शनिवार, 25 जनवरी 2025

जिहाद का अर्थशास्त्र है हलाल

 




               जिहाद का अर्थशास्त्र है हलाल

हलाल का बवाल फिर उबाल पर है और इसका कारण है उत्तर प्रदेश सरकार के हलाल उत्पादों पर प्रतिबंध के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में दायर हुई याचिका. योगी  सरकार ने 18 नवंबर 2023 को हलाल उत्पादों की बिक्री, वितरण और भंडारण पर प्रतिबंध लगा दिया था. योगी आदित्यनाथ के इस कदम की जितनी प्रशंसा की जाय कम है क्योंकि यह देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर कलंक होने के साथ देश की अर्थव्यवस्था में सरकार के समानांतर जजिया की तरह टैक्स वसूलने का षडयंत्र है, जो राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए बहुत बड़ा खतरा है क्योंकि इस पैसे का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों, धर्मान्तरण और गजवा-ए-हिन्द के वित्तपोषण के लिए किया जाता है. यह बड़ा और राष्ट्रीय महत्त्व का मुद्दा है, इसलिए यह कार्य तो मोदी सरकार को बहुत पहले करना चाहिए था. दुर्भाग्य से दो पूर्ण बहुमत के कार्यकाल में उन्होंने इस पर कुछ नहीं किया. अब नाइडू और नीतीश की बैसाखी के सहारे चलने वाली सरकार कोई कार्रवाई करेगी या कानून बनाएगी इसकी संभावना नहीं है. वैसे भी मोदी सरकार हिंदू हितों के मामलों में स्वयं साहसिक कदम उठाने के बजाय सर्वोच्च न्यायालय के कंधे पर डाल कर समाधान खोजती है लेकिन भारतीय न्यायपालिका का इस्लामिक और वामपंथी शक्तियों के दबाव में काम करने का पुराना इतिहास है, इसलिए उससे  सकारात्मक निर्णय की अपेक्षा करना व्यर्थ है. इसे शाहीनबाग, किसान आंदोलन आदि के मामले से समझा जा सकता है.

सर्वोच्च न्यायालय ने निर्यात के लिए उत्पादित वस्तुओं को छोड़कर उप्र की योगी सरकार द्वारा हलाल उत्पादों की बिक्री, वितरण और भंडारण पर लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई प्रारम्भ की. ये याचिकाएं जमीयत उलेमा-ए-हिंद की तरफ से लगाई गई हैं, जो हलाल प्रमाण पत्र देकर जजिया की तरह टैक्स  वसूली करने वाली भारत की सबसे बड़ी संस्था है और यह देवबंद दारूल उलूम के सर्वेसर्वा और गज़वा ए हिंद के प्रमुख कर्ताधर्ता अरशद मदनी की जेबी संस्था है. भारत के महाधिवक्ता तुषार मेहता ने कहा कि यह हैरान करने वाला है कि सीमेंट, सरिया, आटा, बेसन यहां तक कि पानी की बोतल तक का हलाल प्रमाणन किया जा रहा है और लाखों करोड़ रुपये वसूले जा रहे हैं. न्यायमूर्ति बीआर गवाई की अध्‍यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने मांस आधारित उत्पादों के अतिरिक्त अन्य उत्पादों पर हलाल प्रमाणपत्र को लेकर हैरानी जताई. उन्‍होंने कहा कि जहां तक ​​हलाल मांस का सवाल है, किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती लेकिन आश्चर्य की बात है  ​​कि सीमेंट-सरिये को भी हलाल-प्रमाणित किया जा रहा है. बोतलबंद पानी भी हलाल प्रमाणित किया जा रहा है. न्यायालय ने जमीयत उलेमा ए हिंद को प्रतिउत्तर दाखिल करने के लिए 1 मार्च तक का समय दे दिया. न्यायालय ने पहले ही जमीयत उलेमा ए हिंद के मालिक अरशद मदनी और इसके कर्मचारियों के विरुद्ध किसी भी दंडात्मक कार्रवाई पर प्रतिबंध लगा रखा है.

