गुरुवार, 12 मई 2022

हिन्दू नरसंहार का अभिनव प्रयोग - बांग्लादेश

पांच करोड़ हिन्दुओं के नरसंहार पर वैश्विक चुप्पी  - भारत सरकार भी बेखबर  



(साभार - https://www.hindujagruti.org/)


हिन्दू नरसंहार का अभिनव प्रयोग - बांग्लादेश


भारत में जब भी  हिंदू  मुस्लिम सांप्रदायिकता की बात होती है तो पाकिस्तान का जिक्र जरूर होता है और यह स्वाभाविक भी है क्योंकि पाकिस्तान एक राष्ट्र नहीं, विचारधारा है जो धर्म की राजनीति से दबाव बनाकर, हिंसा द्वारा अलगाववाद को बढ़ावा देकर  इस्लामिक सत्ता हासिल करने का प्रयास करती है. इसीलिए भारत विभाजन की त्रासदी और लाखों हिंदुओं की निर्मम हत्या के कारण पाकिस्तान को आम भारतीय शत्रु देश समझता है लेकिन बांग्लादेश के प्रति जो पहले  पाकिस्तान का ही एक हिस्सा था, उस तरह की शत्रुता की भावना नहीं देखी जाती है जबकि सच्चाई यह है कि भारत विभाजन से पूर्वी पाकिस्तान  से  बांग्लादेश बनने और उसके बाद आज तक पाकिस्तान की तुलना में वहां हिंदुओं पर कहीं ज्यादा अत्याचार हुआ और नरसंहार किया गया, जो आज भी अनवरत जारी है.  

     मानवाधिकार के लिए काम करने वाले अमेरिका के प्रसिद्ध विद्वान और ढाका से प्रकाशित वीकली ब्लिट्ज के संवाददाता डॉक्टर रिचर्ड  एल. बेनकिन ने आज से 12 साल पहले एक किताब लिखी थी " ए क्वाइट केस ऑफ एथेनिक क्लींनजिंग - दि मर्डर ऑफ बांग्लादेशी  हिंदू" जिसमें उन्होंने अपने बंगलादेश प्रवास के दौरान देखा  कि इस्लामिक जिहादियों द्वारा हिंदुओं का योजनाबद्ध ढंग से नरसंहार किया जा रहा है और भारत  विभाजन के बाद से अबतक लगभग 5 करोड़ हिंदुओं का सफाया कर दिया गया है. उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतने बड़े नरसंहार पर भारत सरकार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और पूरे विश्व भर में इस पर किसी हिंदू या संगठन ने चर्चा नहीं की. फलस्वरूप हिंदू मरते रहे और मरते जा  रहे हैं, उनकी सुनने वाला कोई नहीं है.  बांग्लादेश एक  छोटा और बेहद कमजोर देश है जो अपनी आवश्यकताओं के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है और उसकी आर्थिक आय के साधन भी अत्यंत सीमित हैं. उसके हवाई और जलमार्ग भारत पर निर्भर है. भारत जैसे विशाल देश के सामने बांग्लादेश की कोई तुलना नहीं है। भारत के कड़े रुख से  स्थितियां तुरंत बदल सकती  हैं फिर भी भारत सरकार की रहस्यमयी चुप्पी समझ से परे है.



     बांग्लादेश की सभी सरकारे इस नरसंहार में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल रही  हैं. संविधान में  हिंदुओं की संपत्ति जब्त  करने का प्रावधान  है. हिंदुओं और अन्य स्वयंसेवी संगठनों के अनुरोध के बाद भी अवामी लीग की नेता शेख हसीना ने इसे हटाना तो दूर इस पर कोई बात भी नहीं सुनी. 1971 में भारतीय सेनाओं ने अपना खून बहा कर पूर्वी पाकिस्तान को आजाद करा कर बांग्लादेश बनाया किंतु आजादी के कुछ समय बाद ही बंगला देश को इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर दिया गया और उसके बाद तो हिंदुओं पर अत्याचारों की इंतहा हो गई और नरसंहार बेकाबू हो गया. क्या भारत ने बांग्लादेश को इसलिए आजाद कराया था?


