रविवार, 11 फ़रवरी 2024

भारत के राजनीति रत्न

 

तीन और भारत रत्न पुरस्कार की घोषणा की गयी है, पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह तथा पी वी नरसिम्हा राव और कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन. इसके साथ वर्ष 2024 में कुल भारत रत्न पुरस्कार प्राप्त करने वालों की संख्या पांच हो गई है, जो किसी एक वर्ष में भारत रत्न पुरस्कार दिए जाने की सबसे बड़ी संख्या है. इससे पहले इस वर्ष कर्पूरी ठाकुर और लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. श्री लालकृष्ण आडवाणी को छोड़कर बाकी सभी को यह पुरस्कार मरणोपरांत प्रदान किया जाएगा. इन नामों को देखकर राजनीति की साधारण समझ रखने वाला व्यक्ति भी यह बता सकता है कि इसमें सम्मान के साथ भी राजनीति शामिल हैं जिसे राजनीतिक बोल चाल में मोदी का मास्टर स्ट्रोक कहा जाता है.

प्रायः राजनीतिक व्यक्तियों को पद्म सम्मान राजनीतिक सुविधानुसार ही दिया जाता है. इस वर्ष के पद्म पुरस्कारों में सबसे अधिक चर्चा में भारत रत्न पुरस्कार हैं. इसे प्राप्त करने वाले राजनीतिज्ञों में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पिछड़े वर्ग के नेता कर्पूरी ठाकुर, किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण सिंह, भारत में उदारीकरण और आर्थिक सुधारों के प्रणेता पीवी नरसिम्हाराव और सोमनाथ से अयोध्या तक रामरथ यात्रा के माध्यम से हिंदू पुनर्जागरण की शुरुआत करने वाले लालकृष्ण आडवाणी को यह पुरस्कार पहले भी दिया जा सकता था. यदि कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के पिछले 10 साल के शासनकाल को छोड़ भी दिया जाए तो मोदी सरकार भी अपने पिछले 10 वर्ष के शासनकाल में कभी भी यह पुरस्कार दे सकती थी लेकिन 2024 में एक साथ पांच भारत रत्न सम्मान दिये जाने का कारण इस वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है. यह भारतीय राजनीति की विडंबना ही है कि लालकृष्ण आडवाणी को छोड़ कर विपक्षी राजनीतिक दलों ने अन्य व्यक्तियों को भारत रत्न दिए जाने का स्वागत किया है. लालकृष्ण आडवाणी के मामले में कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों ने किसी न किसी रूप में प्रश्न उठाए हैं और कारण भी शुद्ध राजनीतिक है क्योंकि आडवाणी की रथ यात्रा के बाद बने माहौल में ही अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया गया था, स्वाभाविक है कि मामला तुष्टिकरण का भी है.

इस वर्ष भारत रत्न से अलंकृत होने वाले कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर एमएस स्वामीनाथन भारत में हरित क्रांति के लिए जाने जाते हैं और इस सम्मान के सर्वथा योग्य हैं. पिछले वर्ष (28 सितंबर 2023) ही उनका देहांत हुआ था. अच्छा होता यदि जीवित रहते हुए उनको यह पुरस्कार दिया जाता. इस वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में 400 पार करने के संकल्प के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई भी ऐसा मौका नहीं छोड़ रहे हैं जो उन्हें अधिक से अधिक लोकसभा सीटें अर्जित करने में लाभकारी हो सकता है. बिहार में नीतीश के साथ छोड़ने के बाद भाजपा की चुनावी स्थिति थोड़ी कमजोर लग रही थी. जातिगत जनगणना ने भाजपा को असहज कर दिया था. इसलिए सामाजिक संतुलन बनाने और अन्य पिछड़ा वर्ग को अपने पाले में रखने के उद्देश्य से कर्पूरी ठाकुर को भारत के सर्वोच्च सम्मान देने का निर्णय लिया गया और इसके बाद पाला बदल विशेषज्ञ नीतीश कुमार भाजपा खेमे में वापस आ गए. इस सफलता के बाद ही लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की गई जिसका सभी हिंदू संगठनों और समूचे हिंदू समुदाय ने हृदय से स्वागत किया, जो रेखांकित करता है कि कहीं न कहीं इसका उद्देश्य भी अपने परंपरागत मतदाताओं, खासतौर से ऐसे मतदाताओं को खुश करना था जो भाजपा द्वारा मुस्लिमों को रिझाने के लिए किए जा रहे प्रयासों, जैसे मदरसों के आधुनिकीकरण के नाम पर पर अंधाधुंध पैसा खर्च करना, प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए केवल मुस्लिमों के लिए मुफ्त कोचिंग चलाना, मदरसा के छात्रों को छात्रवृत्तियां प्रदान करना, मदरसा के अध्यापकों को वेतन सहायता प्रदान करना, मुस्लिमों के लिए विशेष योजनाएं बनाकर अनाप शनाप पैसा खर्च करना, लगभग 90 लाख हिंदुओं के धर्मांतरण के लिए जिम्मेदार ख्वाजा मैनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चादर चढ़ना, पसमांदा, सूफी और वहावी सम्मेलन आयोजित करने आदि से खासे नाराज थे.