भारत में विभिन्न उत्पादों और सेवाओं के लिए सरकारी मानकीकरण की व्यवस्था है.  खाद्य पदार्थों की शुद्धता और गुणवत्ता के लिए FSSAI, अन्य उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए के लिए ISI (BIS), ISO आदि द्वारा प्रमाणन होता है. इसलिए किसी व्यक्ति या निजी संस्था द्वारा उत्पादों और सेवाओं का प्रमाणन न केवल अनावश्यक बल्कि गैरकानूनी है और देश की संप्रभुता को चुनौती है. स्थिति यह हो गयी है कि हलाल उत्पाद जो हिंदुओं के लिए धार्मिक रूप से अस्वीकार्य हैं, जबरन थोपे जा रहे हैं क्योंकि रेल, हवाई जहाज, होटल, रेस्टोरेंट और सरकारी कैंटीनों हलाल चाय, कॉफी, दूध और दूसरे खाद्य पदार्थ प्रयोग किए जा रहे हैं, और गैर मुस्लिमों को इसकी जानकारी भी नहीं दी जाती.

भारत में संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर कुछ मुस्लिम संस्थाओं द्वारा हलाल प्रमाणपत्र देकर भारी शुल्क वसूला जा रहा है. पिछली सरकारों ने वोट बैंक और तुष्टिकरण की राजनीति के चलते न केवल इसे अनदेखा किया बल्कि निर्यात किए जाने वाले मांस का हलाल प्रमाणन अनिवार्य भी कर दिया था जिस कारण मांस के निर्यात के व्यवसाय गैर मुस्लिम बाहर हो गए. यद्यपि मोदी सरकार ने मांस की  निर्यात प्रक्रिया में थोड़ा सुधार करके ऐसे देश जो हलाल मांस की मांग नहीं करते, उन्हें निर्यात किए जाने वाले मांस में हलाल प्रमाणन की अनिवार्यता खत्म कर दी है लेकिन यह नाकाफी है.

हलाल उत्पाद, जिहाद का ही एक हिस्सा हैं. गैर मुस्लिम राष्ट्र में जहाँ कहीं भी मुसलमान होते हैं, राजनीतिक इस्लाम के वैश्विक षड्यंत्र के अनुसार उस देश की अर्थव्यवस्था को कब्जाने की कोशिश की जाती है. मुसलमानों द्वारा सफाई, कूड़ा और कबाड़ बीनने जैसे छोटे छोटे कार्य अपने हाथ में लेकर बहुसंख्यकों का दिल जीतने की कोशिश की जाती है जिसके लिए अवैध घुसपैठियों को लगाया जाता है. पंचर जोड़ने से लेकर स्कूटर, मोटरसाइकिल और कार की मरम्मत, डेंटिंग, पेंटिंग, वेल्डिंग आदि का काम हथिया लेते हैं. बाल काटने से लेकर लुहार और बढ़ई का काम भी करते हैं. बहुसंख्यकों के तीज त्यौहार और उत्सवों में सेवा प्रदाता के रूप में अपनी पहुँच बनाते हैं. महिलाओं की चूड़ी, सिंदूर और सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री से लेकर सिलाई कढ़ाई बुनाई पर इस समुदाय ने अपनी पकड़ बना ली है. सब्जी और फलों के थोक और फुटकर बाजार पर मुस्लिमों का कब्ज़ा है. मंदिरों में फूल और प्रसाद बेचने वाले भी बड़ी संख्या में मुस्लिम मिल जाएंगे. मांस, और चमड़ा उद्योग पूरी तरह से इस समुदाय के पास है. हलाल प्रमाण पत्र के लिए कई औपचारिकताएं होती हैं जिसमें उत्पाद बनाने के लिए मुसलमान कर्मचारियों का होना एक अनिवार्य शर्त है. यह बिना किसी संवैधानिक व्यवस्था के आरक्षण का लाभ लेना है, जो मुस्लिम समुदाय को रोजगार प्राप्त करने के अवसर भी उपलब्ध कराता है. इसके अतरिक्त उस परिसर में प्रार्थना कक्ष, क़िबला दिशा सूचक, नमाज चटाई, स्थानीय नमाज की समय सूची, कुरान की कॉपी, रमजान से संबंधित सेवाएं उपलब्ध होना भी आवश्यक है. इस तरह हलाल प्रमाण पत्र लेने वालों से ही इस्लाम का प्रचार और प्रसार करवाया जाता है.

