दिल्ली विस्फोट: निहितार्थ और चिंताएँ || हिन्दुस्तान कब तक बच पायेगा पूर्ण इस्लामीकरण से || आतंकवाद का धर्म होता है ! ये निर्विवाद सत्य है और इस धर्म को सब जानते हैं ||
10 नवंबर 2025 को, बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक एक दिन पहले, दिल्ली के लाल किला क्षेत्र में हुए विस्फोट ने पूरे देश को झकझोर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 11 वर्षों के कार्यकाल में यह पहला और अभूतपूर्व आतंकी हमला था, और वह भी उस स्थान पर जहाँ हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराया जाता है। इस विस्फोट में 13 लोगों की मृत्यु हुई और 20 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए।
अब तक आतंकवाद की घटनाएँ मुख्यतः कश्मीर तक सीमित थीं, लेकिन यह पहली बार था जब देश की राजधानी में इतनी बड़ी घटना हुई। सुरक्षा एजेंसियों ने तत्परता से जांच शुरू की और कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
चिंता की बात यह है कि बिहार चुनाव में भाजपा गठबंधन को तीन-चौथाई बहुमत मिलने के बाद, इस जाँच की गति कहीं धीमी न पड़ जाए। विस्फोट से ठीक पहले पुलिस ने तीन क्विंटल से अधिक विस्फोटक बरामद किया था, जो दस लाख से अधिक लोगों को नुकसान पहुँचाने में सक्षम था। आतंकवादियों के प्रायोजकों और समर्थकों का उद्देश्य भारी संख्या में हिन्दू नरसंहार करने का था, लेकिन क्यों? हिन्दुओं ने उनका क्या बिगाड़ा है? इनका असली उद्देश्य समझने के लिए प्रत्येक भारतवासी को चिंतन करने की आवश्यकता है अन्यथा चिता भी नहीं बन सकेगी.
इस घटना का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि इसमें शामिल अधिकांश आतंकवादी पेशे से डॉक्टर थे—विशेषज्ञ चिकित्सक। मुख्य आरोपी डॉ. उमर मोहम्मद, पुलवामा निवासी, इंटरनल मेडिसिन में एमडी और मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर थे। उनकी विशेषज्ञता वीबीआईईडी (व्हीकल बोर्न इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) में थी, जिसे उसने इस हमले में प्रयोग किया। दूसरी प्रमुख आरोपी डॉ. शाहीन सय्यद, लखनऊ निवासी, जैश-ए-मोहम्मद की महिला भर्ती विंग की संचालिका थीं। वह अल-फलाह मेडिकल कॉलेज में कार्यरत थीं और उनके पास से हथियार और धन की व्यवस्था के प्रमाण मिले हैं। अन्य गिरफ्तार डॉक्टरों में डॉ. उमर उन नवी, डॉ. मुजम्मिल गनाई और डॉ. अदिल अहमद रदर शामिल हैं, जिनका संबंध अल-फलाह मेडिकल यूनिवर्सिटी से है। हैदराबाद निवासी डॉ. अहमद मोइनुद्दीन सैयद को भी गिरफ्तार किया गया है, जो “रेसिन” नामक घातक रसायन तैयार कर रहा था, जिसका उपयोग हिन्दू नरसंहार के लिए किया जाना था।
पुलिस ने इस नेटवर्क को “व्हाइट कॉलर टेरर” कहा है—एक ऐसा आतंकवादी तंत्र जिसमें वित्त, भर्ती, हथियार प्रबंधन और संगठनात्मक चैनलों का प्रयोग हुआ। यह जैश-ए-मोहम्मद और अंसार गजवत-उल-हिंद से जुड़ा हुआ है।
चिकित्सा क्षेत्र में नैतिक संकट
चिकित्सकों का धर्म मानवता की सेवा करना है। वे जीवन रक्षक होते हैं, न कि जीवन संहारक। लेकिन जब डॉक्टर के वेश में आतंकवादी छिपे हों, तो यह न केवल नैतिक संकट है, बल्कि पूरे चिकित्सा क्षेत्र की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न है।
ऐसी घटनाओं के बाद समाज में अविश्वास फैलता है। अब यदि कोई हिंदू, मुस्लिम चिकित्सकों से परामर्श लेने से परहेज करता है, तो उसे केवल पूर्वाग्रह नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह उनके लिए एक सुरक्षात्मक सतर्कता का उपाय है.
