किसी
इंसान के मौत पर युद्ध हो सकता है और कुत्ते की मौत पर भी । लेकिन अगर कुत्ते की मौत
काल्पनिक हो तो भी युद्ध हो सकता है, ये आप पहले बार देख रहे होंगे । दरअसल
नरेंद्र मोदी ने लंदन की एक पत्रिका को दिये इंटरव्यू मे ये कहा की अगर आप गाड़ी मे
पीछे बैठे हों और आपकी गाड़ी से कोई कुत्ते का पिल्ला कुचल जाए तो भी दुख होता है।
मोदी का इशारा शायद यह है की गैर इरादतन, अनजाने मे
बिना उनकी किसी प्रत्यक्ष गलती के गुजरात दंगों
मे मारे गए लोगो की मौत का उन्हे दुख है। कहा तो ये भी जाता है की चीटी के मरने का
भी दुख होता है। अच्छा होता की इस तरह के उदाहरण से वे बचते। तब शायद उनके विरोधी इंटरव्यू
की किसी और बात का बतंगड़ बना देते जैसा की उनके हिन्दू राष्ट्रवाद के बयान को लेकर
मचाया जा रहा है। मुझे लगता है की उनके फालोवेर्स मे विरोधी दल के भी काफी नेता है
जो उनकी हर बात और हर गतिविधि को बड़े ध्यान
से देखते है और अपने दल के अनुकूल तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते है । इसमे उनके वोट
बैंक का तुष्टीकरण सदैव छिपा रहता है। इसका
सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी को ये हो रहा है कि मोदी की हर बात मीडिया मे बड़े ज़ोर
शोर से छा जाती है और विरोधी नेताओं की कुंठा इस तरह सामने आती है कि उनकी बौद्धिकता
और स्वभावगत असलियत जनता के सामने आ जाती है । लेकिन इससे दो समुदायों के बीच की खाई
और चौड़ी होती जा रही है । शायद यही ये नेता चाहते हैं क्योकि इससे वोट बैंक का ध्रुवीकरण
होगा और एक समुदाय विशेष के वोट थोक मे उसे मिलेंगे। अगर मोदी चाहें भी तो सीधे अफसोस
भी जाहिर नहीं कर सकते क्योकि तब तथाकथित धर्म निरपेक्ष दल इसे उनकी दंगों की स्वीकारोक्ति
के रूप मे प्रचारित करेंगे ।
मुस्लिम
समुदाय को भी ये सोचना होगा कि उनका हित कहाँ और कैसे होगा और उन दल और नेताओं से दूर
रहना होगा जो उन्हे सिर्फ वोट बैंक बनाए रखना चाहते हैं ।
शिव प्रकाश मिश्रा
जीवन के प्रति आदर के वक्तव्य से चिड जाने का अभिप्राय क्या दर्शाता है?? क्या सम्वेदनाओं के प्रतिपक्ष में यही बोध बच गया है।
जवाब देंहटाएंआपके इस आलेख के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (15.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .
जवाब देंहटाएंवाह ,बहुत सुंदर भावपूर्ण आलेख . बधाई
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