शनिवार, 8 नवंबर 2025

"हाइड्रोजन बम" और कांग्रेस की कठिन राह,

 

"हाइड्रोजन बम" और कांग्रेस की कठिन राह ||राहुल के बेतुके करतब के पीछे का काला सच || राजीव - राहुल की समानता


पिछले कुछ महीनों से कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार सत्ताधारी भाजपा पर आरोपों की बौछार कर रहे हैं। वे अपने खुलासों को "राजनीतिक बम" का नाम देते हैं—कभी "एटम बम", कभी "हाइड्रोजन बम" लेकिन इन बयानों का असर कांग्रेस के लिए लाभकारी होने के बजाय आत्मघाती साबित होता दिख रहा है। दुष्परिणों से निश्चिन्त राहुल गांधी बिना किसी शर्म और संकोच के वह सब कर रहे हैं, जो किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता विशेष कर जब वह नेता प्रतिपक्ष हो, के पद की गरिमा के अनुकूल नहीं होता. महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अवसरों की अनदेखी कर उनका बार-बार बिना किसी उचित कारण के विदेश जाना, और वहां राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध भारत की अनावश्यक आलोचना करना, उनकी भूमिका को पहले ही अत्यंत संदिग्ध बना चुका है. कांग्रेस के अन्य नेता भारत में नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे हालात बनाने की चेतावनी देते रहते हैं. स्वयं राहुल गांधी भी अपनी सभाओं में जातिवादी और सांप्रदायिक विभेद बढ़ाने तथा युवाओं को उकसाने वाले भड़काऊ बयान देते रहते हैं. हाल में उन्होंने न्यायपालिका और सुना को निशाने पर लेटे हुए कहा कि उसे पर 10% सवर्ण लोगों का कब्जा होने की बात कही. ऐसे में, जबकि उनकी ब्रिटिश नागरिकता का मामला जांच के दायरे में है, वैवाहिक स्थितिपर प्रश्न चिन्ह लगा है, एसोसिएटेड जनरल की संपत्तियां हड़पने का भ्रष्टाचार का मामला अदालत में चल रहा है, मान हानि के एक मामले दो साल के सजा हो चुकी हो, देश की कई अदालतों में अनेक मामले विचाराधीन हो, पूरे राष्ट्र को संदेह होना स्वाभाविक है कि कहीं उनके संबंध भारत विरोधी संगठनों और विदेशी शक्तियों के साथ तो नहीं जुड़े हैं.

हरियाणा विधानसभा चुनाव पर आरोप

बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक 24 घंटे पहले राहुल गांधी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 को लेकर गंभीर आरोप लगाए। उनका दावा था कि लगभग 25 लाख फर्जी वोट डाले गए, जिससे कांग्रेस की जीत भाजपा की जीत में बदल गई। उन्होंने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी गंभीर सवाल उठाए।

हरियाणा के वास्तविक आंकड़े बताते हैं कि भाजपा को 55.48 लाख (39.94%) वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 54.30 लाख (39.09%) वोट। दोनों दलों के बीच महज़ 1.18 लाख वोटों का अंतर रहा, जिससे भाजपा को 48 और कांग्रेस को 37 सीटें मिलीं। यह चुनावी गणित असामान्य नहीं है—कभी एक पार्टी बहुत भारी अंतर से कुछ सीट जीतती है, जिससे राज्य स्तर पर मत प्रतिशत तो बढ़ जाता है लेकिन ज्यादा सीटें नहीं मिलती क्योंकि मतों की बढ़ोत्तरी सामान रूप से सभी सीटों पर नहीं होती. इसके विपरीत यदि मतों की वृद्धि लगभग सामान रूप से सभी सीटों पर होती है तो ज्यादा सीटें जीती जा सकती हैं भले ही जीत का अंतर मामूली हो. भाजपा के मामले यही हुआ जिसने मामूली अंतर से ज्यादा सीटें जीतीं .

किसी विधान सभा या लोकसभा चुनाव में किसी पार्टी को ज्यादा वोट प्रतिशत मिलकर भी वह चुनाव हार सकती है क्योंकि जीत सीटों की संख्या पर निर्भर करती है, न कि कुल वोट प्रतिशत पर। यह भारत की चुनाव प्रणाली की विशेषता है. इसका कारण है भारत में "फर्स्ट - पास्ट - द - पोस्ट" चुनाव प्रणाली का होना। इसमें हर निर्वाचन क्षेत्र से एक ही प्रतिनिधि चुना जाता है. जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा वोट पाता है, वह जीत जाता है। जिस दल या गठबंधन के पास विजयी सीट सबसे अधिक होती हैं, सरकार बनाता है.

आसान नहीं है सीटों का गणित

हरियाणा विधान सभा २०२४ चुनाव में कांग्रेस ने फिरोजपुर झिरका सीट 98,441 वोटों के अंतर से जीती, जबकि पुनहाना और लोहारू सीटें मात्र 700–800 वोटों के अंतर से। राज्य की कुल 90 सीटों में से 31 सीटें लगभग 1000 वोटों के अंतर से जीती गईं, इनमें से 12 भाजपा, 10 कांग्रेस और 9 सीटें अन्य दलों ने जीती। यह दर्शाता है कि चुनावी परिणाम अक्सर बेहद छोटे अंतर पर निर्भर करते हैं।ऐसे में राहुल गांधी के कुतर्क किसी के गले नहीं उतर सकते.

राजीव गाँधी और राहुल

1984 में कांग्रेस को 49.1% वोट के साथ 414 सीटें मिली थीं, जो कि अब तक का कीर्तिमान है.। 1989 में उसका वोट प्रतिशत घटकर 40.62% हुआ और सीटें घटकर 197 रह गईं। वहीं भाजपा को 1984 में 7.4% वोट और केवल 2 सीटें मिली थीं, लेकिन 1989 में उसका वोट प्रतिशत 11.87% हो गया और सीटें बढ़कर 88 हो गईं। यह उदाहरण बताता है कि सीटों का गणित केवल वोट प्रतिशत पर नहीं, बल्कि क्षेत्रीय वितरण पर आधारित होता है। लेकिन राजीव गांधी ने भी उस समय चुनाव परिणाम पर संदेह जताया था और कहा था कि मात्र 4% वोट बढ़ने से भाजपा की सीटें 88 कैसे हो साक्ती हैं, यह गणित उनके समझ से बाहर है.

ब्राजील मॉडल का विवाद

राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि हरियाणा में एक ब्राजील की मॉडल ने अलग-अलग नामों से 22 स्थानों पर वोट डाले। उनकी टीम ने फोटोग्राफर का नाम ही मॉडल का नाम बता दिया । मॉडल ने स्वयं वीडियो जारी कर आरोपों को नकार दिया, लेकिन सोशल मीडिया पर वह अचानक प्रसिद्ध हो गई, इसलिए रहुल की कृतज्ञ भी है । राहुल गांधी ने जिन नामों के साथ ब्राजील मॉडल की फोटो लगी होना बताया, उन सभी के मूल मतदाता पहचान पत्र में उनकी खुद की फोटो लगी है. इस सम्बन्ध में कई महिलाओं ने कैमरे के सामने आकर अपने बयान दिए और अपने मतदाता पहचान पात्र भी दिखाए . इससे लगता है कि राहुल के लिए पीपीटी तैयार करने वाली टीम ने राहुल के आरोपों को सनसनीखेज बनाने के लिए स्वयं धोखा धड़ी करके ब्राजील मॉडल की फोटो लगाई. इस घटना ने कांग्रेस की विश्वसनीयता को गहरी चोट पहुँचाई।

चुनाव आयोग और सरकार को चाहिए कि वह एक विशेष जांच टीम बनाकर इस धोखाधड़ी की जांच करें और यदि राहुल गांधी की टीम द्वारा धोखाधड़ी करने की बात साबित होती है तो उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए भारतीय लोकतंत्र और चुनावों की गरिमा बनाई रखी जा सके. देश की संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता और प्रतिष्ठा को किसी असामान्य व्यक्ति की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए दांव पर नहीं लगाया जा सकता.

मकान नंबर और मतदाता सूची

राहुल गांधी ने यह भी कहा कि एक ही घर में सैकड़ों वोटर पाए गए। लेकिन भारत के कई नगरों में "आहाता" जैसी परंपरागत संरचनाएँ होती हैं, जिनमें दर्जनों मकान और सैकड़ों लोग रहते हैं। ऐसे में एक ही मकान नंबर पर कई वोटर होना असामान्य नहीं है। जहां तक शून्य संख्या वाले घरों की बात है, भारत के कई गांवों में विशेष कर छोटे-छोटे गांवों जिन्हें ग्राम पंचायत से सम्बद्ध मजरे कहा जाता है, में अभी भी कोई भवन संख्या आवंटित नहीं है. सभी के घर चिट्ठी पत्री भी ग्राम और पोस्ट लिखकर ही आती जाती है. कंप्यूटर की सामान्य समझ रखने वाले व्यक्ति को यह मालूम होगा कि डेटाबेस का स्टैंडर्ड कॉमन फॉर्मेट होता है जिसमें यदि मकान नंबर की फील्ड भरा जाना अनिवार्य ( मैंडेटरी फील्ड )है, तो डाटा एंट्री करने के लिए शून्य भरना मजबूरी है. मकान नंबर न होना या शून्य होना एक ही बात है. यह तकनीकी मजबूरी है, न कि धांधली।

कांग्रेस की चुनौतियाँ और दिशा

भारतीय राजनीति के परिदृश्य में कांग्रेस पार्टी एक ऐतिहासिक और दीर्घकालिक भूमिका निभाती रही है। किंतु पिछले 11 वर्षों से केंद्र की सत्ता से बाहर रहने के बाद, पार्टी आज एक गहरे आत्ममंथन के दौर से गुजर रही है। राहुल गांधी, जो पार्टी के विभिन्न पदों पर रह चुके हैं और विपक्ष के प्रमुख चेहरों में से एक हैं, अब तक संगठन में नई ऊर्जा भरने में अपेक्षित सफलता नहीं पा सके हैं। कांग्रेस की उपस्थिति अब कुछ गिने-चुने राज्यों तक सीमित रह गई है. जिन राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने अपनी जड़ें मजबूत की हैं, वहाँ कांग्रेस का आधार लगातार कमजोर हुआ है। उड़ीसा और पंजाब जैसे राज्य पार्टी के हाथ से फिसल चुके हैं, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों में कांग्रेस की उपस्थिति लगभग नगण्य हो चुकी है।

यह स्थिति केवल राज्य स्तर पर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी कांग्रेस की भूमिका सीमित हो गयी है। कांग्रेस यदि केवल क्षेत्रीय दलों के सहारे केंद्र में सत्ता प्राप्त करने की रणनीति अपनाती है, तो वह न केवल अपनी स्वतंत्र पहचान खोती है, बल्कि गठबंधन की अस्थिरता और वैचारिक असंतुलन का भी शिकार बनती है—जैसा कि यूपीए-2 के कार्यकाल में देखा गया। आज कांग्रेस के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती भाजपा नहीं, बल्कि क्षेत्रीय दल हैं, जो अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक को विभाजित कर चुके हैं लेकिन भाजपा को रोकने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है, और किसी से भी हाथ मिलाने को तैयार है. नीतिगत स्तर पर भी कांग्रेस को अपनी विचारधारा और गठबंधन नीति पर पुनर्विचार करना होगा। किसी संप्रदाय विशेष के तुष्टिकरण या वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर यदि पार्टी राष्ट्रव्यापी समावेशी दृष्टिकोण अपनाती है, तभी वह मुख्यधारा में लौट सकती है अन्यथा हिन्दू विरोधी होने के कारण एक मुस्लिम पार्टी बनकर रह जायेगी.

राहुल गांधी के "हाइड्रोजन बम" जैसे बयान कांग्रेस को राजनीतिक लाभ पहुँचाने के बजाय नुकसान ही पहुँचा रहे हैं। आरोपों की जाँच में तथ्य सामने आते ही कांग्रेस की विश्वसनीयता और कमजोर होती है। भारतीय लोकतंत्र की गरिमा को बार-बार संदेहास्पद बताना जनता के विश्वास को चोट पहुँचाता है।

सनसनीखेज आरोपों से राजनीति नहीं चलती। जनता ठोस तथ्य और भरोसे की तलाश करती है। राहुल गांधी स्वयं कांग्रेस के लिए आत्मघाती बम साबित हो रहे हैं।

~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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