बुधवार, 17 नवंबर 2021

उप-चुनावों के सन्देश

 

उप-चुनावों  के सन्देश



हाल ही में संपन्न हुए उपचुनावों  का संदेश भाजपा के लिए खतरे की घंटी है । यद्यपि इन चुनावों ने कुछ ऐसे राज्यों में भाजपा को एक दो सीटें प्रदान की है जहां भाजपा का बहुत अधिक प्रभाव नहीं था लेकिन यह बिलुल भी संतोष की बात नहीं है  । उप चुनाव में सत्ताधारी दल को फायदा मिलना एक सामान्य बात  है, लेकिन हिमाचल प्रदेश जैसे भाजपा के  पुराने  गढ़ में सत्ताधारी  भाजपा की दर्दनाक पराजय होना इस बात को रेखांकित   करता है कि भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारें कहीं न कहीं गंभीर गलतियां कर रही है. हिमाचल में  कांग्रेस ने न केवल अपनी  सीटें बचाई बल्कि भाजपा से लोकसभा की एक  सीट ( मंडी) और विधानसभा की एक  सीट छीन ली. भाजपा कोई भी सीट जीतने में सफल नहीं हो सकी. सामान्यतः सत्ताधारी दल को इस तरह की परिस्थिति का सामना नहीं करना पड़ता है और हिमाचल प्रदेश तो भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह प्रवेश है. इस तरह की घटनाएं तभी सामने आती  हैं जब सत्ताधारी दल के विरुद्ध जनाक्रोश अपने चरम पर हो. ज्यादातर विश्लेषक भाजपा का बचाव करते हुए कहते रहते हैं कि  जनता विधानसभा और लोकसभा के लिए अलग-अलग तरह से वोट करती है, लेकिन ऐसे समय जब प्रदेश के चुनाव शीघ्र ही होने वाले हैं यहां लोकसभा सहित विधानसभा की सभी सीटें  हार जाना केंद्र और राज्य कि दोनों सरकारों  के लिए  एक बहुत बड़ा चेतावनी है.



 पश्चिम बंगाल में तो ऐसा लगता है कि भाजपा ने अपने आप को परिस्थितियों के हवाले छोड़ दिया है और यहां भाजपा लगातार अपने पराभव पर है. कोई बड़ी बात नहीं कि अगले लोकसभा चुनाव और उसके बाद विधानसभा चुनाव तक भाजपा अपने पूर्व स्थिति तक सिमट जाए, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सहित भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह से जिम्मेदार है. पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहां की जनता को बहुत  सब्जबाग दिखाये,  प्रत्येक बूथ पर सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त भी किए लेकिन वावजूद इसके  केंद्र सरकार यह सुनिश्चित नहीं कर सकी कि मतदाता अपने घरों से बिना किसी हिचकिचाहट और डर के मतदान के लिए निकल सके. इसका परिणाम यह हुआ कि ऐसे मतदाता जो टीएमसी के विरोध में मत करना चाहते थे अपने घरों से ही नहीं निकल सके. कई विश्लेषकों ने यह स्पष्ट किया है कि अगर  केंद्र सरकार मतदाताओं को उनके घर से निकलना सुनिश्चित कर सकती तो संभव था भाजपा पश्चिम बंगाल में सरकार बना सकती थी.

यद्यपि पश्चिम बंगाल में भाजपा सरकार नहीं बना सकी लेकिन विधानसभा में उसकी संख्या और प्राप्त मत प्रतिशत  में भारी वृद्धि हुई, फिर भी  जनता को जिसका डर था,वह  तृणमूल कांग्रेस की विजय के बाद सामने आ गया. पूरे प्रदेश में हत्या, लूटपाट, बलात्कार और  पलायन के वैसे ही दृश्य देखने को मिले जैसे देश के बंटवारे के समय देखने को मिले  थे. केंद्र सरकार ने ना तो कोई प्रभावी कार्यवाही की और ना ही प्रदेश की जनता को सांत्वना देने और उसका विश्वास बहाल करने के लिए कोई कदम उठाया. यहां तक कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने हत्या, बलात्कार और आगजनी की घटनाओं की  ना तो खुलकर निंदा की और ना ही जनता को सांत्वना देने के लिए कोई बयान दिया. बात बात पर ट्वीट करने वाले और मन की बात में पूरे देश को समेटने की कोशिश करने वाले प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल की घटनाओं पर एक ट्वीट तक नहीं किया. इसका परिणाम यह हुआ कि प्रदेश की भलाई के लिए भाजपा से जुड़ने  वाले बड़े नेता और कार्यकर्ता अपनी जान बचाने के लिए बेहद मजबूरी और निराशा में भाजपा छोड़कर पुनः तृणमूल कांग्रेस की शरण में चले गए और यह सिलसिला अनवरत चल रहा है. पश्चिम बंगाल में  भाजपा द्वारा अपनाए गए इस रवैये  का क्या कारण है, यह आज तक रहस्य बना हुआ है और इसने  पूरे देश के बुद्धिजीवियों को हैरान किया और भाजपा के प्रति समर्पित या सहानुभूति रखने वाले सभी देशभक्तों को बेहद निराश किया. 

कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदलने के बाद भी वर्तमान मुख्यमंत्री के गृह जिले की सीट भी भाजपा नहीं जीत सकी यह भी चिंता का बड़ा कारण होना चाहिए. राजस्थान में तमाम उठापटक के बाद भी गहलोत सरकार ने बड़े अंतर से विधानसभा की सीटें जो भाजपा के पास थी जीत ली.  भाजपा ने तेलंगाना में एक सीट जीतकर राज्य में आशा की किरण जगाई है लेकिन भाजपा के लिए सबसे अधिक सफलता असम मैं मिली जहां मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा के नेतृत्व में राज्य की सभी 5 सीटों पर विजय मिली. मध्यप्रदेश में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भाजपा के साख बचाने में सफल रहे.

भाजपा के इस निराशाजनक प्रदर्शन के पीछे सबसे बड़ा कारण है, जिस पर सबसे कम बहस होती है वह है "सबका विश्वास" जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव की जीत के बाद "सबका साथ, सबका विकास" के साथ जोड़ दिया है. यह कोई छिपी  बात नहीं है  कि सबका विश्वास जोड़ने का  मतलब मुस्लिम समुदाय का विश्वास प्राप्त करना है. इससे सनातन संस्कृति के प्रति आस्था रखने वाले और हिंदूवादी शक्तियों को बेहद निराशा हुई है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत  द्वारा भी इसी तरह के प्रयास किए जा रहे हैं.  उनके भी कई वक्तव्य हिंदुओं में घोर निराशा का कारण बने हैं. संघ प्रमुख ने अभी हाल ही  पुणे स्थित ग्लोबल स्ट्रैटेजिक पॉलिसी फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था  कि हिंदुओं और मुसलमानों के पूर्वज एक ही हैं, और हमारी मातृभूमि और गौरवशाली अतीत हमारी एकता का आधार है। हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दूरी अंग्रेजों द्वारा पैदा की गई थी . इसके पहले भी वह मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के सम्मेलन में कह चुके हैं कि हिंदू और मुस्लिमों का डीएनए एक है, हिंदू मुस्लिम भाई भाई हैं और हमें मिलजुलकर इस राष्ट्र को आगे बढ़ाना है. इन सब बातों से न तो कोई इनकार  कर सकता है  और ना ही असहमत हो सकता है, लेकिन वास्तविकता बिलकुल अलग है . उन्होंने यह भी कहा की लिचिंग हिंदुत्व के खिलाफ है और लिंचिंग करने वाले हिंदू नहीं हो सकते और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए. ऐसा कहकर  उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से हिंदुओं द्वारा लिंचिंग करना स्वीकार कर लिया.

भाजपा और संघ दोनों के इस दृष्टिकोण में भाजपा को समर्थन देने वाले एक बहुत बड़े पर्व में निराशा पैदा करने का काम किया है. हिंदुओं के एक बड़े वर्ग जो शुरू से ही भाजपा के प्रति समर्पित है और भाजपा को समर्थन करता है, का यह मानना है कि भाजपा ने स्वयं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से वोटों के लालच में मुस्लिमों को लुभाने का कार्य शुरू कर दिया है जो कुछ और नहीं कांग्रेस और अन्य दलों द्वारा किया जाने वाला मुस्लिम तुष्टिकरण ही  है. अभी तक भाजपा को अन्य दलों से इसलिए अलग माना जाता था कि वह हिंदुओं का  समर्थन करने वाला एकमात्र राजनीतिक दल है. बहुत से ऐसे हिंदू भी जो भाजपा की नीतियों और सरकार की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं होते वह भी हिंदूवादी पार्टी होने के कारण परंपरागत रूप से भाजपा को वोट देते हैं. अगर कोई अन्य हिंदूवादी पार्टी होती तो निश्चित रूप से ऐसे लोग भाजपा विकल्प के रूप में उसे वोट देते.   ऐसे लोग भी अब सोचने लगे हैं कि  जब भाजपा भी अन्य दलों की तरह मुस्लिम तुष्टिकरण की राह पर चलने लगे तो फिर उसे वोट देने का क्या औचित्य. ऐसा सोचने  वाले लोगों की संख्या बहुत बड़ी है और अगर भाजपा ने विशाल हिंदू जनमानस की इस संवेदनशीलता पर अति शीघ्र ध्यान नहीं रखा तो आगामी सभी चुनाव में उसे व्यापक नुकसान के लिए तैयार रहना चाहिए.

 दुनिया में जितने भी इस्लामिक  या मुस्लिम बाहुल्य  देश हैं वहां लोकतंत्र नहीं है क्योंकि उनका लक्ष्य धार्मिक कानून (सरिया) लागू  करना होता है. भारत ही नहीं, यदि पूरे वैश्विक परिवेश में  देखे तो एक बात अत्यंत ध्यान देने योग्य है कि जो सरकार मुस्लिम मतों के आधार पर बनती है, वह राष्ट्र के लिए काम नहीं कर सकती. इसका सीधा और स्पष्ट कारण यह है कि ऐसी सरकारें मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मजहबी कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का कार्य करती है जो आगे चलकर राष्ट्र की मूल संस्कृति को नष्ट करके इस्लामिक राष्ट्र बनने का मार्ग प्रशस्त करती  हैं. भारत इसका जीता जागता उदाहरण है.अंग्रेजों के शासन से लेकर अब तक आए ज्यादातर सरकारें मुस्लिम तुष्टिकरण की राह पर चलती रही है, जिसके कारण आज देश एक ऐसी विषम परिस्थिति में खड़ा हो गया है जहां राष्ट्र मजहबी  कट्टरपंथ और उन्माद  के ज्वालामुखी पर बैठकर आतंकवाद अलगाववाद से जूझ रहा है. कश्मीर और केरल में क्या हुआ यह हम सभी ने देखा और यह भी देख रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में कैसे जनसंख्या घनत्व बड़ी तेजी से परिवर्तित हो रहा है. नेपाल की सीमा से लगे हुए उत्तर प्रदेश और बिहार के जिलों में खुले अनगिनत मदरसों में आतंक की फैक्ट्रियां चल रही है जिन्हें रोके बिना आतंकवाद पर लगाम लगाना मुश्किल है. धर्मांतरण, लव जिहाद और अन्य कई तरीकों से मुस्लिम आबादी बढ़ाने के युद्ध स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश शिया मुस्लिम वक्फ  बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी जैसे लोग  साहस का परिचय देते हुए लोगों को जागरूक कर रहे हैं कि कुरान में बाद में जोड़ी गई कुछ आयते   वैश्विक स्तर पर इस्लामिक उन्माद बढ़ा रही है और आतंकवाद का वातावरण तैयार कर रही है. एक यूट्यूब चैनल को इंटरव्यू देते हुए उन्होंने बताया उत्तर प्रदेश और बिहार के नेपाल सीमा से जुड़े कुछ जिलों में मदरसों की बाढ़ आ गई है जिनमें आतंकवाद की फैक्ट्रियां चलाई जा रही हैं. उन्होंने स्वयं कुछ मदरसों का दौरा करके इसकी समीक्षा की और सरकार से इन मदरसों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करने और उन्हें बैन करने की मांग की है. दुर्भाग्य से  भाजपा ने शाहनवाज हुसैन जेथे राष्ट्रीय प्रवक्ता  को मैदान में उतारकर वसीम रिजवी कि न केवल आलोचना की बल्कि उनके  विरुद्ध मोर्चा भी खोल दिया. आज वसीम रिजवी मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं और पूरे समाज को जागृत करने का काम कर रहे हैं कि कैसे मुस्लिम समाज के कुछ स्वार्थी तत्व मदरसों तथा अन्य धार्मिक संस्थाओं  की आड़ में राष्ट्र के विरुद्ध जिहाद चला रहे हैं. सरकार उनकी बातों पर ध्यान भले ही ना दें लेकिन सोशल मीडिया के इस युग में उनकी बातें न केवल ध्यान से सुनी जा रही है, बल्कि उनके वायरल प्रसारण के कारण सुखद परिणाम भी सामने आने लगे हैं. भाजपा और केंद्र  सरकार अभी भी सबका विश्वास प्राप्त करने के अभियान में जुटी है. वसीम रिजवी की इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा चाहे सिर के बल खड़ी हो जाए उसे मुस्लिम समुदाय के वोट नहीं प्राप्त हो सकते.

आज सनातन संस्कृति  के समक्ष गंभीर चुनौती उत्पन्न हो गई है और  संकट दिन प्रतिदिन गहराता जा रहा है. ऐसे में भाजपा अगर सब का विश्वास जीतने के प्रयास में लगे रहे तो उसे बहुसंख्यक वर्ग का विश्वास होना पड़ सकता है और इसका परिणाम यह होगा कि भाजपा "पुनः  मूषक: भव" होने   के लिए अभिशप्त हो जाएगी.


- शिव मिश्रा 

लेखक  आर्थिंक सामाजिक और सम सामायिक विषयों के लेखक  हैं .

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