञ थे, लोहार, बढ़ई, मोची, माली, तेली, कुम्हार, कंहार, निषाद, हलवाई, बनिया, काछी (शब्जी वाला), कुंजड़ा (फलवाला), नाई आदि. आज इन सभी क्षेत्रों से मुस्लिम समुदाय ने हिन्दुओं को बाहर कर दिया है. मुस्लिमों ने भारत के इन आधारभूत व्यवसायों पर एकाधिकार कर लिया है. इन कामो से बेदखल होकर हिन्दू अब जाति प्रमाणपत्र लेकर सरकारी नौकरी के लालच में आजीवन बेरोजगार बने रहते हैं. एक मात्र बचे छोटे छोटे ढाबों और भोजनालयों के व्यवसाय पर भी अब मुसलमानों द्वारा कब्जा किया जा रहा है. मुम्बई से अहमदाबाद और दिल्ली से जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर हिन्दू देवी दवताओं के नाम से, मुस्लिम समुदाय के लोग ढाबे चला रहे हैं. हरद्वार और ऋषिकेश में अनेक मुस्लिम फर्जी हिन्दू नामों से होटल, ढाबे और पूजा प्रसाद आदि की दुकाने चला रहे हैं. कांवड़ के समय तो मामला केवल सुर्ख़ियों में आता है. अनेक ऐसे मामले सामने आये हैं , जिनके विडियो सोशल मीडिया में उपलब्ध हैं, जिसमें मुस्लिम मल मूत्र और थूंक मिला कर खाद्य पदार्थ हिन्दुओं को बेंचते पाए गए. हिन्दू सहित भला किसी भी अन्य व्यक्ति को ऐसे अशुद्ध और प्रदूषित खाद्य पदार्थ खरीदने के लिए मजबूर कैसे किया जा सकता है.

~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~~~

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