    आजादी के समय 1947 में पूर्वी पाकिस्तान की जनसंख्या में हिंदू एक तिहाई थे जो 1971 में बांग्लादेश बनने  तक 20% रह गए. 30 साल बाद 2001 में हिंदू का प्रतिशत घटकर 10 से भी कम हो गया और 2011 की जनसंख्या में यह 8% से भी कम हो गया. 2022 में अभी आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं है किंतु सरकारी अनुमानों के अनुसार हिंदुओं की जनसंख्या 5% के आसपास पहुंच गई है. न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सचिव दस्तीदार ने आंकड़े इकट्ठा करके बताया है कि बांग्लादेश में लगभग 5 करोड हिंदू लापता है, यानी उनका सफाया कर दिया गया है.


    डॉक्टर बेनकिन ने हिंदुओं के इस नरसंहार के मामले को कुछ अमेरिकी सांसदों के साथ साझा किया और विश्व के तमाम मानवाधिकार संगठनों और हिंदू संगठनों को भी सूचित किया लेकिन किसी ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया. अमेरिकी सांसदों ने तो उल्टा प्रश्न किया कि हिंदुओं के नरसंहार  पर जब हिंदुस्तान ही चुप है, तो कोई और क्या कर सकता है.



    डॉक्टर बेनकिन ने 16 जुलाई 2020 को विधान चंद्र कॉलेज हुगली में दिए अपने भाषण में बताया कि बांग्लादेश में 23 मार्च से 30 मई २०२० तक कोविड-19 के कारण लॉकडाउन लगाया गया था, तब वह ढाका में थे. लॉक डाउन में जब सभी को कोरोनावायरस कि संक्रमण से डरें हुए थे, उन्हें आशा थी कि ऐसे समय में हिंदुओं की हत्याये  रुक जाएंगी लेकिन उनकी आशा के विपरीत 69 दिन के इस लॉक डाउन अवधि में भी हिंदुओं की हत्याएं, लड़कियों और महिलाओं के अपहरण, संपत्ति पर कब्जा, लूटपाट और धर्मांतरण होते रहे. उन्होंने दुख प्रकट करते हुए कहा यह हिंदुओं को निर्णय लेना है कि उन्हें अपने भाइयों को बचाना है या मरने देना है.


(बृहत्तर  इस्लामिक   बांग्लादेश का नक्शा )


     बांग्लादेश में एक तरफ जहां हिंदुओं का सफाया किया जा रहा है वहीं सरकार  प्रयोजित कार्यक्रम से बांग्लादेशी नागरिकों को अवैध रूप से भारत की सीमा में प्रवेश कराया जा रहा है. यह धंधा दशकों  से चला रहा है. 1971  युद्ध के बाद तो हालात बेकाबू हो गए हैं. आसाम, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के कई राज्यों में मुस्लिम जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है. केंद्र सरकार ने निर्णय लिया था कि घुसपैठ रोकने के लिए सीमा पर कटीली बाड़ लगाई जाएगी लेकिन सीमा पर बांग्लादेश राइफल्स द्वारा तनाव उत्पन्न करने या बांग्लादेश सरकार की अनुमति की प्रतीक्षा में दशकों से इस योजना को पूरा नहीं किया जा सका है. भारत जैसे विशाल देश के लिए इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मसार करने वाली बात कोई नहीं हो सकती है.