हलाल का जाल अब केवल मांस तक सीमित नहीं है बल्कि यह दैनिक जीवन में प्रयोग किए जाने वाले सभी उत्पादों और सेवाओं  पर फैल गया है. सौंदर्य प्रसाधन, घर गृहस्थी  के सभी सामान, दवाइयां, अस्पताल, ईट, सीमेंट, सरिया, फ्लैट, विला साहित लगभग सभी वस्तुओं और सेवाओं पर शिकंजा कस दिया है. यही नहीं कच्चे माल, भण्डारण, और पूरी औद्योगिक इकाई पर भी हलाल प्रमाणन आवश्यक है। हलाल प्रमाणन  के नाम पर उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं से बड़ी रकम वसूली जाती है, जिसका उपयोग इस्लामीकरण के लिए किया जा रहा है, जिसमे आतंकवादी गतिविधियों का वित्तपोषण, धर्मांतरण तथा जिहाद की सभी परियोजनाये शामिल हैं. जमीयत उलेमा-ए-हिंद गोधरा में 59 हिंदुओं को साबरमती एक्सप्रेस की बोगी में जिन्दा जलाकर मारने वाले सजायाफ्ता आतंकी कैदियों के सर्वोच्च न्यायालय में लड़ रहे हैं. गोधरा तथा गुजरात दंगों में आरोपित मुस्लिमों के मुकदमे भी इसी ने लड़ें. चाहे  अयोध्या, मथुरा और काशी में हिंदू धर्म स्थलों को तोड़ कर बनाई गई मसजिदों के मुकदमें हों, या फिर संशोधित नागरिकता कानून, समान नागरिक संहिता, वक्फ बोर्ड आदि से संबंधित मुकदमे हो सब का वित्तपोषण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जमीयत उलेमा ए हिन्द करता रहा है. देशभर में होने वाले हिंदू मुस्लिम दंगों के मुस्लिम आरोपितो के मुकदमों तथा दंगों में मुस्लिम मृतकों के परिवारों को वित्तीय सहायता भी जमीयत उलेमा-ए-हिंद और हलाल से जुड़े अन्य संगठन करते हैं. इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि जजिया की तरह वसूला गया हलाल टैक्स आतंकवादी और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में किया जाता हैं. गज़वा-ए-हिंद से जुड़े हुए सभी जिहादी कार्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से देवबंद दारूल उलूम और जमीयत उलेमा ए हिंद से जुड़े होते हैं.

हलाल जिहाद का अर्थशास्त्र है जिसे हलालोनॉमिक्स कहते हैं. इसका उद्देश्य वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कब्जा करके गैर-मुस्लिमों से पैसा वसूल कर पूरी दुनिया में इस्लाम का वर्चस्व कायम करना है. पूरे विश्व में हलाल अर्थव्यवस्था ८ ट्रिलियन यूएस डॉलर पार कर चुकी है. विश्व हलाल कॉन्फ्रेंस में बोस्निया के ग्रैंड मुफ्ती मुस्तफा सरिक ने  कहा था कि “अब उन्हें हथियार उठाकर युद्ध करने और आतंक फैलाने की  जरूरत नहीं है, हलाल अर्थव्यवस्था के माध्यम से ही वे  पूरे विश्व पर राज कर सकेंगे.” 

सरकार और न्यायालय इस विषय में कुछ करेगा इसकी संभावना नहीं है लेकिन सभी गैर मुस्लिम विशेषकर हिंदू जागरूक बनें और हलाल उत्पादों का बहिष्कार करें. इस प्रकार देश और सनातन संस्कृति को काफी हद तक बचा सकते हैं, और यह काम आप आज से ही शुरू करें क्योंकि कल बहुत देर हो जायेगी. 

~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जिहाद का अर्थशास्त्र है हलाल

                 जिहाद का अर्थशास्त्र है हलाल हलाल का बवाल फिर उबाल पर है और इसका कारण है उत्तर प्रदेश सरकार के हलाल उत्पादों पर प्रतिबंध ...