भारत रत्न पुरस्कारों की तीसरी सूची में शामिल पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव के नामों के भी राजनीतिक मायने हैं. चौधरी चरण सिंह जाट समुदाय के सबसे बड़े नेता के साथ साथ किसानों के भी बड़े नेता माने जाते हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा में उनका व्यापक प्रभाव है. उनके राजनीतिक वारिस चौधरी जयंत सिंह ने पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था. लेकिन वह लगातार भाजपा के संपर्क में थे और चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न सम्मान के बाद उन्होंने भाजपा के साथ जाने की घोषणा भी कर दी. बिहार में नीतीश कुमार और उत्तर प्रदेश में चौधरी जयंत सिंह के पाला बदलने से कांग्रेस के इंडी गठबंधन टूट की कगार पर पहुँच गया है. हाल में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भारी पराजय हुई, यद्यपि तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति को हराकर सत्ता प्राप्त करने में सफल रही. भारतीय जनता पार्टी को तेलंगाना से भारी उम्मीदें थी लेकिन वह आशा के अनुरूप सफलता नहीं पा सकी. इसलिए पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव को भारत रत्न दिए जाने के निहितार्थ हैं. नरसिम्हा राव को भारत रत्न की घोषणा के बाद एक ओर जहाँ तेलंगाना वासियों में हर्ष स्पष्ट नजर आ रहा है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस खासतौर से गाँधी परिवार द्वारा उनके शव को कांग्रेस मुख्यालय में कार्यकर्ताओं और जनता के दर्शनार्थ न रखने देने, और दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार न करने देने के घाव भी हरे हो गए हैं. विनय सीतापति की किताब हाफ लायन में जानकारी दी गई है कि पी वी नरसिम्हा राव को कांग्रेस में इस तरह दरकिनार कर दिया गया था कि सोनिया के इशारे पर उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए जबरदस्ती हैदराबाद भेज दिया गया जहाँ कांग्रेस की सरकार थी. एक पूर्व प्रधानमंत्री के अंतिम संस्कार में प्रदेश सरकार का सहयोग इस बात से समझा जा सकता है कि उनकी चिता के अवशेषों को आवारा कुत्ते नोच नोचकर खाते रहे. गाँधी परिवार के अनैतिक और अनुचित व्यवहार तथा कांग्रेस की बेरुखी के कारण नरसिम्हा राव से सहानुभूति तो हो सकती है, लेकिन देश ये कैसे भूल सकता है कि उन्हीं के कार्यकाल में पूजा स्थल तथा वक्फ बोर्ड कानून बनाया गया था और अल्पसंख्यक आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया गया था. उन्हें दोषी ठहराते हुए एक तथ्य यह भी है कि संसद में उस समय अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे कद्दावर नेता भी थे और भाजपा सांसदों की संख्या 120 थी. यदि समुचित विरोध किया जाता तो ये कानून पास नहीं हो सकते थे. पिछले वर्ष मोदी सरकार ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था, जो पद्म पुरस्कारों में दूसरा सर्वोच्च पुरस्कार है. सब जानते हैं कि मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा पार करते हुए मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में रामभक्तों पर गोलियां चलवाई थीं जिससे बड़ी संख्या में कारसेवक मारे गए थे. मुलायम सिंह ने यह कहने में कभी संकोच नहीं किया कि मुसलमानों का विश्वास जीतने के लिए कार सेवकों पर गोली चलाना आवश्यक था. आज इस पर चर्चा हो रही है कि अगर अखिलेश यादव भी भाजपा से गठबंधन को तैयार हो जायें तो मुलायम सिंह यादव को भी भारत रत्न दिया जा सकता है. यक्ष प्रश्न है कि क्या मोदी के मास्टरस्ट्रोक में राजनीति ही सर्वोपरि होती है, नैतिकता और सुचिता का कोई स्थान नहीं. संभव है कि मोदी तीसरे कार्यकाल के लिए आश्वस्त तो हों लेकिन वह कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हों ताकि अगले कार्यकाल, जिसमें उन्होंने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का उत्तर देते हुए बड़े फैसले लेने की घोषणा कर दी है, में राष्ट्र की गंभीर चुनौतियों का समाधान कर सके.

1954 में पद्म पुरस्कार की स्थापना के 70 वर्ष हो चुके हैं किन्तु पिछला रिकॉर्ड बताता है कि 70 में से 43 वर्षों में किसी को भी यह पुरस्कार नहीं दिया गया, केवल 27 वर्षों में ही ये पुरस्कार दिए गए. स्वयं मोदी सरकार के पिछले 10 साल के कार्यकाल में केवल 2015, 2019 और 2024 में ही ये पुरस्कार प्रदान किए गए. क्या भारत जैसे विशाल देश में भारत रत्नों की कमी है या अधिकांशत: राजनीति के रत्न ही भारत रत्न बनने के योग्य होते हैं और वह भी मास्टर स्ट्रोक द्वारा. भारत में रत्नों की कमी नहीं है, केवल राष्ट्र हित, न कि राजनैतिक आधार पर पहचानने की आवश्यकता है.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा `~~~~~~~~~~~~~~~~~~

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें