सनराइज ओवर
अयोध्या अर्थात सनसेट ऑफ कांग्रेस
कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद की एक और पुस्तक "सनराइज ओवर अयोध्या" ने कोहराम मचा दिया है, और शायद यही उनकी मंशा भी थी. हासिये पर पड़ी कांग्रेस के नेपथ्य में पड़े ऐसे नेताओं की मंशा किसी न किसी प्रकार कांग्रेस और खुद को सुर्खियों में लाने की रहती है. सलमान खुर्शीद ने इस किताब में हिंदुत्व की तुलना दुनिया के क्रूरतम आतंकवादी संगठन बोको हराम और आईएसआईएस से की है. एक हिंदू बहुसंख्यक देश में इस तरह के बयान देना यह साबित करता है कि हिंदुस्तान में मुसलमान कितना डरा हुआ है या बहुसंख्यकों को कितना डरा कर रखता है.
सलमान खुर्शीद ने अपनी किताब में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भी टिप्पणियां की हैं. प्रत्यक्ष तौर पर तो
उन्होंने इस फैसले की प्रशंसा की है लेकिन उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि अयोध्या में
राम मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी यह
कभी साबित नहीं हुआ. यह लिखकर सलमान खुर्शीद क्या कहना चाहते हैं, यह कोई भी समझ
सकता है. असदुद्दीन ओवैसी भी यही बात कहते हैं "वन्स ए मस्जिद ऑलवेज ए
मस्जिद" चाहे वह कहीं भी किसी की जमीन पर जबरदस्ती कब्जा करके ही क्यों न
बनाई जाए. ओवैसी ने कह रखा है कि वह अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर स्वीकार नहीं करते और जब भी उन्हें
मौका मिलेगा वह दोबारा वहां पर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाएंगे. यह दोनों बयान लगभग
एक जैसे हैं सिर्फ भाषा का अंतर है.
कुछ हिंदू इस बात पर आश्चर्य कर रहे हैं और
समझ नहीं पा रहे हैं कि सलमान खुर्शीद जैसे
बेहद शिक्षित, प्रगतिशील और नरमपंथी मुसलमान ने आखिर हिंदुत्व की तुलना आतंकवादी संगठनों से
क्यों की ? ऐसे सभी लोगों को यह जान लेने की आवश्यकता है कि ज्यादातर मुसलमान वह
चाहे जितनी ही शिक्षित और प्रगतिशील क्यों न हो, मजहब ही उनके लिए सर्वोपरि होता है और राष्ट्र, राष्ट्रीयता, व देशभक्ति उनके
लिए कोई मायने नहीं रखती. मजहब के
लिए वे कुछ भी कर सकते हैं. आजकल देश में
बड़े-बड़े पदों पर बैठे लोगों द्वारा धर्मांतरण और जिहादी क्रियाकलापों में संलग्न
होने के अनगिनत उदाहरण सामने आ रहे हैं.
उत्तर प्रदेश कैडर के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी इफ्तिखारउद्दीन ने कानपुर
में आयुक्त रहते हुए अनेक परिवारों का धर्मांतरण कराया और जिहादी गतिविधियों में भाग लिया . स्वाभाविक है
उन्होंने अचानक ऐसा करना शुरू नहीं किया बल्कि
वह शुरू से इस तरह की गतिविधियों में संलग्न रहे होंगे. ऐसा करने वाले वह
अकेले नहीं है अगर जांच की जाए तो हैरान-परेशान करने वाले आंकड़े सामने आएंगे.
देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद जिनकी
धर्मनिरपेक्षता के बारे में जवाहरलाल नेहरू
कसीदे काढ़ते थे और कांग्रेस आज तक मुस्लिमों को लुभाने के लिए उनका नाम
इस्तेमाल करती है, उन्होंने भी कहा था कि प्रत्येक मोमिन जो
अल्लाह में विश्वास करता है, उसके पैगंबर और उसकी किताब कुरान में विश्वास
करता है उसके लिए आज्ञा है कि वह अल्लाह के रास्ते जिहाद के लिए खड़ा हो जाए. पहला
जिहाद आर्थिक जिहाद है और फिर जरूरत पड़े तो जिस्म और जिंदगी का जिहाद.
इसलिए सलमान खुर्शीद ने क्या लिखा इस पर बहुत
आश्चर्य नहीं करना चाहिए. वह ऐसे अशराफ हैं जिनकी दिली चाहत है कि जितनी जल्दी हो
सके पूरी दुनिया पर इस्लाम का शासन हो और ऐसा करने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार
हैं. यह पहली बार नहीं है कि सलमान खुर्शीद ने हिंदुओं के विरुद्ध विषाक्त बयान
दिया है या कुछ लिखा है. 1984 के दंगों में सिखों के बर्बर नरसंहार, जिसके केंद्र में
स्वयं कांग्रेस थी, के बाद भी
उन्होंने एक किताब लिखी थी और उसका नाम था "एट होम इन इंडिया- रिस्टेटमेंट ऑफ
इंडियन मुस्लिम". इस किताब में खुर्शीद ने लिखा था कि 1984 के दंगे बेहद दुखद
है किंतु मुसलमानों के लिए बहुत बड़ा संदेश है कि भारत में कोई भी अल्पसंख्यक
सुरक्षित नहीं है. 1947 के विभाजन के समय हिंदू और सिखों ने मिलकर मुसलमानों का
कत्लेआम किया था, जिसे मुसलमान अभी भी नहीं भूले हैं और आज जब
हिंदुओं ने सिखों का नरसंहार किया है, यह देखकर मुसलमानों के
कलेजे को ठंडक पहुंची है. हिंदू और सिख दोनों को मुसलमानों का रक्त बहाने के उनके पाप की सजा मिली है.
सिखों को श्रीमती गांधी की हत्या की सजा भी
मिली है, जो जवाहरलाल नेहरू के बाद मुसलमानों की अंतिम आशा थी.
आसानी से समझा जा सकता है कि सलमान खुर्शीद, और जिन्ना की
भाषा में अंतर हो सकता है लेकिन भावनाओं में नहीं. बटला कांड के बाद भी सलमान
खुर्शीद का विलाप सामने आया था जिसमें उन्होंने कहा था कि जब उन्होंने बटला कांड
के मृतकों की फोटो सोनिया गांधी को दिखाई
तो वह बिलख बिलख कर रो पड़ी. कश्मीर घाटी से हिंदू पंडितों के
विस्थापन पर वह मौन नहीं रहते, वे कहते हैं अगर
घाटी से पंडित बेघर हुए तो हुए, वह रह तो आज भी
अपने देश में ही रहे हैं.
इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जवाहरलाल नेहरू अपनी कपट पूर्ण नीति और उसे गांधी के समर्थन के कारण
इस प्राचीन सनातन संस्कृति वाले देश को धर्मनिरपेक्षता का लबादा उढाने में सफल हुए थे
और शायद यह सनातन धर्म और संस्कृति पर अब तक का सबसे बड़ा आक्रमण था.
मुस्लिम लुटेरे आक्रमणकारियों, मुगलों और अंग्रेजो द्वारा सनातन संस्कृति को इतना दुष्प्रभावित और
नुकशान नहीं किया जा सका था जितना
स्वतंत्रता के बाद हुआ है. यह नेहरू और
गांधी ही थे जिन्होंने देश का विभाजन
स्वीकार करके हिंदू और मुसलमानों के लिए अलग अलग देश बनाना तो स्वीकार किया
लेकिन सोची समझी रणनीति के कारण हिंदुओं के हिस्से वाले देश से मुसलमानों को जाने नहीं दिया गया.
यह कैसा विभाजन था ? इसलिए जब कुछ मुसलमान कहते हैं कि "हंस के
लिया पाकिस्तान, लड़के लेंगे
हिंदुस्तान " तो उनकी बात में दम नजर
आता है और उसके पीछे नेहरू गांधी की यह गलती या सोची समझी साजिश नजर आती है.
कई वर्ष पहले सीताराम गोयल ने अपनी किताब में
लिखा था कि जवाहरलाल नेहरू भारत में सनातन
धर्म और संस्कृत पर आक्रमण करने वाले इस्लामिक जिहादियों, क्रिस्चियन मिशनरियों और खतरनाक वामपंथियों का
प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए अगर देश को बचाना है तो हम सभी को नेहरूवाद से
छुटकारा पाना होगा. सीताराम गोयल द्वारा
यह लिखें जाने के पहले ही डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, जॉन मथाई, श्यामा प्रसाद
मुखर्जी जैसे नेताओं ने जवाहरलाल नेहरू के बारे में बहुत सारे रहस्योद्घाटन किए थे,
लेकिन एक संगठित अभियान के अंतर्गत इन सभी को किनारे कर दिया गया था .
सलमान खुर्शीद के बाद कांग्रेस के एक अन्य नेता राशिद अल्वी भी मैदान
में आ गए और उन्होंने कहा कि जय श्री राम बोलने वाले राक्षस हैं. उनकी बात को और आगे बढ़ाने के लिए
कांग्रेश के एक अन्य नेता मणिशंकर अय्यर, जो दून स्कूल में राजीव
गांधी के सहपाठी भी रहे हैं, सामने आ गए और उन्होंने कहा कि मुगलों ने कभी
भी धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं किया और न ही उन्होंने किसी धार्मिक स्थल को क्षति
पहुंचाई. यह वही मणिशंकर अय्यर हैं जिन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद से
हटाने के लिए पाकिस्तान से समर्थन मांगा था. विडंबना देखिए सलमान खुर्शीद राशिद
अल्वी और मणि शंकर अय्यर तीनों ही सोनिया
गांधी के अत्यंत करीबी व्यक्ति हैं, इसलिए इनकी बयानों को
व्यक्तिगत बयान कहकर नहीं टाला जा सकता क्योंकि कांग्रेस और सोनिया गांधी समय-समय
पर इन नेताओं का ऐसा ही इस्तेमाल करती रही हैं.
सलमान खुर्शीद की बात का समर्थन करने के लिए
राहुल गांधी स्वयं मैदान में आ गए और उन्होंने भी हिंदुत्व पर अपना ज्ञान लोगों को
दिया, जिस पर किसी ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की क्योंकि सभी
राहुल गांधी के ज्ञान के बारे में परिचित हैं. आने वाले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और
पंजाब में चुनाव होने हैं, इसलिए ज्यादातर लोगों का मत है की चुनाव में
वर्ग विशेष के वोट हथियाने के लिए जानबूझकर ऐसा किया गया लेकिन इससे सहमत नहीं हुआ
जा सकता क्योंकि इन प्रदेशों में केवल
वर्ग विशेष के मतों के सहारे चुनाव नहीं जीता जा सकता और इतनी आसान सी बात सोनिया
गांधी के सलाहकारों को भी मालूम होगी. फिर भी ऐसे समय जब वोटों के लालच में जनेऊ
धारी राहुल गांधी वैष्णो देवी सहित अन्य मंदिरों की परिक्रमा कर रहे हो, और प्रियंका
वाड्रा गंगा स्नान कर, चंदन लगाकर और शंकराचार्य की चरण वंदना कर
स्वयं को विशुद्ध हिंदू साबित करने की
मुहिम चला रही हो, इन नेताओं के बयान कांग्रेश की जीत की मुहिम
में करारा झटका साबित हो सकती है.
देश को
मुस्लिम शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी का अनुग्रहीत होना
चाहिए कि उन्होंने आशा की किरण बनकर
इस्लाम धर्म में व्याप्त बुराइयों को सामने लाकर समाज के पथ प्रदर्शन का
काम किया है, जिसके लिए कट्टरपंथी मुस्लिमों की तरफ से उन्हें धमकियां मिल रही हैं और उनकी जान को
गंभीर खतरा है. वसीम रिजवी ने कुरान में लिखी
उन आयतों के खिलाफ भी आवाज उठाई है जो आतंकवाद और हिंसा को बढ़ावा
देती हैं. उन्होंने मदरसों पर तत्काल
प्रतिबंध लगाने का सरकार से अनुरोध किया है. उनकी इस बात से कोई भी बुद्धिजीवी
इनकार नहीं कर सकता कि भारत चाहे कितने ही आतंकवादियों को मार गिराये लेकिन जब तक आतंकवाद की फैक्ट्री बने मदरसों पर
प्रतिबंध नहीं लगाया जाता, भारत से आतंकवाद कभी खत्म नहीं हो सकता.
दुर्भाग्य से
भारतीय जनता पार्टी ने भी वसीम रिजवी की
इस मुहिम का न केवल विरोध किया है बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार के एक मुस्लिम मंत्री
दिन प्रतिदिन उनकी आलोचना करते रहते हैं. भाजपा और उत्तर प्रदेश सरकार को इससे
बचना चाहिए और वसीम रिजवी को आवश्यक सुरक्षा तुरंत प्रदान करनी चाहिए ताकि उनके
जैसे अन्य साहसी मुस्लिम व्यक्ति, इस्लामिक जिहाद के खिलाफ संघर्ष करने की हिम्मत
कर सकें. सूचना प्रौद्योगिकी के इस क्रांतिकारी युग में सूचनाएं और अन्य पठन
सामग्री पर रोक लगाना संभव नहीं है और इसीलिए आज कुरान के हिंदी रूपांतर, और अन्य ऐसी
पुस्तकें आसानी से इंटरनेट पर उपलब्ध है जिन पर विभिन्न सरकारों ने रोक लगा रखी
है. इनमें अली सीना की अंडरस्टैंडिंग
मोहम्मद, सलमान रशदी की शैतानिक वर्सेस, तस्लीमा नसरीन की
लज्जा आदि प्रमुख पुस्तकें इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध है. वैसे तो सभी धार्मिक
समुदायों को अन्य धर्मों को समझने के लिए उनकी पुस्तकें पढ़नी चाहिए लेकिन हिंदुओं को इस्लाम से
संबंधित इन पुस्तकों को अवश्य पढ़ना चाहिए ताकि वह किसी गलतफहमी के शिकार न रहे.
- शिव मिश्रा
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