यह एक गहरी सामाजिक चिंता है, जिसे हिन्दुओं सहित सभी को समझना होगा।
ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान चुनौतियाँ
भारत में इस्लामी आक्रमणों का इतिहास सातवीं शताब्दी से शुरू होता है, जिसने सनातन संस्कृति को गहरे घाव दिए। भारत भूमि पर आक्रान्ताओं द्वारा 10 करोड़ हिंदुओं का नरसंहार हुआ, मंदिरों को तोड़ा गया, और उन पर मस्जिदें बनाई गईं. दुर्भाग्य से अमानवीय अत्याचारों और गुलामी के ये अवशेष आज भी ज्यों के त्यों हैं और कांग्रेस सरकार द्वारा पूजा स्थल कानून बना कर हिन्दुओं के लिए न्यायपालिका के दरवाजे भी बंद कर दिए गए लेकिन भाजपा की सरकार ने भी इस सम्बन्ध में कुछ लिया नहीं.
गजवा-ए-हिंद, जिसका उद्देश्य भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाना है, आज भी मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों के एजेंडे में शामिल है, जिसे अधिकांश मुस्लिमों का भी प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन प्राप्त है। जनसंख्या वृद्धि, धर्मांतरण और अवैध घुसपैठ जैसे कार्य इस एजेंडे को जल्द से जल्द पूरा करने के प्रमाण हैं। राजनैतिक इस्लाम इन सभी कुकृत्यों को ढंकने का कार्य करता है.
यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत में ऐसे मुसलमान भी हैं जो आतंकवाद और कट्टरता का विरोध करते हैं, लेकिन गजवा-ए-हिंद के खिलाफ खुलकर बोलने वाला कोई नहीं है जिसका मतलब समझना मुश्किल नहीं है.
राजनीतिक दृष्टिकोण
मोदी सरकार ने धारा 370 हटाने और राम मंदिर निर्माण जैसे कार्य किए हैं, लेकिन मंदिरों की स्वतंत्रता, हिंदू शिक्षा और सांस्कृतिक पुनरुद्धार के लिए अपेक्षित कदम नहीं उठाए गए।
हिंदू मंदिरों का सरकारी नियंत्रण, चढ़ावे का अन्य समुदायों के लिए उपयोग, आक्रान्ताओं द्वारा नष्ट कर कब्जाए गए धार्मिक स्थलों की मुक्ति जैसे मुद्दे आज भी अनसुलझे हैं।
विश्व के हर राष्ट्र में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद राष्ट्रीय अस्मिता और स्वाभिमान की पुनर्स्थापना के लिए आक्रांताओं द्वारा नष्ट किए गए धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों का जीर्णोद्धार किया. लेकिन भारत में स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस ने होने नहीं दिया और भाजपा ने सत्ता में आने के बाद किया नहीं. फिर भी हिन्दू उनका समर्थन विकल्प हीनता में इसलिए करता है क्योंकि यदि अन्य दलों की सरकार बनी तो कट्टर पंथियों का भारत को 2047 तक इस्लामी राष्ट्र बनाने का सपना समय से पहले ही पूरा हो सकता है. मोदी 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की धुन में हिंदुओं को विकास की मृग मरीचिका में उलझाए रखना चाहते हैं.
निष्कर्ष
लाल किला विस्फोट जैसी घटनाएँ केवल सुरक्षा संकट नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक चेतावनी भी हैं। भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन यह विकास केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और राष्ट्रीय अस्मिता से भी जुड़ा होना चाहिए।
यदि समाज अपनी पहचान और सुरक्षा खो देता है, तो यह राष्ट्र के लिए गंभीर संकट होगा।
~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें