( ज्ञानवापी सर्वे में वजू खाने में मिला शिवलिंग)
ज्ञानवापी परिसर के कोर्ट कमिश्नर के सर्वे जिसमें वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी की गई है, मिले तथ्य एक बार फिर इस बात की पुष्टि करते हैं ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण बाबा विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर किया गया था. सर्वे के दौरान ज्ञानवापी परिसर स्थित सरोवर में शिवलिंग बरामद हुई है, जो प्रथम दृष्टया वहीं प्रतीत होती हैं जो पुराने विश्वनाथ मंदिर में के गर्भगृह में लगी थी, जिसे ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. पुराणों में वर्णित गर्भ गृह यही है और यही मूल शिवलिंग है . हैरत और दुख की बात है कि जहाँ यह प्राचीन और मूल शिवलिंग स्थापित है, उस जगह पानी भरा हुआ है जिसे वजू के लिए नमाजियों द्वारा इस्तेमाल किया जाता था.
स्थानीय न्यायालय ने शिवलिंग मिलने के इस स्थान को सील
करके सुरक्षित रखने का आदेश दिया है. इस सूचना से काशी में लोग बहुत भावुक हो गए
और कुछ लोग अश्रुपूरित नेत्रों से "बाबा मिल गए" कहकर खुशी मनाने लगे. यद्यपि कोर्ट
कमिश्नर की रिपोर्ट अभी न्यायालय को नहीं सौंपी गई है और उस पर अध्ययन किया जाना
बाकी है, किंतु सर्वे में मिले साक्ष्य और शिवलिंग के वायरल वीडियो ने लोगो में बाबा विश्वनाथ के मूल
गर्भगृह पाने की आकांक्षा जगा दी है. इस
बीच सर्वोच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष की याचिका पर, जिसमें सर्वे पर रोक लगाने
की मांग की गई थी, सुनवाई शुरू कर दी है. सर्वोच्च
न्यायालय ने भी जिला प्रशासन को निर्देश दिया है कि बरामद की गई शिवलिंग को पूर्ण
सुरक्षा प्रदान की जाए और नमाजियों को नमाज़ भी अदा करने दी जाए.
बाबा विश्वनाथ का इतिहास उतना ही
प्राचीन है जितना काशी का अस्तित्व, और पृथ्वी पर मानव सभ्यता का उदय. पौराणिक
मान्यता है कि प्राचीन मंदिर के स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि
उत्पन्न करने की कामना से तपस्या की थी और उनकी नाभि कमल से ब्रह्मा जी की
उत्पत्ति हुई थी जिन्होंने बाद में पूरे विश्व की रचना की थी. इसलिए काशी को आदि सृष्टि स्थली
भी बताया जाता है.
मान्यता है कि प्रलय काल में भी
काशी का विनाश नहीं होता क्योंकि उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं. पृथ्वी निर्माण के समय
सूर्य की पहली किरण काशी पर पड़ी थी, इसलिए काशी ज्ञान, अध्यात्म और भक्ति की ऊर्जा
सेपूरी दुनिया को आलोकित करती है। भगवान शिव स्वयं
मंदिर के स्थान पर कुछ समय के लिए रुके थे इसलिए उन्हें ही काशी का संरक्षक माना
जाता है और उनकी कृपा के कारण ही
काशी को सर्व तीर्थ और सर्व संताप
हारिणी मोक्षदायिनी नगरी कहा जाता है. काशी में प्राण त्यागने वाले व्यक्ति
को मोक्ष प्राप्त हो जाता है. श्री विश्वेश्वर विश्वनाथ का यह ज्योतिर्लिंग
साक्षात भगवान परमेश्वर महेश्वर का स्वरूप है, यहाँ भगवान शिव सदा विराजमान रहते
हैं।
1194 में मुहम्मद गोरी नाम के एक मुस्लिम लुटेरे आक्रांता ने इसे तोड़ दिया था. बाद में मंदिर का बारंबार जीर्णोद्धार होता रहाऔर मुस्लिम आक्रांता इसे तोड़ते रहे. अंतिम बार औरंगजेब के आदेश से मंदिर को तोड़कर मुख्य गर्भ गृह पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया गया था. तत्कालीन मुस्लिम लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित पुस्तक 'मासीदे आलमगिरी' में इस ध्वंस का वर्णन है। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। जल्दबाजी मंदिर के अवशेषों में ही मस्जिद बना दी गयी जो प्रमाण के रूप में आज भी उपलब्ध हैं.
1809 में इस तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद पर हिंदुओं ने पुनः कब्जा कर लिया . 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने ‘वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल’ को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने के लिए कहा था, लेकिन अंग्रेजों ने बड़ी कुटिलता से हिंदू मुस्लिम एकता न होने देने के लिए सांप्रदायिक तनाव बनाए रखना आवश्यक समझा जो उनकी फूट डालो और राज करो की नीति के अनुरूप था. उन्होंने पुरानी इस्तेमाल करते हुए हिंदुओं के आक्रोश को ठंडा करने के लिए मंदिर परिसर में ही एक नए गर्भ गृह की व्यवस्था कर दी जबकि मंदिर का मूल गर्भ गृह ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में है जिसे वर्तमान में कराए जा रहे सर्वे में शिवलिंग के साथ बरामद किया जाना बताया गया है. मंदिर प्रांगण में नंदी की प्रतिमा इसी बरामद की गई शिवलिंग की तरफ मुंह करके अभी भी खड़ी है. विशाल नंदी का मुख ज्ञानवापी मस्जिद की ओर से होने से काफी समय से इस स्थान के सर्वे की मांग की जा रही थी। शास्त्रों के अनुसार नंदी का मुख सदैव शिव की ओर रहता है इसलिए यही माना जा रहा था कि शिव का मूल स्थान ज्ञानवापी मस्जिद ही था।
इसके पहले फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की सहायता से मंदिर के प्रमाण ढूंढने के आदेश दिए थे और जरूरत पड़ने पर अत्याधुनिक तकनीक जैसे ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार और जिओ रेडियोलॉजी सिस्टम आदि के स्तेमाल की भी इजाजत दी थी किन्तु उच्च न्यायलय ने इस पर रोक लगा रखी है.
दुनिया के हर ऐसे देश में जो गुलामी से आजाद हुए थे उनमें आजादी के तुरंत बाद एक आयोग की स्थापना की गई थी जिसका उद्देश्य आक्रांताओं द्वारा नष्ट किए गए धर्मस्थलों, राष्ट्रीय अस्मिता और संस्कृति से संबंधित स्थलों, दस्तावेजों आज की पुनर्स्थापना करना था. दक्षिण अफ्रीका, जहां गांधी जी ने अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया था, वहां भी इस तरह के कार्यों के लिए आयोग की स्थापना की गई थी.
इसलिए सरकार को चाहिए कि देश में स्थाई रूप से सांप्रदायिक सद्भाव की स्थापना के लिए वह न केवल अलोकतांत्रिक ढंग से बनाए गए पूजा स्थल कानून को समाप्त करें बल्कि एक आयोग का भी गठन करें जो सभी विवादित धार्मिक स्थलों की सूची तैयार कर आपसी विचार विमर्श से धार्मिक स्थलों का आदान प्रदान करने में मध्यस्थ की भूमिका निभा सके. ऐसे मामले जिनका निपटारा आपसी बातचीत से नहीं हो सकता है उनमें आयोग न्यायिक निर्णय दे. सरकार को यह भी चाहिये कि अन्य महत्वपूर्ण विवादित धर्म स्थलों की पुख्ता सुरक्षा की जाए ताकि वहाँ उपलब्ध साक्षियों से छेड़छाड़ नहीं की जा सके क्योंकि ज्ञानवापी में मिले प्रमाण जो आक्रान्ताओं द्वारा जल्दी जल्दी में की गई निर्माण के कारण छूट गए थे वे अन्य विवादित धर्म स्थलों में मिटाने के प्रयास किए जा सकते हैं.
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-शिव मिश्रा
Responsetospm@gmail.com
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