     हद तो यह है कि बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ कराने में भारतीय सीमा पर तैनात सुरक्षा बल भी लिप्त हैं. बताया जाता है कि कोई भी बांग्लादेशी ₹2000 देकर सीमा पार कर भारत आ सकता है. कुछ समय पहले बांग्लादेश ने बर्मा के रोहिंग्या मुसलमानों को अपने यहां शरण देकरपूरे विश्व में वाहवाही लूटी थी. सभी इस्लामिक देशों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने बांग्लादेश को आर्थिक सहायता भी दी थी. बांग्लादेश सरकार का विश्वास था यह सभी रोहिंग्या शरणार्थी देर सबेर बांग्लादेश से भारत चले जाएंगे जिसमें बांग्लादेश सरकार ने उनकी बहुत मदद की. आज भारत के हर बड़े शहर में रोहिंग्या और  बांग्लादेशियों  की बस्तियां देखी जा सकती हैं. नैतिक गिरावट के आखिरी पायदान पर खड़े ज्यादातर राजनीतिक दल इन्हें समर्थन दे रहे हैं. भारत का भ्रष्ट तंत्र इन्हें सीमा से लाकर पूरे देश में बसाने और उनके लिए आवश्यक दस्तावेज जुटाने का कार्य चंद पैसों के लालच में कर देता है. अफसोस इस बात का है कि बांग्लादेश में बच्चे बच्चे को यह बात मालूम थी कि सारे रोहिंग्या भारत जाएंगे लेकिन भारत सरकार जरा भी सतर्क नहीं हुई और देश की खुफिया एजेंसियों को भनक नहीं लगी.

    बांग्लादेश में हिंदुओं के नरसंहार, धर्मांतरण और बंगलादेशी मुस्लिमों का अवैध तरीके से भारत में प्रवेश कराया जाना एक बहुत बड़ी इस्लामिक रणनीति का हिस्सा है जिसका अंतिम लक्ष्य भारत पर इस्लाम का शासन कायम करना है. बांग्लादेश आज के संदर्भ में इस्लाम की बहुत बड़ी प्रयोगशाला है, जिसने चुपचाप इतना बड़ा काम अंजाम कर दिया जो विश्व में आज तक कहीं भी नहीं हुआ

    भारत में भी जनसंख्या का घनत्व बहुत तेजी से बदल रहा है और 9 से अधिक राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं. पाकिस्तान और बांग्लादेश के  सीमावर्ती  राज्यों में संदिग्ध राजनीतिक गतिविधियां चल रही हैं. यद्यपि असम में सुधार दिखाई पड़ रहा है लेकिन पश्चिम बंगाल में हालात बद से बदतर हो रहे हैं, जहां से चलकर जेहादी गतिविधियां बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में भी पहुँच गयी हैं.  

     डॉक्टर रिचर्ड बेनकिन  और  बिल बर्नर  ने इस्लाम का गहराई से अध्ययन किया और कई पुस्तकें लिखी जो  सही अर्थों में इस्लाम को काफिरों के दृष्टिकोण से समझने और अपनी संस्कृति और सभ्यता को बचाने में पूरे विश्व के लिए बेहद उपयोगी है. दुनिया भर में खराब होती हालत के कारण वामपंथियों ने राजनीतिक इस्लाम को अपना समर्थन दे दिया है इस तरह वामपंथ इस्लामिक गठबंधन पूरी दुनिया के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गया है, जिस का विस्तृत वर्णन अलेक्सांद्र सोल्झेनित्सिन ने अपनी पुस्तकों में किया है. इन तीनों अंतरराष्ट्रीय लेखकों के दृष्टिकोण को आधार बनाकर लिखी गई प्रोफेसर शंकर शरण की  एक पुस्तक प्रकाशित हुई है “इस्लाम और कम्युनिज्म - तीन  चेतावनियां"जिसमें हिंदुओं और विश्व के दूसरे संप्रदायों  को सावधान करते हुए लिखा है कि किसी को भी इस्लाम धर्म से कोई चिंता नहीं होनी चाहिए और इसे समझने में बिल्कुल समय भी खराब नहीं करना चाहिए लेकिन राजनीतिक इस्लाम जो पूरे विश्व के लिए बहुत बड़ा खतरा है, उसे समझ लेना बहुत आवश्यक है जिसके कारण ही पिछले 1400 वर्षों से इस्लाम पूरी दुनिया को जीतकर अपने कब्जे में लेता जा रहा है.

     राजनीतिक इस्लाम काफिरों पर लागू होता है, इसलिए इसे काफिरों के दृष्टिकोण से अपने बचाव के लिए जितनी जल्दी हो सके समझ लेना अत्यंत आवश्यक है. इतिहास का सबसे बड़ा सबक है कि इस्लाम किसी से सह अस्तित्व स्वीकार नहीं करता और इसलिए किसी के भी साथ सामंजस्य नहीं करता. किसी भी देश, धर्म, संप्रदाय या समुदाय के लिए इस्लाम के साथ सामंजस्य करने का मतलब है उनकी अंतहीन  मांगों को पूरा करते जाना. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर नें  लिखा है कि मुस्लिमों की मांगे हनुमान जी की पूंछ की तरह बढ़ती जाती हैं और पाकिस्तान बन जाने से इनका अंत नहीं होगा, जो भारत में सच साबित हो रहा है. राजनीतिक इस्लाम धर्म की राजनीति करके दूसरे सांप्रदायों पर दबाव बनाता है, अधिक से अधिक अधिकारों की मांग करता है, वित्तीय व अन्य संसाधनों का अधिकतम दोहन करता है और अनावश्यक  दूसरे समुदायों  से उलझता है, नित नए  विवाद पैदा करता है, किंतु जिहाद कभी नहीं छोड़ता. 

     अमेरिका और कई पश्चिमी देशों ने बचाव के उपाय करने शुरू कर दिए हैं इनमें  फ्रांस अग्रणी है जहां की सरकार ने इतने  प्रभावी कदम उठाये कि  जिहादी ताकतों को पीछे हटना पड़ा. भारत इससे अभी भी बेखबर है क्योंकि  यहां  काफिर और काफिर नेता अज्ञानता के अंधेरे में जी रहे हैं, जिन्हें ना खुद की चिंता हैं न भावी पीढ़ियों की. उनकी राय में भारत राष्ट्र नहीं, केवल  संप्रदायों  का समूह है. भाजपा जैसी तथाकथित हिंदूवादी पार्टी भी दिग्भ्रमित और हीन ग्रंथि का शिकार है, जों बिना अच्छे मुसलमान का मतलब जाने, उनके  द्वारा ही इस्लाम में सुधार के उपाय खोज रही हैं, जो क़यामत तक संभव नहीं है बल्कि राजनैतिक इस्लाम को और मजबूत करेगी.



    भाजपा  “सबका  विकास” के साथ-साथ “सबका विश्वास” का भी सपना देख रही है. इसलिए सिकंदर बख्त जैसों  की पालकी ढोने के बाद मुख्तार अब्बास नकवी, शहनवाज हुसैन जैसों को कंधे पर बिठा कर चल रही है, जिनके परिवार भी भाजपा को वोट  नही देते, खुद भी देते हैं, पता नहीं. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच जैसे संगठन बनाने  का उद्देश्य राष्ट्रवादी और देशभक्त मुसलमान खोजना है या मुस्लिम तुष्टिकरण करना, खुद भाजपा को नहीं मालूम. सरसंघचालक का  "हिंदुओं और भारतीय मुसलमानों का डीएनए एक है" कहना शायद काफिराना आत्मसमर्पण है. उन्होंने  "इस्लाम के बिना हिंदुत्व अधूरा है" कहकर संभवत: हिंदुत्व और सनातन संस्कृति को श्रद्धांजलि देना शुरू कर दिया है जो  राजनीतिक इस्लाम की भारत में सबसे बड़ी जीत है. हिंदू और हिंदुत्व के ध्वजवाहकों के ऐसे रवैये  से तो भारत में सनातन संस्कृति और हिंदुत्व का भविष्य बहुत लंबा नहीं हो सकता. इसलिए इनके भरोसे बैठने के बजाय सनातन संस्कृति को बचाने के लिए हर सनातनी को जागरूक बनकर  कार्य करने की  की आवश्यकता है, जो मुश्किल तो बिलकुल भी नहीं है. ******** ( चित्र गूगल से साभार )

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                                         - शिव मिश्रा ( ResponseToSPM@gmail.com )


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